अप्रैल 27, 2018

काम की बात ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

            काम की बात ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

      आज काम की बात करते हैं। आपको गलतफ़हमी न हो इसलिए पहले ही बताना चाहता हूं कि यहां काम से अभिप्राय कामवासना नहीं है। चर्चा इसकी है कि कौन कितने घंटे काम करता है। अपने नेता जी सुना है अठाहर घंटे काम करते हैं , करते होंगे जब कहते हैं तो। मगर करते क्या हैं यही नहीं बताया किसी ने। कोई अगर कहता है मैं सिनेमा देख रहा हूं , पहाड़ों पर घूमने गया हुआ हूं या दोस्तों के साथ मौज मस्ती कर रहा हूं तो उसे छुट्टी मनाना कहते हैं , काम करना नहीं। नेता सत्ता पाने के बाद काम नहीं करते हैं सत्ता सुख का लुत्फ़ उठाते हैं। स्कूल मास्टरजी जो घर से कर लाने को दिया करते थे वही काम कहलाता था , बच्चे स्कूल में पढ़ाई करें भले नहीं करें कोई नहीं पूछता , अगले दिन अध्यापक यही देखते थे घर में दिया काम किया या नहीं। सरकार भी इसी तरह काम करती है , देश और जनता का काम नहीं करते , अपने दल वालों घरवालों का काम करना ज़रूरी है। संविधान में आपको पांच साल मनमानी की छूट है जो चाहो करो या नहीं करो। 
 
      कभी किसी आई ए एस या आई पी एस अधिकारी से बात करना तो समझोगे वो क्या करते हैं। अधिकारी बनने का मतलब ही है काम नहीं करना। काम करना मनरेगा मज़दूरों के लिए है जो मांगते हैं तब भी काम नहीं मिलता। काम करना उनकी मज़बूरी है ज़रूरत है पेट भरने को। नेताओं अधिकारियों की भूख काम से नहीं बुझती , धन दौलत शान शोहरत और रईसी ठाठ बाठ की भूख कभी मिटती नहीं है। शासन की बागडोर जिस के हाथ होती है उसे हुक्म चलाना आता है , काम करना उसे तौहीन लगता है। देश की सरकारों नेताओं अफ्सरों ने अगर वास्तव में दायित्व निभाया होता काम करते तो तमाम विकसित देशों की तरह हमारा देश भी तरक्की कर सकता था। नेता लोग काम करने का अर्थ केवल चुनाव जीतने और सत्ता हासिल करने को की दौड़ धूप को मानते हैं। सरकार बन गई तो क्या क्या कर देंगे केवल जुमला होता है। 
 
               आपको यकीन नहीं आये तो कभी आर टी आई से पता लगवाना कौन नेता कौन अधिकारी कितने समय तक अपने दफ्तर में जाकर बैठा। उपयुक्त तक तथाकथित कैंप ऑफिस से काम करते हैं , इधर इक सी एम की घर बुलाकर अधिकारी से मारपीट की बात सामने आई है। जब हर किसी को सरकारी कर्मचारी को दफ्तर जाकर काम करना होता है तो देश का प्रधानमंत्री क्यों अपने दफ्तर जाकर काम करता है। अब पता लगाओ पी एम साहब पी एम ओ अर्थात प्रधानमंत्री कार्यालय कितने दिन कितने घंटे गए चार साल में। अब इधर उधर भाषण देना विदेश की सैर करना कोई काम नहीं है ऐश करना है , कितने साल जिन देशों में जाने की अनुमति नहीं थी वहां शान से हो आये , क्या सही क्या गलत की बात छोड़ दो। तुलसी की बात नहीं कि जहां आपके आने को नहीं पसंद किया जाता वहां नहीं जाना भले सोने की बरसात होती हो। 
 
        काम वही होता है जो सामने दिखाई दे भी की हमने क्या क्या कर दिया। देश की जनता की भलाई का कुछ भी हुआ दिखाई नहीं देता तो फिर किया क्या है। अभी चाहते हैं करने को और समय दिया जाये।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Aaj kal kaam nhi aaram ho rha h sb jgh