मार्च 15, 2017

POST : 618 लाठी भैंस को ले गई ( हास्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

 लाठी भैंस को ले गई (  हास्य कविता )  डॉ लोक सेतिया

भैंस मेरी भी उसी दिन खेत चरने को गई
साथ थी सारी बिरादरी संग संग वो गई ।

बंसी बजाता था कोई दिल जीतने को वहां
सुनकर मधुर बांसुरी  सुध बुध तो गई ।

नाचने लग रहे थे गधे भी देश भर में ही
और शमशान में भी थी हलचल हो गई ।

शहर शहर भीड़ का कोहराम इतना हुआ
जैसे किसी तूफ़ान में उड़ सब बस्ती ही गई ।

तालाब में कीचड़ में खिले हुए थे कमल
कीचड़ में हर भैंस सनकर इक सी हो गई ।

शाम भी थी हुई सब रस्ते भी बंद थे मगर
वापस नहीं पहुंची भैंस किस तरफ को गई ।

सत्ता की लाठी की सरकार देखो बन गई
हाथ लाठी जिसके भैंस उसी की हो गई । 
 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

😊😊बहुत खूब