लाठी भैंस को ले गई ( हास्य कविता ) डॉ लोक सेतिया
भैंस मेरी भी उसी दिन खेत चरने को गईसाथ थी सारी बिरादरी संग संग वो गई ।
बंसी बजाता था कोई दिल जीतने को वहां
सुनकर मधुर बांसुरी सुध बुध तो गई ।
नाचने लग रहे थे गधे भी देश भर में ही
और शमशान में भी थी हलचल हो गई ।
शहर शहर भीड़ का कोहराम इतना हुआ
जैसे किसी तूफ़ान में उड़ सब बस्ती ही गई ।
तालाब में कीचड़ में खिले हुए थे कमल
कीचड़ में हर भैंस सनकर इक सी हो गई ।
शाम भी थी हुई सब रस्ते भी बंद थे मगर
वापस नहीं पहुंची भैंस किस तरफ को गई ।
सत्ता की लाठी की सरकार देखो बन गई
हाथ लाठी जिसके भैंस उसी की हो गई ।
1 टिप्पणी:
😊😊बहुत खूब
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