राष्ट्रपिता होने की निशानी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
( पुरानी दास्तां लो फिर याद आ गई )
बच्चों का खेल नहीं है बच्चों के सवालों के जवाब देना । बड़े बड़े ज्ञानी लोग बच्चों के सवाल का हल नहीं खोज पाते । अपनी अज्ञानता को छुपाने को कह देते हैं , ये बच्चों की समझ की बातें नहीं हैं । मगर हमेशा ये इतना आसान नहीं होता । भले टीवी पर इक विज्ञापन दावा करता है की अमुक ब्रांड का जांगिया पहन आप असम्भव को सम्भव कर सकते हैं " बड़े आराम से " । सरकारी विज्ञापन कब से समझा रहे हैं जनता को कि देश प्रगति कर रहा है , मगर हम क्या करें देश में भूख से लोग मरते हैं , किसान खुदकुशी करने को मज़बूर हैं , लोगों को साफ पानी तक नहीं मिलता पीने को , बच्चे आज भी पढ़ने की उम्र में मज़दूरी करने को विवश हैं , गरीबों को कहीं भी मुफ्त इलाज नहीं मिलता । सरकार उनके मरने पर बीमे की बात करती है , ज़ख्मों पर नमक छिड़क कर कहती है , लो अच्छे दिन आये हैं । लगता है मैं भावावेश में विषय से भटक गया , चलो मुद्दे की बात करते हैं । काश बाज़ार के और सरकार के विज्ञापन झूठे नहीं होते , तो हर समस्या का समाधान किया जा सकता । कल तक अगर किसी बच्चे के सवाल का जवाब नहीं दे सकते थे तो चुप रहने से काम चल जाता था । आज़ादी के बाद कितने समय से देश में सरकारें यही करती आई हैं , लेकिन सूचना के अधिकार ने सरकार को बहुत परेशानी में डाल रखा है ।लखनऊ वालों की बात ही अल्ग होती है , जब वहां रहने वाली लड़की का नाम ऐश्वर्या हो तो कहना ही क्या । दस साल की ऐश्वर्या ने देश की सरकार को दुविधा में डाल दिया है , वह भी इक सवाल पूछकर कि किस आधार पर महत्मा गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा मिला हुआ है । बच्ची ने सवाल पी एम ओ से पूछा था , पी एम ओ ने उसे ग्रहमंत्रालय और ग्रहमंत्रालय ने उसे राष्ट्रीय अभिलेखागार को भेज दिया था , अभिलेखागार की सहायक निदेशक जयप्रभा रवींद्रन ने जवाब भेजा की उनके पास कोई भी ऐसा दस्तावेज़ मौजूद नहीं है । अर्थात भारत सरकार को इसकी जानकारी नहीं है की महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता किस आधार पर माना जाता है । अब इससे आगे का प्रश्न बहुत ही असहज करने वाला हो सकता है । पुरानी कितनी हिट फिल्मों की कहानी पिता के नाम की , मां की अथवा माता - पिता के कातिल की तलाश को लेकर होती थी । उन फिल्मों से स्टार सुपरस्टार क्या नायक महानायक तक बन गये लोग । हमारे समाज में पिता का नाम होना बेहद ज़रूरी है , यदा कदा उसके सबूत की ज़रूरत आन पड़ती है । कभी किसी के पिता या बेटे होने पर संशय हो तो मामला संगीन हो जाता है । इक राजनेता को अदालत में घसीटा गया , डी एन ए टेस्ट करवाया गया ये साबित करने को कि वो किसी का पिता है । अब दुनिया वाले हमसे सवाल पूछ सकते हैं की बताओ क्या सबूत है गांधी जी के राष्ट्रपिता होने का , ऐसे में हम डी एन ए टेस्ट भी नहीं करवा सकते कितने सालों पहले स्वर्ग सिधार चुके महात्मा गांधी जी का । यहां उनकी चीज़ों का कारोबार ही होता आया है , उनके विचार सब कभी के भुला ही चुके हैं । दिखाओ कोई हो जो इक धोती में रहता हो ये देख कर की लोग नंगे बदन हैं ।
जब भी ये सवाल खड़ा होगा साथ कितने और प्रश्न भी लायेगा , पिता के नाम के साथ जन्म की तिथि की भी बात होगी । देश आज़ाद भले 1947 में हुआ हो उसका जन्म तब नहीं हुआ था वो बहुत पहले से था , नाम बदलता भी रहा हो तब भी इतना तो तय है की देश का अस्तित्व महात्मा गांधी के जन्म लेने से पहले से था । अर्थात राष्ट्र के पिता का जन्म बाद में हुआ जबकि राष्ट्र पहले से था । बात मुर्गी और अंडे जैसी सरल नहीं है , लगता है हमने एक पुत्र को अपने ही पिता का पिता घोषित कर डाला । " चाइल्ड इस फादर ऑफ़ मैन " कहते भी हैं , लेकिन दार्शनिकता की नहीं ठोस वास्तविकता की बात है । लोग इधर नकली प्रमाण पत्र बना लेते हैं , हमें ऐसा नहीं करना है , तलाश करना है किस आधार पर उनको राष्ट्रपिता घोषित किया गया । क्या है कोई सबूत या यहां भी किसी फ़िल्मी कहानी की तरह कोई इतेफाक है जो अंत में मालूम पड़ता है । सरकार को संभल जाना चाहिये , मीडिया को भी हर किसी को भगवान घोषित करने से सबूत सामने रखना चाहिये , जो आम इंसान भी नहीं साबित होते कभी वक़्त आने पर , उनको आपने कैसे कैसे भगवान घोषित किया हुआ है , खुद आपका भगवान तो केवल पैसा ही है ना । कल कोई बच्चा अपने मां - बाप से कह सकता है , मुझे तो नहीं लगता कि आप मेरे माता-पिता हैं ।
इस बीच दस साल गुज़र चुके हैं और गंगा जमुना से कितना पानी बह चुका है ऐसी कहावत व्यर्थ है बल्कि आजकल दिल्ली की हवा तक ज़हरीली हुई है पानी की स्वछता को छोड़ देना चाहिए । सरकार की सोच के बदलने की चिंता करनी चाहिए । जैसे विवाह में कुंडली मिलान करते हैं तो अधिकांश पंडित जी कन्या की राशि उसका नाम बदलने से स्वभाव बदलने की बात बताते हैं । सब जानते हैं नाम बदलने से कुछ कभी नहीं बदलता है लेकिन टोटके आज़माना हमारी परंपरा रही है । आधुनिक सरकार ने नाम बदलने में कीर्तिमान स्थापित किया है बस नामकरण करने को ही महान कार्य समझा जाने लगा है । बदलते बदलते महात्मा गांधी का नाम योजना से चतुराई से गायब किया जा रहा है । महत्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम का नाम बदलने से सरकार का विश्वास है सभी कुछ बदल जाएगा । सत्ता की विशेषता यही होती है कि खुद को कभी नहीं बदलती दुनिया भर को बदलने की बात करती है । जिनको हमेशा से महात्मा गांधी कोई नायक नहीं खलनायक लगते थे उनके पास यही विकल्प था कि गोडसे का नाम नहीं रख सकते तो गांधी को कुछ इस तरह छोटा कर दिया जाए कि लोग ढूंढना भी चाहें तो नहीं मिल सके , मगर ऐसा होता नहीं है किसी ने महात्मा गांधी को उस शिखर पर नहीं बिठाया जिस से कोई और हटा सके । नाम बदलने से क्या कभी भारत देश की तकदीर को बदल सकते हैं , बड़े नादान है जनाब अपनी बड़ी लकीर नहीं बना सकते किसी की लकीर को मिटा कर छोटा करने की कोशिश कर रहे हैं ।
