जुलाई 07, 2019

नाम बदलने से बदलेगा नसीब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     नाम बदलने से बदलेगा नसीब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

         खोजने पर भगवान मिलते हैं तो हर समस्या का उपाय मिलना क्या बड़ी बात है। बजट को बहीखाता नाम देने का अर्थ गहरा है हम नासमझ लोग समझते समझते इस नर्क से किसी और दुनिया के नर्क चले जाएंगे। जिन को धरती पर स्वर्ग मिला है उनकी ऊपर भी जगह आरक्षित है। आरक्षण ऊपर तक पहुंचा हुआ है आज से नहीं कितनी सदियों से वर्ग वर्ग का कानून बना हुआ है। नाम बदलने से राशिफल बदलता है सरकारी ऐलान है आपको स्वीकार करना होगा। ये बजट नहीं है उनका बहीखाता है। जिसने लिखा था नाम में क्या रखा है उसने भी लिख कर अपना नाम साथ हस्ताक्षर किये थे ताकीद के साथ। ये अजीब दास्तानें हैं उलझनें सुलझाने से और उलझती जाती हैं। उनका कहना है कि सूटकेस बदनाम बहुत है तभी उन्होंने उसकी जगह बहीखाता लाने का निर्णय किया है माता जी ने सुझाव दिया था ऐसा करने का। फिर उस बाहरी आवरण को भगवान के दर्शन भी करवाने का काम किया है। आगे भगवान को देखना है क्या कैसे करते हैं। लोग पहले से जानते थे देश भगवान भरोसे है अब सरकार भी खुद पर नहीं ऊपर वाले पर यकीन कर चलती है। अब कोई उनको बताएगा बदनाम सूटकेस नहीं लोग रहे हैं रिश्वत देने लेने वाले। अगर फिर भी बदनामी की बात की जाये तो लालाजी की बहीखाता की बदनामी मुन्नी की बदनामी से बढ़कर रही है। खराबी सूटकेस में नहीं होती न ही बहीखाते में खराबी होती है। खराब नियत लोगों की होती है , मगर कहने का अधिकार उनका है हम तो सुन सकते हैं समझने की कोशिश कर सकते हैं।

      थोड़ा थोड़ा समझने की कोशिश कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर धर्म की किताबों को ऐसी भाषा में लिखते थे जो आम लोग नहीं पढ़ सकते न उनको पढ़ने की अनुमति होती है। धर्म की दुकानदारी करने वाले जब जैसे उसका अर्थ निकाल आपको उल्लू बना सकते हैं। धर्म कोई भी हो उनके अनुसार कोई बहीखाता नाम का हिसाब लिखने का कीमती सामान होता है जिस में पाप-पुण्य लेना-देना जैसे दो शीर्षक रहते हैं। साहूकार की बही हो सरकार का बजट या धर्म वालों का गणित आपको समझ नहीं आना चाहिए तभी धंधा बढ़ता है। धर्म वाले लिखते हैं हम करें तो सौ गुनाह माफ़ कोई और करने को सोचे भी तो सज़ा का हकदार। कोई तर्क की बात करना अपराध है ये उनका बनाया नियम उनकी मर्ज़ी से है। उनका धर्म का तराज़ू है मगर तोलने को बाट कई हैं जैसे चाहते वज़्न बताने की सहूलियत रहती है। सरकार को कोई किताब मिल गई है जो अनहोनी को संभव करने का दावा करती है बस आंख बंद कर भरोसा करो जो कहते हैं करते जाओ। कल्याण होगा विश्वास रखना है कल्याण नहीं होने पर शक किताब पर नहीं उपाय बताने वाले पर नहीं खुद पर शक करो कि हमसे ही कोई भूल चूक हुई होगी। दक्षिणा की बात मत करना ये विचार मन में लाना ही अधर्म है धर्म पर अविश्वास है तभी आपको हासिल कुछ नहीं होता है। बजट की बात और थी बहीखाते की अलग है सरकार कहती है बेघर लोगों को घर बनाने को क़र्ज़ लेना फायदे का होगा मगर घर खरीदना है तो मकान की कीमत के साथ बिजली का बिल रख रखाव का खर्च भी जोड़ कर सरकारी दक्षिणा वसूली जाएगी। अर्थ आपको समझ कभी नहीं आने वाला है ये बच्चों की डंडे से पिटाई की तरह है मास्टरजी से लेकर पिताजी तक करते हैं आपकी भलाई के नाम पर। पिटाई से बच्चे सुधरते हैं या ढीठ और बेशर्म बनते हैं अभी शोध जारी है।

हर शहर में कोई न कोई खुद को असली लाल किताब वाला बतलाता है। अब पहली बार सामने दिखाई दी है लाल किताब लाल रंग के सुंदर कपड़े में लिपटी हुई। सब ने देखा मगर कोई समझा नहीं सरकार ने भी राज़ को राज़ रहने दिया। लाल किताब दुनिया का सबसे बड़ा खज़ाना है जिस में सब का भाग्य लिखा हुआ है लाल किताब वाले आपकी हर समस्या का समाधान कर सकते हैं। मैं जानता हूं इक ऐसे ही लाल किताब वाले
को जिसके पिताजी लाल किताब से भविष्य बांचने का काम किया करते थे। फेसबुक पर भी बहुत लोग खुद को लाल किताब धारी होने का दावा करते हैं। पहले लाल किताब के दर्शन करते हैं।


लाल किताब है या नहीं होती है इस पर संशय नहीं रहा है। सरकार के पास सुरक्षित है अर्थात सरकार खुद अपना भाग्य जैसा चाहती है बना सकती है आपको अपना भाग्य बदलवाना है तो बाकी सब को भूल कर असली लाल किताब जिसके पास है उसके पास चले जाओ। अभी भी अगर आपको नहीं समझ आया करिश्मा कैसे हो रहा था तो फिर कभी नहीं समझोगे। आज आपको लाल किताबी उपाय बताते हैं मगर आज़माना नहीं क्योंकि लाल किताब जिसके पास होती है वह खुद लाल सियाही से उपाय लिख कर देता है। लाल किताब देख कर आपको पिछले जन्म की और अगले जन्म की भी बात बताई जा सकती है। लाल किताब को संसद में लाना सबके सामने सब की जानकारी से छुपाकर संभव नहीं था मगर अब उनकी सरकार है जिनको लेकर सब मुमकिन है का दावा किया जाता रहा है। जब लाल किताब पास हो तब नामुमकिन भी मुमकिन हो जाता है।

लाल किताब को लाल कपड़े में लपेटने का असर होता है कि धार्मिक किताब की तरह उस पर शक या सवाल करना गलत माना जाता है।  अभी कोई नहीं जानता कि ये लाल किताब अभी तक कहां थी किस के पास थी। क्या देश की सरकार पिछले इतने साल तक इसकी अवेहलना करती रही या बेकार समझती रही। या फिर पहले देश के सत्ताधारी को नास्तिक होने का भी दोषी घोषित किया जा सकता है ऐसा बताकर कि हमने इसको दबे हुए खज़ाने की तरह खोजा है। मगर जब इस को खोलकर पढ़कर सुनाया गया तो किसी को समझ नहीं आया इसको बजट नहीं बहीखाता सही जो भी नाम दे दिया जाये इस से सबको सब कुछ मिलेगा कब कैसे। सरकार दावा करती है कि उसने देश ही नहीं सब दुनिया की हर समस्या का हल पा लिया है। शायद भूख गरीबी बेरोज़गारी आपसी भेद भाव ही नहीं राजनीति से अपराधियों का ख़ात्मा तक इस से मुमकिन होगा सरकारी बात पर भरोसा किया जाये अगर। मगर अभी आतंकवाद को लेकर पड़ोसी देश पर निर्भर करता है क्योंकि लाल किताब सीमा पार कोई वार नहीं कर सकती है।

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