जुलाई 03, 2019

शोर की ख़ामोशी से मुलाकात ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     शोर की ख़ामोशी से मुलाकात ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

जिसकी लाठी उसकी भैंस की तरह सत्ता पास है सबसे अच्छा होने का शोर खुद उनका है। उनसे पहले भी जो नहीं बोलने की पहचान से जाने जाते हैं दो बार सत्ता पर रहे हैं। उनको लेकर हैरान भी परेशान भी थे और अपनी हर किसी को अपमानित करने की आदत से मज़बूर भी इसलिए संसद में मज़ाक उड़ाने को कह दिया था। आपसे सीखना है राजनीति के हम्माम में भी इतने घोटालों के बाद आपके दामन पर इक छींटा तक नहीं नज़र आया। क्या ग़ुसलख़ाने में भी रेनकोट डाल कर नहाते हैं। कौन बताये उनको ईमानदारी का कोई रेनकोट आपके बाजार में नहीं मिलता है। मौन रहे थे अच्छा किया वाहियात किस्म की बात पर जवाब नहीं देना ही समझदारी है। मगर अब खुद को सबसे अच्छा कहलाने वाले समझ नहीं पा रहे हमने देश की अर्थव्यवस्था को जिस बदहाल हालत में पहुंचा दिया है उस से बाहर निकलने का कोई रास्ता बचा भी है। तब याद आया कभी उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को बचाने का कार्य किया था वित्तमंत्री बनकर। राजनेताओं को शायद शर्म नहीं आती किसी को अपमानित करने के बाद अवसर आने पर गले मिलकर मतलब की बात करने की। और भले लोग अपनी शराफ़त को छोड़ते नहीं हैं घर आये महमान का आदर किया करते हैं। पहले अपनी बनाई वित्तमंत्री को मिलने भेजा औपचारिक नहीं थी मुलाकात तैयारी थी अपनी डूबती नैया को किस तरह बचाया जाये ये ज़रूरी सबक किसी और से नहीं सीखने का जोखिम उठाया जा सकता। असली किया धरा सब खुद का है और नासमझी में मनमानी करते करते देश की अर्थव्यवस्था की कश्ती को बीच मझधार ले आये हैं। माझी शब्द सुना होगा पतवार थामे कश्ती को पार लगाने का काम करते हैं उर्दू भाषा में उसको नाखुदा कहते हैं , इक शेर है " नाखुदा को खुदा कहा है तो फिर , डूब जाओ खुदा खुदा न करो "। परवीन फ़ाकिर की ग़ज़ल है। मेरी भी इक ग़ज़ल है चलो पेश करता हूं।

  ग़ज़ल डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

हमको ले डूबे ज़माने वाले ,
नाखुदा खुद को बताने वाले।

देश सेवा का लगाये तमगा ,
फिरते हैं देश को खाने वाले।

ज़ालिमों चाहो तो सर कर दो कलम ,
हम न सर अपना झुकाने वाले।

उनको फुटपाथ पे तो सोने दो ,
ये हैं महलों को बनाने वाले।

तूं कहीं मेरा ही कातिल तो नहीं ,
मेरी अर्थी को उठाने वाले।

तेरी हर चाल से वाकिफ़ था मैं ,
मुझको हर बार हराने वाले।

मैं तो आइना हूँ बच के रहना ,
अपनी सूरत को छुपाने वाले। 
 
 
    जिनको हमने नाखुदा समझा था वही हमको ले डूबे हैं। बात हो रही थी शोर की मुलाकात की ख़ामोशी के साथ। ख़ामोशी नहीं जाती है उस तरफ शोर ही है जिसको ख़ामोशी की ज़रूरत पड़ जाती है। मगर क्या कहा होगा शोर ने क्या जवाब मिला होगा ख़ामोशी से बताएगा कौन ख़ामोशी बता नहीं सकती और शोर को बताना नहीं मंज़ूर। फिर भी कल्पना करते हैं। 
 
  आप आये घर हमारे खुदा की कुदरत है हम कभी आपकी शान को कभी हमारे घर की सादगी को देखते हैं। आपको तो पहले के सभी खराब लगते हैं फिर क्यों ज़हमत उठाई हमारे पास आने की जब नवरत्न आपके दरबार में हैं आपके बनाये हुए। अपने सुनते हैं सरकारी संचार की भारत संचार निगम लिमिटेड कंपनी जिसकी जायदाद तीन लाख करोड़ है उसको 950 करोड़ में अपने कारोबारी दोस्तों को बेचने का विचार कर रहे हैं।
सरकारी विमान कंपनी को भी आप निजी हाथों में सौंपना चाहते हैं। घर का सामान संभालना नहीं आता या अपने खास लोगों को सस्ते में बेचना चाहते हैं ताकि छींटों से बचे रहें और जी भर कर बौछारों से खुलकर नहाने का लुत्फ़ भी उठाते रहें। इतना तो समझते हैं लोग कि देश की आर्थिक बदहाली का आपके दल का विश्व की सबसे अमीर राजनीतिक पार्टी बनने का कोई नाता अवश्य है। आगे कब क्या करना है पता नहीं।
 कल शायद देश की हालत को भी बिगाड़ कर किसी को ठेके पर देने की बात सोचने की नौबत आ जाये। आपने पिछले पांच साल में बेतहाशा धन बर्बाद किया है विदेशी दौरों से देश भर में अपने गुणगान को जमकर शोर मचाने पर। अच्छे दिन की जगह बुरे दिन कोई और नहीं लाया है कम से कम पचास साल पहले मर चुके व्यक्ति को अपने अपकर्मों का दोष नहीं दे सकते हैं। पांच साल और मिल गए  हैं आपको जो मर्ज़ी करने को कोई आपको कुछ नहीं कहने वाला है। आपको हैरानी नहीं हुई ख़ामोशी ये सब बोलती रही और शोर चुपचाप सुनता रहा भला कैसे। मगर यही होता है ख़ामोशी बिना आवाज़ जो समझा देती है शोर ऊंची ऊंची आवाज़ करने के बावजूद नहीं समझा सकता है। 
 
      आखिरकार शोर करने वाले को कहना ही पड़ा अपने सच कहा था हालत जितनी आपको आशंका थी उस से भी बढ़कर चिंतनीय दशा तक खराब हो चुकी है। आपको नज़र आता है मैंने कितना खूबसूरत लिबास पहना है मगर सच कहूं खुद को महसूस करता हूं जैसे राजा नंगा है कहानी जैसी हालत नहीं हो। कोई सच बताता ही नहीं सब घबराते हैं सच कहा तो सूली चढ़ा दिया जायेगा मगर आपको सच बोलने से कोई रोक नहीं सकता है। अब आप मुझे सच सच बताओ मैंने जिस को पहना हुआ है क्या वो पोशाक जैसा सब लोग शोर मचा रहे हैं मेरी रथयात्रा पर पुष्प वर्षा कर रहे हैं वास्तव में पहनी हुई है , कहीं मेरी हालत हम्माम में कुछ भी नहीं पहने व्यक्ति जैसी तो नहीं लग रही है। ख़ामोशी मुस्कुराई और धीमे से बताया आपकी जिस्म वाली पोशाक तो लाजवाब है आपके भीतर की वास्तविकता ढकी छिपी है मगर देश की अर्थव्यवस्था की दशा को कब तक देश की जनता से छिपाओगे आखिर सामने आनी ही है। आपको नेक सलाह कभी किसी की भाती नहीं है जिसने भी दी अपने उसी को किनारे लगा दिया। नाखुदा होने का दावा किया था अब डूबने के आसार बने हैं तो खुदा खुदा करने से बात नहीं बनेगी। भगवान उसी को बचाता है जो खुद कोशिश करते हैं बचाने की। आपको तो आदत है जानकर कश्ती को मझधार में ले जाने की तूफ़ान से खेलने की आदत खतरनाक होती है। इक ग़ज़ल भी है सुनोगे जाने से पहले अच्छी है। 
 

जीवन मृत्यु फिल्म की है और धोखे से जालसाज़ी से किसी बेगुनाह को सज़ा दिलवाले वाले लोगों को अंजाम तक पहुंचाती है कहानी। इशारा समझ सकते हैं काफी है।   


कोई टिप्पणी नहीं: