सितंबर 14, 2018

चलो काम आ गई दीवानगी अपनी ( कथा कहानी ) डॉ लोक सेतिया

 चलो काम आ गई दीवानगी अपनी ( कथा कहानी ) डॉ लोक सेतिया

      हर कहानी कहानी होती है मगर हर कहानी की भी कोई कहानी होती है। कोई कोई ग़ज़ल महफ़िल को सुनानी होती है , कोई होती है जो उनको समझानी होती है। कहानी की सफलता इसी में छुपी हुई है कि जो हक़ीक़त है सबको फ़साना लगती है। बात जाएगी बहुत पीछे भी और आगे भी मगर शुरुआत आज की बात से। थोड़ी हैरानी हुई जब उनका फोन आया मुझे कहने लगे ऐसी बेबाकी आपकी जान की दुश्मन नहीं बन जाये किसी दिन। आजकल सब डरते हैं आपको डर नहीं लगता , किस किस पर व्यंग्य बाण चलाते हो। शुभचिंतक हैं तभी आगाह कर रहे हैं सच कहें बहुत भाते हो। जी ये वही हैं जो दोस्त हैं मगर रकीब जैसे हैं , नहीं कोई इश्क़ विश्क की बात नहीं है लिखते हैं मगर खुद को जाने क्या समझते हैं , किसी को अपने बराबर नहीं मानते। किसी ने किसी और शहर से मेरे बारे पूछा था तो जवाब था कौन है ऐसे किसी लेखक को हम नहीं जानते। जी जानते हैं पहचानते हैं मेरे पास आते हैं बतियाते हैं , बस मानते नहीं हैं। मनवाना हमने भी ज़रूरी नहीं समझा।

     दो घंटे बाद खुद आ गए और राज़ बता गए , फोन किया नहीं करवाया गया था। वीआईपी जैसी शख्सियत है उनकी , उनका कहा मना कौन करता। इसको आप चेतावनी समझ सकते हैं मगर मेरा कोई लेना देना नहीं है। मैंने कहा जनाब उनको बता देना खुद हमारी यही चाहत है , कत्ल होने की आदत है। नहीं समझ आई उनको मेरी बात , लगा शायद मज़ाक कर रहा हूं। मैंने कहा देखो आप अकेले ही नहीं तमाम शहर वाले अपने पराये सब सोचते हैं मैं जो लिखता हूं किसी पर असर नहीं होता और मैं बेकार कलम घिसाता रहता हूं। अगर इतना बड़ा कोई शख्स मेरी सच्चाई से घबराता है और मुझे डराता है धमकाता है और सज़ा देने को आतुर है तो मेरा लिखना वास्तव में सार्थक है। देखो मरना तो एक बार सभी को है साहस से जीकर मरना बेहतर है कायरता से ज़िंदा रहने से कहीं।

            न जाने क्या सोचकर उन्होंने बात बदल दी। और शायरी की बात करने लगे। अचानक बोले आप निडर हैं तो फिर कभी न कभी किसी न किसी से इश्क़ किया होगा। मुझे उनसे ऐसा सबूत मांगने की उम्मीद कदापि नहीं थी। मैंने कहा जनाब इस उम्र में खुदा खुदा करते हैं आप क्या बेलज्ज़त गुनाह करते हैं। पर वो नहीं माने और कहने लगे प्रेम विवाह किया होगा आपने। जी नहीं मैंने उनको देखा ही नहीं था बताया। कोई तो कभी मिली होगी आपको जिसको देख कर दिल धड़कता होगा , इतनी अच्छी कविता ग़ज़ल यूं ही तो नहीं लिखते हैं आप। मैंने उनको सच बताना ही उचित समझा , मैंने बताया कि आपकी तरह कॉलेज का एक सहपाठी मुझे डरपोक बताया करता था और शर्त लगाता था मैं किसी से प्यार नहीं कर सकता क्योंकि मुझमें किसी लड़की से बात करने की हिम्मत ही नहीं है। मगर उसको भी बताया था मैं जैसी लड़की चाहता हूं अपने प्यार के लिए कोई नज़र नहीं आती मुझे। आपको कैसी महबूबा की तलाश थी यही बता दो भाई , उनकी ज़िद फिर उसी विषय पर अड़ी हुई थी , दिल की बात बतानी नहीं चाहिए अपने रकीब जैसे दोस्त को। मगर अब बताने में जाता कुछ भी नहीं। कोई सिलसिला ही नहीं , याद आई अपनी ग़ज़ल।

                 फिर नये सिलसिले क्या हुए , सब पुराने गिले क्या हुए।

    मैंने कहा , कोई होती कविता सी कोमल ग़ज़ल जैसे नाज़ुक। जिसे सोने चांदी के गहने नहीं मुहब्बत की चाहत हो। प्यार ही जिसको लगती सबसे बड़ी दौलत हो। मुझे जो ख्वाब में दिखाई देती है वही बिल्कुल वही हक़ीक़त हो। अब उनको लगा वास्तव में ऐसे दीवाने से कौन दिल लगाता और सपनों की असलियत कौन किसे समझाता। तो मिली कोई , आखिरी सवाल उठते उठते किया बेदिली से। मैंने कहा जी मिल गई है , मेरी शायरी मेरी कविता मेरी ग़ज़ल मेरी कहानी ये सब मेरा इश्क़ ही तो है मेरा जूनून है। हर पल यही साथ है और किसी के लिए दिल में जगह बची ही नहीं। ये आपकी दीवानगी आपको जाने कब ले डूबेगी कहकर बाहर निकल गए वो मुझे अकेला छोड़ कर। चलो काम आ गई दीवानगी अपनी।