जून 14, 2017

स्वच्छता अभियान या कुछ और ( आज की बात ) फतेहाबाद का पपीहा पार्क अभी अभी का सच डॉ लोक सेतिया

      स्वच्छता अभियान या कुछ और ( आज की बात )

                   फतेहाबाद का पपीहा पार्क अभी अभी का सच 

                                              डॉ लोक सेतिया 






अभी अभी मेरे घर के सामने भाषण दिया जा रहा था , सुन कर मैं जब पहुंचा तब सब से प्रमुख अधिकारी धन्यवाद कर रहे थे अपनी बात को खत्म करते हुए। मैं दो साल से यहां की गंदगी को लेकर लिखता रहा हूँ हर अधिकारी को हर तरह से। सुबह जब जाता हूँ सड़क पर पांव रखने को जगह नहीं होती इतनी गंदगी फैली होती है। आज क्योंकि सरकारी आयोजन करना था इसलिए कुछ हद तक सफाई की गई दिखावे को और जो गंदगी डालते उनको आज रोक दिया गया। क्या इस तरह भारत स्वच्छ होगा झूठ दिखला कर। मैंने मंच पर जाकर उन अधिकारी से कहा कि जो आप बोल रहे वो झूठ है मैं आपको बताता सच क्या है। और मुझे वहां से बलपूर्वक बाहर धकेला गया , प्रशासनिक लोगों और पुलिस अधिकारीयों द्वारा। आप कहते हैं आपको बताया जाये क्या कहाँ गलत होता है मगर आप सच को खामोश करना चाहते हैं। किसी ने कहा आप बाद में मिल कर बताना जो वास्तविकता है , मगर अपमानित किये जाने के बावजूद भी मैंने फिर वापस अपनी गाड़ी की तरफ जाते उन अफसर से कहा क्या दो मिंट बात सुनोगे। मगर उनके इशारे से पहले ही पुलिस वाले मुझे ज़बरदस्ती पकड़ दूर ले गए। शायद उनको परवाह ही नहीं कि उनको ऐसा करने का अधिकार है भी या नहीं। जो उन सब की नज़रों में दिखाई दिया वो साफ था कि उनका बस चले तो वो मुझे कुछ भी कर सकते हैं।  कम से कम ऐसी पुलिस से सुरक्षा की उम्मीद तो नहीं की जा सकती। क्या यही सुशासन है , आप एक तरफ इमरजेंसी के कैदियों को पैसे देते हैं साथ ही बिना आपत्काल घोषित किये उसी तरह का अलोकतांत्रिक आचरण करते हैं। शायद इनको याद नहीं ये शासक नहीं हैं और कोई राजा नहीं है। जनता या किसी नागरिक पर इस तरह पब्लिक प्लेस में आपको रोक लगाने की अनुमति नहीं है।  सब से विचित्र बात ये होती है कि हम जो लोग भी भीड़ बन जमा होते हैं वो कभी साहस ही नहीं करते उनसे निडर होकर बात करने का। आज जब मुझ अकेले से बात करने से बच रहे थे वो वास्तव में खुद डर रहे थे क्योंकि उनमें सच का सामना करने का साहस ही नहीं था। तंत्र की ये सारी ताकत भी उनको अपने झूठ की पोल खुलने से बचा नहीं सकती थी , और इस तरह मुझे अथवा किसी भी आम नागरिक के सवाल  का जवाब नहीं देकर पुलिस द्वारा हटाने को देखना उनकी देश की सेवा और जनता के अधिकारों की रक्षा करने की शपथ का उपहास कर साबित कर रही थी कि आप में संविधान और नागरिक  के मौलिक अधिकार जिन में विरोध की बात कहना भी शामिल है का पालन नहीं कर रहे हैं।  आप अँधेरा फैला कर उसको रौशनी का नाम देना चाहते हैं। आज की यहाँ की असली तस्वीर भी आपको देखनी ज़रूरी हैं।

लेकिन कल सुबह आपको अख़बार में खबर मिलेगी हरियाणा के फतेहाबाद शहर की स्वच्छता अभियान की सफलता और खुले में शौच मुक्त और आवारा पशु से मुक्त होने पर मिले सम्मान के बाद स्वच्छता के इस आडंबर की भी। किसी टीवी या अख़बार वाले को कुछ भी नज़र नहीं आएगा।  मुझे  ये सब करते बयालीस साल हो गए हैं।  आपातकाल से ही लिखता आया हूँ और 2 5 जून 1 9 7 5 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के भाषण सुनने वाले में रहा हूँ। जिनको पता नहीं उनको बताना चाहता हूँ जिन शब्दों के उपयोग की बात की आड़ लेकर एमरजेंसी लगाई थी वो क्या थे।

        जे पी जी ने कहा था सुरक्षा कर्मियों से कि अगर कभी कोई शासक आपको शांतिपूर्वक विरोध करती जनता पर लाठी या गोली चलाने को कहे तो आपको उनका आदेश नहीं मानना है। क्या भाजपा आज मानती है ऐसा बोलना गुनाह था। अगर नहीं तो जो आज मेरे साथ हुआ या किसी और जगह किसी और के साथ होता है तब पुलिस का ऐसा आचरण उचित है। आपकी कथनी और करनी में अंतर होगा तो इतिहास आपको मुजरिम ठहराएगा ही। इतिहास ने वो मंज़र भी देखे हैं , लम्हों ने खता की थी सदियों ने सज़ा पाई। आज की ये बात भी लिखी जायेगी किसी न  किसी रूप में।


कोई टिप्पणी नहीं: