नवंबर 10, 2014

नेहरू से लेकर मोदी तक ( इंडिया का कड़वा सच ) डा लोक सेतिया

 नेहरू से लेकर मोदी तक ( इंडिया का कड़वा सच ) डा लोक सेतिया

                    देश को आज़ाद हुए सतसठ वर्ष हो गये मगर अभी भी कहने को विकास की बात की जाती है मगर होता क्या है ? देश का धन बर्बाद किया जाता है , क्या अंतर है नेहरू की सरकार करे इंदिरा की वाजपेयी की मनमोहन की या अब मोदी की। भूल तो नहीं गये इमरजेंसी के विज्ञापन , आपात्काल का गुणगान , फिर फील गुड का दावा , भारत निर्माण का प्रचार , हरयाणा या अन्य राज्यों का अपना अपना नंबर वन का डंका बजाना। ये सब क्या है , किसी को लोकप्रिय साबित करने के लिये देश के धन की बर्बादी। कभी किसी ने नहीं सवाल किया इस देश में आज तक का सब से बड़ा घोटाला क्या है , कैसे बतायेंगे अखबार टीवी वाले कि हम शामिल हैं इस लूट में। इनका पेट भरता ही नहीं बिना सरकारी विज्ञापनों के , ये बैसाखियां ज़रूरी हैं इनके लिये। जो खुद अपने पैरों पर चलना नहीं चाहते वो सब से तेज़ सब से आगे होने का दम भरते हैं। हैरानी होती है कोई सरकार कोई नेता ये बदलना नहीं चाहता , क्या जनता को विज्ञापनों से पता चलेगा कि सच सब बदल चुका है। अगर बदलेगा तो लोगों को दिखाई नहीं देगा , दुष्यंत कुमार ने चालीस साल पहले जो लिखा था वो आज भी सच है। " रोज़ अख़बारों में पढ़कर ये ख्याल आया हमें , इस तरफ आती तो हम भी देखते फसले बहार "। कभी हिसाब लगाना सतसठ साल में कितने लाखों हज़ार करोड़ रुपये इस तरह विज्ञापनों पर बर्बाद किये गये , मात्र मिडिया वालों को खुश रखने और अपने या अपने बाप दादा के नाम का डंका बजाने का काम करने के लिये , लोकतंत्र के नाम पर इस से बड़ा धोखा क्या हो सकता है। अभी सफाई अभियान की बात शुरू हुई है और हर तरफ बड़े बड़े विज्ञापन सड़कों पर लग गये हर विभाग के , देखा कल यहां पैमाइश की जा रही थी सड़कों की पार्कों की ये आंकड़े बनाने को कि इतनी जगह की सफाई की गई ताकि उसका बजट दिखाया जा सके , वही कागज़ी काम। इन विभाग वालों को दिखाई नहीं देता सीवर का होल सालों से खुला पड़ा है , पानी की लाईन कब से लीक करती है , फुटपाथ कब से रोक रखा है दुकानदारों ने , विभाग वाले सालों से किराया वसूल करते आ रहे हैं गैरकानूनी ढंग से , अफ्सर के घर सब्ज़ी जाती है और सामान जाता है रोज़ मुफ्त में , कितने तथाकथित नेता हैं जो किसी दुकानदार से सामान ले जाते बिना दाम चुकाये। क्या क्या बताया जाये , फिर दुष्यंत का शेर याद आता है। "इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके जुर्म हैं , आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फरार "।

     योजना के नाम पर फिर वही लोग उसी तरह लूट में शामिल हैं , इक तमाशा है जनता को दिखाने को। इक काम हमेशा सरकार ने किया है हर बात का दोष लोगों पर डालने का। विज्ञापन है लोग खुले में शौच करते हैं , उनको शर्मसार किया जाता है , क्या है ये ? कौन चाहता है खुले में शौच को जाना , क्या सुविधा है सब जगह लोग जा सकें जब मज़बूरी हो , पहले आपको वो सुविधा देनी होगी , अगर नहीं जानते हैं तो बता दूं आयुर्वेद में लिखा हैं मल मूत्र आदि के वेग को रोकना जानलेवा साबित हो सकता है। जब तक सरकार खुद अपना कर्तव्य निभाना नहीं चाहती बल्कि उसका दोष जनता पर डालने का काम करती रहेगी , वास्तविकता नहीं बदलेगी। हां इक बात तो बताना भूल ही गया सरकार या अफ्सर जो करना चाहते उसके लिये पैसा बजट सब हो जाता है। जो नहीं करना उसी को लेकर रोना रोते रहते धन नहीं है , धन की बर्बादी जब तक नहीं
रूकती , जनता का कोई भला नहीं होने वाला। अगर जो मनमानी कभी कोई और करता था वही आपको भी करनी है तो नतीजा भी वही ही निकलेगा। क्या अफ्सर सेवक बन जायेंगे , नेता शासक नहीं रहेंगे ? यही देखना है।

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