इस बदलाव का सच ( ये ज़रूर पढ़ना ) डा लोक सेतिया
टीवी पर हर समाचार चैनेल पर धूम मची है , मोदी जी का डंका विदेश में बजने लगा है। ऑस्ट्रेलिया में हज़ारों लोग टिकट खरीद कर मोदी जी भाषण सुनेंगे। आज बाल दिवस है। मुझे याद है पिछले साल मेरे एक मित्र अपनी बेटी को मिलने गये थे वहां , जब उनकी बेटी ने कहा था कि देखो यहां कूड़े का नामोनिशान तक नहीं है , तब उनके मुंह से अचानक ये शब्द निकल गये थे "अगर भारत में कचरा न हो तो एक तिहाई आबादी तो भूखी ही मर जायेगी , उनको तो रोटी ही कूड़े से मिलती है "। ये व्यंग्य नहीं वास्तविकता है इस देश की जिसको आज तक कोई नेता कोई सरकार न देखना चाहती है न ही समझना। वास्तव में हमारी सरकार , प्रशासन और आधुनिक इंडिया में रहने वाले लोग इनको देखना तक नहीं चाहते , इनको कुछ देने की तो बात ही क्या करें।बात दिवस पर दो ख़बरें छपी हैं अख़बारों में , एक राजस्थान की है जहां चौदह साल के स्कूल का इक बच्चा ख़ुदकुशी करते हुए पत्र लिख कर छोड़ गया है अपने अध्यापकों को सज़ा देने को , जो उसको बेरहमी से पीटते थे होमवर्क नहीं करने पर। दूसरी हिसार की है हरियाणा में जिसमें अध्यापक का अमानवीय अत्याचार की बात है , क्या यही अध्यापक न्याय की डगर पर चलना सिखा सकते हैं , मगर यहां समस्या कुछ और ही है। ये लोग शिक्षा देने को अध्यापक नहीं बने हैं , इनमें से अधिकतर आईएएस आईपीएस या कुछ और ही बनना चाहते थे जब नहीं सफल हुए तब ये नौकरी कर ली वेतन पाने को। और आजकल जिनको सरकार हो या निजि स्कूल वाले नाम मात्र को वेतन देकर रखते हैं वे तो कुंठा के शिकार रहते ही हैं। उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है। हम बात बाल दिवस की और बच्चों की कर रहे थे , उसी पर आते हैं। इक घटना रेडियो पर सुनी थी मैंने बहुत साल पहले , इक बच्चे को सज़ा देकर बंद कर दिया अध्यापक ने कमरे में , और भूल गया उसको निकालना बाहर , उस दिन गर्मी की छुट्टियां होनी थी दो महीने की। दो महीने बाद उस बच्चे का शव मिला था स्कूल के कमरे में जब छुट्टियां समाप्त हुई। पिछले साल ऐसी इक घटना घटी थी हरियाणा में , कई घंटों बाद जब देखा जाकर अभिभावकों ने तब बच्चा बेहोश था , उसको चंडीगढ़ में पी जी आई में दाखिल किया गया था , मगर उसके दिमाग पर बहुत बुरा असर हो चुका था उम्र भर को। देखते रहते हैं स्कूली बच्चों को बंधक की तरह हर सरकारी कर्यक्रम में शामिल किया जाता है , लिखा था कुछ दिन पहले ये भी जब देखा था एक अधिकारी को फोन पर सरकारी स्कूल के मुख्य अध्यापक को ये कहते कि उपायुक्त जी के आने से पहले इतने बच्चे भेजने हैं। शिक्षा का अधिकार क्या मिल गया सबको , आज चौदह साल से कम उम्र के बच्चे अख़बार बांटते हैं कपास चुनते हैं कम मज़दूरी लेकर। कितने तथाकथित समाजसेवी लोगों के घर नौकर हैं छोटे बच्चे। मेरे शहर में इक बाल भवन है जो वास्तव में अफसरों की संपत्ति है , वो जिसको चाहे उपयोग करने की इजाज़त देते हैं। शायद लोग नहीं जानते कि वास्तव में वो जगह किसी ने कभी स्कूल की लायब्रेरी बना कर दान में दी थी , जो अब सरकारी संपत्ति बन चुकी है। कभी गुरु दत्त की फिल्म का इक गीत चर्चा में था " जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं "। कितने साल हो गये हैं मगर लगता है कुछ भी बदला नहीं है। बदलेगा भी कैसे जब सरकार बदलते ही देश के हालात को बदलने की बात छोड़ सब शामिल हो जाते हैं अपने राज्य अपने शासन को विस्तार देने में। भाजपा को हरियाणा महाराष्ट्र के बाद और राज्य जीतने हैं , अब जो धर्मगुरु कानून के शिकंजे में फंसे हैं भाजपा नेता वोट बैंक की खातिर उनकी शरण में हैं , अब ऐसे में क्या उम्मीद की जा सकती है। किसी शायर का इक शेर कहीं सच न हो जाये। "तो इस तलाश का अंजाम भी वही निकला , मैं देवता जिसे समझा था आदमी निकला "।
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