नवंबर 20, 2014

वी आई पी अपराधी , आम अपराधी ( तरकश ) डा लोक सेतिया

  वी आई पी अपराधी , आम अपराधी ( तरकश ) डा लोक सेतिया

         अपराध वही होता है अपराधी अलग अलग होते हैं। सरकार हो चाहे लोग ये देख कर आचरण करते हैं कि अपराध किसने किया है। अभी हरियाणा में एक अपराधी को अदालत के सख्त आदेश के बाद जैसे पकड़ा गया वो बताता है कि सरकार या सत्ताधारी दल बदलने से भी बदलता कुछ भी नहीं। सरकार पहले इक मेडिकल बोर्ड बनाती है जो अपराधी को गंभीर रूप से बीमार घोषित करता है , जब अदालत फटकार लगाती है कि आपने बिना उसकी अनुमति या जानकारी के कोई बोर्ड कैसे बनाया तब विवश होकर अपराधी को गिरफ्तार किया जाता है और दावा किया जाता है कि सरकार ने कितना महान कार्य किया है। जो लोग सड़क पर किसी जेबकतरे को पकड़ पीट देते हैं वही लोग गंभीर अपराध करने के बावजूद किसी का बचाव इसलिये करते हैं क्योंकि वो उनका गुरु है। अब ऐसे कलयुगी गुरु कैसी शिक्षा देते हैं ये समझ लेना चाहिये , क्या सीखा आपने अपने धर्म से अपने गुरु के प्रवचनों से , यही कि पापी और अपराधी का बचाव करना। मुझे किसी भी धर्मग्रंथ में ये लिखा नहीं मिला कि अन्यायी और पापी अगर कोई अपना है तो उसको सही बताना है। मतलब साफ है ये जो लाखों करोड़ों लोग जाते हैं कहने को धर्म की बात सुनने समझने उनको भी धर्म नहीं अपनाना है , धार्मिक होने का आडंबर करना है , इक तमगा लगाना है। तभी दुकान पर किसी धर्म का नाम लिखने से ये नहीं समझना कि वहां झूठ या लूट का कारोबार नहीं होगा। इक मुखौटा है धर्म भी लोगों को अपने अपकर्म को ढकने को। मगर हम केवल सरकार पर ही दोष नहीं दे सकते , जब कोई नेता जेल जाता है तब भी उसके समर्थक यही करते हैं , जब संजय दत्त को जेल में जाना पड़ता है तब बड़ी बड़ी बातें करने वाले फिल्मों वाले उनके पक्ष में खड़े नज़र आते हैं। सरकार और पुलिस सालों तक खामोश होकर देखती रहती है धर्म के नाम पर गुंडों का गिरोह बनते , खुद सरकारें बनाती हैं रामपाल , भिंडरावाले , आसाराम , रामरहीम जैसे लोगों को। और जब ये लोग खुद सरकार को चुनौती देते हैं तब जाकर समझ आता है हमने खुद जिनको देव के नाम पर दैत्यों जैसे कर्म करने दिये वो कितने भयानक हो गये हैं। क्या लोग समझेंगे इन सब की वास्तविकता को , नहीं कभी नहीं , क्योंकि लोग जो मापदंड दूसरों के लिये निर्धारित करते हैं खुद अपने पर उनको लागू नहीं करते। ये मीडिया वाले भी हमेशा दोहरे मापदंड ही अपनाते हैं , जब किसी और के साथ होता तब तमाशाई बन जाते हैं , जब खुद पर गुज़रती तब बेहाल हो जाते हैं। पुलिस भी जब इनके साथ आम लोगों की तरह बर्ताव करती तब इनको समझ आता सच क्या है। वर्ना ये भी बड़े लोगों के अपराधों पर खबर भी ऐसे देते हैं जैसे उनको नायक साबित करते हों। शायद कोई सबक इनको भी सीखना है , कि अपराध अपराध ही होता है चाहे जो भी अपराधी हो।

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