नवंबर 02, 2025

POST : 2036 क्या मिला , क्या बनाया , होगा क्या ( सृष्टि रहस्य ) डॉ लोक सेतिया

क्या मिला ,  क्या बनाया , होगा क्या  ( सृष्टि रहस्य ) डॉ लोक सेतिया 

कुछ भी निर्धारित नहीं है कोई विधाता खुद अपनी बनाई रचना को बनाने के बाद उसका भविष्य निर्धारित नहीं करता है । जैसा हम लोग मानते हैं विश्वास करते हैं कि किसी ईश्वर की मर्ज़ी से सभी कुछ होता है सोचो अगर वैसा होता तो कोई अपनी बनाई दुनिया को बर्बादी की तरफ जाने देता । जैसा तमाम तरह के वैज्ञानिक जाने कितने शोध कर समझने का प्रयास भर करते हैं कि कैसा करने से क्या होना तय है लेकिन हज़ारों ढंग से प्रयोग करने के बावजूद भी कभी परिणाम वांछित नहीं प्राप्त होते हैं । तब उस को लेकर भी शोध कार्य किया जाता है कि क्यों जैसा अपेक्षित था नहीं हुआ और जो हुआ आखिर किस कारण हुआ । कुछ ऐसा ही हमारा भूतकाल वर्तमान काल और भविष्य को लेकर है जिस रहस्य को समझने की कोशिश ही शायद किसी ने की ही नहीं । हमको हैरानी होती है जिनको खिलता गुलशन मिलता है वो लोग गुलशन को खिलाने की नहीं उजाड़ने की बातें करते हैं इसलिए आने वाली पीढ़ियों को गुलशन नहीं बर्बादी मिलती है विरासत में । लेकिन हमने देखा नहीं भी तो पढ़ते सुनते हैं कि कितने ही महान लोगों ने अपने देश समाज को शानदार बनाने में अपनी ज़िंदगी समर्पित कर कितना अच्छा बदलाव किया अपनी मेहनत लगन और तमाम कठिनाईयों से लड़ते जूझते हुए । अगली पीढ़ी को विरासत में जो जैसा मिला उसका कर्तव्य था उसे और शानदार बनाने का लेकिन जब ऐसा नहीं कर किसी पीढ़ी ने मिली विरासत को सुरक्षित नहीं रख कर उसके साथ मनमर्ज़ी से छेड़खानी की अपने मतलब स्वार्थों को हासिल करने को तब विकास के नाम पर विनाश होता गया । 
 
आपको कोई धर्म कोई ज्योतिष विशेषज्ञ कभी नहीं बता सकता है क्या था पहले आज क्या है और भविष्य क्या होना है । क्योंकि खुद उन लोगों ने ही अपनी परंपराओं को सहेजा संभाला तक नहीं है । जिसको जो मिला सभी ने उसका दोहन किया है उसको फलने फूलने नहीं दिया ये बात सामने हैं ध्यान पूर्वक देखने से समझ सकते हैं । दुनिया सृष्टि किसी को पूर्वजों से मिली विरासत नहीं है , प्रकृति ने सभी कुछ सबको इक समान देने का कार्य किया है , हवा रौशनी अंधकार दिन रात बारिश आंधी बदलते मौसम किसी से कोई भेदभाव नहीं करते हैं । कुछ लोग शासक मालिक बन बैठे और उन्होंने अपने अपने स्वार्थों की खातिर कुछ ऐसे नियम कायदे बनाकर थोप कर विधाता समझने लगे अपने आप को । विधाता ईश्वर किसी से कुछ मांगता नहीं है जैसा धरती पर शासक बनकर अपनी सत्ता स्थापित करने वालों ने खुदगर्ज़ी का इक जाल बिछाया है ।लेकिन अगर आधुनिक ढंग से मौसम विज्ञान की तरह समझने की कोशिश करें तो हमको समझ आएगा कि हमारा भूतकाल वर्तमान और भविष्य इक कड़ी है जिसको जैसा सही गलत उपयोग किया जाता है वो उसी अनुरूप अच्छा या खराब बनता जाता है । कभी पुरातन काल में अधिकांश लोग सही राह पर चलने और कुछ आदर्शों मूल्यों का पालन करने वाले हुआ करते थे , उन्होंने समाज को अच्छा बनाने की कोशिश की हमेशा ही भविष्य को बेहतर सौंपने का प्रयास किया । 
 
अब लोग समाज और व्यवस्था इस कदर सड़ी गली बन चुकी है कि हर कोई जैसा चाहे सामाजिक माहौल को बिगाड़ने को तत्पर दिखाई देता है कोई समाज को अच्छा बनाने में कोई योगदान नहीं देना चाहता । ऐसा हमारी सभ्यता में कभी नहीं था कि जिसे भी अवसर मिले वही अपनी महत्वकांशा पूर्ण करने को अन्य सभी से भेदभाव कर अपने अधीन करने लगे । बड़े बड़े महान पुरुष महात्मा संत सन्यासी दार्शनिक समझाते रहे कि हमारे पास सभी की आवश्यकता को काफी है लेकिन किसी की हवस लोभ लालच पूरा करने को कदापि नहीं है । खेद है कुछ लोग धनवान शासक बनकर समाज को बनाने नहीं लूट कर अपनी हवस मिटाने को पागलपन की सीमा तक बेरहम और मतलबी बने हुए हैं । उनको शायद नहीं पता है कि जो पेड़ बबूल वाले वो बो रहे हैं भविष्य में उनके कांटों पर उन्हीं को चलना होगा , ज़रूरी नहीं किसी को जीवन काल में कर्मों का नतीजा मिल जाए लेकिन जिनकी खातिर ऐसे लोग समाज को बर्बादी की तरफ ले जा रहे हैं  वही भविष्य में दुःख परेशानी झेलेंगे । आपका लिखवाया झूठा इतिहास किसी काम का साबित नहीं होगा जब भविष्य आपकी कार्यशैली पर विचार विमर्श कर शोध कर आपको देश समाज ही नहीं सम्पूर्ण सृष्टि को तहस नहस करने का दोषी समझेगा । संक्षेप में तीन कालों का लेखा जोखा यही है भूतकाल से मिला वर्तमान का किया ही भविष्य का निर्माण करता है ।  
 
 भूतकाल सपना, भविष्यकाल कल्पना, किन्तु वर्तमान अपना है… - Shiv Amantran |  Brahma Kumaris