हम जिएं कैसे हम मरें कैसे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हम जिएं कैसे हम मरें कैसे
क्या करें और क्या करें कैसे ।
जिस्म घायल है रूह भी घायल
ज़ख़्म ही ज़ख़्म हैं भरें कैसे ।
उनके झांसों में लोग आ जाते
चाल समझे नहीं डरें कैसे ।
दुश्मनी उनको है ज़माने से
लोग उल्फ़त भला करें कैसे ।
लोग खुद जाल में फंसे "तनहा"
दोष तकदीर पर धरें कैसे ।
1 टिप्पणी:
बहुतख़ूब
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