बदनसीबी अमीर लोगों की ( तीर-ए-नज़र ) डॉ लोक सेतिया
बात सच्ची है कुछ साल पहले की बात है हम लेखक साहित्य की महफ़िल सजाया करते थे हर महीने। कभी किसी दानवीर या सरकारी लोगों की मदद नहीं मांगते थे खुश थे मिल जुलकर सब चलता रहता था। इक दिन इक शख़्स चला आया और खुद अपनी बढ़ाई करने लगा बताने लगा मैं बड़ा धनवान हूं और सरकारी पद से सेवानिवृत होकर अब चाहता हूं ऐसे लोगों की सहायता करना जिनको ज़रूरत है। बस वो पहली बार आया और आखिरी बार भी वही आना हुआ क्योंकि उसको हमारी बस्ती में कोई भिखारी नहीं मिला और अपना झोला लेकर वो लौट गया किसी ऐसी बस्ती की तलाश में जहां सभी भिखारी रहते हों। ये सच है उसने साहित्य की गली से निकल कर राजनीती की महानगरी में घर बना लिया था। ये लघुकथा फिर कभी आज अमीर लोगों की बदनसीबी की बात पर चर्चा करते हैं। आपने पुरानी कहानी सुनी होगी इक भिखारी किसी राजा के पास गया राजा ने कहा बताओ कितना चाहिए उसने अपना भीख मांगने वाला कटोरा जैसा सामने कर कहा बस इसको भर दो इतना ही चाहता हूं। राजा ने ख़ज़ाने से बहुत सारा धन सोना हीरे जवाहरात जो भी था डालता जाता मगर उस भिखारी का कटोरा खाली रहता भरता ही नहीं। आखिर राजा ने सवाल किया ये भीख लेने वाला कटोरा किस चीज़ का बना है। भिखारी ने बताया ये उस इंसान की खोपड़ी है जिसने सारी दुनिया पर राज किया था और आखिर उसकी खोपड़ी को सभी ने ठोकर लगा लगा कर बीच राह फैंक दिया था मैंने उसको उठाया और भिक्षा लेने का कटोरा बना लिया जो कभी भरता ही नहीं है।
जिनके पास सभी कुछ हो मगर फिर भी उनको और और अधिक पाने की हवस हो धर्म बताते हैं वही सबसे गरीब होते हैं। गरीबों की गरीबी अभिशाप होती है लेकिन ऐसे रईसों की अमीरी अभिशाप से भी बढ़कर खराब होती है। दौलत बढ़ती जाती है और उनका पागलपन उस से भी अधिक होता जाता है। ऐसे तमाम लोगों का भगवान पैसा होता है पैसे की खातिर इंसानियत शराफत क्या ईमान तक छोड़ सकते हैं। आजकल राजनीति धर्म का कारोबार अमीर बनने का तरीका बन गया है खिलाड़ी अभिनेता फ़िल्मकार टीवी अख़बार वाले सभी अपना अस्तित्व मिटाने को अपने स्वाभिमान को ताक पर रखकर शाहों की चौख़ट पर माथा टेकने को उत्सुक रहते हैं। उनको मंज़िल का पता नहीं आसान रास्ते की तलाश रहती है लोग जिनको लेकर समझते हैं उनके सितारे बुलंद हैं उनकी कोई मंज़िल कोई मकसद नहीं है। खुद को बेचकर ऊंचे दाम वसूलना उनका पहला कार्य बन गया है , जो बिक जाते हैं खुशनसीब समझते हैं खुद को वास्तव में यही सबसे बड़ी बदनसीबी है। टीवी के रियल्टी शो की तरह राजनीति के बाहर जगमगाहट और भीतर घना अंधकार छाया हुआ है। आधुनिक युग के नेता अभिनेता वास्तव में बड़े विशाल ऊंचे दिखाई देते रावण के पुतले की तरह अंदर से खोखले होते हैं पल भर में सब जलकर मिट्टी राख हो जाता है। नेताओं की शानो शौकत सत्ता जाते ही दो कोड़ी की रह जाती है और उन पर निर्भर धनपशुओं और टीवी चैनल अख़बार वालों की हालत बेबस बिना बैसाखी एक कदम नहीं चल पाने वाले अपाहिज की तरह हो जाती है पांव सलामत फिर भी चलना मुश्किल लगता है तलवे चाटने और रेंगने की आदत ने क्या से क्या बना दिया है।
सरकार गरीबी से परेशान है गरीबों को भगवान पर भरोसा है उनको मंदिर वाले भगवान भरोसे छोड़ा जा सकता है लेकिन चुनाव में चंदा देने वाले धनवानों उद्योगपतियों को दो चार क्या हज़ार गुना पाकर भी शिकायत रहती है थोड़ा है ज़्यादा की ज़रूरत है। नेता अधिकारी का ईश्वर और चुनावी चंदा देने वाले राजनेताओं के भाग्य विधाता हैं। उनको देश के अन्नदाता किसान की गुलामी की चाहत है तो सरकार को इनकार करने का साहस संभव ही नहीं , जो हुक्म मेरे आका चिराग का जिन अपने मालिक की हर बात सर झुका स्वीकार करने को बाध्य है। अध्यादेश जारी किया गया है गरीबी शब्द का बदला अर्थ है दस बीस फीसदी अमीरों की दौलत की चाहत कभी खत्म नहीं होना वास्तविक गरीबी है जिसको मिटाना असंभव है नामुमकिन नहीं। और ये ऐसे राजनेता की सरकार है जिसके लिए सब कुछ मुमकिन है। देश को भूखे नंगे करोड़ों गरीबों की नहीं खूब भरपेट खाने वाले आलीशान महलों में रहने वाले गरीबों की ज़रूरत है जिनका साथ सरकार का मधुर संबंध है। कठिनाई यही है उनके पास उसी भिखारी की तरह किसी शहंशाह की खोपड़ी वाला कटोरा है जिस में सरकारी संस्थान जाने कितना कुछ डाला है सत्ताधारी दल की सरकार ने फिर भी खाली का खाली है। रहम की भीख मांगने से कोई दैत्य किसी की जान बख़्शते हैं , सरकार को करनी घुड़सवारी है। घास खेत में उगती है खेत खलियान उजड़ने की बारी है। घोड़ा घास से दोस्ती निभाएगा तो खुद भूखा मर जाएगा। मिली अमीरों को खुली छूट है। लूट खसूट नहीं कुर्बानी है चोर थोड़े हैं समझाती सबको सरकार बनकर चोरों की नानी है।
1 टिप्पणी:
बहुत सही...वास्तव में इंसान की खोपड़ी की हवस कभी पूरी नही होती यहां तक कि पैसे वालों की हवस और बढ़ती है दौलत होते हुए भी
एक टिप्पणी भेजें