सब कुछ तोड़ो दिल को छोड़ो ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
ऐसा लोग कहते थे कभी , आजकल नहीं समझते , धन दौलत पैसा गया तो कुछ भी नहीं गया , सेहत खराब हो गई तो कुछ चला गया है , चाल चलन बिगड़ गया तो सब चला गया कुछ भी नहीं बचा है। कुछ उसी तर्ज़ पर हाथ जोड़कर नेताओं से निवेदन है विधायक तोड़ लो हम फिर और विधायक सांसद बना लेंगे जिनकी कीमत तो होगी फिर भी मुमकिन है उनका भाव इतना ऊंचा हो कि खरीदार ही नहीं मिले बिकने को सभी राज़ी हैं कहने को पंडित मुल्ला क़ाज़ी हैं। पुल टूटते रहते हैं सड़क गड्ढे बन जाती है कश्ती नदी को छोड़ शहर की गली में चलने लगती हैं बारिश आती है तो जो ढका छिपा सामने आ जाता है नहीं आये तो सूखा इतना कि गरीब की आंख से बहते अश्क़ अमीर की आंख का पानी मर जाता है। आप कश्ती को किनारे मत लगाओ बेशक नाख़ुदा बन कश्ती को मझधार में डुबो देना पतवार को छोड़ सकते हैं लोग डूबते डूबते भी जीवन नैया से उस पार जाने को बेताब हैं जन्नत मिलेगी स्वर्ग मिलेगा उम्मीद रहती है। पर ऊपर वाले के वास्ते खुदा का वास्ता है कोई दिल कभी मत तोड़ना ये दिल टूटता है तो फिर नहीं जुड़ता है। आपका दिल सत्ता की सीमेंट से पत्थर का हो जाता है हम लोगों का दिल नाज़ुक है शीशे से भी हम आपसे पत्थर से फ़रियाद करते हैं हमसे टकराना मत हज़ार टुकड़े हो जाएंगे दिल के कोई इधर कोई उधर बिखर जाएगा फिर नहीं जुड़ेगा।
हमारा दिल कोई बाज़ार का सामान नहीं है दिल को दौलत से मत तोलना दिल लेना दिल देना दिल वालों की नगरी में दिलवालों का काम है सरकार के पास दिल नहीं होता बस दिमाग़ होता है जो प्यार के नाम पर खुराफ़ात करता है दिल को दौलत के तराज़ू में तोलता है और दिलों से खेलता है। खिलौना समझ कर दिल से खेलना जिनकी फ़ितरत है बड़ी बुरी उनकी बेवफ़ाई की आदत है। आपकी सियासत भी क्या सियासत है आपको खुद से भी होती अदावत है अपनी चाहत ही इबादत है मुहब्बत है चाहे बग़ावत है। सत्ता की सुंदरी के मोहपाश में बंधे राजनेता कभी सन्यास की बात नहीं करते सन्यासी भी राजनीति में आकर ऐसे फंसते हैं कि उनको बिना कुर्सी चैन नहीं आता बगैर सत्ता जल बिना मछली से तड़पते हैं। किसी दार्शनिक ने चिंतन किया और समझने की कोशिश की महल को घर को छोड़कर बन में पर्वत पर जाने का कारण क्या है। जो लोग चाहते हैं उनको साधु संत समझें लोग जो मोह माया से मुक्त हैं वैराग्य हो गया है भगवान के भजन सिमरन में जीवन बिताते हैं मगर वास्तव में उनको अपने ही दिल पर काबू नहीं होता है मन भटक जाता है सुंदरी को देख कर भगवान भजन में मन नहीं रमता है परेशान होकर चले जाते हैं कहीं वीराने में। लौटते हैं खाली हाथ मन लगता नहीं भगवान मिलते नहीं उनकी हालत इधर के रहे न उधर के ही वाली हो जाती है।
जैसे कोई दलबदल करता है मगर पछताता है दिल चाहता है जो हासिल होता नहीं फिर घर वापसी की उम्मीद रखते हैं। रूठना मनाना कहने की बात है असली मकसद सौदेबाज़ी होता है राजनीति कोई कभी घाटे उठाने को नहीं करता है। आशिक़ी में दिल फ़ायदा नुकसान नहीं सोचता कभी जनता दिल से काम लेती है किसी न किसी पर दिल फ़िदा हो जाता है मगर सत्ता को वफ़ा का अर्थ नहीं मालूम राजनीति का नाम ही धोखा है बेवफ़ाई है। जनता बेचारी किस्मत की मारी है हो जाती किस किस पर बलिहारी है जीतने की कोशिश की मगर हरदम हारी है। देश की राजनीति और सरकारी विभाग अधिकारी कर्मचारी धनवान पैसे वाले कारोबारी उद्योगपति वर्ग से गठबंधन कर वो भी बेचने का काम करते हैं जो उनके पास कभी भी नहीं होता है। ईमानदारी और सच्चाई आत्मा और ज़मीर ऐसे शब्द हैं जो उनकी किताब में नहीं मिलते हैं। देशभक्ति जनसेवा का तमगा लगाकर फिरते हैं देश को खाने वाले। अपना अपना दल है अपने शोरूम की तरह जो कभी फुटपाथ पर मजमा लगाते थे आजकल किसी मॉल के आलीशान हाल में अपना खेल तमाशा दिखलाते हैं। गांव के सरपंच से शुरू सफर संसद पे जाकर रुकता तो नहीं ठहरता है कुछ देर को। आकाश पर घर बसाने की आरज़ू हर किसी की होती है जबकि आसमान का कोई अस्तित्व होता ही नहीं है। कुछ भी नहीं होने के बावजूद ऊपर छाए रहने का नाम ही राजनीति है। शोहरत की बुलंदी अधिक समय टिकती नहीं है।
आपके पास जाने क्या क्या होगा हम लोगों के पास दिल की दौलत के सिवा कुछ भी नहीं होता है। ये सलामत रहे बस इतना चाहते हैं दिल जिस भी हाल में है मेहरबानी करो इसको ऐसे ही रहने दो। कितनी बार टूटेगा जुड़ेगा नहीं बिखर जाएगा।
जैसे कोई दलबदल करता है मगर पछताता है दिल चाहता है जो हासिल होता नहीं फिर घर वापसी की उम्मीद रखते हैं। रूठना मनाना कहने की बात है असली मकसद सौदेबाज़ी होता है राजनीति कोई कभी घाटे उठाने को नहीं करता है। आशिक़ी में दिल फ़ायदा नुकसान नहीं सोचता कभी जनता दिल से काम लेती है किसी न किसी पर दिल फ़िदा हो जाता है मगर सत्ता को वफ़ा का अर्थ नहीं मालूम राजनीति का नाम ही धोखा है बेवफ़ाई है। जनता बेचारी किस्मत की मारी है हो जाती किस किस पर बलिहारी है जीतने की कोशिश की मगर हरदम हारी है। देश की राजनीति और सरकारी विभाग अधिकारी कर्मचारी धनवान पैसे वाले कारोबारी उद्योगपति वर्ग से गठबंधन कर वो भी बेचने का काम करते हैं जो उनके पास कभी भी नहीं होता है। ईमानदारी और सच्चाई आत्मा और ज़मीर ऐसे शब्द हैं जो उनकी किताब में नहीं मिलते हैं। देशभक्ति जनसेवा का तमगा लगाकर फिरते हैं देश को खाने वाले। अपना अपना दल है अपने शोरूम की तरह जो कभी फुटपाथ पर मजमा लगाते थे आजकल किसी मॉल के आलीशान हाल में अपना खेल तमाशा दिखलाते हैं। गांव के सरपंच से शुरू सफर संसद पे जाकर रुकता तो नहीं ठहरता है कुछ देर को। आकाश पर घर बसाने की आरज़ू हर किसी की होती है जबकि आसमान का कोई अस्तित्व होता ही नहीं है। कुछ भी नहीं होने के बावजूद ऊपर छाए रहने का नाम ही राजनीति है। शोहरत की बुलंदी अधिक समय टिकती नहीं है।
आपके पास जाने क्या क्या होगा हम लोगों के पास दिल की दौलत के सिवा कुछ भी नहीं होता है। ये सलामत रहे बस इतना चाहते हैं दिल जिस भी हाल में है मेहरबानी करो इसको ऐसे ही रहने दो। कितनी बार टूटेगा जुड़ेगा नहीं बिखर जाएगा।
1 टिप्पणी:
....Dil satta ki cement se patthar...👌👍 Sarkar ke paas dil hi nhi bs dimaag...👌Asli maksad saude bazi 👌👍...Sarpanch se shuru safar sansad tk...👌👍
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