नवंबर 08, 2018

खज़ाना मिल गया ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        खज़ाना मिल गया ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     आज ही का दिन था जब खुदाई शुरू की थी कुबेर का खज़ाना दबा हुआ है काले बक्से में इसका शोर बहुत था। सबको कहा था उसने पचास दिन लगेंगे खुदाई में बस उसके बाद इतना बड़ा खज़ाना हाथ आएगा कि सब को सभी कुछ मिल जाएगा और बुरे दिन इक सपना बनकर रह जाएंगे , अच्छे दिन जब आएंगे। मौज उड़ाएंगे झूमेंगे गाएंगे जाम से जाम टकराएंगे। खाज़ना किस जगह है कोई नहीं जनता था शक था विदेश में अधिकांश धन गढ़ा हुआ है पर खुदाई देश से करनी थी और घर घर से करनी थी। किसी न किसी घर से कोई न कोई सुरंग जाती होगी स्विस बैंक तक और वापस उधर से देश के किस बैंक तक आती है पता लगाना ज़रूरी था। खुदाई हुई खज़ाना कितना मिला अभी तक हिसाब ही नहीं लगाया जा सका है मगर है ज़रूर खज़ाना। खुदाई करने वालों को पता है मगर खज़ाना मिलते ही खुदाई करने वालों की नीयत खराब हो जाती है। सब आपस में हिस्सा बांट लेते हैं और खज़ाना मिलने की बात खुदाई की जगह ही दफ़्न कर दी जाती है। लोग समझते हैं किसी की सनक थी कोई खज़ाना नहीं मिला बेकार खुदाई से बर्बादी की गई। मगर उनकी मर्ज़ी है सच्चाई बताएं या छुपाएं। खज़ाना उनका चौकीदार खुद सरकार है। आज भी रात आठ बजते सबकी धड़कन बढ़ जाएगी सोच कर। अली बाबा चालीस चोर बनानी थी मगर बना दी ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान और आज ही रिलीज़ कर दी है। सीने में ऐसी बात मैं दबा के चली आई , खुल जाए वही राज़ तो दुहाई है दुहाई। राज़ की बात पता चली है सरकार की तिजोरी खाली हो चुकी है और अब इरादा रिज़र्व बैंक में सेंध लगाने का है।
 
     कुबेर जी ऊपर बैठे भगवान से विचार विमर्श कर रहे हैं। देवी लक्ष्मी जी इस बार भारत की धरती पर दीपावली की रात गईं तो साथ धन नहीं लेकर गईं इस डर से कि कहीं चौकीदार का आयकर विभाग हिसाब पूछने लगा तो बांटने से पहले ही ज़ब्त कर अपना खज़ाना भर लेगा। ऊपर से ज़हरीली हवा और शोर के साथ नकली रौशनी की चकाचौंध में भटकने का भी खतरा था। ऐसे में अमीरों के महलों की रौशनियों में गरीबों की अंधेरी बस्तियां अपनी तरफ देखने को विवश करती हैं। भगवान हैरान है उसके नाम पर इतनी बर्बादी धन की कैसे की जा रही है जब देश की आधी आबादी बदहाली में रहती है। अधर्म है आडंबरों पर देश का धन लुटाना या भगवान के नाम की आड़ में राजनीति की रोटियां सेंकना। देखो ऐ दीवानों तुम ये काम न करो , राम का नाम बदनाम न करो। ऐसे में नारद जी भी चिंता बढ़ा गये हैं ये जानकारी देकर कि किसी ने सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प पर करोड़ों को पैसे देकर गुणगान को रख रखा है और हर महीना नकद राशि लेकर भक्ति हो रही है। भगवान का अपना एक भी अकाउंट किसी साईट पर नहीं है। नकली भगवान भरे पड़े हैं जिनकी गिनती ही नहीं।
 
              टीवी चैनल वालों के भी अपने अपने भगवान हैं जो झूठे विज्ञापन करते हैं कमाई करने को मगर अख़बार टीवी वालों की आमदनी विज्ञापनों से ही होती है इसलिए उनके भगवान वही हैं। महात्मा जूदेव की बात भूली नहीं है उन्होंने सालों पहले घोषित किया था स्टिंग ऑपरेशन में कि पैसा खुदा तो नहीं मगर खुदा की कसम खुदा से कम भी नहीं। खज़ाने की बात उनसे बेहतर भला कौन जनता होगा मगर अब सरकार उनके दल की है पर उनका कोई अता पता ही नहीं है। भगवान को अभी कोई ये नहीं बता सकता कि इधर भारत देश में लोग भगवान से कई गुणा अधिक नाम किसी नेता का लेते हैं। भगवान को भी लोग लालच की खातिर रटते हैं या डर से और उस नेता को भी इसी तरह लालच या डर से लोग नाम लेते हैं। खुश है वो भी दहशत ही सही डंका बजना चाहिए। खज़ाने का क्या हुआ इस पर सभी चुप हैं सरकार खुदाई को बेकार नहीं मानती और लोगों को अभी भी बुरे दिनों से कोई राहत मिली नहीं है। घोटालों की पुरानी बात है हुए मगर साबित नहीं हुए और चोर चोर का शोर आज भी जारी है मगर पकड़ा नहीं जाता कोई भी चोर। चोर दिन दहाड़े लूट लेते हैं साधु बनकर। राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट , ये लो फिर नारद जी चले आये हैं गाते हुए। नारद जी को कौन समझाए सभी अपनी खैर मनाते हैं।

        खुदाई में खज़ाना मिला या नहीं मगर कोई नक़्शा हाथ लगा है जिस पर शोध किया जाना है। ऐसे ज़मीन में दबे गढ़े नक़्शे मिलने पर पाने वाले नाचने झूमने लगते हैं उनको जैसे स्वर्ग जाने का ही नहीं स्वर्ग का शासन हासिल करने का तरीका नक़्शे पर खुदा हो। खुदाई वाले नक़्शे को समझते रह गए और कोई ठग उनके चले जाने की राह देखता रहा ताकि उनके जाने के बाद छुपे खज़ाने को बाहर निकाल उस पर अपना क़ब्ज़ा जमा ले। खज़ाना हाथ नहीं आया खज़ाने का राज़ समझ आ गया है।

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