नवंबर 12, 2018

इक्कीसवीं सदी का संविधान ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

   इक्कीसवीं सदी का संविधान ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

      आखिर देश की सरकार को भी समझ आ ही गया है कि भगवान का ही भरोसा है। हम तो पहले से सोचते रहे हैं कि ये देश चल कैसे रहा है। जिस देश के नेता अधिकारी अपना कर्तव्य नहीं निभाते हर विभाग अपना काम छोड़ बाकी सब काम करता है पुलिस अस्पताल विद्यालय सभी अन्याय बढ़ाने अपराध करवाने रोगी को उपचार देने से पहले खुद अपनी कमाई की चिंता करने शिक्षा का कारोबार करने लगे हों उस देश का मालिक भगवान ही है। इसलिए सरकार ने नई नीतिगत योजना बनाई है मंदिर और मूर्तियां बनाने की। शिक्षा स्वास्थ्य न्याय और समानता से कहीं अधिक महत्व धर्म पूजा पाठ और मंदिर मूर्तियां का है। मंदिर में भगवान से ज्ञान शिक्षा स्वास्थ्य और इंसाफ जो मर्ज़ी मांग सकते हैं , सब को सभी कुछ भगवान ही दे सकता है। भगवान सब से धनवान है इस में किसी को संदेह नहीं है। सभी भगवान सब देवी देवता अकूत धन संम्पति हीरे जवाहारात सोना चांदी जमा करे हुए हैं। रब माना जाता है उनको भी देता है जो उसे नहीं मानते हैं शायद उन्हीं को ज़्यादा देता है। जो भगवान को मानते हैं वो मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरूद्वारे जाते हैं रोज़ सुबह शाम और घंटों राम नाम या गुरुबाणी या कुरान अथवा बाइबल पढ़ने पर खर्च करते हैं मगर जो इसकी चिंता नहीं करते वो जब मनोकामना पूरी हो जाती है तब चढ़ावा भेंट करते हैं। इनका भरोसा पहले काम फिर दाम की बात का है। नेता जी भी चुनाव जीतने के बाद करोड़ों का चढ़ावा सरकारी धन से चढ़ाते रहे हैं। समझदारी इसे कहते हैं हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चौखा हो , कमाल है। भगवान कैसे खुश नहीं होंगे इस से पहले ऐसा भक्त कोई सत्ताधारी नज़र आया ही नहीं होगा। देश का विकास भविष्य में संविधान के सिद्धांत के अनुसार नहीं साधु संतों और बाबाओं से निर्देश लेकर किया जाएगा। विभागों के नाम बदल कर देवी देवताओं के नाम से बुलाया जाएगा। वित मंत्रालय को देवी लक्ष्मी , ग्रह मंत्रालय को संकट मोचन , स्वास्थ्य मंत्रालय को धन्वन्तरी देव नाम की तरह करने से सब अपने आप ठीक हो जाएगा। और नहीं भी हुआ तो लोग सरकार की आलोचना नहीं करेंगे भगवान की मर्ज़ी मान खामोश रहेंगे। आज तक किसी ने भगवान को लेकर कोई बात कहने का साहस नहीं किया और जो करे उसको नास्तिक कहकर लताड़ासच नहीं बोलना उन्होंने सीखा है उनका धर्म कोई और होगा अपना धर्म सत्य और त्याग की शिक्षा देता है। सत्ता पाने को धर्म का उपयोग करना उनका धर्म उचित बताता है अपना धर्म राज त्याग का वचन निभाने की बात करता है। अदालत की बात कब मानते हो जो विपक्षी दल के नेताओं को ज़मानत मिली हुई है की बात हंसते हुए कहते हैं उपहास उड़ाते हैं जबकि आपके सरकार के मंत्री गंभीर अपराधों में ज़मानत पर हैं विपक्षी दल के नेताओं का मुकदमा तो जायदाद का है। आपके दल के इक तिहाई सांसद सौ से अधिक लोग ऐसे हैं जो आपराधिक मामलों के आरोपी हैं। छाज तो बोले छलनी भी बोले जिस में हज़ार छेद हैं। औरों के पाप पाप और आपके पाप देश सेवा और धर्म कर्म और पुण्य। आपके धर्म से डर लगता है हमारा धर्म हिंसा नहीं शांति की बात करता है मानवता की बात करता है। जो धर्म लोभ लालच सत्ता की चाहत और अहंकार का पाठ पढ़ाता है उस धर्म की इस देश को आवश्यकता नहीं है। कोई भी धर्म देश से बढ़कर नहीं हो सकता है और जो लोग देश के कानून को नहीं मानते संविधान की भावना को नहीं समझते उनका धर्म अधर्म हो सकता है धर्म नहीं। जाता है कि भगवान के लिए ऐसी बात कहते हो तभी तो बदहाल हो। अब जब चुनाव होंगे तब हर दल वाले वादे करेंगे आपके शहर में किस किस देवी देवता का कितना भव्य मंदिर बनाया जाएगा। कितनी मूर्तियां किस किस की धातु की पत्थर की या आधुनिक ढंग से रंग बिरंगी रौशनियों से बनाई जाएंगी। विज्ञान की साहित्य की अर्थशास्त्र की किसी भी विषय की पढ़ाई ज़रूरी नहीं होगी , बस भगवान को लेकर चर्चा खोज पर ध्यान देना होगा।

         गली गली नगर नगर धर्म के आयोजन होते हैं कितने धर्म स्थल हैं कितने लोग धार्मिक भावना से कहां कहां नहीं जाते और क्या क्या धार्मिक आयोजन नहीं होते। मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरिजाघर कोई कम नहीं हैं न ही उनमें जाने वाले लोगों की संख्या कोई कम ही है। फिर भी सरकार को लगता है धर्म को लेकर धर्म मानने वालों से अधिक सरकार को चिंता करनी है और जब भी चुनाव करीब हो जनता को उलझाना है ऐसी बातों में ताकि गरीबी भूख बेरोज़गारी और बुनियादी सुविधाओं की बात नहीं हो। सरकारी दफ्तर में सुबह पहुंच कर काम शुरू करने से पहले धर्म की किताब पढ़ने और पूजा अर्चना करने का नियम हो और शाम को भी आरती के साथ दफ्तर बंद होने चाहिएं। अस्पताल में उपचार से पहले नाम जपने को कहा जाये और विद्यालय में आधा समय वेद पुराण आदि अपने अपने धर्म की किताब का पाठ किया जाये। मगर कहीं भी किसी को भी धर्म की बताई बातों का पालन करने की बात कदापि नहीं समझाई जाये। वास्तविक धर्म दीन दुखियों की सेवा करना और सभी को इक समान इंसान समझना किसी से बैर भाव नहीं रखना को भुलाना होगा और धर्म का बदला हुआ रूप लाना होगा। जनता को बेकार की बातों में बरगलाना होगा और धर्म को चुनावी मुद्दा बनाना होगा। सूखा मचाने वाली बरसात को लेकर आग लगाना होगा देश को वापस लौटाना होगा।

         सच नहीं बोलना उन्होंने सीखा है उनका धर्म कोई और होगा अपना धर्म सत्य और त्याग की शिक्षा देता है। सत्ता पाने को धर्म का उपयोग करना उनका धर्म उचित बताता है अपना धर्म राज त्याग का वचन निभाने की बात करता है। अदालत की बात कब मानते हो जो विपक्षी दल के नेताओं को ज़मानत मिली हुई है की बात हंसते हुए कहते हैं उपहास उड़ाते हैं जबकि आपके सरकार के मंत्री गंभीर अपराधों में ज़मानत पर हैं विपक्षी दल के नेताओं का मुकदमा तो जायदाद का है। आपके दल के इक तिहाई सांसद सौ से अधिक लोग ऐसे हैं जो आपराधिक मामलों के आरोपी हैं। छाज तो बोले छलनी भी बोले जिस में हज़ार छेद हैं। औरों के पाप पाप और आपके पाप देश सेवा और धर्म कर्म और पुण्य। आपके धर्म से डर लगता है हमारा धर्म हिंसा नहीं शांति की बात करता है मानवता की बात करता है। जो धर्म लोभ लालच सत्ता की चाहत और अहंकार का पाठ पढ़ाता है उस धर्म की इस देश को आवश्यकता नहीं है। कोई भी धर्म देश से बढ़कर नहीं हो सकता है और जो लोग देश के कानून को नहीं मानते संविधान की भावना को नहीं समझते उनका धर्म अधर्म हो सकता है धर्म नहीं।

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