पापी पेट का सवाल है बाबा ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
इक विज्ञापन देख रहा हूं कुछ दिन से टीवी पर , कुछ बच्चे आते हैं इक बूढ़े आदमी के घर , देखते ही वो कहता है , कल ही बोल दिया था मैं इस बार ईद पर ईदी नहीं दे पाऊंगा। बच्चे अपनी अपनी गुल्लक साथ लाये होते हैं , कहते हैं इस बार ईदी वो देंगे , मगर आपको नहीं घर को। तब फ़िल्मी अभिनेता शाहरुख़ खान आते हैं और घर को पेंट करने सजाने का काम करते हैं। इस विज्ञापन में बहुत कुछ छिपा है , लगता है लोग बड़े संवेदनशील हैं किसी की हालत देख खुद चले आये हैं सहायता को। मगर पता चलता है उनको इंसान की भूख की बदहाली की चिंता नहीं है , चिंता है घर की सजावट की रंग रोगन की। क्योंकि वही दिखाई देता है सभी को , आदमी के दुःख कहां देखता है कोई। सरकारी विज्ञापन भी इस से अलग नहीं हैं। गरीबों की रोटी की खातिर रोटी पर और टैक्स बढ़ा देती है। जो भी काम करती है मुनाफे का ही करती है , हर बार उसका खज़ाना और भर जाता है। जब कोई व्यापार करता है तब वो कुछ भी अपने पास से देता नहीं है , जितनी कीमत की वस्तु होती है उस से अधिक ही वसूल करता है , तभी उसका मुनाफा कभी कम नहीं होता। शायद बाबा रामदेव भी यही कहते हैं , वो जो भी कमाई करते हैं समाज सेवा के लिए ही करते हैं। ये समाज सेवा और धर्म शब्द हज़ारों साल से छलते आ रहे हैं लोगों को। भगवान के मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरूद्वारे अगर बांटते तो कब के खाली हो जाते उनके कोष , मगर उनकी दौलत है कि बढ़ती ही जाती है। मतलब साफ़ है छीनते अधिक हैं बांटते कम ही हैं। देने वाला कौन है ? सभी तो खुद और जमा करना चाहते हैं , चाहे जनहित की बात करती सरकार हो या दया धर्म की बात करते खुदा को बेचने वाले लोग। राजनेताओं और सरकारी लोगों के ठाठ बाठ गरीब देश की जनता के दम पर हैं तो इन धर्म के कारोबारियों की ऐश भी उन्हीं से ही है। सभी को आपके दुःख दर्द को बेचना है अपने धंधे की खातिर।मधरी दीक्षित जी के पति डॉक्टर हैं और उनको पता होगा कि किसी टॉनिक से आपका बच्चा बिमार होने से बच नहीं सकता है और विज्ञापन जिस टॉनिक का करती हैं खुद अपने बच्चों को शायद ही खिलाना चाहती हों। मगर उनको अभिनय से नहीं तो किसी तरह से आमदनी करनी है और जब कोई किसी को सलाह अपने मतलब को देता है तो केवल अपने हित की बात सोचता है। बच्चन जी को परेशानी हो तो क्या उस तेल की मालिश करवाते हैं जिसका विज्ञापन किया करते हैं। विज्ञापन करने वाले पैसे लेकर झूठ बोलते हैं जैसे अदालत में झूठी गवाही देने वाले हर बार अपराध के समय उस जगह उपस्थित होते हैं। कसम खाकर झूठ बोलना पाप नहीं कमाई का साधन है और धंधे का कोई धर्म नहीं होता धंधा खुद सबसे बड़ा धर्म है कहने वाले समझाते हैं कि ईमान नाम की चीज़ कभी हुआ करती थी आजकल पैसा सबका भगवान है। करोड़ों की आमदनी वालों को उचित अनुचित की बात की परवाह नहीं होती है उनकी तिजोरी भरनी चाहिए।
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