अप्रैल 08, 2016

कहां तेरी हक़ीक़त जानते हम हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कहां तेरी हक़ीक़त जानते हम हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कहां तेरी हक़ीकत जानते हम हैं
बिना समझे तुझे पर पूजते हम हैं ।

नहीं फरियाद करनी , तुम सज़ा दे दो
किया है जुर्म हमने , मानते हम हैं ।

तमाशा बन गई अब ज़िंदगी अपनी
खड़े चुपचाप उसको देखते हम हैं ।

कहां हम हैं , कहां अपना जहां सारा
यही इक बात हरदम सोचते हम हैं ।

मुहब्बत खुशियों से ही नहीं करते
मिले जो दर्द उनको चाहते हम हैं ।

यही सबको शिकायत इक रही हमसे 
किसी से भी नहीं कुछ मांगते हम हैं ।

वो सारे दोस्त "तनहा"खो गये कैसे ,
ये अपने आप से अब पूछते हम हैं ।