खुदा देखता तेरे गुनाह , डरना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
खुदा देखता तेरे गुनाह , डरनासितमगर सितम की इन्तिहा न करना ।
कई लोग फिसले , फिसलते गये हैं
वहीं पर खड़े हो , संभलकर उतरना ।
किये दफ़्न तुमने , जिस्म तो हमारे
बहेगा हमेशा प्यार का ये झरना ।
परिंदे यही फरियाद कर रहे हैं
किसी के परों को मत कभी कतरना ।
नहीं दूर अपनी मौत जानते हैं
किया पर नहीं मंजूर रोज़ मरना ।
बिना नीवं देखो बन गई इमारत
किसी दिन पड़ेगा टूटकर बिखरना ।
सुबह शाम "तनहा" देखकर के सूरज
हैं कहते, सिखा दो डूबकर उभरना ।
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