क्या हुआ क्योंकर हुआ बोलता कोई नहीं ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
क्या हुआ क्योंकर हुआ बोलता कोई नहीं
बिक गया सब झूठ सच तोलता कोई नहीं ।
शहर में रहते हैं अंधे उजाला क्या करें
खिड़कियां हैं बंद दर खोलता कोई नहीं ।
हर किसी के पास हैं तल्ख़ियां बस तल्ख़ियां
शहद बातों में यहां घोलता कोई नहीं ।
अनगिनत बिखरे पड़े कांच के टुकड़े यहां
दिल बहुत नाज़ुक उसे रोलता कोई नहीं ।
बात अपनी जान देकर निभाते थे सभी
जब इरादा कर लिया डोलता कोई नहीं ।
1 टिप्पणी:
Wahh शानदार
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