समझना ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
समझता हूं मेरे पास सब कुछ है , समझना है नहीं कुछ भी पास मेरे ।
समझता हूं बहुत कुछ जनता हूं ,
समझना है नहीं मैं जानता कुछ भी ।
समझता हूं खुद को बलशाली बहुत ,
समझना है बड़ा ही कमज़ोर हूं मैं ।
समझता हूं मेरे साथी है कितने ,
समझना है नहीं अपना है कोई ।
समझता हूं अपने आप को दाता ,
समझना है हूं मैं बस इक भिखारी ।
समझता हूं कर सकता सभी कुछ ,
समझना है नहीं कुछ हाथ में मेरे ।
समझता हूं मेरा दुश्मन ज़माना है ,
समझना है खुद ही अपना हूं दुश्मन ।
समझता हूं मेरे हैं राज़दार कितने ,
समझना है नहीं हमराज़ ही कोई ।
समझता हूं मैं ज़िंदा आदमी हूं ,
समझना है होती ज़िंदगी क्या है ।
समझता हूं ,समझ पाता नहीं हूं ,
समझना है अभी मुझको क्या क्या ।