भगवान तेरे नाम पर ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
सोच रहा है दुनिया वाले कितने भोले हैं सब मेरे नाम पर दर्ज करते रहते हैं , उसकी मर्ज़ी से सब कुछ ही नहीं होता बल्कि उसकी मर्ज़ी बिना पता तक नहीं हिलता । क्या ये नाम शोहरत की बात है कदापि नहीं भला जो नहीं किया कभी करना नहीं चाहता कितना कुछ घटता है हर घड़ी हर जगह अगर मैंने किया करवाया या होने दिया तब मुजरिम हूं मैं सज़ा का हक़दार हूं । चाहता हूं बताना बता नहीं सकता कितना बेबस कितना लाचार हूं । जिनका भरोसा है मुझ पर कि मैं हूं समझते नहीं मेरी बात करते हैं अपनी मनचाही बात मिलने को उन से बहुत बेताब बड़ा बेकरार हूं । दुश्मन नहीं किसी का न ही मैं किसी का यार हूं नफ़रत भरी दुनिया आपकी है और मैं प्यार सिर्फ प्यार हूं । हर शख़्स कहता है मुझ से अच्छा कोई नहीं है जाने क्यों दुनिया उसको भला नहीं मानती उस को नहीं किसी को पसंद नहीं करती सच मुझे नहीं मालूम ऐसा कौन करवाता है जितने भी शरीफ़ लोग हैं ज़माना उनको खराब साबित करता है मुफ़्त में बदनाम करता है । मेरा विश्वास है जो जैसा है उसको सभी वैसे लगते हैं समस्या ये है कि कोई भी खुद को आईने में नहीं देखता है । सभी लोग अगर अपने भीतर मन में झांक कर देखते तो ये परेशानी कभी नहीं होती है । सदियों से युग युग से इंसान इंसान को अपने आधीन रखने की कोशिश करता है गुलामी विधाता ने नहीं लिखी है किसी आदमी किसी देश किसी समाज की तकदीर में । अन्याय शोषण अत्याचार क्या इस का कारण ईश्वर के निर्धारित नियम हैं कदापि नहीं जब कुदरत से लेकर जीव जंतुओं तक को किसी अनचाहे बंधन में विधाता ने नहीं जकड़ा तब सिर्फ इंसान ही क्यों खुद ऐसे कायदे कानून बनाकर थोपता है अपनी खुदगर्ज़ी की खातिर मगर दोष मुझे देता है ।
दुनिया भर में सरकार के नाम पर शासक ताकत धन दौलत का उपयोग कर जब जैसा चाहा नियम कानून बनाकर साधरण लोगों पर शासकीय अधिकार चलाते हैं खुद को महान समझते हैं क्या भगवान से डरते हैं भगवान होना चाहते हैं । सरकारों ने कितनी योजनाएं घोषित की और दावे किये देश से भूख गरीबी और अन्य परेशानियां मिटाने को लेकर कभी निर्धारित अवधि तक कुछ भी सच साबित नहीं हुआ तो अपराधी कौन है । पुलिस न्यायपालिका प्रशासन सभी जिस कार्य को नियुक्त हैं अगर सफल नहीं हुए तो कारण क्या भगवान है , क्या भगवान ने उनको ये सब नहीं करने दिया । तमाम लोगों ने भगवान को भुलाया ही नहीं बल्कि ठगा है अच्छा किया तो हमने किया बुरा हुआ तो भगवान की इच्छा उसकी मर्ज़ी । भगवान को दुनिया ने शायद शैतान जैसा बनाना चाहा है उसके नाम पर झूठ फरेब छल कपट लूट का कारोबार क्या अब हिंसा दंगे फ़साद से समाज में भेदभाव नफ़रत फैलाने का कार्य किया जाने लगा है । भगवान कभी किसी महल या अन्य इमारत में नहीं रहता कण कण में वास करता इंसान के भीतर मन में आत्मा में बसता है , लोग बाहर जाने कहां कहां ढूंढने की बात करते हैं ढूंढना होता तो पहले समझते कौन है ईश्वर क्या है । अगर कोई कहता है कि यही दुनिया है जिसे मैंने बनाया था तो सही नहीं है अब ये दुनिया कोई और है आपने मेरी बनाई दुनिया को तबाह बर्बाद कर जिसे बेहद भयानक स्वरूप दे दिया है , मुझे इस दुनिया से घबराहट होती है मैं चाहता हूं इस बार कोई ऐसी दुनिया बनाऊंगा जिस में कोई बुराई कोई भेदभाव कोई अंतर छोटे बड़े का नहीं हो । कोई कहेगा इस दुनिया का अंत विनाश होना है जो मुझी ने करना है मगर ये सही नहीं है मैं चाहे कुछ भी हो अपने हाथों से बनाई खूबसूरत दुनिया को ख़त्म नहीं कर सकता । ये काम भी इंसान खुद करने लगा है आधुनिकता और किताबी शिक्षा से ज़िंदगी जीने के साधन बनाने की बजाय मौत और तबाही लाने वाले संसाधन बनाकर । क्या मैं भगवान इतना नासमझ हो सकता हूं जो ऐसी अनुचित बातों कार्यों को होते देख अपनी आंखें बंद कर बस अपना गुणगान सुनकर चिंतामुक्त रह सके , मेरी दुविधा कौन समझेगा , कहते कहते कोई अचानक गुम हो गया है अभी तक तो सामने था वार्तालाप करता हुआ ।