मेरे ब्लॉग पर मेरी ग़ज़ल कविताएं नज़्म पंजीकरण आधीन कॉपी राइट मेरे नाम सुरक्षित हैं बिना अनुमति उपयोग करना अनुचित व अपराध होगा । मैं डॉ लोक सेतिया लिखना मेरे लिए ईबादत की तरह है । ग़ज़ल मेरी चाहत है कविता नज़्म मेरे एहसास हैं। कहानियां ज़िंदगी का फ़लसफ़ा हैं । व्यंग्य रचनाएं सामाजिक सरोकार की ज़रूरत है । मेरे आलेख मेरे विचार मेरी पहचान हैं । साहित्य की सभी विधाएं मुझे पूर्ण करती हैं किसी भी एक विधा से मेरा परिचय पूरा नहीं हो सकता है । व्यंग्य और ग़ज़ल दोनों मेरा हिस्सा हैं ।
जनवरी 31, 2021
POST : 1458 मिलाओ कॉल सत्ता का जूता तुम्हारी खाल बिछा है जाल ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
जनवरी 30, 2021
POST : 1457 देशभक्त गोडसे हैं गांधी गाली है ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया
देशभक्त गोडसे हैं गांधी गाली है ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया
जनवरी 29, 2021
POST : 1456 ज़ालिम दिलफ़रेब दिलरुबा है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
ज़ालिम दिलफ़रेब दिलरुबा है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
जनवरी 27, 2021
POST : 1455 विवशता उपरवाले की ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
विवशता उपरवाले की ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

जनवरी 24, 2021
POST : 1454 पैसा बोलता है राज़ खोलता है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
पैसा बोलता है राज़ खोलता है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
जनवरी 22, 2021
POST : 1453 अपनी निशानी छोड़ जा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
अपनी निशानी छोड़ जा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
जनवरी 19, 2021
POST : 1452 दोहा :- झूठ यहां अनमोल है सच का ना व्यौपार । डॉ लोक सेतिया
झूठ की फ़सल बोना सीखें ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
दोहा :- झूठ यहां अनमोल है सच का ना व्यौपार । सोना बन बिकता यहां पीतल बीच बाज़ार।
जनवरी 18, 2021
POST : 1451 नासमझ नादान जानकार लोग ( किताबी समझ ) डॉ लोक सेतिया
नासमझ नादान जानकार लोग ( किताबी समझ ) डॉ लोक सेतिया
गांव अपना छोड़ कर हम पराये हो गये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
लौट कर आए मगर बिन बुलाये हो गये।
जब सुबह का वक़्त था लोग कितने थे यहां
शाम क्या ढलने लगी , दूर साये हो गये।
कर रहे तौबा थे अपने गुनाहों की मगर
पाप का पानी चढ़ा फिर नहाये हो गये।
डायरी में लिख रखे ,पर सभी खामोश थे
आपने आवाज़ दी , गीत गाये हो गये।
हर तरफ चर्चा सुना बेवफाई का तेरी
ज़िंदगी क्यों लोग तेरे सताये हो गये।
इश्क वालों से सभी लोग कहने लग गये
देखना गुल क्या तुम्हारे खिलाये हो गये।
दोस्तों की दुश्मनी का नहीं "तनहा" गिला
बात है इतनी कि सब आज़माये हो गये।
जनवरी 17, 2021
POST : 1450 हज़ारों वर्ष बाद आज की बात ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
हज़ारों वर्ष बाद आज की बात ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
तुम ख़ुदा हो तुम्हारी खुदाई है
हम तुम्हारी ईबादत नहीं करते।
जनवरी 15, 2021
POST : 1449 झूठ की आत्मकथा सच की कलम से ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
झूठ की आत्मकथा सच की कलम से ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
जनवरी 13, 2021
POST : 1448 सूरज के आसन पर घने अंधेरे बैठे हैं ( मातम की बात ) डॉ लोक सेतिया
सूरज के आसन पर घने अंधेरे बैठे हैं ( मातम की बात ) डॉ लोक सेतिया
मैं ढूंढता हूं जिसे वो जहां नहीं मिलता , नई ज़मीन नया आस्मां नहीं मिलता।
नई ज़मीन नया आस्मां भी मिल जाये , नये बशर का कहीं कुछ निशां नहीं मिलता।
वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मेरा , किसी के हाथ का उस पर निशां नहीं मिलता।
वो मेरा गांव है वो मेरे गांव के चूल्हे , कि जिन में शोले तो शोले धुआं नहीं मिलता।
खड़ा हूं कब से मैं चेहरों के एक जंगल में , तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहां नहीं मिलता।
जो इक खुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूं , यहां तो कोई मेरा हमज़बां नहीं मिलता।
जनवरी 12, 2021
POST : 1447 इस फटकार में दुलार है ( सीधी बात ) डॉ लोक सेतिया
इस फटकार में दुलार है ( सीधी बात ) डॉ लोक सेतिया
बहती इंसाफ की हर ओर यहां गंगा है ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
बहती इंसाफ की हर ओर यहां गंगा हैजो नहाये न कभी इसमें वही चंगा है।
वह अगर लाठियां बरसायें तो कानून है ये
हाथ अगर उसका छुएं आप तो वो दंगा है।
महकमा आप कोई जा के कभी तो देखें
जो भी है शख्स उस हम्माम में वो नंगा है।
ये स्याही के हैं धब्बे जो लगे उस पर
दामन इंसाफ का या खून से यूँ रंगा है।
आईना उनको दिखाना तो है उनकी तौहीन
और सच बोलें तो हो जाता वहां पंगा है।
उसमें आईन नहीं फिर भी सुरक्षित शायद
उस इमारत पे हमारा है वो जो झंडा है।
उसको सच बोलने की कोई सज़ा हो तजवीज़
"लोक" राजा को वो कहता है निपट नंगा है।
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध
जनवरी 11, 2021
POST : 1446 हम क्या हैं क्या से क्या बन गए ( चिंतन ) डॉ लोक सेतिया
हम क्या हैं क्या से क्या बन गए ( चिंतन ) डॉ लोक सेतिया
जनवरी 10, 2021
POST : 1445 बेहयाई हुनर हो गई है ( भली लगे या लगे बुरी ) डॉ लोक सेतिया
बेहयाई हुनर हो गई है ( भली लगे या लगे बुरी ) डॉ लोक सेतिया
अधिक विस्तार में नहीं जाकर फिर से बताना है 2002 में लिखा लेख कादम्बिनी के फरवरी अंक में छपा था , आज तक का सबसे बड़ा घोटाला। सरकारी विज्ञापन की ही बात थी और आंकड़े देकर बताया था कि पिछले पचास साल से तब तक जितना धन इस तरह से खर्च नहीं बर्बाद कहने से भी आगे बढ़कर कह सकते हैं टीवी अख़बार वालों को खुश करने अपने प्रभाव में रखने को सभी घोटालों की धनराशि से अधिक कुछ मुट्ठी भर लोगों को फायदा पहुंचाने को किया जाता रहा सभी सत्ताधारी लोगों द्वारा। मुझे याद है जो आज सत्ता पर काबिज़ हैं तब उनको मेरी बात सौ फीसदी सही लगी थी , मगर शायद उन्हीं की सरकार ने पिछली सभी सरकारों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। पहले बात अपने आलोचना से बचना भर था जो आज उस से बहुत खतरनाक बढ़ कर चुनावी जीत का साधन बना लिया गया है। आज सत्ताधारी दल के नेता मानते ही नहीं दावा करते हैं कि चुनाव सोशल मीडिया के दम पर उसका सहारा लेकर लड़ना है और जीतना है। आपको इस का अर्थ समझना होगा। बीस साल में राजनीति बदलते बदलते बदकार हो गई है उनकी जीत जनता की हार हो गई है काठ की हांडी बार बार चढ़ती है चमत्कार होते होते झूठ वाला इश्तिहार हो गई है। सरकार आदत से लाचार हो गई है नीयत खराब है बदन भला चंगा है बाहर से भीतर से मगर खोखला है जिस्म खूबसूरत सजा है सोच बीमार हो गई है। फूलों ( मूर्ख अंधभक्तों ) को क्या खबर है दुल्हन की डोली जिसे समझ रहे हैं किसी बदनसीब की लाश है ज़िंदा है फिर भी अर्थी तैयार हो गई है।
रैना बीती जाये शाम न आये , निंदिया न आये। गीत गा रही है नायिका जिसको हमदर्दी जतला कर कोठे पर लाया है कोई भलाई की आड़ में कमाई करने वाला। तभी शराबी नायक घर से परेशान भटकता सुरीली आवाज़ सुनकर कोठे की सीढ़ियां चढ़ ऊपर चला आता है। छलिया धोखेबाज़ खुश होकर स्वागत करता हुए कहता है अरे आनंद बाबू आप और इस मंदिर में। कहानी बदली हुई है बिकना बेबस जनता को है बाज़ार सत्ता का है खरीदार बड़े बड़े धनवान लोग हैं। मुजरा राजनीति की वैश्या कर रही है। सरकार ने अपना सभी कुछ जुए की चौसर बिछा दांव पर लगा दिया है। खुद सरकार ने बुलाया है अपने बंधुओं को शकुनि की चालों के साथ जीतने को। ये अंधे राजा की सभा है जिस में कितने अंधे सभी को रास्ता दिखला रहे हैं। जुआ खेलने के फायदे बता रहे हैं टीवी पर शहंशाह करोड़पति बना रहे हैं। जिधर जाना मना है उधर ले जा रहे हैं क़ातिल को चाटुकार मसीहा बता रहे हैं।
जनवरी 09, 2021
POST : 1444 अब नहीं तो कब समझोगे ( सियासत की हक़ीक़त ) डॉ लोक सेतिया
अब नहीं तो कब समझोगे ( सियासत की हक़ीक़त ) डॉ लोक सेतिया
जनवरी 08, 2021
POST : 1443 अब किसी को हमारी ज़रूरत नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
अब किसी को हमारी ज़रूरत नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
जनवरी 07, 2021
POST : 1442 नाम शोहरत काम नहीं अंजाम नहीं ( विवेचना ) डॉ लोक सेतिया
नाम शोहरत काम नहीं अंजाम नहीं ( विवेचना ) डॉ लोक सेतिया
जनवरी 06, 2021
POST : 1441 गिरते हैं समुंदर में बड़े शौक से दरिया , लेकिन किसी दरिया में समुंदर नहीं गिरता - क़तील शिफ़ाई
कितने प्यासे खारे पानी के समुंदर ( सच पूरा सच ) डॉ लोक सेतिया
जनवरी 04, 2021
POST : 1440 मुफ़्त किया बदनाम ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
मुफ़्त किया बदनाम ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
चमन में कौन है पुरसाने-हाल शबनम का
गरीब रोई तो गुंचों को भी हंसी आई।
POST : 1439 बदनसीबी अमीर लोगों की ( तीर-ए-नज़र ) डॉ लोक सेतिया
बदनसीबी अमीर लोगों की ( तीर-ए-नज़र ) डॉ लोक सेतिया
जनवरी 03, 2021
POST : 1438 ज़िंदगी पर सबका एक सा हक़ हो ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
ज़िंदगी पर सबका एक सा हक़ हो ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया