ग़ज़ब की बात यही औकात ( विचार-विमर्श ) डॉ लोक सेतिया
सुबह से शाम तक हम क्या करते हैं सोशल मीडिया पर देखने पर लगता है अमृत की वर्षा हो रही है सभी को सामाजिक संबंधों से देश की घटनाओं पर जानकारी है समझ है और घटने वाली बुरी घटनाओं से गहरी संवेदना सरोकार है । लेकिन ये कोई खबर नहीं शायद कोई इश्तिहार है पढ़ना समझना कौन चाहता है हर शख़्स खुद को समझता समझदार है । खुद नहीं पढ़ते समझते दुनिया को बतलाते हैं ऐसे में चर्चा करना किस काम का समय की बर्बादी है सब कुछ बेकार है दुनिया कहते हैं निस्सार है । ठीक से समझ लेना चाहिए इस व्हाट्सएप्प पर उपचार करने वाला खुद बीमार है । आज कोई खास दिन है कौन सा वार है कोई त्यौहार है शुभकामनाओं का लगा अंबार है लेकिन आपस में ज़िंदगी की वास्तविकता की बात नहीं होती दिखावे का शिष्टाचार है । कल रक्षाबंधन था शुभकामनाओं का दौर था सामाजिक सुरक्षा महिला क्या बड़े क्या बचपन की सुरक्षा पर कोई नहीं चिंतित था सोशल मीडिया का खुद बुना हुआ इक जाल था जी का जंजाल था जीना भी मुहाल था । कौन किसे भेज रहा कैसा संगीत था कोई सुर था न कोई ताल था वीडियो बनाया क्या कमाल था मकसद क्या था मनोरंजन करना या शालीनता का आभाव है इसकी मिसाल था ।
टीवी पर सोशल मीडिया पर सैर पर इधर उधर हर दिन घटनाओं की चर्चा करते हैं , लेकिन वास्तविक ज़िंदगी में सामने देख कर बच कर निकलते हैं । हमको क्या कोई कुछ भी करता रहे जब तक अपने तक आंच नहीं आती अनदेखा करते हैं । सरकार समाज धर्म प्रशासन पुलिस सुरक्षा को तैनात स्कूल कॉलेज अस्पताल सभी मनमानी करते हुए नहीं डरते हैं । अच्छाई भलाई सच्चाई कर्तव्य निभाने की बातें सभी करते हैं लेकिन स्वार्थ की खातिर हर हद से गुज़रते हैं झूठ का दामन पकड़े हैं सच से मुकरते हैं । सामने खामोश रहते हैं सोशल मीडिया पर खूब शोर करते हैं । भ्र्ष्टाचार अन्याय नफ़रत तमाम बुराईयों को देख कर विरोध करने का हौसला नहीं करते अर्थात उनको बढ़ने देने में योगदान करते हैं । देश में एकता समानता भाईचारा हो इस को लेकर कभी सोचते ही नहीं ख़ुदगर्ज़ होकर अपनी हर चाहत पूरी करने को बबूल बोने का काम करते हैं । खुद को सभी शानदार समझते हैं अन्य सभी की कमियां बताते हैं अनुचित उचित छोड़ धन दौलत नाम शोहरत पाने को क्या नहीं अपनाते हैं । इक वास्तविकता को क्यों भूल जाते हैं जैसा देश समाज है अच्छा खराब सब हम लोग बनाते हैं अनैतिक अनुचित को बढ़ावा देकर मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे जा कर कुछ नहीं पाते सुनते हैं समझते नहीं हैं नज़रे चुराते हैं । हमने कितने चेहरे लगा रखे हैं आईना नहीं देखते खुद को नहीं समझ पाते हैं ज़िंदगी जितनी लंबी मिले जीते हैं बस बिताते हैं कुछ देश समाज के बेहतर बनाते तो अच्छा था मगर आखिर कुछ हासिल नहीं होता पछताते हैं । हंसना चाहते हैं खुद बस इस खातिर सभी को रुलाते हैं क्या ग़ज़ब के लोग हैं झूठ को सच बताते हैं । आज कुछ सवाल उठाते हैं जिनके जवाब आपको देश समाज की असलियत समझाते हैं । राजनेता धर्मगुरु सरकार का प्रशासन सभी जनता को न्याय क्या अधिकार तक देना ज़रूरी नहीं समझते जनता को ठोकर लगा मुस्कुराते हैं अपराधी संग दोस्ती बढ़ाकर समाज को बदतर बनाते हैं कोई भी कर्तव्य खुद नहीं निभाते आरोप दुनिया पर लगाते हैं । ये सभी अमीर बनते जाते हैं देश को लूट कर घर भरते हैं झूठी शान से इतराते हैं । सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा गाते हैं तिरंगा फहराते हैं ।