अपमानित होती देश की जनता ( बेहद खेद की बात )
डॉ लोक सेतिया
यूं तो हमेशा से साधनविहीन लोगों को अपमानित किया जाता रहा है , इक शायर का शेर कुछ इसी तरह है :-" या हादिसा भी हुआ इक फ़ाक़ाकश के साथ ,
लताड़ उसको मिली भीख मांगने के लिये "
मगर लोकतंत्र में जनता भले गरीब भी हो उसका अपमान करना खुद संविधान को अपमानित करना है। शायद आपको इस में बुराई नहीं लगती हो कि सरकार जब स्वच्छता अभियान की बात करे तो जनता को ही कटघरे में खड़ा करती हो कि आप गंदगी करते हैं तभी गंदगी है। गंदगी नहीं हो इसका प्रबंध सरकार को करने की ज़रूरत ही नहीं शायद। भाषण देना बहुत सरल है मगर जिस तरह इस देश की जनता जीती है उसकी कल्पना भी ये नेता अफ्सर नहीं कर सकते। जब सब कुछ अपने आप मिल जाता हो तब ये नहीं समझ सकते कि जिनको कुछ भी नहीं मिलता उनका जीवन कैसा होता है। इधर सरकारी प्रचार विज्ञापनों में ऐसा ही किया जाने लगा है , ये दिखाया जाता है कि मूर्ख लोग हैं जो खुले में शौच करते हैं। पूछना जाकर उन महिलाओं से जो झौपड़ी में रहती हैं क्या खुश हैं खुले में शौच को जाकर। आप कागजों पर दिखा सकते हैं घर घर शौचालय बनवा दिया वास्तव में नहीं दिखा सकते। कितनी खेदजनक बात है सरकार जो स्वयं सामान्य सुविधा सुरक्षा की जीने की बुनियादी ज़रूरतों की सभी को दे पाने में विफल रही है आज़ादी के 6 9 साल बाद भी , और इस पर कभी शर्मसार नहीं होती वो जनता को शर्मसार करने की बात करती है। वाह मीडिया वालो आपको भी ऐसे विज्ञापन गलत नहीं लगते न ही किसी नेता के भाषण में ऐसी बातें जो गरीबों को हिकारत से देखने और अपमानित करने का काम करती हैं अनुचित लगता है।देश की सत्तर प्रतिशत आबादी जिन गांवों में रहती है या गंदी बस्तियों में , उन को साफ पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं करवा पाने वाली सरकारें , आदर्श नगर और सुंदर शहरों की बात करती हैं। क्या ये इक भद्दा उपहास नहीं है जनता के साथ। लेकिन अब सरकारों ने अपना कर्तव्य समझना छोड़ दिया है , कि सभी को आवास , शिक्षा , स्वास्थ्य सेवा , और रोज़गार के अवसर देना उसकी प्राथमिकता होनी चाहिये। हां कितना अधिक कर वसूल सकते हैं और जनता के धन को कैसे अपने ऐशो-आराम पर या झूठे गुणगान के विज्ञापनों पर बर्बाद कर सकते हैं ये प्राथमिकता दिखाई देती है।
अगर कोई नेता , चाहे उसको कितना भी जनसमर्थन हासिल हो , देश की जनता को अपमानित करना सही समझता है तो फिर उसको लोकतंत्र की परिभाषा ही नहीं , संविधान की भावना ही नहीं , मानव धर्म को भी पढ़ना समझना और अपनाना होगा , अन्यथा उसको किसी भी तरह महान नहीं कहा जा सकता।