धुंध से आना धुंध में जाना ( शून्य से शून्य तक ) डॉ लोक सेतिया
भला कीजे भला होगा , बुरा कीजे बुरा होगा ,
बही लिख लिख के क्या होगा , यहीं सब कुछ चुकाना है ।
संवेदना खो जाती है जब लोग किसी अनहोनी पर खामोश नहीं रहते बल्कि शोर शराबा करने लगते हैं । किसी ख़ास घटना की बात नहीं कर रहा वास्तव में हर घड़ी हर दिन किसी न किसी विचलित करने वाली बात पर लोग सोचे समझे बगैर निष्कर्ष निकालने लगते हैं । कुछ अपने कारोबार का विस्तार तलाश करते हैं और उसी को लेकर आपको रौशनी नहीं दिखाते अंधेरे में अंधविश्वास की राहों पर लाने का प्रयास करते हैं । नासमझ लोग दिन समय की संख्या से ढूंढते हैं कभी उसी अंक से क्या जोड़ा जा सकता है । कुछ लोगों को हर घटना को ग्रहों की स्थिति से जोड़ने का हुनर आता है आपको दिन में तारे दिखाना उनका व्यवसाय है । कभी कभी जब अधिकांश साधारण लोग स्तब्धता में निःशब्द होते हैं तब भी तमाम लोग सोशल मीडिया पर पोस्ट फोटो वीडियो और कुछ अधकचरी जानकारी देते हुए अपनी वाणी अपनी लेखनी से खुद भटकन का शिकार हो आपको भी भटकाने की कोशिश करते हैं । मकसद कुछ नहीं खुद को सुर्ख़ियों में रहने की चाहत होती है । कोई आपको किसी धार्मिक किताब की बात करता है तो कोई अचानक किसी पुरातन युग की किसी की बात का मतलब अपनी सुविधा से निकालता है ये साबित करने को कि ऐसा कभी घोषित किया गया था ।
आपको अजीब लग रहा है ये क्या बात कहना चाहता हूं , मुझे भी समझ नहीं आता की कुछ भी समझना नहीं सिर्फ समझाना किसको किस लिए सभी चाहते हैं । कभी किसी ने परामर्श दिया था इक किताब को पढ़ना जब कुछ भी समझ नहीं आता हो कोई रास्ता दिखाई देगा उसे पढ़ कर अर्थ जानकर । कोई धार्मिक किताब नहीं है कोई आस्था अनास्था का विषय नहीं है , कभी सदियों पहले जाने कैसे कुछ लोगों ने लोककथाओं और नीतिकथाओं जैसी आसानी से समझ आने वाली कहानियों से जीवन का ढंग और सही मार्ग दिखलाने को उनका संकलन किया था । बड़े बूढ़े बज़ुर्गों की अनुभव की समझ से बताई बातों का गहन मतलब निकलता था जैसे किसी पिता का अंतिम समय बेटों को गढ़े धन का रहस्य बताना उनको मेहनत करने को विवश करता है । कुछ ऐसी इक कथा है जिस में जैसा करोगे वैसा पाओगे की बात कही है , ऊपरवाले की लाठी से कितनी बातें हैं शामिल उस में कितने उदाहरण हैं कितने निहितार्थ हैं ।
पहले
भी कितनी बार मैंने लोक - कथाओं , नीति - कथाओं से पौराणिक कहानियों , पंच
तंत्र की कहानियों की चर्चा की है जो जैसा करता है परिणाम उसी तरह मिलता
है । समाज सरकार से प्रशासन तक जब सभी मार्ग से भटक कर अपने अपने स्वार्थों
में अंधे होकर विनाश की राह चलने लगे हैं तो परिणाम विनाशकारी मिलना है
स्वीकारना ही पड़ेगा । बोया पेड़ बबूल का आम कहां से खाय , शासक वर्ग धनवान
लोग ताकतवर लोग जब निरंकुश होकर मनमानी करते हैं तब खुद उनका नहीं देश समाज
का हाल बर्बादी के सिवा कुछ भी नहीं हो सकता है । ऐसे शासकों का गुणगान
करना अनुचित को उचित बताना भले किसी लोभ से हो अथवा किसी डर से अनुचित ही
होगा । आपकी कथनी जैसी है करनी भी उसी जैसी होनी चाहिए । जब तमाम लोग पाप
और अपराध को उचित बताने लगते हैं तब समाज को कुमार्ग को अग्रसर करते हैं
चाहे बाद में पछताते हैं । अब पछताए क्या होत , जब चिड़िया चुग गई खेत ।
हैरानी की बात है जिसे भी देखते हैं उसी डाल को काटने में लगा है जिस पर
बैठा हुआ है , हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम ए गुलिस्तान क्या होगा । ये
सभी कहावतें सामने सच हुई खड़ी हैं फिर भी हम अनजान हैं परिणाम से तो क्या
हासिल होगा । समाज शासन प्रशासन और आदमी जैसा व्यवहार करते हैं नियति वैसा ही परिणाम देती है ।
कभी ऐसा भी होता है शासक से लेकर साधरण जन सामान्य तक अपने मार्ग से भटक कर झूठ की राह पर चलने लगते हैं और अन्याय अत्याचार के पक्ष में दलीलें देने लगते हैं । ईश्वर से धर्म तक को लेकर सभी उपदेश देते हैं आचरण विपरीत करते हैं । विधाता अथवा कुदरत प्रकृति अपना न्याय अपना कर्तव्य निभाने को इस तरह से दुनिया को डांवाडोल करते हैं जैसे धरती आकाश हवा सागर से जीव जंतु पेड़ पौधे सभी का ढंग परिवर्तित होकर भयभीत करता है । आपको मालूम है चेतावनी की बात समझना ज़रूरी होता है , खेद है हमने समझना छोड़ दिया है जब रौशनी करने वाले आग लगाते हैं और ऐसी भीषण आग से घना अंधकार फैलता है तब सभी कुछ ख़ाक़ में मिल जाता है जलकर राख़ हो जाता है । आपको विज्ञान हर चीज़ का कारण कभी नहीं बता पाएगी क्योंकि विज्ञान अथवा आर्टिफीसियल इंटेलीजैंस की इक निर्धारित सीमा है जितना उस में भरा गया है उसी से कुछ अंश निकलते हैं जबकि अंतरिक्ष की तरह सृष्टि और धरती पाताल से गगन और उस के बीच शून्य की कोई सीमा कोई नहीं जानता है । जब कुछ ऐसा घटित होता है जिस से हम लोग चकित रह जाते हैं तब कभी नहीं समझते कि कुछ भी होता है तो पीछे कोई कारण होता है , मगर हमारी सोच नज़र सिर्फ इक दायरे तक जाती है उस पार नहीं जानते कितना रहस्य अभी जिस से अनभिज्ञ है संसार । क्या हमने ईश्वरीय शक्ति को मानना छोड़ दिया है , अगर नहीं तो जब समाज का हर वर्ग सही मार्ग छोड़ किसी न किसी गलत मार्ग पर चलने लगा है तब वह सर्वशक्तिमान सब देख कर अनदेखा कैसे कर सकता है । कुछ भी उसकी मर्ज़ी बिना नहीं होता तो किस अपराध पाप की सज़ा मिलती है समाज को अनहोनी घटनाओं के रुप में सोचने और चिंतन की बात है । शायर साहिर लुधियानवी जी की रचना फिल्म धुंध का गीत है , किसी ने कोशिश की है उस को विस्तार देने की मगर मुझे ज़रूरत नहीं कुछ जोड़ने घटाने की , उनकी बात अपने आप संपूर्ण है पढ़िए और समझिए ।
संसार की हर शाय का इतना ही फ़साना है ,
इक धुंध से आना है इक धुंध में जाना है ।
ये राह कहां से है ये राह कहां तक है ,
ये राज़ कोई रही समझा है न जाना है ।
इक पल की पलक पर है ठहरी हुई ये दुनिया ,
इक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है ।
क्या जाने कोई किस पर किस मोड़ पर क्या बीते ,
इस राह में ऐ राही हर मोड़ बहाना है ।
हम लोग खिलौना हैं इक ऐसे खिलाड़ी का ,
जिस को अभी सदियों तक ये खेल रचाना है ।
