फ़रवरी 27, 2013

POST : 305 लोग कितना मचाये हुए शोर हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

लोग कितना मचाये हुए शोर हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

लोग कितना मचाये हुए शोर हैं
एक बस हम खरे और सब चोर हैं ।

साथ दुनिया के चलते नहीं आप क्यों
लोग सब उस तरफ , आप इस ओर हैं ।

चल रही है हवा , उड़ रही ज़ुल्फ़ है
लो घटा छा गई ,  नाचते मोर हैं ।

हाथ जोड़े हुए मांगते वोट थे
मिल गई कुर्सियां और मुंहजोर हैं ।

क्या हुआ है नहीं कुछ बताते हमें 
नम हुए किसलिए आंख के कोर हैं ।

सब ये इलज़ाम हम पर लगाने लगे
दिल चुराया किसी का है , चितचोर हैं ।

टूट जाये अगर फिर न "तनहा" जुड़े
यूं नहीं खींचते , प्यार की डोर हैं । 
 

 

फ़रवरी 25, 2013

POST : 304 जनाज़े पे मेरे तुम्हें भी है आना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

जनाज़े पे मेरे तुम्हें भी है आना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

जनाज़े पे मेरे तुम्हें भी है आना
नहीं भूल जाना ये वादा निभाना ।

लगे प्यार करने यकीनन किसी को
कहां उनको आता था आंसू बहाना ।

तुम्हें राज़ की बात कहने लगे हैं
कहीं सुन न ले आज ज़ालिम ज़माना ।

बनाकर नई राह चलते रहे हैं
नहीं आबशारों का कोई ठिकाना ।

हमें देखना गांव अपना वही था
यहां सब नया है, नहीं कुछ पुराना ।

उन्हें घर बुलाते, थी हसरत हमारी
कसम दे गये, अब हमें मत बुलाना ।

मिले ज़िंदगी गर किसी रोज़ "तनहा"
मनाकर के लाना , हमें भी मिलाना ।
 
 

फ़रवरी 23, 2013

POST : 303 नाम पर तहज़ीब के बेहूदगी है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

नाम पर तहज़ीब के बेहूदगी है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

नाम पर तहज़ीब के ,   बेहूदगी है 
रौशनी समझे जिसे सब , तीरगी है ।

सांस लेना तक हुआ मुश्किल यहां पर
इस तरह जीना भी , कोई ज़िंदगी है ।

सब कहीं आते नज़र हमको वही हैं 
आग उनके इश्क की ऐसी लगी है ।

कह दिया कैसे नहीं कोई किसी का 
तोड़ दिल देती तुम्हारी दिल्लगी है ।

पौंछते हैं हाथ से आंसू किसी के 
और हो जाती हमारी  बंदगी है ।

सब हसीनों की अदाओं पर हैं मरते 
भा गई मुझको तुम्हारी सादगी है ।

मयकदा सारा हमें "तनहा" पिला दो
आज फिर से प्यास पीने की जगी है ।
 

 

फ़रवरी 20, 2013

POST : 302 हो गया क्यों किसी को प्यार है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हो गया क्यों किसी को प्यार है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हो गया क्यों किसी को प्यार है
बस इसी बात पर तकरार है ।

कौन आकर हमारे ख़्वाब में
खुद बुलाता हमें उस पार है ।

कुछ खबर तक नहीं हमको हुई
जुड़ गया दिल से दिल का तार है ।

धर्म के नाम पर दंगे हुए
जल गया आग में गुलज़ार है ।

रोग जाने उसे क्या हो गया
चारागर लग रहा बीमार है ।

हर कदम डगमगा कर रख रही
चल रही इस तरह सरकार है ।

शर्त रख दी थी "तनहा" प्यार में ,
कर दिया इसलिये इनकार है । 
 

 

POST : 301 ज़रा सोचना , सोचकर फिर बताना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ज़रा सोचना , सोचकर फिर बताना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ज़रा सोचना सोचकर फिर बताना
हुआ है किसी का कभी भी ज़माना ।

इसी को तो कहते सभी लोग फैशन
यही कल नया था हुआ अब पुराना ।

उसी को पता है किया इश्क़ जिसने
कि होता है कैसा ये मौसम सुहाना ।

मेरी कब्र इक दिन बनेगी वहीं पर
मुझे घर जहां पर कभी था बनाना ।

सभी दोस्त आए बचाने हमें थे
लगाते रहे पर हमीं पर निशाना ।

उठा दर्द सीने में फिर से वही है
वही धुन हमें आज फिर तुम सुनाना ।

रहा सोचता रात भर आज "तनहा"
है रूठा हुआ कौन  किसने मनाना । 
 

 

फ़रवरी 18, 2013

POST : 300 बेबस जीवन ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

बेबस जीवन ( कविता ) लोक सेतिया

रातों को अक्सर
जाग जाता हूं
खिड़की से झांकती
रौशनी में
तलाश करता हूं
अपने अस्तित्व को ।

सोचता हूं
कब छटेगा
मेरे जीवन से अंधकार ।

होगी कब
मेरे लिये भी सुबह ।

उम्र सारी
बीत जाती है 
देखते हुए  सपने 
एक सुनहरे जीवन के ।

मैं भी चाहता हूं
पल दो पल को 
जीना ज़िंदगी को
ज़िंदगी की तरह ।

कोई कभी करता 
मुझ से भी जी भर के प्यार 
बन जाता कभी कोई
मेरा भी अपना ।

चाहता हूं अपने आप पर
खुद का अधिकार
और कब तक
जीना होगा मुझको
बन कर हर किसी का
सिर्फ कर्ज़दार
ज़िंदगी पर क्यों 
नहीं है मुझे ऐतबार । 
 

 

फ़रवरी 16, 2013

POST : 299 तीरगी कह गई राज़ की बात है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

तीरगी कह गई राज़ की बात है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

तीरगी कह गई राज़ की बात है
बेवफ़ा वो नहीं चांदनी रात है ।

लब रहे चुप मगर बात होती रही
इस तरह भी हुई इक मुलाकात है ।

झूठ भाता नहीं , प्यार सच से हुआ
मुझ में शायद छुपा एक सुकरात है ।

आज ख़त में उसे लिख दिया बस यही
आंसुओं की यहां आज बरसात है ।

हर जुमेरात करनी मुलाकात थी
आ भी जाओ कि आई जुमेरात है ।

भूल जाना नहीं डालियो तुम मुझे
कह रहा शाख से टूटता पात है ।

तुम मिले क्या मुझे , मिल गई ज़िंदगी
दिल में "तनहा" यही आज जज़्बात है ।
 

 

POST : 298 दर्द का नाता ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

  दर्द का नाता ( कविता ) लोक सेतिया

सुन कर कहानी एक अजनबी की
अथवा पढ़कर किसी लेखक की
कोई कहानी
एक काल्पनिक पात्र के दुःख में
छलक आते हैं
हमारी भी पलकों पर आंसू।

क्योंकि याद आ जाती है सुनकर हमें
अपने जीवन के
उन दुखों परेशानियों की
जो हम नहीं कह पाये कभी किसी से
न ही किसी ने समझा
जिसको बिन बताये ही।

छिपा कर रखते हैं हम
अपने जिन ज़ख्मों को
उभर आती है इक टीस सी उनकी
देख कर दूसरों के ज़ख्मों को।

सुन कर किसी की दास्तां को
दर्द की तड़प बना देती है
हर किसी को हमारा अपना
सबसे करीबी होता है नाता 
इंसान से इंसान के दर्द का।

फ़रवरी 12, 2013

POST : 297 कुछ भी कहते नहीं नसीबों को ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कुछ भी कहते नहीं नसीबों को ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कुछ भी कहते नहीं नसीबों को
चूम लेते हैं खुद सलीबों को ।

तोड़ सब सरहदें ज़माने की
दफ़न कर दो कहीं ज़रीबों को ।

दर्द औरों के देख रोते हैं
लोग समझे कहां अदीबों को ।

आज इंसानियत कहां ज़िंदा
सब सताते यहां गरीबों को ।

इश्क की बात को छुपा लेते
क्यों बताते रहे रकीबों को ।

लूट कर जो अमीर बन बैठे
आज देखा है बदनसीबों को ।

क्यों किनारे मिलें उन्हें "तनहा"
जो डुबोते रहे हबीबों को । 
 

 

फ़रवरी 08, 2013

POST : 296 अपने आप से साक्षात्कार ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

अपने आप से साक्षात्कार ( कविता )  डॉ लोक सेतिया 

हम क्या हैं
कौन हैं
कैसे हैं 
कभी किसी पल
मिलना खुद को ।

हमको मिली थी
एक विरासत
प्रेम चंद
टैगोर
निराला
कबीर
और अनगिनत
अदीबों
शायरों
कवियों
समाज सुधारकों की ।

हमें भी पहुंचाना था
उनका वही सन्देश
जन जन
तक जीवन भर
मगर हम सब
उलझ कर रह गये 
सिर्फ अपने आप तक हमेशा ।

मानवता
सदभाव
जन कल्याण
समाज की
कुरीतियों का विरोध
सब महान
आदर्शों को छोड़ कर
हम करने लगे
आपस में टकराव ।

इक दूजे को
नीचा दिखाने के लिये 
कितना गिरते गये हम
और भी छोटे हो गये
बड़ा कहलाने की
झूठी चाहत में ।

खो बैठे बड़प्पन भी अपना
अनजाने में कैसे
क्या लिखा
क्यों लिखा
किसलिये लिखा
नहीं सोचते अब हम सब
कितनी पुस्तकें
कितने पुरस्कार
कितना नाम
कैसी शोहरत
भटक गया लेखन हमारा
भुला दिया कैसे हमने 
मकसद तक अपना ।

आईना बनना था 
हमको तो
सारे ही समाज का 
और देख नहीं पाये
हम खुद अपना चेहरा तक
कब तक अपने आप से
चुराते रहेंगे  हम नज़रें
करनी होगी हम सब को
खुद से इक मुलाकात । 
 

 

फ़रवरी 03, 2013

POST : 295 सब पराये हैं ज़िंदगी ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

सब पराये हैं ज़िंदगी ( नज़्म ) डॉ  लोक सेतिया

देख आये हैं ज़िंदगी
सब पराये हैं ज़िंदगी ।

किसी ने पुकारा नहीं
बिन बुलाये हैं ज़िंदगी ।

खिज़ा के मौसम में हम
फूल लाये  हैं ज़िंदगी ।

अपने क्या बेगाने तक
आज़माये हैं ज़िंदगी ।

दर्द वाले नग्में हमने
गुनगुनाये हैं ज़िंदगी ।
 

 
 

POST : 294 आंखें ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

आंखें ( नज़्म ) डॉ  लोक सेतिया

बादलों सी बरसती  हैं आंखें 
बेसबब छलकती हैं आंखें ।

गांव का घर छूट गया जो
देखने को तरसती हैं आंखें ।

जुबां से नहीं जब कहा जाता
बात तब भी करती हैं आंखें ।

मौसम पहाड़ों का होता जैसे
ऐसे कभी बदलती हैं आंखें ।

नज़र के सामने आ जाये जब
बिन काजल संवरती हैं आंखें ।

गज़ब ढाती हैं हम पर जब 
और भी तब चमकती हैं आंखें । 
 

 

फ़रवरी 02, 2013

POST : 293 प्यास प्यार की ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

प्यास प्यार की ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

कहलाते हैं बागबां भी 
होता है सभी कुछ  उनके पास 
फिर भी खिल नहीं पाते 
बहार के मौसम में भी
उनके आंगन के कुछ पौधे ।

वे समझ पाते नहीं 
अधखिली कलिओं के दर्द को  ।

नहीं जान पाते 
क्यों मुरझाये से रहते  हैं
बहार के मौसम में भी 
उनके लगाये पौधे
उनके प्यार के बिना ।

सभी कहलाते हैं
अपने मगर
नहीं होता उनको
कोई सरोकार
हमारी ख़ुशी से
हमारी पीड़ा से ।

दुनिया में मिल जाते हैं
दोस्त बहुत
मिलता नहीं वही एक
जो बांट सके हमारे दर्द भी
और खुशियां भी
समझ सके
हर परेशानी हमारी 
बन कर किरण आशा की 
दूर कर सके अंधियारा
जीवन से हमारे ।

घबराता है जब भी मन
तनहाइयों से
सोचते हैं तब
काश होता अपना भी कोई ।

भागते जा रहे हैं
मृगतृष्णा के पीछे हम सभी
उन सपनों के लिये
जो नहीं हो पाते कभी भी पूरे ।

उलझे हैं सब
अपनी उलझनों में
नहीं फुर्सत किसी को 
किसी के लिये भी
करना चाहते हैं हम 
अपने दिल की किसी से बातें
मगर मिलता नहीं कोई 
हमें समझने वाला ।

सामने आता है
हम सब को नज़र 
प्यार का एक
बहता हुआ दरिया 
फिर भी नहीं मिलता 
कभी चाहने पर किसी को
दो बूंद भी  पानी
बस इतनी सी ही है 
अपनी तो कहानी ।