मेरे ब्लॉग पर मेरी ग़ज़ल कविताएं नज़्म पंजीकरण आधीन कॉपी राइट मेरे नाम सुरक्षित हैं बिना अनुमति उपयोग करना अनुचित व अपराध होगा। मैं डॉ लोक सेतिया लिखना मेरे लिए ईबादत की तरह है। ग़ज़ल मेरी चाहत है कविता नज़्म मेरे एहसास हैं। कहानियां ज़िंदगी का फ़लसफ़ा हैं। व्यंग्य रचनाएं सामाजिक सरोकार की ज़रूरत है। मेरे आलेख मेरे विचार मेरी पहचान हैं। साहित्य की सभी विधाएं मुझे पूर्ण करती हैं किसी भी एक विधा से मेरा परिचय पूरा नहीं हो सकता है। व्यंग्य और ग़ज़ल दोनों मेरा हिस्सा हैं।
अप्रैल 30, 2024
POST : 1809 सांसद - विधायक बनने का मोल ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
अप्रैल 29, 2024
POST : 1808 संविधान की आत्मा का संदेश ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
संविधान की आत्मा का संदेश ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
ग़ज़ल - डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
संविधान , अधिकार और कर्तव्य :-
प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा :-
(ए) संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना।
(बी) हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना।
(सी) भारतीय राष्ट्र की एकता, संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना।
(डी) देश की रक्षा करना और जब भी ऐसा करने के लिए कहा जाए तो राष्ट्रीय सेवा प्रदान करना।
(ई) धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या अनुभागीय विविधताओं से परे भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना; महिलाओं की गरिमा के प्रति अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करना।
(च) हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देना और संरक्षित करना।
(छ) वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना।
(ज) वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना विकसित करना।
(i) सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा का त्याग करना।
(जे) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना ताकि राष्ट्र लगातार प्रयास और उपलब्धि के उच्च स्तर तक पहुंच सके।
(के) जो माता-पिता या अभिभावक है, वह छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे या, जैसा भी मामला हो, प्रतिपाल्य को शिक्षा के अवसर प्रदान करेगा।
भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत छह मौलिक अधिकार हैं ।
वे इस प्रकार हैं :- समानता का अधिकार , स्वतंत्रता का अधिकार , शोषण के विरुद्ध अधिकार , धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार , सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार , संवैधानिक उपचारों का अधिकार
अप्रैल 25, 2024
POST : 1807 भय बिनु होई न प्रीति ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
भय बिनु होई न प्रीति ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
अप्रैल 24, 2024
POST : 1806 इस क़दर किरदार बौना हो गया है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
इस क़दर किरदार बौना हो गया है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
अप्रैल 22, 2024
POST : 1805 मिलावट पर शोध ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
मिलावट पर शोध ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
मिलावट ( व्यंग्य - कविता ) डॉ लोक सेतिया
यूं हुआ कुछ लोग अचानक मर गयेमौत का कारण मिलावट बन गई
नाम ही से तेल के सब डर गये ।
ये मिलावट की इजाज़त किसने दी
काम रिश्वतखोर कैसा कर गये ।
इसका ज़िम्मेदार आखिर कौन था
वो ये इलज़ाम औरों के सर धर गये ।
क्या हुआ ये कब कहां कैसे हुआ
कुछ दिनों अखबार सारे भर गये ।
नाम ही की थी वो सारी धर-पकड़
रस्म अदा छापों की भी कुछ कर गये ।
शक हुआ उनको विदेशी हाथ का
ये मिलावट उग्रवादी कर गये ।
सी बी आई को लगाओ जांच पर
ये व्यवस्था मंत्री जी कर गये ।
POST : 1804 आईने का सामना कौन करे ( भली लगे कि बुरी लगे ) डॉ लोक सेतिया
आईने का सामना कौन करे ( भली लगे कि बुरी लगे ) डॉ लोक सेतिया
बेचैनी ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
पढ़ कर रोज़ खबर कोईमन फिर हो जाता है उदास ।
कब अन्याय का होगा अंत
न्याय की होगी पूरी आस ।
कब ये थमेंगी गर्म हवाएं
आएगा जाने कब मधुमास ।
कब होंगे सब लोग समान
आम हैं कुछ तो कुछ हैं खास ।
चुनकर ऊपर भेजा जिन्हें
फिर वो न आए हमारे पास ।
सरकारों को बदल देखा
हमको न कोई आई रास ।
जिसपर भी विश्वास किया
उसने ही तोड़ा है विश्वास ।
बन गए चोरों और ठगों के
सत्ता के गलियारे दास ।
कैसी आई ये आज़ादी
जनता काट रही बनवास ।
अप्रैल 20, 2024
POST : 1803 बहुत चिराग़ जलाओगे ( कथा-कहानी ) डॉ लोक सेतिया
बहुत चिराग़ जलाओगे ( कथा-कहानी ) डॉ लोक सेतिया
पयाम-ए-मौत भी मुज़दा है ज़िंदगी के लिये ।
(रंज = कष्ट, दुःख, आघात, पीड़ा),
मैं सोचता हूँ के दुनिया को क्या हुआ या रब
किसी के दिल में मुहब्बत नहीं किसी के लिये ।
चमन में फूल भी हर एक को नहीं मिलते
बहार आती है लेकिन किसी किसी के लिये ।
हमारे बाद अँधेरा रहेगा महफ़िल में
बहुत चराग़ जलाओगे रोशनी के लिये ।
हमारी ख़ाक को दामन से झाड़ने वाले
सब इस मक़ाम से गुज़रेंगे ज़िंदगी के लिये ।
उन्हीं के शीशा-ए-दिल चूर चूर हो के रहें
तरस रहे थे जो दुनिया में दोस्ती के लिये ।
तो छोड़ देंगे दुनिया तेरी ख़ुशी के लिये ।
किसी ने दाग़ दिए दोस्ती के दामन पर
किसी ने जान भी लुटा दी दोस्ती के लिये ।
अप्रैल 19, 2024
POST : 1802 हम कर्ज़दार हैं दौलतमंद नहीं हैं ( सच का दर्पण ) डॉ लोक सेतिया
हम कर्ज़दार हैं दौलतमंद नहीं हैं ( सच का दर्पण ) डॉ लोक सेतिया
कि अब ये देश हुआ बेगाना
चल उड़ जा रे पंछी...
खत्म हुए दिन उस डाली के
जिस पर तेरा बसेरा था
आज यहाँ और कल हो वहाँ
ये जोगी वाला फेरा था
सदा रहा है इस दुनिया में
किसका आबो-दाना
चल उड़ जा रे पंछी...
तूने तिनका-तिनका चुन कर
नगरी एक बसाई
बारिश में तेरी भीगी काया
धूप में गर्मी छाई
ग़म ना कर जो तेरी मेहनत
तेरे काम ना आई
अच्छा है कुछ ले जाने से
देकर ही कुछ जाना
चल उड़ जा रे पंछी...
भूल जा अब वो मस्त हवा
वो उड़ना डाली-डाली
जब आँख की काँटा बन गई
चाल तेरी मतवाली
कौन भला उस बाग को पूछे
हो ना जिसका माली
तेरी क़िस्मत में लिखा है
जीते जी मर जाना
चल उड़ जा रे पंछी...
रोते हैं वो पँख-पखेरू
साथ तेरे जो खेले
जिनके साथ लगाये तूने
अरमानों के मेले
भीगी आँखों से ही उनकी
आज दुआयें ले ले
किसको पता अब इस नगरी में
कब हो तेरा आना
चल उड़ जा रे पंछी..
किसी शायर ने कहा है :-
' माना चमन को हम न गुलज़ार कर सके , कुछ खार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम '।
अप्रैल 18, 2024
POST : 1801 पति की प्रशंसा का दिन ( अजब दस्तूर ) डॉ लोक सेतिया
पति की प्रशंसा का दिन ( अजब दस्तूर ) डॉ लोक सेतिया
हमको तो कभी आपने काबिल नहीं समझा (ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हमको तो कभी आपने काबिल नहीं समझादुःख दर्द भरी लहरों में साहिल नहीं समझा ।
दुनिया ने दिये ज़ख्म हज़ार आपने लेकिन
घायल नहीं समझा हमें बिसमिल नहीं समझा ।
हम उसके मुकाबिल थे मगर जान के उसने
महफ़िल में हमें अपने मुकाबिल नहीं समझा ।
खेला तो खिलोनों की तरह उसको सभी ने
अफ़सोस किसी ने भी उसे दिल नहीं समझा ।
हमको है शिकायत कि हमें आँख में तुमने
काजल सा बसाने के भी काबिल नहीं समझा ।
घायल किया पायल ने तो झूमर ने किया क़त्ल
वो कौन है जिसने तुझे कातिल नहीं समझा ।
उठवा के रहे "लोक" को तुम दर से जो अपने
पागल उसे समझा किये साईल नहीं समझा ।
अप्रैल 16, 2024
POST : 1800 ख़्वाबों ख़्यालों की दुनिया ( फ़लसफ़ा ) डॉ लोक सेतिया
ख़्वाबों ख़्यालों की दुनिया ( फ़लसफ़ा ) डॉ लोक सेतिया
सपनों में जीना ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
अक्तूबर 24, 2012
देखता रहा
जीवन के सपने
जीने के लिये ,
शीतल हवाओं के
सपने देखे
तपती झुलसाती लू में ।
फूलों और बहारों के
सपने देखे ,
कांटों से छलनी था
जब बदन
मुस्कुराता रहा
सपनों में ,
रुलाती रही ज़िंदगी ।
भूख से तड़पते हुए
सपने देखे ,
जी भर खाने के
प्यार सम्मान के
सपने देखे ,
जब मिला
तिरस्कार और ठोकरें ।
महल बनाया सपनों में ,
जब नहीं रहा बाकी
झोपड़ी का भी निशां
राम राज्य का देखा सपना ,
जब आये नज़र
हर तरफ ही रावण ।
आतंक और दहशत में रह के
देखे प्यार इंसानियत
भाई चारे के ख़्वाब ,
लगा कर पंख उड़ा गगन में
जब नहीं चल पा रहा था
पांव के छालों से ।
भेदभाव की ऊंची दीवारों में ,
देखे सदभाव समानता के सपने
आशा के सपने ,
संजोए निराशा में
अमृत समझ पीता रहा विष ,
मुझे है इंतज़ार बसंत का
समाप्त नहीं हो रहा
पतझड़ का मौसम।
मुझे समझाने लगे हैं सभी
छोड़ सपने देखा करूं वास्तविकता ,
सब की तरह कर लूं स्वीकार
जो भी जैसा भी है ये समाज ,
कहते हैं सब लोग
नहीं बदलेगा कुछ भी
मेरे चाहने से ।
बढ़ता ही रहेगा अंतर ,
बड़े छोटे ,
अमीर गरीब के बीच ,
और बढ़ती जाएंगी ,
दिवारें नफरत की ,
दूभर हो जाएगा जीना भी ,
नहीं बचा सकता कोई भी ,
जब सब क़त्ल ,
कर रहे इंसानियत का ।
मगर मैं नहीं समझना चाहता ,
यथार्थ की सारी ये बातें ,
चाहता हूं देखता रहूं ,
सदा प्यार भरी ,
मधुर कल्पनाओं के सपने ,
क्योंकि यही है मेरे लिये ,
जीने का सहारा और विश्वास ।
अप्रैल 15, 2024
ख़ाली की गारंटी दूंगा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
ख़ाली की गारंटी दूंगा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
साहिर लुधियानवी , नील कमल फिल्म का गीत ।
खाली से मत नफरत करना खाली सब संसार
बड़ा-बड़ा सा सर खाली डब्बा ,
वो भी आधे खाली निकले
हमने इस दुनिया के दिल में झाँका है सौ बार
खाली डिब्बा खाली बोतल ले ले मेरे यार ....
भरे थे तब बंगलों में ठहरे ,
महलों की खुशियों के पाले ,
इन शरणार्थियों के सर पे दे दे थोड़ा प्यार |
खाली डिब्बा खाली बोतल ले ले मेरे यार....
खाली की गारंटी दूंगा ,
शहद में गुड के मेल का डर है ,
घी के अन्दर तेल का डर है
तम्बाखू में घास का ख़तरा ,
सेंट में झूटी बास का ख़तरा
मक्खन में चर्बी की मिलावट ,
केसर में कागज की खिलावट
मिर्ची में ईंटों के घिसाई ,
आटे में पत्थर की पिसाई
व्हिस्की अन्दर टिंचर घुलता,
रबड़ी बीच बलोटिन तुलता
क्या जाने किस चीज़ में क्या हो,
गरम मसाला लीद भरा हो
खाली की गारंटी दूंगा ,
क्यों दुविधा में पड़ा है प्यारे ,
छान पीस कर खुद भर लेना ,
खाली डिब्बा खाली बोतल ले ले मेरे यार....