आखिरी तम्मना ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
रात ख़्वाब में मुझसे खुदा ने कहातुम्हारे लिये है किसी ने मांगी दुआ
क्या चाहते हो मांगना सोचकर तुम
आज होगी पूरी हर इक इल्तजा ।
मुझसे ताउम्र तुम्हें शिकायत रही
आप खुद से रहते हो हमेशा ही खफ़ा
इबादत सीखी न आया माला जपना
फिर भी कर लो जो भी आरज़ू करनी ।
कहा मैंने पूछा है तो बस यही है कहना
ऐसी दुनिया में मुझे नहीं अब और रहना
जन्नत चाहिये न कोई दोज़ख ही मुझे
बात है इक ज़रूरी पूरी उसको करना ।
बाद मरने के मुझे इक ऐसा जहां मिले
छोटा और बड़ा नहीं कोई भी जहां हो
है कहां ऐसी जगह मुझको वो दिखा दो
कोई परस्तार हो , न जहां कोई खुदा हो । ( परस्तार :::: उपासक )