अप्रैल 29, 2013

POST : 336 आखिरी तम्मना ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

आखिरी तम्मना ( नज़्म ) डॉ  लोक सेतिया

रात ख़्वाब में मुझसे खुदा ने कहा
तुम्हारे लिये है किसी ने मांगी दुआ
क्या चाहते हो मांगना सोचकर तुम
आज होगी पूरी हर इक इल्तजा ।

मुझसे ताउम्र तुम्हें शिकायत रही
आप खुद से रहते हो हमेशा ही खफ़ा
इबादत सीखी न आया माला जपना
फिर भी कर लो जो भी आरज़ू करनी ।

कहा मैंने पूछा है तो बस यही है कहना
ऐसी दुनिया में मुझे नहीं अब और रहना
जन्नत चाहिये न कोई दोज़ख ही मुझे
बात  है इक ज़रूरी पूरी उसको करना ।

बाद मरने के मुझे इक ऐसा जहां मिले
छोटा और बड़ा नहीं कोई भी जहां  हो
है कहां ऐसी जगह मुझको वो दिखा दो 
कोई परस्तार हो , न जहां कोई खुदा हो ।              ( परस्तार :::: उपासक ) 
 

 

अप्रैल 27, 2013

POST : 335 बड़ा ही मुख़्तसर उसका फ़साना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बड़ा ही मुख़्तसर उसका फ़साना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"  

बड़ा ही मुख्तसर उसका फसाना है
बना सच का सदा दुश्मन ज़माना है ।

इधर सब दर्द हैं उस पार सब खुशियां
चला जाये जिसे उस पार जाना है ।

कंटीली राह पर चलना यहां पड़ता
यही सबको मुहब्बत ने बताना है ।

गुज़ारी ज़िंदगी आया कहां जीना
नया क्या है वही किस्सा पुराना है ।

जिसे जब जब परख देखा वही दुश्मन
नहीं अब दोस्तों को आज़माना है ।

हमें सारी उम्र इक काम करना है
अंधेरों को उजालों से मिलाना है ।

ये सारा शहर बदला लग रहा "तनहा"
अभी वैसा तुम्हारा आशियाना है । 
 

 

अप्रैल 25, 2013

POST : 334 नहीं मालूम जिसको खुद पता अपना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       नहीं मालूम जिसको खुद पता अपना ( ग़ज़ल ) 

                     डॉ लोक सेतिया "तनहा"

नहीं मालूम जिसको खुद पता अपना
बना आये उसी को तुम खुदा अपना ।

बड़ी बेदर्द दुनिया में हो आये तुम
बनाना खुद पड़ेगा रास्ता अपना ।

न करना आरज़ू अपना बनाने की
यहां कोई किसी का कब हुआ अपना ।

तड़पना उम्र भर होगा मुहब्बत में
बहुत प्यारा नसीबा लिख दिया अपना ।

हमारा वक़्त कुछ अच्छा नहीं यारो
चले जाओ सभी दामन छुड़ा अपना ।

नहीं आता किसी के वार से बचना
ज़माने को लिया दुश्मन बना अपना ।

बतायें शर्त से होता है क्या  "तनहा"
लगाई शर्त इक दिन सब बिका अपना । 
 

 

अप्रैल 24, 2013

POST : 333 आज हर झूठ को हरा डाला ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आज हर झूठ को हरा डाला ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आज हर झूठ को हरा डाला
आईना सच का जब दिखा डाला ।

बन गये कुछ , लगे उछलने हैं
आपने आस्मां बता डाला ।

आपके सामने बसाया था
घर हमारा तभी जला डाला ।

धर्म वालो कहो किया क्या है
हर किसी को ज़हर पिला डाला ।

जिसपे दीवार को चुना इक दिन
आज पत्थर वही हटा डाला ।

मुस्कुराये लगे हमें कहने
आपके प्यार ने मिटा डाला ।

आज देखा उदास "तनहा" को
रुख से परदा तभी हटा डाला । 
 

 

अप्रैल 23, 2013

POST : 332 मिल के आये अभी ज़िंदगी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 मिल के आये अभी ज़िंदगी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मिल के आये अभी ज़िंदगी से
की मुलाक़ात इक अजनबी से ।

मांगते सब ख़ुशी की दुआएं
दूर जब हो गये हर ख़ुशी से ।

काश होते सभी लोग ऐसे 
लुत्फ़ लेते वो आवारगी से ।

बात हर इक छुपा कर रखो तुम
कह न देना नशे में किसी से ।

खूबसूरत जहां  कह रहा था
देखना सब मुझे  दूर ही से ।

दर्द कितना,मिले ज़ख्म कितने
मिल गई  दौलतें   दोस्ती से ।

क़त्ल कर लें तुझे आज "तनहा"
पूछते थे यही खुद मुझी से । 
 

 

अप्रैल 20, 2013

POST : 331 सभी को हुस्न से होती मुहब्बत है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सभी को हुस्न से होती मुहब्बत है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सभी को , हुस्न से होती मुहब्बत है
हसीं कितनी हसीनों की शिकायत है ।

भला दुनिया उन्हें कब याद रखती है
कहानी बन चुकी जिनकी हक़ीकत है ।

है गुज़री इस तरह कुछ ज़िंदगी अपनी
हमें जीना भी लगता इक मुसीबत है ।

उन्हें आया नहीं बस दोस्ती करना
किसी से भी नहीं बेशक अदावत है ।

वो आकर खुद तुम्हारा हाल पूछें जब
सुनाना तुम तुम्हारी क्या हिकायत है ।

हमें लगती है बेमतलब हमेशा से
नहीं सीखी कभी हमने सियासत है ।

वहीं दावत ,जहां मातम यहां "तनहा"
हमारे शहर की अपनी रिवायत है । 
 

 

अप्रैल 19, 2013

POST : 330 आबरू तार तार खबरों में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आबरू तार तार खबरों में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आबरू तार तार ख़बरों में
आदमी शर्मसार ख़बरों में ।

शहर बिकने चला खरीदोगे
लो पढ़ो इश्तिहार ख़बरों में ।

नींद क्या चैन तक गवा बैठे
लोग सब बेकरार ख़बरों में ।

देख सरकार सो गई शायद
मच रही लूट मार ख़बरों में ।

आमने सामने नहीं लड़ते
कर रहे आर पार ख़बरों में ।

झूठ को सच बना दिया ऐसे
दोहरा बार बार ख़बरों में ।

नासमझ कौन रह गया "तनहा"
सब लगें होशियार ख़बरों में । 
 
 Kolkata Doctor Rape-Murder Case: "Horrifying Reminder Of Humanity's Lowest  Points" | HerZindagi

अप्रैल 16, 2013

POST : 329 करें प्यार सब लोग खुद ज़िंदगी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

करें प्यार सब लोग खुद ज़िंदगी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

करें प्यार सब लोग खुद ज़िंदगी से
हुए आप अपने से क्यों अजनबी से ।

कभी गुफ़्तगू आप अपने से करना
मिले एक दिन आदमी आदमी से ।

खरीदो कि बेचो , है बाज़ार दिल का
मगर सब से मिलना यहां, बेदिली से ।

हमें और पीछे धकेले गये सब
शुरूआत फिर फिर हुई आखिरी से ।

बताओ तुम्हें और क्या चाहिए अब
यही , लोग कहने लगे बेरुखी से ।

कहीं और जाकर ठिकाना बना लो
यही , रौशनी ने कहा तीरगी से ।

पड़े जाम खाली सभी आज "तनहा"
बुझाओ अभी प्यास को तशनगी से । 
 

 

अप्रैल 13, 2013

POST : 328 नासमझ कौन है ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

नासमझ कौन है ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

और कितना
और क्या क्या
और कौन कौन
और कब तक
मुझे समझाते रहेंगे
और कितने लोग ।

क्यों आखिर क्यों
आप समझते हैं
समझता नहीं मैं कुछ भी
और सब कुछ समझते हैं
सिर्फ आप
हमेशा आप ।

चलो माना
हां मान लिया मैंने
समझदार होंगे सभी लोग ।

लेकिन क्या
आपको है अधिकार
किसी को
नासमझ कहने का ।

खुद को समझदार कहने वालो
शायद पहले
समझ लो इक बात ।

किसी और को
नासमझ समझना
समझदारी नहीं हो सकता ।  
 



अप्रैल 10, 2013

POST : 327 फूल जैसे लोग इस ज़माने में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

फूल जैसे लोग इस ज़माने में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

फूल जैसे लोग इस ज़माने में
सुन रखे होंगे किसी फ़साने में ।
  
ज़िंदगी मंज़ूर फैसला तेरा
उम्र बीतेगी उन्हें भुलाने में ।

हर किसी को तो बता नहीं सकते
दर्द बढ़ जाता उसे सुनाने में ।

छेड़ कर बुझती हुई चिंगारी इक 
खुद लगा ली आग आशियाने में ।

कोशिशें उसने हज़ार कर देखीं
लुत्फ़ आया और रूठ जाने में ।

तोड़ डाली खेल खेल में दुनिया
फिर ज़माना लग गया बसाने में ।

आप कितना दूर - दूर रहते हैं
मिट गये हम दूरियां मिटाने में ।

छोड़नी दुनिया हमें पड़ी "तनहा"
अहमियत अपनी उन्हें बताने में ।  
 

 



अप्रैल 08, 2013

POST : 326 सुन ज़माने बात दिल की खुद बताना चाहता हूं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

     सुन ज़माने बात दिल की खुद बताना चाहता हूं ( ग़ज़ल ) 

                          डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सुन ज़माने बात दिल की खुद बताना चाहता हूं
पौंछकर आंसू सभी , अब मुस्कुराना चाहता हूं ।

ज़िंदगी भर आपने समझा मुझे अपना नहीं पर
गैर होकर आपको अपना बनाना चाहता हूं ।

दोस्तों की बेवफ़ाई भूल कर फिर आ गया हूं
बेरहम दुनिया को फिर से आज़माना चाहता हूं ।

किस तरफ जाना तुझे ,अब रास्ते तक पूछते हैं
बस यही कहता हूं उनको इक ठिकाना चाहता हूं ।

आप मत देना सहारा ,जब कभी गिरने लगूं मैं
टूट जाऊं ,बोझ खुद इतना उठाना चाहता हूं ।

आपसे कैसा छिपाना ,जानता सारा ज़माना
सोचता हूं आज लेकिन क्यों दिखाना चाहता हूं ।

नाचते सब लोग "तनहा" तान मेरी पर यहां हैं
आज कठपुतली बना तुमको नचाना चाहता हूं । 
 


 

अप्रैल 07, 2013

POST : 325 सभी का जिसका कोई नहीं था ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

सभी का जिसका कोई नहीं था ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

पार्क में सैर करते करते
हुई थी उससे जान पहचान
मिल जाता था अक्सर सुबह शाम
उसके होटों पे खिली रहती थी
बहुत ही प्यारी सी इक मुस्कान ।

बातें बहुत अच्छी सुनाता था हमेशा
अपने सभी हैं चाहते उसको
हमें बस यही था बताता हमेशा
साथ साथ चलते राह लगती थी प्यारी
रहता भी वो मुस्कुराता हमेशा ।

घर का कभी कभी दोस्तों का
कभी ज़िक्र नातों रिश्तों का
जब भी करता बहुत खुश होता
मुहब्बत के भी था किस्से सुनाता
खूबसूरत दुनिया से वो था आता ।

सुना जब नहीं अब रहा बीच अपने
करने थे पूरे उसे ख्वाब कितने
पूछ कर किसी से उसका ठिकाना
गए जब वहां तभी सबने जाना
नहीं कोई उसका सारी दुनिया में
बातें सब उसकी थी कुछ झूठे सपने ।

हमें नज़र आएंगे जब जब भी मेले
नहीं साथ होगा कोई बस हम अकेले
हम भी उसकी बातें दोहराया करेंगे
कहानी उसी की सुनाया करेंगे ।   

  ( शीर्षक : : अनदेखे सुहाने स्वप्न  )

 


 

अप्रैल 04, 2013

POST : 324 मुस्कुराने से लोग जलते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मुस्कुराने से लोग जलते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मुस्कुराने से लोग जलते हैं
फूल- कलियां तभी मसलते हैं ।

बंद कर सामने का दरवाज़ा
छिप के पीछे से खुद निकलते हैं ।

दर्द  अपने नहीं , पराये हैं
दर्द औरों के दिल में पलते हैं ।

दूर सब राजनीति से रहना
राह चिकनी, सभी फिसलते हैं ।

वक़्त को जो नहीं समझ पाते
उम्र भर लोग हाथ मलते हैं ।

एक दिन चढ़ पहाड़ पर देखा
वो भी नीचे की ओर ढलते हैं ।

खोखले हो चुके बहुत "तनहा"
लोग सिक्कों से अब उछलते हैं । 
 
 

अप्रैल 01, 2013

POST : 323 लोग जब मुहब्बत पर ऐतबार कर लेते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       लोग जब मुहब्बत पर ऐतबार कर लेते ( ग़ज़ल ) 

                      डॉ लोक सेतिया "तनहा"

लोग जब मुहब्बत पर ऐतबार कर लेते
साथ जीने मरने का तब करार कर लेते ।

इश्क में किसी को अपना कभी बना लेते 
इस तरह खिज़ाओं को खुद बहार कर लेते ।

नाख़ुदा नहीं होते हर किसी की किस्मत में
हौसला किया होता, आप पार कर लेते ।

लौटकर भी आना है ,आपको यहां वापस
आप कह गए होते , इंतज़ार कर लेते ।

प्यार के बिना लगती ज़िंदगी नहीं प्यारी
इश्क जब है हो जाता ,जां निसार लेते ।

हम भला कहें कैसे ,हम हुए तेरे आशिक 
नाम मजनुओं में कैसे शुमार कर लेते ।

एक बार ख़त लिखकर , इक जुर्म किया "तनहा"
गर जवाब मिल जाता , बार बार कर लेते ।