एक अवैध प्रेम पर प्रहार { तरकश } डॉ लोक सेतिया
भ्र्ष्टाचार हंस रहा है , प्रहसन चल रहा है , उसकी पहचान तक नहीं अभी उनको जिनको इसका अंत करना है । चलो घुमा फिरा कर नहीं सीधे बात करते हैं , संविधान को तो मानते ही होंगे सभी दल के सब नेता । मज़बूरी है उसको मानने से इनकार करें तो चुनाव ही नहीं लड़ सकते । तो उसी संविधान में तय किया हुआ है किसका क्या कर्तव्य है क्या अधिकार । विधायिका , संसद - विधानसभा , का काम है नियम कानून बनाना और निगरानी रखना उनका पालन किया जा रहा है । बजट बनाना आपका काम है अधिकार भी , मगर इक और अंग है सरकार का जिसको कार्यपालिका कहते हैं , बजट के अनुसार पैसे को खर्च करना विधायक या सांसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता संविधान में । तीसरा भाग सरकार का है न्यायपालिका जिसका कर्तव्य है न्याय करना , और न्याय सभी को मिले , हर विभाग को हर राज्य को , हर आम को हर ख़ास को । आपने देखा ही होगा जब भी किसी को लगता उसके साथ अन्याय हुआ वो अदालत का दरवाज़ा खटखटाता है । इक रिवायत सी है कहने की मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है । जब कि सब चाहते हैं न्याय उसी के पक्ष में हो , मगर न्याय भी मुफ्त नहीं मिलता है । बहुत ही महंगा है अपने देश में न्याय भी , जैसे स्वास्थ्य सेवा में मुंह मांगी फीस लेते हैं डॉक्टर उसी तरह वकील ही नहीं न्याय व्यवस्था में जुड़े सभी अंग । इस से उस अदालत तक पीड़ित भटकता है अपराधी को अपराधी साबित करने में । क्या क्या ज़िक्र करें छोड़ो विषय की बात करते हैं ।सभी जानते हैं श्री नरसिंहराव जी ने सांसद निधि की शुरुआत की थी जब उनको अल्पमत की सरकार चलानी थी , अंधे की रेवड़ियां बंटनी शुरू क्या हुई सभी कतार में खड़े हो गये । हर नेता को रास्ता मिल गया खुद अपने हाथ से खाने का , फिर हर राज्य में विधायकों को भी कल्याण राशि मिलने लगी । उसी कल्याण राशि से सभी दलों के चुने विधायक-सांसद अपना अपना कल्याण करते आये हैं । ये तथाकथित कल्याण राशि अपनों को ही बांटी जाती है अग्रिम कमीशन लेकर , इस राज़ से कौन वाकिफ नहीं है । संसद को भी संविधान की भावना के विरुद्ध कानून बनाने का अधिकार नहीं , मगर ऐसा किया गया बार बार , संसद में विधानसभाओं में । जाने क्यों जनहित याचिका दायर करने वालों को ये ज़रूरी नहीं लगा कि अदालत जाते और सवाल उठाते क्या सांसद विधायक खुद देश जनता का धन खर्च कर सकते हैं । नहीं जा सके क्योंकि इन भृष्ट नेताओं ने पहले ही बीच का रास्ता निकाल लिया था , दिखाया जाता है कि राशि सरकारी विभाग खर्च करता है , मगर करता कैसे जैसे विधायक या सांसद आदेश देता है । चलो आपको उद्दाहरण से समझाते हैं , मेरे शहर में पिछले विधायक जी ने शहर की गलियों में टाइलें लगवाईं । जो सड़क ठीक थी उसे भी तोड़कर फिर बनाया गया , बनवाई भी हरियाणा शहरी विकास परारधिकरण ने । मगर टाइलें खुद विधायक जी की फैक्टरी से ऊंचे दाम खरीद कर । लो बिठा लो जांच कोई साबित नहीं कर सकता भ्र्ष्टाचार हुआ । मुझे लगता है ये शाकाहारी तरीका है किसी को कष्ट नहीं होता और उनको खाने को सब मिल भी जाता है । क्या काला धन और भ्र्ष्टाचार बंद करने वाली सरकार में साहस है इसको बंद करने का ।
अभी बात शुरू हुई है , देश में आज तक का सब से बड़ा घोटाला सामने आना बाकी है , क्या है वो । सरकारी विज्ञापन जिन पर रोज़ करोड़ों रूपये बर्बाद होते हैं इन नेताओं के सरकारों के झूठे प्रचार के । मीडिया वाले कभी इसकी चर्चा नहीं करते क्यों ? क्योंकि जिस जनता के पैसे की बर्बादी से आपको हिस्सा मिलता हो उसको बुरा कैसे बतायें । सच वही अच्छा जो मुनाफा देता है , घाटे वाला सच झूठ है । इक झूठ और भी , गांव को गोद लेने पर ज़ोर देते हैं । सब से पहले गोद लेते हुए लगता है गांव अनाथ है उसको माई बाप मिल गये । कल टीवी चैनेल कितने बड़े बड़े नाम वालों की गोद ली औलाद की बदहाली दिखा रहे थे । वास्तव में हमारे सभी नेता पाषाण हृदय और संवेदनारहित हैं जिनको अपने सिवा कुछ दिखाई नहीं देता । जनता की भलाई का आडंबर करते हैं छल कपट और वोटों की खातिर । कोई अंत नहीं इनकी अधर्मकथा का । बस दुष्यंत जी की ग़ज़ल के कुछ शेर कहता हूं ।