बदलते समय की मुहब्बत ( कहानी ) डॉ लोक सेतिया
कहानी सच्ची है केवल नाम बदले हुए हैं। शायद अभी अधूरी है कहानी। लगता है नई कहानी का भी वही पुराना अंजाम ही होगा। ललित कॉलेज में पढ़ता था कुछ साल पहले जब उसको किसी से इश्क हो गया। मिलते रहे दोनों हर शाम , जन्म जन्म तक साथ देने की बातें की आपस में। शिक्षा पूरी करने के बाद ललित ने बाज़ार में अपना गिफ्ट शॉप का कारोबार शुरू कर लिया और प्रेमिका को एक अच्छी सरकारी नौकरी मिल गई। शहर अलग अलग थे दोनों के कुछ किलोमीटर की दूरी थी। अपना कारोबार जमा लेने के बाद ललित मिला अपनी प्रेमिका से जाकर और शादी की बात की उसके साथ। सोच में पड़ गई प्रेमिका क्या करे। उसको इस बीच साथ जॉब करने वाले सीनियर अधिकारी ने परपोज़ किया था मगर उसने माता पिता से बात करने को कह दिया था। तब पंद्रह साल पहले सब के पास फोन नहीं था हर दिन सम्पर्क करने को। ललित की मां को जब ललित ने बताया कि उसको किसी से प्यार है तो इकलौते बेटे की खुशी को सब से अधिक महत्व देने वाली ममता भरी मां कैसे नहीं मानती। वो खुद ही चली गई थी रिश्ते की बात लेकर। सोच कर बताने को कहा गया था। सोचना क्या था , जब दोनों इक दूजे को पसंद कर चुके थे। मगर जब प्यार को दुनियादारी के तराज़ू में तोला जाता तब अंजाम यही होता है। प्रेमिका मान गई थी कि माता पिता ठीक ही कहते हैं कि उसके लिये सरकारी जॉब वाला लड़का ही सही रहेगा। देखने में सुंदर नहीं तो क्या हुआ , और प्यार तो शादी के बाद हो ही जाता है। बीस साल की उम्र का प्यार तो नासमझी में हो जाता है। तब लड़की किसी बेल की जैसी होती है जो सहारा मिले उसी को लिपट जाती है। कोई जवाब नहीं मिला था ललित को न उसकी मां को , वो इंतज़ार करते रहे और पता चला कि उस प्रेमिका की चट मंगनी पट शादी हो गई। ललित ने कोई शिकायत नहीं की थी किसी से , मान लिया था कि प्यार में अपनी नहीं उसकी खुशी देखनी चाहिये जिसको चाहते हो। शायद उसके लिये वही ठीक होगा। मां को भी समझा लिया था कि ये बात कभी किसी को नहीं कहनी है। मां ललित के लिये लड़की , अपनी बहू की तलाश अधूरी छोड़ दुनिया को अलविदा कहने से पहले अपनी ननद को ये काम पूरा करने को कह गई थी।ललित को आंटी ने अपना दूसरा बेटा मान लिया था और उसका ध्यान रखने लगी , दो घर थे साथ साथ , बीच की दीवार हटा कर एक बड़ा घर बन गया। आंटी जॉब करती , अपने बेटे की शिक्षा पूरी करवाती रही और ललित को शादी करने को मनाती रही। ललित को कोई भी पसंद ही नहीं आती थी , आंटी सेवानिवृत हो गई , उसके बेटे की शादी भी हो गई मगर ललित अभी तक कुंवारा ही था। चालीस की उम्र में उसकी पसंद की लड़की मिलना और भी कठिन हो गया। आंटी चाहती थी ललित की बहू आये उसका घर संभाल ले ताकि वो अपने बेटे और बहू के साथ दूसरे नगर में जाकर रह सके। आंटी की इक सहेली को उनकी बहू ने बताया अपनी दोस्त राधिका के बारे में जो उनके राज्य में सरकारी नौकरी करती है और जो बहुत ही सुशील है मगर उसकी शादी नहीं हो पा रही क्योंकि उसकी जन्मकुंडली ही नहीं मिलती जिस किसी को भी पसंद करती जब रिश्ते की बात होती माता पिता से। जब उसने आंटी के भतीजे ललित के बारे बताया तो उसने कहा कि लगता तो दोनों के लिए सही है हां ललित की उम्र सात साल ज़्यादा है जबकि राधिका अपनी उम्र से भी कम की नज़र आती है। उस सहेली ने राधिका की बड़ी बहन को फोन पर बताया था। वंदना अपनी बहन राधिका के लिये ललित को देखने आई थी , उसको पसंद आया था ललित बहुत , वो कुंडली भी साथ लेकर आई थी और इक फोटो भी राधिका का। पंडित जी को फोन पर सब जानकारी देकर वंदना ने कुंडली मिलवा ली थी , जो मिल गई थी। ललित को आंटी ने तैयार कर लिया था और वो गया था राधिका को देखने। दोनों दो घंटे मिले थे अकेले में और खुल कर हर बात की थी , जाने कैसे क्या हुआ कि दोनों को महसूस हुआ था कि यही तो है जिसकी मुझे तलाश है। ललित ने राधिका को कहा था कि अभी हम दोनों सब सोच लें और एक दो बार और मिलते हैं ताकि बाद में कोई बात दिल में नहीं रह जाये , राधिका मान गई थी। मिले थे दो बार , रविवार को ललित आता था मिलने घर से बाहर। कुछ ही दिन में उनको प्यार हो गया था इक दूजे से। घर पर बता दिया था दोनों ने कि हमको रिश्ता मंज़ूर है , लगा बात बन गई है , मगर जो हुआ वो हैरान करने वाला था। पिता को लगा की दूसरे राज्य के शहर विवाह किया तो बेटी की नौकरी का क्या होगा और उन्होंने ये कह दिया ललित की आंटी को कि रिश्ता केवल तभी हो सकता अगर ललित यहां आकर कारोबार करने को राज़ी हो। ये बात आंटी को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी कि कोई लड़का ससुराल जाकर रहे।बात बीच में ही रह गई थी।
मगर ललित को लगा कि एक बार राधिका से बात करनी चाहिये दोस्त बन कर। जब उसने राधिका से पूछा कि क्या कोई रास्ता नहीं है इस समस्या का हल निकालने का। साफ साफ बता दो आपके दिल में मेरे लिये क्या भावना है। राधिका का जवाब था कि ललित जी आपको क्या लगता है मेरे बारे पहले आप मुझे बताओ। ललित ने कहा मुझे आप बेहद पसंद हैं और मैं आपको अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं। राधिका बोली थी ललित जी मुझे भी आप बहुत ही अच्छे लगते हैं और मुझे भी आपको जीवनसाथी बनाना है। सच कहूं तो मुझे लगता है मुझे प्यार हो गया है आपसे मगर समझ नहीं पा रही थी आपसे कैसे कहूं। आज लगा कि अगर नहीं कहा तो आप मुझे कभी मिल नहीं सकोगे। मुझे अपनी नौकरी की चिंता नहीं है मैं आपके लिये उसको छोड़ सकती हूं मगर अपने परिवार को कैसे समझाऊं मैं नहीं जानती। तब ललित ने कहा था राधिका जी मैं भी इन कुछ ही दिनों में आपको दिलोजान से प्यार करने लगा हूं और आपके लिये सब कुछ कर सकता हूं। मेरा कारबार दस साल पुराना है और स्थापित है फिर भी मैं अगर आप कहोगी तो उसको बंद कर आपके राज्य में किसी शहर में नया फिर से शुरू कर सकता हूं , लेकिन किसी शर्त को मान कर नहीं , आपकी ख़ुशी के लिये। मगर आपके इस शहर को छोड़कर , क्योंकि ऐसा मुझे अनुचित लगता है , आप जिस भी शहर में अपना तबादला करवा लगी मैं वहीं आपके लिये घर खरीद लूंगा। आप अपने मॉम डैड को मना लो। राधिका ने कहा कि आपकी बात सही है और अगर आप मेरे लिये ये सब करने को तैयार हैं तो मुझ से भाग्यशाली और कोई नहीं हो सकती , लेकिन आपको ऐसा करने को विवश करके मैं खुद अपनी ही नज़र में गिर जाऊंगी इसलिये ये बात मैं कभी नहीं होने दूंगी। मुझे आपसे कोई शर्त नहीं मनवानी है मॉम डैड की। शायद अब मेरे प्यार का भी इम्तिहान है और मेरा प्यार स्वार्थी नहीं है। मैं आज ही सब को बता दूंगी कि मुझे आपको छोड़ किसी से भी शादी नहीं करनी है और मुझे अपने इस राज्य में नौकरी नहीं करनी है। हम आपके शहर में दूसरी नौकरी तलाश कर लेंगे। राधिका और ललित ने तभी वंदना दीदी को ये निर्णय बता दिया था ताकि वो घर में बाकी सब को मना सके। ललित और राधिका ने तय कर लिया था कि चाहे जो भी हम दोनों अलग नहीं होंगे। हर रविवार बीच में इक शहर में मिलते रहेंगे , वही प्रेमियों का पुराना बहाना , सतसंग को जाना और प्यार से मिलना।
ललित ने आंटी को बता दिया था कि राधिका और मैं प्यार करते हैं और हमने तय किया है कि राधिका अपनी जॉब छोड़ देगी और यहां नई जॉब ढूंढ लेंगे हम मिलकर। उधर वंदना ने जब घर पर बताया कि ललित और राधिका इक दूजे को चाहते हैं और ये भी कि राधिका अपनी नौकरी छोड़ने को तैयार है ललित की खातिर। पुरानी सोच के माता पिता ये सुन कर आग बबूला हो गये थे , उनको लगा कि बेटी उनकी मर्ज़ी के बिना शादी करने को कैसे तय कर सकती है। वो अपनी पुरानी बात पर अडिग थे कि रिश्ता तभी हो सकता है अगर ललित उनके शहर में आकर रहने को राज़ी हो। इस तरह बहुत बातें दो परिवारों में होने लगी इक दूजे को अपनी बात समझाने को। वंदना ने ललित की आंटी को कहा था कि आंटी बेशक ऐसा मुझे भी उचित नहीं प्रतीत होता तब भी अगर आप और हमारे मॉम डैड अपनी अपनी बात पर अड़े रहे तो ये दोनों चाह कर भी खुश नहीं रह सकेंगे। फोन पर ही बात हुई थी , आंटी ने कहा था कि उनका मकसद कोई ज़िद नहीं है केवल ललित और राधिका का भविष्य है। आज ललित की बहुत ही अच्छी आमदनी है , चलता हुआ पुराना कारोबार है , कल अगर नई जगह ईश्वर न करे नहीं चल पाया तो परेशानी उन्हीं को होगी। और राधिका को जॉब हम यहां भी दिलवा सकते हैं। मैं आपके मॉम डैड से बात करूंगी और उम्मीद है वो भी समझेंगे। आखिर बेटी को जाना ही होता है पति के घर , आप भी तो उनसे दूर रहती हो अपने पति के साथ। आंटी ने उसी दिन शाम को फोन किया था और राधिका के डैड को कहा था कि मेरे लिये राधिका मेरी बेटी है मैं उसको कोई परेशानी नहीं आने दूंगी , आप ये शर्त छोड़ कर मेरी झोली में डाल दो राधिका को। अब वो मेरी बेटी है। मगर राधिका के माता पिता नहीं माने थे। राधिका के पिता ने कहा था कि आप धर्म को मानने वाली महिला होने की बात करती हैं और किसी से उसकी बेटी ज़बरदस्ती छीन लेना चाहती हैं , क्या ऐसा करना आपको शोभा देता है। आंटी ने कहा था भाई साहब मैं तो दोनों बच्चों की ख़ुशी चाहती हूं तभी आपसे निवेदन किया है , विवश करने का तो सवाल ही नहीं और छीनना तो कदापि नहीं। आपसे ये मेरा वादा है कि मैं कभी आपकी मर्ज़ी के बिना राधिका की शादी ललित से नहीं करना चाहूंगी , उनको ऐसा कोई कदम उठाने को मैं नहीं कह सकती। और ललित अगर चाहे तो कहीं भी राधिका के संग रह सकता विवाह करके , मैं रोकूंगी नहीं उसको , लेकिन जब खुद राधिका ही अपनी जॉब छोड़ना चाहती है तब उसको इतनी तो आज़ादी मिलनी ही चाहिये। आप ठंडे मन से सोच कर फैसला करें यही आग्रह करती हूं।
बात वहीं रुक कर रह गई थी , मगर ललित और राधिका हर रविवार मिलते रहे। शायद दोनों ने इसको नियति मान लिया था कि चाह कर भी वो एक नहीं हो सकते थे। फोन पर बात होती रहती थी ये बात ललित की आंटी भी जानती थी और राधिका के मॉम डैड और बड़ी बहन वंदना भी। और इस बीच इक घटना हुई या फिर इक इतेफाक कि जब शाम को राधिका को उसकी ट्रैन पर चड़ा कर ललित बसस्टैंड पहुंचा तब बस निकल चुकी थी उसके शहर जाने वाली , और वो सड़क पर किसी अन्य वाहन की राह देख रहा था। तभी एक कार रुकी थी और उसका मालिक चाय पीने लगा था स्टॉल पर , ललित ने जाकर उनसे पूछा था , अंकल जी आपको किधर जाना है। मेरी आखिरी बस छूट गई है और मुझे अपने अमुक शहर जाना है , क्या आप मुझे लिफ्ट दे सकते अगर उसी तरफ जाना है। और वो मान गये थे , बताया था कि उनको जिस शहर तक जाना है वहां तक चल सकते और वहां से बस चौबीस घंटे मिलती भी है। रस्ते में इक दूजे को बताया दोनों ने अपना अपना परिचय। वो इक कहानीकार हैं और ललित उनके नाम से परिचित भी था इसलिये उनसे मिलकर ख़ुशी हुई उसको। इस बीच राधिका का फोन आया था , बताने को कि वो घर पहुंच चुकी है , ललित कहां तक पहुंचा है पूछना चाहती थी। ऐसे में नेटवर्क चला गया और बात बीच में कट गई थी , कार चला रहे व्यक्ति ने पूछा क्या आपकी पत्नी का फोन था , अगर आपके फोन का नेटवर्क नहीं है तो मेरा उपयोग कर सकते हो। नहीं , वो मेरी प्रेमिका है हमारी दोनों की शादी हुई नहीं अभी तलक , मगर शुक्रिया आपका फोन उपयोग नहीं कर सकता न ही ज़रूरत है। उनको ललित की साफगोई अच्छी लगी थी , उन्होंने कहा था बेटे मुझे आपकी निजि ज़िंदगी से कोई मतलब नहीं है मगर इतना अवश्य समझाना चाहता हूं कि जीवन में सच्चा प्यार पाने को सब कुछ करना चाहिये। ये इसलिये कहता हूं क्योंकि मुझे भी जवानी में किसी से प्यार हुआ था लेकिन मैंने उसका इज़हार तक नहीं किया था इस डर से कि वो इनकार कर देगी। बेशक मैं खुश हूं मेरी शादी हो चुकी है , बीवी अच्छी है , बच्चे हैं जो प्यारे हैं तब भी कभी कभी सोचता हूं कि मुझे उसको न केवल बताना चाहिये था कि मुझे उस से प्यार है बल्कि हर कोशिश करनी चाहिये थी। मैं नहीं जनता मेरी प्रेम कहानी का अंजाम क्या होता , और ये बात मेरी कहानियों में भी झलकती है अक्सर। मगर तुम अपनी प्रेम कहानी को सही अंजाम तक ज़रूर ले जाना। ललित ने कहा था अंकल आपसे मिलकर बेहद अच्छा लगा है , और मैं आपकी बात याद रखूंगा। शायद कभी आप हम दोनों की प्रेम कहानी भी पाठकों तक पहुंचा दो और लोग जान सकें कि आज भी ऐसा प्यार कोई किसी को करता है। अंकल बोले थे आप दोनों बताओगे और मुझे अनुमति दोगे तो ज़रूर लिखने की कोशिश करूंगा , लेकिन ऐसा तभी हो सकता है अगर मुझे सब की हर बात की सही जानकारी हो। ललित ने कहा था कि अपनी प्रेमिका से पूछ कर बतायेगा , सम्पर्क नंबर ले लिया था , उनको दे भी दिया था।
उन अंकल ने ही फेसबुक की बात भी की थी और बताया था कि बहुत लोग उसपर ही पहचान करते हैं दोस्त बनते हैं। मगर सावधान भी रहना सब सच नहीं होता है , आजकल झूठ बहुत है। जाने क्या सोचकर ललित ने उस दिन अपना फेसबुक अकाउंट शुरू किया था और कुछ अजनबी लोगों को दोस्त बना लिया था। उन्हीं में इक महिला भी थी आशा रानी , उनसे चैट पर बात करते ललित ने अपनी बात बता दी थी। राधिका भी चाहती है और ललित भी तो कोई दूसरा कैसे रोक सकता है आशा जी को ये समझ नहीं आया था , भाग कर शादी कर लेने की सलाह दी थी उन्होंने ललित को। ललित ने अपनी उलझन बताई थी कि अगर मेरी आंटी नहीं चाहती , राधिका के मॉम डैड नहीं चाहते , यहां तक कि जिसने ये सब शुरू किया वो राधिका की बड़ी दीदी भी नहीं पसंद करती वो कैसे सही हो सकता है। क्या हम अपने प्यार में इतने स्वार्थी हो जायें कि बाकी सभी की भावनाओं की परवाह ही नहीं करें। ललित ने राधिका को भी फेसबुक पर आशा रानी से दोस्ती कर सलाह करने को कहा था , राधिका ने ललित की बात मान ली थी मगर ये भी विचार प्रकट कर दिया था की यूं किसी की बात को बिना समझे नहीं मानेंगे हम दोनों। जब जो वर्षों से हमें जानते हैं वो भी नहीं समझते कि हमारी भलाई किस में है तो ऐसे फेसबुक की पहचान के लोग कुछ ही दिन में क्या समझ सकते हैं।
राधिका की बड़ी दीदी ज्योतिष पर यकीन रखती है , उनके पंडित जी ने ललित और राधिका की जन्म पत्री देख कर बताया है कि अभी उन दोनों के दिन ठीक नहीं हैं , जल्द ही अच्छे दिन आने वाले हैं। उन्होंने कोई पूजा करने को भी कहा है और पूजा को बुलाया है वंदना दीदी ने उनको। शायद अब भगवान ही उनको राह दिखा सकता है। राधिका के कॉलेज में उसके साथ शिक्षक पद पर नियुक्त इक दोस्त ने जब देखा कि परिवार के लोग दो प्यार करने वालों को मिलने नहीं देंगे तो उसने चुपके से उनका विवाह पास के शहर में जाकर करवा दिया था। इस बीच राधिका को अचानक पेट दर्द हुआ तो पता चला उसके भीतर इक रसोली है और ऑपरेशन करना होगा , तभी राधिका की बड़ी बहन को भी पति के कहने पर राधिका से अपने देवर के साथ विवाह पिता से करनी पड़ी क्योंकि उसको नहीं मालूम था कि ललित और राधिका अदालत में शादी कर चुके हैं। अपने पति के आदेश पर छोटी बहन की शादी अपने देवर जिसकी पहली पत्नी से तलाक हो चुका था से करने को घरवालों को मना लिया था। लेकिन राधिका ने अपनी मां को वास्तविकता बता दी थी और ललित को छोड़ किसी और से विवाह नहीं करने का निर्णय बता दिया था। वास्तविकता समझ जब पिता भी मान गये और विवाह की बात तय कर दी तो विधि का विधान ऐसे हुआ कि ललित की आंटी का देहांत हो गया और समाज की परंपरा के कारण विवाह साल भर को टल गया। कुछ महीने बाद राधिका की ललित से सामाजिक रीतिरिवाज़ से फिर शादी हो गई थी और राधिका ने अपनी नौकरी छोड़ ललित के राज्य के इक शहर में नौकरी तलाश कर ली थी। पति पत्नी दो तीन घंटे के सफर की दूरी पर रहने लगे और सप्ताह के अंत में मिलते , आजकल की महिला खुद अपने पांव पर खड़ी रहना पसंद करती है चाहे पति की आमदनी कितनी अच्छी क्यों नहीं हो। साल बाद इक बिटिया घर पर आई तो लगा हर सपना सच हो गया है। मगर फिर अलग अलग रहते हुए दूरियां बढ़ने लगी और संबंधों में दरार आने लगी। मगर कोई भी ऐसा नहीं था जो उनकी समस्या को समझता और सुलझाता। राधिका ने अपनी फेसबुक बंद कर दी थी तीन साल बाद फिर से नई फेसबुक खोली और पुराने फेसबुक दोस्त अंकल से चर्चा की और सब हालात बताये। ये भी बताया कि ललित से रिश्ता समाप्त हो चुका है और बड़ी बहन अभी भी चाहती है उसके देवर से विवाह करवाना। कहना कठिन है कि जिसको अभी समझा जा रहा है सब सुलझ गया है कब तक ठीक है। इक मासूम भोली सी मुहब्बत को जाने कितने इम्तिहान देने हैं बाकी। शुभकामना है इस बार उसका जीवन सुखी और खुशहाल रहे। ललित की नैया अभी भी मझधार में ही है। आखिर में इक बात बताना ज़रूरी है कि प्यार में कोई एक या फिर दोनों कसूरवार हों ऐसा लाज़मी नहीं होता है। उन दो मुहब्बत करने वालों में भी बेवफा कोई नहीं मगर निभाने में कमी दोनों ही से हुई है। सवाल उनसे अधिक इक नन्हीं परी का है शायद।