अक्टूबर 17, 2012

POST : 188 दुनिया बदल रहा हूं ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

दुनिया बदल रहा हूं ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

दुनिया बदल रहा हूं
खुद को ही छल रहा हूं ।

डरने लगा हूं इतना
छुप कर के चल रहा हूं ।

चलती हवा भी ठण्डी
फिर भी मैं जल रहा हूं ।

क्यों आज ढूंढते हो
गुज़रा मैं कल रहा हूं ।

अब थाम लो मुझे तुम
कब से फिसल रहा हूं ।

लावा दबा हुआ है
ऐसे उबल रहा हूं ।

"तनहा" वहां किसी दिन
मैं भी चार पल रहा हूं ।  
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: