आ भी जाओ हमें अब लगा लो गले ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया
आ भी जाओ हमें अब लगा लो गले
दोस्तो ख़त्म कर के सभी फ़ासले ।
है यही आरज़ू हमसफ़र जो बने
उम्र भर हाथ में हाथ लेकर चले ।
ये मुलाक़ात कितनी सुहानी है अब
थम ही जाएं ये घड़ियां यहीं दिन ढले ।
प्यार का एक पौधा उगा कर उसे
दो दुआएं कि वो खूब फूले फले ।
कौन देगा नसीहत उन्हें फिर भला
मानते ही नहीं आजकल मनचले ।
सिर्फ़ उनके सहारे है ये ज़िंदगी
दर्द बन कर मेहरबान दिल में पले ।
महफ़िलें ढूंढते फिर रहे लोग अब
वो जो कहते कभी थे हैं 'तनहा' भले ।
