भगवान भी बदल गये हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
दादा जी कहते थे ढूंढने से भगवान भी मिल सकते हैं । तुम तलाश करते रहना सच्चे मन से । मां सुबह शाम इक भजन गुनगुनाती रहती थी " भगवन बनकर तू अभिमान न कर , तेरा नाम बढ़ाया हम भक्तों ने "। मैंने उनको छोड़ और किसी को भगवान को ऐसे चेतावनी देते नहीं सुना , कि भले तुम विधाता हो फिर भी कोई अकड़ मत रखना , क्योंकि अगर हम तेरे उपासक ही तुझे नहीं मानेंगे तो तुम काहे के भगवान रहोगे , बस नाम मात्र के ही । मुझे इस से बढ़कर श्रद्धा किसी साधु संत सन्यासी या गुरु में नहीं नज़र आई । तभी मैंने किसी को गुरु नहीं बनाया आज तक । मिलता रहा भगवा सफेद पीला काला हरा नीला परिधान पहने महान समझे जाते लोगों से , तथाकथित धर्म को स्थापित करने में लगे प्रवचन करने वालों से । उनसे भी जो गीता ज्ञान या रामायण अथवा गुरु ग्रन्थ साहिब का या फिर कुरान बाईबल का अर्थ समझाते हैं । और बार बार इक शायर का शेर याद आता रहा । " तो इस तलाश का मतलब भी वही निकला , मैं देवता जिसे समझा था आदमी निकला "।लेकिन कहते हैं ना लगे रहो तो सफलता इक दिन मिल ही जाती है । कल रात मुझे भगवान मिल ही गये साक्षात रूप में । नहीं किसी धर्म स्थल पर नहीं यूं ही इक उजड़े हुए वीरान घर में वह भी अकेले उदास और बेहाल । मैं दुनिया के लोगों से घबरा कर यूं ही चला गया था उधर जिधर कोई जाता ही नहीं । शहर की भीड़ से दूर गंदी बस्ती से भी और आगे जाकर । अंदर गया था उस खंडर नुमा इमारत में छुप कर अकेले में आंसू बहाने देश समाज की बदहाली को देख कर । मेरा दर्द किसी को समझ आता ही नहीं है , सभी कहते हैं मैं पागल हूं जो व्यर्थ चिंता करता रहता हूं । मुझे चुपचाप रोते रोते आभास हुआ कोई और भी है यहां पर , अंधेरा था तब भी मुझे दिखाई दिया वो चमकती लौ की तरह दिया बनकर या शमां की तरह । मन ही मन सोचा इस वीरान घर में कौन है जो रौशनी करता है , नज़र क्यों नहीं आता सामने , छिपकर रहता है , कोई चोर है या अपराधी । बस इतना सोचते ही वो मेरे सामने खड़ा थे , मुझे प्यार से गले लगा लिया और कहने लगे , तुम तो मुझे चोर या अपराधी मत समझो । मैं तो कब से तुम्हारी और तुम जैसे और उन लोगों की राह देखता रहा हूं जो मुझे ढूंढते रहते हैं । आज मिला हूं तो मुझे पहचाना भी नहीं , भूल गये अपने दादा जी की बात , तुम्हारी माता जी जो गुनगुनाती थी उस भजन को भी भूल गये । याद करो और आज पहचान लो मुझे। और मुझे यकीन करना पड़ा था क्योंकि उन्होंने मुझे सब कुछ साफ साफ़ दिखला भी दिया था और समझा भी । भगवान की लीला थी कि मैं सुबह जागा तो अपने घर में बिस्तर पर । मगर वो कोई सपना नहीं था , मैं वास्तव में रात भाग कर गया था इस दुनिया से । वापस कौन कब कैसे मुझे पहुंचा गया , मुझे नहीं मालूम । मुझे याद है भगवान ने मुझे जो भी बताया था , आपको सुनाता हूं , चाहे आप विश्वास करना या नहीं ।
भगवान ने बताया था , तुमने पढ़ा होगा , सुना होगा , देव और दानव , पुण्य और पाप , सत्य और झूठ , अच्छाई और बुराई , धर्म और अधर्म के बारे में । पढ़ना इक बात है समझना दूसरी और तीसरी बात होती है विचार करना । दुनिया बनाते समय सभी को सोचने समझने को बुद्धि दी और कर्म करने को हाथ पैर , देखने को आंखें और अन्य कामों को सभी अंग भी । भगवान कौन है क्या है कहां है सोचा समझा विचार किया कभी । जाने किस किस को भगवान बना लिया आपने अपनी सुविधा से या स्वार्थ की खातिर । जैसे तुम इंसानों में अच्छाई और बुराई दोनों रहती हैं , विवेक से तुम अच्छा बनते हो बुराई लुभाती हो तब भी बचते हो , उसी तरह मुझ में भी राम-रावण , कृष्ण-कंस , दोनों बसते हैं । और ईश्वरीय सत्ता उसी के पास रहती है जिसको सभी भगवान मानते हैं । आज मेरा जो रूप बुराई का है वही पूजा जाता है इसलिये जिस भगवान को तुम ढूंढते रहे वो तुम्हें किसी मंदिर मस्जिद गिरिजाघर या गुरूद्वारे में मिला ही नहीं । मुझे , मेरे उस स्वरूप को निकाल दिया गया उन सभी जगहों से , आज जो विशाल भवन मेरे नाम पर दिखाई देते हैं , उन में मैं नहीं रहता । कभी जाता ही नहीं उस ओर मैं भूल कर भी , करोड़ों की आमदनी संपति , चढ़ावा । मुझे क्या समझ लिया लोभी लालची रिश्वतखोर जो खुश होकर आपकी हर मनोकामना पूरी करता है । ठीक से पढ़ना फिर से सभी धर्म ग्रन्थ , उनमें समझाया गया है देवता वही होते जो देते हैं , दानव होते जो औरों का छीनते हैं । आज कलयुगी भक्त अपने जैसे बुरे की उपासना करते हैं , सही करते या गलत बिना सोचे । यूं समझ लो अधर्म का नाम बदलकर उसको धर्म नाम दे दिया है । पहचान करना भगवान जो थे वो अब नहीं हैं , बदल गये हैं । भगवान पापियों की सुनते हैं उनकी कामनाओं की पूर्ति करते हैं , बुराई तभी बढ़ रही है । खेद है मेरे लिये लोकतंत्र जैसा चुनाव भी नहीं होता , जो मैं आपको समझाता , बुरे को नहीं अच्छे को भगवान बनाना इस बार । देखता हूं भारत में सत्ता बदलते ही भला लगने वाला भी बुरे से बद्दतर आचरण करने लगता है । मैं भी क्या करुं आप बताओ मुझे । वो भगवान खुद को बताने वाले चले गये मगर इक किरण रौशनी की मुझे दिखला गये हैं ।