मेरे ब्लॉग पर मेरी ग़ज़ल कविताएं नज़्म पंजीकरण आधीन कॉपी राइट मेरे नाम सुरक्षित हैं बिना अनुमति उपयोग करना अनुचित व अपराध होगा। मैं डॉ लोक सेतिया लिखना मेरे लिए ईबादत की तरह है। ग़ज़ल मेरी चाहत है कविता नज़्म मेरे एहसास हैं। कहानियां ज़िंदगी का फ़लसफ़ा हैं। व्यंग्य रचनाएं सामाजिक सरोकार की ज़रूरत है। मेरे आलेख मेरे विचार मेरी पहचान हैं। साहित्य की सभी विधाएं मुझे पूर्ण करती हैं किसी भी एक विधा से मेरा परिचय पूरा नहीं हो सकता है। व्यंग्य और ग़ज़ल दोनों मेरा हिस्सा हैं।
दिसंबर 31, 2020
पुरुषों से पक्षपात क्यों ( हास्य-व्यंग्य )डॉ लोक सेतिया
संकल्प नये वर्ष का ( कुछ नया ) डॉ लोक सेतिया
संकल्प नये वर्ष का ( कुछ नया ) डॉ लोक सेतिया
दिसंबर 30, 2020
अच्छे दिन नहीं अच्छा साल लाएंगे ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
अच्छे दिन नहीं अच्छा साल लाएंगे ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
नहीं कुछ पास खोने को रहा अब डर नहीं कोई
है अपनी जेब तक ख़ाली कहीं पर घर नहीं कोई।
दिसंबर 29, 2020
आपने सौ इल्ज़ाम लगाए ( जाने वाले की बात ) डॉ लोक सेतिया
आपने सौ इल्ज़ाम लगाए ( जाने वाले की बात ) डॉ लोक सेतिया
रहम की भीख ज़ालिम देते हैं ( हिक़ायत फ़साना ) डॉ लोक सेतिया
रहम की भीख ज़ालिम देते हैं ( हिक़ायत फ़साना ) डॉ लोक सेतिया
जूतों में बंटती दाल है अब तो ऐसा हाल है मर गए लोग भूख से सड़ा गोदामों में माल है। बारिश के बस आंकड़े सूखा हर इक ताल है लोकतंत्र की बन रही नित नई मिसाल है। भाषणों से पेट भरते उम्मीद की बुझी मशाल है मंत्री के जो मन भाए वो बकरा हलाल है। कालिख उनके चेहरे की अब कहलाती गुलाल है जनता की धोती छोटी है बड़ा सरकारी रुमाल है। झूठ सिंहासन पर बैठा सच खड़ा फटेहाल है जो न हल होगा कभी गरीबी ऐसा सवाल है। घोटालों का देश है मत कहो कंगाल है सब जहां बेदर्द हैं बस वही अस्पताल है। कल जहां था पर्वत आज इक पाताल है देश में हर कबाड़ी हो चुका मालामाल है। बबूल बो कर खाते आम देखो हो रहा कमाल है शीशे के घर वाला रहा पत्थर उछाल है। चोर काम कर रहे हैं चौबीस घंटे और पुलिस की हड़ताल है हास्य व्यंग्य हो गया दर्द से बेहाल है। जीने का था पहले कभी अब मरने का सवाल है। ढूंढता जवाब अपने खो गया सवाल है।
नतमस्तक हो मांगता मालिक उस से भीख
शासक बन कर दे रहा सेवक देखो सीख।
मचा हुआ है हर तरफ लोकतंत्र का शोर
कोतवाल करबद्ध है डांट रहा अब चोर।
तड़प रहे हैं देश के जिस से सारे लोग
लगा प्रशासन को यहाँ भ्रष्टाचारी रोग।
दुहराते इतिहास की वही पुरानी भूल
खाना चाहें आम और बोते रहे बबूल।
झूठ यहाँ अनमोल है सच का ना व्योपार
सोना बन बिकता यहाँ पीतल बीच बाज़ार।
नेता आज़माते अब गठबंधन का योग
देखो मंत्री बन गए कैसे कैसे लोग।
चमत्कार का आजकल अदभुत है आधार
देखी हांडी काठ की चढ़ती बारम्बार।
आगे कितना बढ़ गया अब देखो इन्सान
दो पैसे में बेचता यह अपना ईमान।
दिसंबर 27, 2020
आपके टुकड़ों के टुकड़े कर दिए जाएंगे पर , आपकी ताज़िम में कोई कसर होगी नहीं।
गोपनीय दस्तावेज़ बंद लिफ़ाफ़ा ( श्वेत पत्र ) डॉ लोक सेतिया
पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं , कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं।
इन ठिठुरती उंगलियों को इस लपट पर सेंक लो ,धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं।
बूंद टपकी थी मगर वो बूंदो-बारिश और है , ऐसी बारिश की कभी उनको खबर होगी नहीं।
आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है , पत्थरों में चीख़ हरगिज़ कारगर होगी नहीं।
आपके टुकड़ों के टुकड़े कर दिए जाएंगे पर , आपकी ताज़िम में कोई कसर होगी नहीं।
सिर्फ़ शायर देखता है क़हक़हों की असलियत , हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं।
अब वास्तविक पोस्ट इक दुखियारी माता की दर्द भरी कहानी उसी की ज़ुबानी।
मां के आंसू ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
कौन समझेगा तेरी उदासीतेरा यहाँ कोई नहीं है
उलझनें हैं साथ तेरे
कैसे उन्हें सुलझा सकोगी।
ज़िंदगी दी जिन्हें तूने
वो भी न हो सके जब तेरे
बेरहम दुनिया को तुम कैसे
अपना बना सकोगी।
सीने में अपने दर्द सभी
कब तलक छिपा सकोगी
तुम्हें किस बात ने रुलाया आज
मां
तुम कैसे बता सकोगी।
दिसंबर 19, 2020
गर्दिशे वक़्त है बड़ी गुस्ताख़ , इसने शाहों के ताज उतारे हैं
किसानों के लिए मीठी लोरी ( उलझन की बात ) डॉ लोक सेतिया
दिसंबर 18, 2020
ऐसे विदा कर रहे हो बेआबरू करकर 2020 को आप 2021 कहीं बन जाये मेरा बाप
हमें भूल जाना अगर हो सके ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया
वक़्त ने इक बार मेरे दर पे भी दी थी सदा ,
अख़्तर इसके बाद सारी उम्र सन्नाटा रहा।
दिसंबर 17, 2020
आहों में है असर ना दुवाएं कबूल हैं , शायद कोई गरीब का पुर्सा नहीं रहा।
जिसकी नीयत में दग़ा है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
सुना है सच्ची हो नीयत तो राह खुलती है , चलो सफ़र न करें कम से कम इरादा करें।
( मंज़ूर हाशमी )
आहों में है असर ना दुवाएं कबूल हैं , शायद कोई गरीब का पुर्सा नहीं रहा।
छप्परों पर दिए रख गई है हवा , ताके फिर रौशनी की शिकायत न हो।
दिल तो निकला खरीदा हुआ आदमी , ऐ ख़ुदा रात भी सबकी औरत न हो।
किसको नीलाम करते हो बाज़ार में , ये किसी घर के मंदिर की मूरत न हो।
दिसंबर 15, 2020
साक्षात्कार आधुनिक युग के अवतार से ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया
साक्षात्कार आधुनिक युग के अवतार से ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया
दिसंबर 14, 2020
दाता कौन भिखारी कौन ( कितने छोटे बड़े लोग ) डॉ लोक सेतिया
दाता कौन भिखारी कौन ( कितने छोटे बड़े लोग ) डॉ लोक सेतिया
दिसंबर 13, 2020
सवाल भलाई का नहीं आज़ादी का है ( नज़रिया ) डॉ लोक सेतिया
सवाल भलाई का नहीं आज़ादी का है ( नज़रिया ) डॉ लोक सेतिया
खुदा हमको ऐसी खुदाई न दे ,
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे।
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें ,
असीरों ( कैदियों ) को ऐसी रिहाई न दे।
डॉ बशीर बद्र।
अपने तरीक़ मकानों से तो बाहर झांको ,
ज़िंदगी शमां लिए दर पे खड़ी है यारो।
जब भी चाहेंगे ज़माने को बदल डालेंगे ,
सिर्फ कहने के लिए बात बड़ी है यारो।
इसी सबब से हैं शायद अज़ाब जितने हैं ,
झटक के फेंक दो पल्कों पे ख़्वाब जितने हैं।
वतन से इश्क़ ग़रीबी से बैर अम्न से प्यार ,
सभी ने ओढ़ रखे हैं नक़ाब जितने हैं।
जांनिसार अख्तर।
अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार ,
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तिहार।
मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूं पर कहता नहीं ,
बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार।
मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूं ,
मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं।
तेरी ज़ुबान है झूठी जम्हूरियत की तरह ,
तू एक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं।
दुष्यन्त कुमार।
ग़ुलामी
इक वलवला ए ताज़ा दिया मैंने दिलों को ,
लाहौर से ता ख़ाके बुखारा ओ समरकंद।
लेकिन मुझे पैदा किया उस देश में तूने ,
जिस देश के बन्दे हैं ग़ुलामी पे रज़ामंद।
जावेद के नाम ( नज़्म )
दिसंबर 12, 2020
प्रभाष जोशी जनसत्ता और मेरा निडर होकर लिखना ( संस्मरण ) डॉ लोक सेतिया
प्रभाष जोशी जनसत्ता और मेरा निडर होकर लिखना ( संस्मरण )
डॉ लोक सेतिया
कमलेश्वर ने क्या बताया था ?
खुद कमलेश्वर को इस बात का भरोसा नहीं था कि क्यों इंदिरा उन्हें ये जिम्मेदारी देना चाहती हैं.
कमलेश्वर ने बताया था कि दूरदर्शन के एडीजी पद के लिए इंदिरा सरकार के प्रस्ताव से वो हैरान थे.
इस सिलसिले में जब कमलेश्वर इंदिरा के सामने पहुंचे तो उन्होंने पूछा-
"क्या आपको मालूम है कि मैंने ही 'आंधी' लिखी थी? "
इंदिरा का जवाब था- "हां, पता है." तुरंत ही उन्होंने यह भी कहा- "इसीलिए आपको ये जिम्मेदारी
(दूरदर्शन निदेशक) दे रही हूं." इंदिरा ने कहा-
"ऐसा इसलिए ताकि दूरदर्शन देश का एक निष्पक्ष सूचना माध्यम बन सके." कमलेश्वर ने दूरदर्शन के लिए दो साल तक काम किया.
दिसंबर 11, 2020
है ज़मीं अपनी है आस्मां अपना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया " तनहा "
है ज़मीं अपनी है आस्मां अपना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया " तनहा "
दिसंबर 10, 2020
किसी को माया किसी को राम-नाम दिया ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
किसी को माया किसी को राम-नाम दिया ( तरकश )
डॉ लोक सेतिया
इस कदर भा गया है कफस हमको
अब रिहाई की हसरत नहीं करते।
हम भरोसा करें किस तरह उन पर
जो किसी से भी उल्फत नहीं करते।
तुम खुदा हो तुम्हारी खुदाई है
हम तुम्हारी ईबादत नहीं करते।
ज़ुल्म की इन्तिहा हो गई लेकिन
लोग फिर भी बग़ावत नहीं करते।
दिसंबर 09, 2020
अब जनता की बारी ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
अब जनता की बारी ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
दिसंबर 08, 2020
ज़हर भी जो पिलाता है कह कर दवा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
ज़हर भी जो पिलाता है कह कर दवा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
ग़ज़ल - डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हम ने पाई है सच बोलने की सज़ा।
लब पे भूले से किसका ये नाम आ गया
जो हुए बज़्म के लोग मुझ से खफ़ा।
हो गया जीना इन्सां का मुश्किल यहां
इतने पैदा हुए हैं जहां में खुदा।
हैं कुछ ऐसे भी इस दौर के चारागर ( चारागर = चिकित्सक )
ज़हर भी जो पिलाते हैं कह कर दवा।
हाथ में हाथ लेकर जिएं उम्र भर
और होता है क्या ज़िंदगी का मज़ा।
आज "तनहा" हमें मिल गई ज़िंदगी
छोड़ मझधार में जब गया नाखुदा। ( नाखुदा = माझी )