नवंबर 24, 2013

POST : 378 डेमोक्रेसी का सपना ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        डेमोक्रेसी का सपना ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

कल रत मेरे सपने में वो आ गई जिसे मैं चाहता रहा हमेशा से। मैं जिसका दीवाना था। मेरे इतना करीब कि मैं छू सकता था उसे। मगर फिर वही पुरानी आदत कि मैं उसे कभी दिल की बात कह भी नहीं सका न अपना हाथ बढ़ा कर उसका दामन भी थाम न सका। नाम सुना था बहुत उसका मगर कभी नज़र आई नहीं थी कहीं वो। जैसे हर कुंवारे की कल्पना होती है ,कुछ उसी तरह हमारे मन में डेमोक्रसी की मोहिनी सूरत का ख्वाब पलता रहा। इसलिये जब विश्वस्त सूत्रों ने सूचना दी कि आ रही है वो , तो हम खुशी से फूले नहीं समाये और उसका स्वागत करने को तैयार हो कर बैठ गये। कहीं दूर से शोर सुनाई दे रहा था उसकी जय जयकार हो रही थी ,और  हम अपने घर से निकल कर सड़क पर चले आये। देखा हर कोई उसको फूलों की माला पहनाने को बेताब है। सब यही समझ रहे थे कि वो हमारे घर की शोभा बढ़ाने को आ रही है। तभी पता चला कि वो राजनेता की हवेली में प्रवेश कर गई और हवेली का द्वार बंद कर दिया गया उसकी सुरक्षा की बात कह कर। आम जनता बैठी रह गई उसकी सूरत को एक नज़र देखने की आस लगाये , और वो किसी बड़े घर की दुल्हन की तरह छिप गई हवेली के पर्दों के पीछे जाकर। सबने यही सोच अपना दिल बहला लिया कि जिसमें उसकी ख़ुशी हम भी उसी में खुश हैं। अब सभी के मन की मुराद वो कैसे पूरी करती , अबला की तरह ।

     अचानक रात को हम राजनेता की हवेली के पीछे से गुज़र रहे थे कि हमें अंदर से रोने सुबकने की आवाज़ें सुनाई दी। हमने जाकर खिड़की से दरार में से भीतर झांका तो हमें अंदर का नज़ारा दिखाई दे ही गया।  अंदर नयी दुल्हन सी सजी संवरी डेमोक्रेसी इक कमरे में कैद थी और मुझे कोई बचाओ की गुहार लगा रही थी। मगर उसकी आवाज़ दब कर रह जाती थी हवेली के उस कमरे में ही। हमने भी सोच लिया कि चाहे जो भी हो आज हम डेमोक्रसी का हाल जान कर रहेंगे और भीतर जाकर मिलेंगे उससे। किसी तरह हम हवेली की दीवार को फांद कर पहुंच ही गये अपनी महबूबा के पास। राजसिंघासन जैसी सजी सेज पर सजी धजी बैठी डेमोक्रसी को देखा तो लगा हमारा सपना साकार हो गया है। हमने पूछा उससे कि इस शाही चमक दमक , इतने बनाव श्रृगांर के बावजूद भी तुम्हारे चेहरे पर उदासी क्यों दिखाई दे रही है हमें। इस भरी जवानी में किस बात की चिंता है तुम्हें , यहां हर कोई तो तुम्हारा चाहने वाला है। तुम्हारे लुभावने रूप की चर्चा है हर तरफ। नेता अफसर सब पल पल तुम्हारा नाम जपते हैं , तुहारी चाहत का दम भरते हैं। जनता में तुम्हारी सुंदरता की ऐसी छवि बनी हुई है कि तुम्हें पाना चाहती है अपना सब कुछ लुटा कर भी। तुमसे प्यार है देश की सारी जनता को , ऐसा लगता है कि तुम्हें कोई वरदान मिला हुआ है चिरयौवन का जो आज़ादी के छिहासठ साल बाद भी तुम्हारी सलोना रूप मोह रहा है सभी को।

                        मेरी बात सुनते ही आंसुओं से भर आई डेमोक्रसी को आंखें। कहने लगी ये सारा मेकअप है मेरे असली चेहरे को सब से छुपाने के लिये। मेरे चेहरे का रंग तो पीला पड़ चुका है और रो रो कर मेरी आंखों के नीचे काले धब्बे पड़ गये हैं। भ्रष्टाचार रूपी कैंसर मेरे फेफड़ों को खाये जा रहा है और मेरा दम तो खुली हवा में भी घुटने लगा है आजकल। मेरे पूरे बदन पर निशान हैं राजनीति से मिले अनगिनित ज़ख्मों के जो छुपे हुए हैं इस चमकीले खूबसूरत लिबास के भीतर। मेरी आत्मा लहुलूहान हो चुकी है , कब से सत्ता की हवेली में कुछ लोगों का दिल बहलाने को नाचकर। जैसे दहेज के लोभी ससुराल वाले अपनी दुल्हन को सताते हैं उसके परिवार वालों से धन ऐंठने के लिये , वैसा ही अत्याचार हो रहा हर दिन मुझ पर। ये सब नेता अफसर मेरे साथ अनाचार करते रहते हैं और बेचारी जनता किसी बेबस बाप की तरह चुपचाप सब देख कर भी कुछ नहीं कर पा रही है। जनता को समझ नहीं आ रहा कि अपनी इस राजदुलारी को कैसे बचाये ।

                 मैंने कहा डेमोक्रसी अब ज़माना बदल चुका है , अब बहू पे अत्याचार करने वालों को बेटी के माता पिता सबक सिखा देते हैं। दुल्हन को जलाने वालों के विरुद्ध धरने परदर्शन किये जाते हैं। महिलाओं की रक्षा के लिये बहुत कड़े कानून लागू हो चुके हैं। तुम अपनी व्यथा अपना दुःख अपने माता पिता रूपी जनता को सुनाओ , आखिर कब तक भीतर ही भीतर घुटती रहोगी। डेमोक्रसी बोली तुम भी जानते हो दुनिया चाहे जितनी भी बदल चुकी हो महिलाओं की दशा नहीं बदली है आज तक। इसीलिये तुम्हें आज अपने पास बुलाया है ताकि तुम मेरी बात सुन कर सब को बताओ बाहर जाकर। मेरे साथ होते अत्याचार कि एफ आई आर दर्ज करवाओ , किसी तरह से मुझे इंसाफ दिलाओ। तभी हवेली के बाहर से डेमोक्रसी की जय जयकार के नारों की आवाज़ें सुनाई देने लगी थी , शायद रात खत्म होने को थी। अचानक मेरी नींद खुल गई और मेरा सपना टूट गया था। मेरे घर के बहार वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा था।

नवंबर 17, 2013

POST : 377 शून्य का रहस्य ( व्यंग्य ) डा लोक सेतिया

          शून्य का रहस्य ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     आज शून्य के बारे चर्चा कर रहे हैं। अध्यापक जब शून्य अंक देते हैं तो छात्र निराश हो जाते हैं। जीवन में शून्य आ जाये तो जीना दुश्वार हो जाता है। अगर समझ में आ जाये तो शून्य का अंक बड़े काम का है। गणित में भारत का योगदान है शून्य का ये अंक , इस के दम पर ही विश्व चांद तारों का सफ़र आंक सका है। समाज में कुछ लोगों का योगदान शून्य होता है फिर भी उनका बड़ा नाम होता है। क्योंकि उनके आगे कुछ और लिखा होता है। शून्य से पहले एक से नौ तक कोई संख्या लिखी हो तो शून्य शून्य नहीं रहता। जब किसी के साथ माता पिता का नाम जुड़ा हो , विशेषकर अगर माता पिता सत्ताधारी हों तब संतान शून्य होने के बावजूद अनमोल होती है। उसके जन्म दिन पर बधाई के विज्ञापन अख़बार में , सड़कों पर इश्तिहारों में दीवारों पर दिखाई देते हैं। ऐसा शून्य बड़े काम का होता है। वह किसी राजनैतिक दल का सामान्य कार्यकर्त्ता नहीं बनता कभी , सीधे मुख्यमंत्री -प्रधानमंत्री पद का दावेदार होता है। विचित्र बात है ,हम लोकतंत्र की दुर्दशा का रोना रोते हैं और साथ ही परिवारवाद को फलने फूलने में भी सहयोग देते रहते हैं। नतीजा वही शून्य रहता है। ध्यान से देखें तो हमारे आस पास कितने ही शून्य नज़र आएंगे। आप चाहे जितने शून्य एक साथ खड़े कर लें कुछ फर्क नहीं पड़ता , पांच शून्य भी एक साथ शून्य ही होते हैं लेकिन उनके आगे एक लग जाये तो वे लाख बन जाते हैं।

          हम सौ करोड़ लोग मात्र नौ बार लिखा शून्य का अंक हैं , जब तक हमारे कोई एक खड़ा नहीं होता , किसी काम के नहीं हैं हम। इसलिए समझदार लोग प्रयास करते रहते हैं कि वे शून्य से बड़ा कोई अंक हो जांये और हम जैसे कई शून्य उनके पीछे खड़े रह कर उनका रुतबा बुलंद करें। इसे राजनीति , धर्म , समाज सेवा कुछ भी नाम दे सकते हैं। हज़ारों लाखों में सब से जो अलग नज़र आते हैं आज कभी वो भी शून्य ही थे। मगर उनको तरीका मिल गया कि कैसे शून्य से एक बन सकते हैं। इस सब के बावजूद कोई भी शून्य को अनदेखा कर नहीं सकता है। अगर इनके साथ शून्य नहीं हो तो इनकी हालत पतली हो जाती है।
         
         साहित्य में भी शून्य का महत्व कम नहीं है। लेखक को तमाम उम्र लिखने के बाद भी शून्य राशि का मिलना कोई अचरज की बात नहीं होती। तो कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो साहित्य के कार्यक्रम आयोजित कर के भी अच्छी खासी आमदनी का जुगाड़ कर ऐश करते हैं। उनके लिये साहित्य भी चोखा धंधा है , और वो तलाश कर लेते हैं उन लोगों की जो अपना नाम अख़बार की सुर्ख़ियों में देखना चाहते हैं दानवीर कहलाना चाहते हैं , खुद को समाज सेवक कहलाना चाहते हैं। उनकी समाज सेवा मात्र पैसे दे कर अपना नाम निमंत्रण पत्र पर  आयोजक अथवा मुख्य अतिथि के रूप में छपवाने तक सिमित रहती है। साहित्य , धर्म , समाज सेवा क्या होती  है , इन शब्दों का अर्थ क्या है उनको नहीं मालूम होता , तब भी मंच से इन पर बड़ी बड़ी बातें कर सकते हैं। सर्वगुण सम्पन कहलाते हैं। ऐसे अंगूठा छाप लोग विद्वानों को पाठ पढ़ाते हैं , अपने उन भाषणों द्वारा जो किसी और विद्वान से वे लाये होते हैं लिखवा कर। विद्वान अगर धन कमाना चाहता हो तो उसे ऐसे ही किसी शून्य के साथ मिल कर अपना अस्तित्व मिटाना होता है। कभी समय था जब गणित में प्रथम रहे आदमी को बहुत आदर सम्मान मिला करता था , कारोबार करने वाले उसको अच्छा वेतन देते थे नौकरी पर रख कर ताकि उनका हिसाब किताब बराबर रहे। मगर केल्कुलेटर और कम्प्यूटर ने हालत बदल दी है , लोग अब इंसानों से अधिक विश्वास इन पर करते हैं। खास बात ये है कि कम्प्यूटर की भाषा में भी शून्य का बड़ा महत्व है। इसकी सारी भाषा ही शून्य और एक पर आधारित है।

                   दार्शनिक लोग सदा यही कहते रहे हैं कि शून्य ही सब कुछ है और सभी कुछ शून्य है। हम शून्य से शुरुआत करते हैं और अंत में शून्य ही रह जाता है। धर्म वाले भी कहते हैं " लाये क्या थे जो ले के जाना है " फिर भी हम सभी यही चाहते हैं कि जैसे भी हो सब अपने साथ लेते जायें। शून्य का रहस्य जानना बहुत ज़रूरी है , अगर वो समझ आ जाये तो फिर शून्य से सभी कुछ हासिल किया जा सकता है। जो लोग हमें हर क्षेत्र में शिखर पर दिखाई देते हैं वो खुद कभी शून्य ही हुआ करते थे। बस उन्होंने कभी किसी से शून्य के रहस्य को समझ लिया और जान गये कि किस तरह किसी दूसरी संख्या के पीछे जुड़ना है ताकि उनका महत्व बड़ सके। शून्य की महिमा का बखान करना  बहुत कठिन है। इस का ओर छोर पाना संभव नहीं है। एक साधना है शून्य को अपने पीछे खड़ा करना अपनी संख्या बढ़ाने के लिये। ऐसा करने के बाद कोई शून्य शून्य नहीं रह जाता है।

नवंबर 10, 2013

POST : 376 स्वर्ग लोक में उल्टा पुल्टा ( तरकश ) डा लोक सेतिया

   स्वर्ग लोक में उल्टा पुल्टा ( तरकश ) डा लोक सेतिया

स्वागत की तैयारियां चल रही हैं। हर तरफ शानदार दृष्य सजावट का , राहों पर रंग बिरंगे फूल बिछे हैं।
ऐसा यहां कभी कभी ही होता है , कई कई सालों बाद जब स्वर्ग लोक में किसी ऐसी आत्मा ने आना होता है जो ईश्वर को बेहद प्रिय हो। सभी देवी देवता , तमाम स्वर्गवासी उपस्थित रहते हैं ऐसी आत्मा के स्वागत करने के लिये। सभी हाथों में पुष्प लिये खड़े हैं , आने वाली आत्मा पर वर्षा करने के लिये। तभी आकाशवाणी होती है , स्वागत को तैयार रहें , भारत भूमि से एक महान व्यंग्कार की आत्मा का आगमन होने वाला है। ईश्वर के दूत जसपाल भट्टी जी को लाते हैं पालकी पर बिठा कर और ईश्वर के दरबार में सम्मान सहित आसन पर बिठा देते हैं। ईश्वर प्रकट होते हैं और जसपाल भट्टी के पास जाकर कहते हैं , प्रिय पुत्र जसपाल भट्टी आपका यहां बहुत बहुत स्वागत है। जसपाल भट्टी का चेहरा सदा की तरह गंभीर नज़र आ रहा है , जैसे कुछ सोच विचार कर रहे हों। थोड़ी देर में भट्टी जी बोलते हैं , आपके दूत कह रहे थे आपने मुझे बुलाया है स्वर्गलोक में , क्या यही स्वर्गलोक है। ईश्वर बोले आप अब स्वर्गलोक में ही हैं। भट्टी जी ने पूछा ये सब सजावट , स्वागत द्वार।
ईश्वर बोले आपके लिये ये सारा स्वागत है पुत्र। भट्टी कहने लगे आपकी माया मुझे समझ नहीं आई , क्या आप मेरी उल्टा पुल्टा बातों का मुझे जवाब दे सकेंगे। ईश्वर बोले आप जो भी चाहो बेझिझक पूछ सकते हैं।
   जसपाल भट्टी कहने लगे मुझे तो लग रहा था आपके दूत भूल से मुझे वहीं धरती पर ले आये हैं , जहां मुख्य मंत्री प्रधान मंत्री अथवा किसी विदेशी महमान के आने पर देश की गरीबी और बदहाली को छिपाने को मार्गों को सजा दिया जाता है , और उनके मार्ग से गुज़रते ही सारी सजावट हटा ली जाती है। लेकिन क्षमा करें मैं  राजनेता नहीं हूं जो उस सजावट के पीछे का सच नहीं देखना चाहते। मैंने तो यहां आते हुए पूरा दृष्य ध्यान से देखा है , आपके इस स्वर्गलोक का हाल भी मुझे कुछ अच्छा नहीं दिखाई दिया।  और मैं सोच रहा हूं कि हम धरती वाले बेकार आपसे उम्मीद लगाये बैठे हैं कि वहां सब ठीक करोगे , जब आप अपने इस लोक का ही ध्यान नहीं रख रहे तो उस लोक की क्या फ़िक्र आपको होगी।
             भट्टी जी बात सुनकर प्रभु उदास हो गये , बोले आपने सही कहा है पुत्र। मैं कब से परेशान हूं कि कैसे यहां सब सही किया जाये। बस इसी काम के लिये तुम्हें समय से पहले ही बुलवा लिया है। कुछ दिन पहले तुमने जब विनती की थी कि अब तुमसे देश की दुर्दशा और देखी नहीं जाती क्योंकि अब नेताओं को शर्म नहीं आती जब उनके घोटालों का पर्दाफाश होता है। उनपर व्यंग्य करने से भी कुछ हासिल नहीं होता और तुम वो देखना नहीं चाहते अब। इसलिए आपकी उस विनती को सुन आपकी इच्छा पूर्ण करने के लिये ही आपको स्वर्गलोक में बुलवाना उचित समझा। शायद तुम यहां भी कुछ उल्टा पुल्टा , कोई फलॉप शो , कोई मुर्ख सभा का गठन कर स्वर्गलोक के वासियों , देवताओं , देवियों को समझा पाओ कि उनको करना कुछ था और वे कर कुछ और ही रहे हैं।
      स्वागत सभा के बाद ईश्वर भट्टी जी को अपने कक्ष में लेकर आये और बताया कि मैंने तो दुनिया को ढंग से सुचारू रूप से चलाने का पूरा प्रबंध किया था। हर देवी देवता को उनका विभाग सौंप दिया था पूरी तरह ताकि वो विश्व का कल्याण करें। मगर इन सभी ने वही किया जो नेता लोग किया करते हैं , जनता के कल्याण की राशि का उपयोग अपने खास लोगों को खुश करने को इस्तेमाल करना। उसी प्रकार सब देवी देवता भी अपनी कृपा दीन दुखियों पर न कर के अपना अपना धर्मस्थल बनाने वालों पर करने लगे जिसकी सज़ा आम लोग बिना अपराध किये भोग रहे हैं। जसपाल भट्टी बोले क्या आपने यहां कैग जैसी कोई संस्था नहीं बनाई हुई जो इनके कार्यों की बही खातों की नियमित जांच करती और अगर कोई अनियमितता हो तो आपको सूचित करती। ईश्वर बोले नहीं मुझे अपने सभी देवी देवताओं पर विश्वास था इसलिये किसी निगरानी कि व्यवस्था ही नहीं करना ज़रूरी लगा। हां नारद जी एक बार कह रहे थे कि चित्रगुप्त जी के हिसाब की जांच की जानी चाहये , क्योंकि उनको लगता है कि धरती पर अब कर्मों का फल उल्टा मिलने लगा है। पाप करने वाले फल फूल रहे हैं और धर्म पर चलने वाले दुखी हैं। जसपाल भट्टी जी का सुझाव मानकर ईश्वर ने स्वर्गलोक में कैग जैसी इक संस्था का गठन कर के जसपाल भट्टी जी को उसका कार्यभार सौंप दिया है। बहुत जल्द स्वर्गलोक में सब उल्टा पुल्टा होने की संभावना है।

नवंबर 03, 2013

POST : 375 हां ( लघुकथा ) डॉ लोक सेतिया

                 हां ( लघुकथा ) डॉ लोक सेतिया

         " बेटी तूं भाग्यशाली है जो इतने अमीर खानदान से तेरे लिए रिश्ता आया है। बिना किसी दहेज के ही उन्हें केवल दुल्हन ही चाहिये , फिर भी हम जैसे मध्यम वर्ग वाले घर से खुद मांग रहे हैं लड़की का हाथ। तुम नहीं जानती हम कब से इस चिंता में थे कि तुम दोनों बहनों के विवाह के लिये इतना पैसा कहां से लाएंगे दहेज देने के लिये। "

     माँ अपनी बेटी को समझा रही है। " मगर माँ ये उसकी दूसरी शादी है , मैंने सुना है कि उसकी पहली पत्नी  विवाह के साल भर बाद ही जल कर मर गई थी।  लोग आरोप लगाते हैं ससुराल के लोगों ने जला दिया था। कहीं मेरे साथ भी वही न हो जाये " डरी सहमी बेटी माँ को मन की बात कह रही है।

            " बेटी घबरा मत , ये डर अपने मन से निकल दे। भगवान जाने वो खुद जली थी या उन्होंने उसको जला कर मार डाला था , मगर उस केस से बहुत मुश्किल से उनकी जान बची है। अब भूल कर भी वे अपनी बहू को परेशान नहीं करेंगे। अब तो वे तुझे और अधिक लाड़ प्यार से रखेंगे ताकि उनपर कोई नया आरोप फिर न लग सके। उनका पूरा प्रयास होगा समाज में अपनी छवि को सुधारने का और पुराने इल्ज़ाम को झूठा साबित करने का "।

     माँ की बातों से बेटी को पूरा विश्वास हो गया है अपनी सुरक्षा का। उसने हां कह दी है।