सबको करोड़पति बनाएगा गुलाबी धन ( तरकश ) लोक सेतिया
सुनहरे रंग के चेक { भाग 2 }
अच्छे दिन आने वाले थे और आये भी मगर उन्हीं के अच्छे दिन आये जिनकी किस्मत अच्छी थी। कुछ लोग ज़मीन से सीधे आसमान में पहुंच गए। कोई काबलियत नहीं कोई जनता से मतलब भी नहीं बस एक ही आधार था किसी व्यक्ति और उससे ही संबंधित संस्था का सदस्य होना। बाकी कोई भी सत्ता पर आसीन व्यक्ति को भरोसे के काबिल नहीं लगा। जो परिवारवाद को बुरा बताते थे उनको अपने घर से बाहर का कोई भी पसंद नहीं आया देश के सब बड़े बड़े पदों पर और राज्यों की सत्ता पर बिठाने को। कठपुतलियां चुन चुन कर देश के संविधान और जनतंत्र को भुला दिया गया। इससे अच्छे दिन उनके कैसे हो सकते थे। नसीब बदलता है यही होता है। जनता की बदनसीबी कभी खत्म ही नहीं होती। जनता किसी शायर की ग़ज़ल का इक शेर दोहरा सकती है।
" तो इस तलाश का अंजाम भी वही निकला , मैं देवता जिसे समझा था आदमी निकला "।
लेकिन आप निराश नहीं हों , आखिर उनको याद आ ही गया है कि फिर से जनादेश लेने का समय अगले ही साल आने वाला है। अच्छे दिन की हांडी काठ की दोबारा नहीं चढ़ाई जा सकती। ऐसे में जनता को ही लालच देकर बहलाया फुसलाया जा सकता है और तीन साल और मांगे जा सकते हैं उन सब कामों के लिए जिनको पांच साल में पूरा करना था मगर शुरुआत तक नहीं हुई बल्कि ऐसे बुरे दिन आये हैं कि पहले वाले दिन भी लगता है ऐसे बुरे तो नहीं थे। इस बार अच्छे नहीं सुनहरे दिन लाने की बात की जा रही है और उन सुनहरे दिनों के सपने पर यकीन दिलवाने को करोड़ करोड़ रूपये का सुनहरी चमक वाला चेक सभी को तीन साल बाद भुगतान की तारीख डालकर बांटने की योजना है।
आप खुश हो सकते हैं कि अभी तक जनता का वोट शराब की बोतल या साड़ी और थोड़े नकद पैसों से खरीदते थे नेता अब उसी को और ढंग से किया जायगा ऊंचे दाम देने का वादा कर के। जिन लोगों के करोड़ों नए बैंक खाते खुलवाए गए थे और बाद में आधारहीन तरीके से उनको आधार देते रहे फिर उन्हीं पर ये आरोप भी उछालते रहे कि गरीबों के खातों में काला धन हो सकता है। ऐसे में वही लोग फिर से झांसे में आसानी से नहीं आने वाले और भारतीय रिज़र्व बैंक की लिखी इबारत पर विश्वास नहीं करेंगे ये समझ कर सुनहरे चेक विश्व बैंक एयर आईएमएफ से प्रमाणित होंगे।
जाल बुना जा चुका है और बिछाने की तैयारी है। कल सुबह पहली अप्रैल को नई योजना की घोषणा करने पर मंथन चल रहा है। कोई कह रहा है यही अवसर है ताकि बाद में कोई कुछ बोल भी नहीं सकेगा जब समझेगा कि अप्रैल फूल बनाया गया था। लोग मूर्ख बनते रहे हैं मगर कभी खुद को मूर्ख बनाने की बात मानते नहीं हैं। मगर दूसरे कुछ कहते हैं ऐसा करने पर लोग नहीं फंसे तो खुद हम ही फूल बन जायेंगे चुनाव में। और तीन साल गुज़रते पता नहीं चलता कुर्सी के मद में लेकिन किसी तरह लोग फिर से बहक भी गए लोभ में तब भी तीन साल बाद चेक का भुगतान कौन करेगा कैसे करेगा। जाल बुनने वाला मुस्कुराते हुए समझाता है यही तो राजनीति में चुनावी रणनीति होती है। अभी चुनाव जीतना लक्ष्य है आगे की बाद में देखते हैं। इतना चमकीला चेक वो भी करोड़ रूपये लिखा हुआ अच्छे अच्छों की मति मारी जाती है। पंछी दाना चुगने आएगा और जाल में फंस छटपटायेगा फिर पिंजरे में खैर मनाएगा। भोलेनाथ का बंदा कभी नहीं समझ पायेगा कि भविष्य क्या क्या नहीं दिखलायेगा। तीन साल तक संभाल कर रखेगा मगर ये सपने में भी नहीं सोच पायेगा कि जिस दिन भुगतान लेने को बैंक में जमा कराएगा बैंक अधिकारी ध्यान दिलवाएगा। किसी के हस्ताक्षर तो हैं ही नहीं चेक पर सुनकर घबराएगा। तब गलियों में शोर मचाएगा और सरकार की शरण में आएगा। सरकार बहलायेंगे कि गलती से खाता नंबर और हस्ताक्षर अंकित नहीं हुए मगर भूलसुधार किया जा सकता है। अपने चेक इक ख़ास ऐप पर बदल सकते हैं और नया सुनहरी चेक ऑनलाइन निकलवा सकते हैं। लोग सरकार की बात मान जायेंगे और जब नया चेक मिलेगा तो चकरायेंगे कि उस पर कई और साल बाद ब्याज सहित भुगतान की शर्त पाएंगे और उसे पहले ही स्वीकार कर लिया था भी पढ़कर सब जान जाएंगे। भागते चोर की लंगोटी को घर लेकर आएंगे और अपने वारिसों के नाम वसीयत लिख कर मर जायेंगे।
कितने बाप दादा की बात भूल ही जायेंगे जो याद रख लेने भुगतान जाएंगे तब वास्तविकता जान पाएंगे। कोई बैंकवाले मरे हुए के हस्ताक्षर करवाने की बात से डरायेगा तो कोई राज़ की बात और रहस्य से पर्दा उठाएगा। जिस अधिकारी के हस्ताक्षर हैं विभाग ने कब का उनकी जगह नया अधिकृत किया था और समय पर उनसे हस्ताक्षर करवाने थे। अब इस चेक की उपयोगिकता केवल फ्रेम में जड़वा कर घर पर सजाने को टांगने की रह गई है। सभी सुनहरे फ्रेम में सुनहरी चेक जड़वा कर इतरायेंगे करोड़पति कहलायेंगे।