अक्टूबर 31, 2012

POST : 206 मतभेद ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

    मतभेद ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

आज स्पष्ट
हो गई तस्वीर
जब मेरे विचारों की
ताज़ी हवा से
छट गई सारी धुंध
मिट गई हर दुविधा
हो गया अंतर्द्वंद का अंत ।

जान लिया
कि जाते हैं बदल
सही और गलत के
सारे मापदंड अब दुनिया में ।

मगर मुझे चलना है
उसी राह पर
जिसे सही मानता हूं मैं
लोग चलते रहें
उन राहों पर
सही मानते हों वो जिन्हें ।

काश जान लें सभी
विचारों के मतभेद के
इस अर्थ को और हो जाए अंत
टकराव का दुनिया वालों का
हर किसी से ।

मतभेद
हो सकता है सभी का
औरों से ही नहीं
कभी कभी
खुद अपने आप से भी ।
 

 

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