अक्टूबर 27, 2021

दुरूपयोग करना सीखा है ( पागलपन ) डॉ लोक सेतिया

       दुरूपयोग करना सीखा है ( पागलपन ) डॉ लोक सेतिया 

पैसा धन दौलत ताकत शोहरत कायदा कानून अधिकार आज़ादी से लेकर शिक्षा साधन जानकारी अथवा जो कुछ भी हमारे पास उपलब्ध होता है उन को सही इस्तेमाल करने का मकसद नहीं समझते लेकिन अवसर मिलते ही हर चीज़ का अनुचित उपयोग करना शायद हम भारतीय से अधिक कोई नहीं जानता है। शुरुआत खुद से करता हूं मुझे फेसबुक व्हाट्सएप्प सोशल मीडिया की समझ नहीं है खिलवाड़ कर रहा मनमाने ढंग से उपयोग करता हूं और सोचता हूं जानकार बन गया हूं। बहुमत ऐसे लोग सोशल मीडिया पर समय और साधन का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन समस्या उनकी है जिनको देश की समाज की बड़ी कठिन समस्याओं को हल करने की ज़िम्मेदारी मिली है पर वो सभी अपना दायित्व निभाना छोड़ ऐसे पागलपन करते रहते हैं जिनसे हासिल कुछ भी नहीं होता है। कोई भी शासक हर कार्य नहीं कर सकता है फिर किसलिए हर जगह शासक को उपस्थित होकर दिखाने को आडंबर करना ज़रूरी है। बहाना जो भी हो सत्ताधारी नेताओं अधिकारी वर्ग को शिलान्यास से उद्घाटन करने तक अपना नाम दर्ज करवाना ज़रूरी लगता है। वास्तव में जैसे कोई मज़ाक लगता है किसी जनसुविधा के निर्माण भवन सड़क पुल स्कूल अस्पताल का बन जाने के बाद इंतज़ार करना किसी वीवीआईपी के हाथ से मुहूर्त होने का। उनका वास्तविक मकसद ज़रूरत पीछे रह जाता है और राजनेताओं का शोहरत पाना अपना नाम लिखवाना महत्वपूर्ण बन जाता है। और ऐसा हर जगह हर दिन होता है कभी कभी लगता है देश में कुछ मुट्ठी भर बड़े नाम वाले लोग सब करते हैं बाकी करोड़ों लोग कोई काम नहीं करते हैं। शायद इसकी शुरुआत फ़िल्मी कहानियों से हुई होगी जिस में अभिनेता सब कर सकते थे नाचना गाना लड़ना झगड़ना ही नहीं गुंडागर्दी करने से लेकर मासूमियत भोलापन गरीब से धनकुबेर तक अभिनय में सब कर दिखाना। भोला भाला गंवार महानगर में डॉन बन सकता था और खाली जेब नायक पलक झपकते ही रईस बन कर शोहरत की बुलंदी को छू सकता था। दर्शक की सबसे बड़ी नासमझी ऐसे काल्पनिक असंभव को सच होता देख विश्वास करना और स्वीकार कर तालियां बजाना था। लगता है फ़िल्मी टेलीविज़न की काल्पनिक कथाओं का पागलपन इक नशा बनकर छाया हुआ है और सबको देश और समाज की वास्तविक तस्वीर जो बदसूरत है को अनदेखा कर झूठी दिलकश मनमोहक छवि देखना राहत देता है। जैसे नर्कीय जीवन जीते हुए कोई ख्वाबों में स्वर्ग की कल्पनाओं में खोया रहे मगर उसको बदलने की कोशिश नहीं कर झूठी उम्मीद करता रहे कि कोई मसीहा आएगा और उसका कल्याण कर देगा। बिना समझे जाने सोचे विचारे हमने उन को मसीहा समझ लिया है जिनके पास किसी को देने को कुछ भी नहीं है जो खुद जितना हासिल है उस से अधिक पाने को व्याकुल रहते हैं। ऐसे सत्ता धन दौलत के पुजारी देश समाज को लूटने वाले मसीहाई का दिखावा कर हमको उल्लू बनाते रहते हैं और हम उनकी नकली चमक दमक को वास्तविक समझ धोखा खाते रहते हैं। 

वास्तविक जीवन में कुछ भी बनने को समय महनत लगन और कितनी बाधाओं कठिनाईयों को लांघना होता है। सैनिक किसान मज़दूर बनकर कार्य करना भी आसान नहीं होता है डॉक्टर शिक्षक वकील न्यायधीश धर्मगुरु बनना किसी तपस्या से कम नहीं होता है और सिर्फ इतना ही नहीं ये बनकर अधिकार मिलने के बाद अपने पेशे का फ़र्ज़ पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाना किसी तलवार की धार पर चलने जैसा है। पांव ज़मीर डगमगाने लगते हैं लोभ लालच स्वार्थ खुदगर्ज़ी को देख कर। साधु संत बनकर भी लोभ मोह अहंकार से बचना आसान नहीं होता है। सच को समझने वालों से सच के झण्डाबरदार बने लोग झूठ की महिमा का गुणगान करने लगते हैं आम से ख़ास बनने गरीब से अमीर बनने की लालसा में। मगर जिन्होंने कोई शिक्षा कोई महनत कोई मुश्किल पार नहीं की बड़े पद पर पहुंच कर सिर्फ चोला पहन लिबास धारण कर डॉक्टर वकील न्यायधीश से सैनिक किसान होने का अभिनय कर खुद को समाज को छलने का कार्य करते हैं। धर्म उपदेशक समाजसेवक बनकर नाम शोहरत पाने के इच्छुक लोग दानवीर कहलाने को लालायित लोग भी शामिल हैं फोटो करवाने वीडियो बनवाने इश्तिहार बंटवाने को सबसे महत्वपूर्ण कार्य समझने में। काश अपना कर्तव्य निभाते तो इन व्यर्थ कार्यों की ज़रूरत कभी नहीं पड़ती। शासन के सर्वोच्च शिखर पर भी खुद को बड़ा महान और सबसे विशेष जतलाने का मतलब भीतरी खोखलापन ही है। साधु संतों से योगी सन्यासी कहलाने वाले अपनी महिमा अपना गुणगान करवाने को छोड़ नहीं पाते हैं अर्थात दुनिया की मोह माया लोभ लालच अहंकार से ऊपर उठते नहीं कभी वास्तविक रूप से। आदर्श को आचरण नहीं खेल तमाशा बना दिया है। मदारी बनकर हमको अपने खेल से आचंभित कर उसे जाने क्या क्या समझते हैं जो सही मायने में किसी पागलपन की निशानी है। 
 
लेकिन समस्या खुद हमारी है जो आज़ादी का महत्व नहीं जानते और आज़ाद होकर भी मानसिक तौर पर गुलामी के शिकार हैं। राजनेता अभिनेता खिलाड़ी धनवान लोग जिन्होंने वास्तव में सिर्फ खुद अपने लिए सफलता हासिल की किसी को कुछ देने नहीं सिर्फ हासिल करने को लगे रहते हैं उनको अपना आदर्श मसीहा क्या आराध्य तक समझने की मूर्खता करते हैं जबकि उन्होंने हमारे लिए देश समाज की भलाई के लिए कुछ नहीं किया होता है जो किया जो करते हैं केवल अपने खातिर करते हैं। ख़ास नाम शोहरत वाले लोगों के सामने नतमस्तक होकर उनकी चाटुकारिता करना आदत बन गया है घर गांव में हर किसी से अहंकार पूर्वक पेश आने और आपस में कुशल क्षेम पूछने में संयम बरतने वाले क्षण भर में बदले रंग ढंग में दिखाई देते हैं। शायद हमने सीखा ही नहीं अच्छाई सच्चाई और काबलियत का आदर करना बस उगते चढ़ते सूरज को सलाम करते हैं जबकि मालूम है समय बदलते यही सूरज शाम को खो जाता है रात के अंधेरे में। नकली सितारों को देखते देखते असली आसमान पर चमकते सितारों का दिलकश नज़ारा देखना हमने कभी का छोड़ दिया है । 
 

 
 


 
 

अक्टूबर 22, 2021

अंधेरे दिन रौशन रात ( अनसुलझे सवालात ) डॉ लोक सेतिया

    अंधेरे दिन रौशन रात ( अनसुलझे सवालात ) डॉ लोक सेतिया

सोशल मीडिया , लोग अपने बेगाने , टीवी शो फिल्म सीरियल की कहानी जाने कैसे कैसे इश्तिहार कितने जाने अनजाने ,  चाहे अनचाहे हम को नासमझ समझते हैं और समझाने की नाकाम कोशिश करते हैं। भगवान क्या है कैसे है , सरकार क्या है , कैसी क्योंकर है , सच्चाई भलाई से लेकर ज्ञान की , मूर्खता की उनकी खुद की घड़ी हुई परिभाषा , जिन पर तर्क वितर्क विचार विमर्श करना अनुचित बताते हैं भरोसा करने अंधविश्वास करने को सभी समझाते हैं। तमाम ऐसे विचार हैं जो सबको मानने ज़रूरी हैं , बेशक वास्तविकता में उनका विपरीत सामने दिखाई देता हो। जहां सरकार होने की बात होती है वहां लगता है सरकार नाम की चीज़ नहीं यहां कोई और जो विश्वास करते हैं ईश्वर है , सब अच्छा करता है फरियाद सुनता है सबको इक समान मानकर अपनाता है , उसका होना सच लगता नहीं है। रिश्ते नाते दोस्त समाज जैसे होने की बात होती है उस तरह के नहीं होते बल्कि मिलते हैं जैसे हम उम्मीद नहीं करते हैं। सोशल मीडिया ने हमको करीब लाने का झांसा देकर असल में दूर अकेला कर दिया है , हर शख़्स खुद कुछ नहीं समझना पढ़ना सुनना देखना चाहता औरों को बहुत कुछ समझाना दिखलाना पढ़वाना सुनवाना चाहता है। किसी भीड़ भाड़ वाले बाज़ार मेले या ऐसी सड़क जिस पर वाहनों की भरमार है सभी को जल्दी है अपनी अपनी मंज़िल पर पहुंचने की और हम किसी खोये राह पर रुके हुए हैं भटके मुसाफिर की तरह देखते हैं इधर उधर । ज़िंदगी जीने का वास्तविक मकसद भूले आसान रास्ता या कोई ढंग सब पल भर में पा लेने का तलाश करते दरिया किनारे खड़े रहते हैं ये सोचकर कि हीरे मोती अनमोल जवाहरात अपने आप हमारे कदमों में चले आएंगे किस्मत से। शानदार भविष्य के झूठे सपने दिखलाने वाले पूरी ज़िंदगी हमको तसल्ली देते रहते हैं सब उजाला होने वाला है कहकर मगर कोई चिराग जलाने की बात नहीं करता है। हमारा बढ़ता अंधकार उनके लिए बड़े काम आता है जो रौशनी का नाम देकर अंधकार का व्यौपार करते हैं। आधुनिक विज्ञान शिक्षा समय के साथ बदल चुके सामाजिक ढंग तौर तरीकों ने हमको अंधे कुंवे से निकलने की चाहत नहीं जगाई है इसलिए बाहर रौशनी है और हम खुद अंधेरे में रहकर सिर्फ रौशनी पर चर्चा करते हैं। अंधेरे में जीने की आदत हो गई है रौशनी से आंखे चुंधिया जाती हैं। कहने को आधुनिकता का लबादा पहने हुए हम अंधेरे के उपासक हैं यही हमारी विडंबना है। 
 

 

अक्टूबर 16, 2021

हाथ जोड़कर कोरोना खड़ा ( अंतिम अध्याय ) डॉ लोक सेतिया

   हाथ जोड़कर कोरोना खड़ा ( अंतिम अध्याय ) डॉ लोक सेतिया 

सरकार मुझ पर करो उपकार छोड़ो करना मुझसे झूठा प्यार बंद करो अपने इश्तिहार नहीं किसी को होता ऐतबार मेरा रहा नहीं नाम निशान मेरे नाम का हो गया बंटा धार। मेरा अंत घोषित कर दो अब मेरी कोई हैसियत नहीं रही इससे पहले कि लोग मुझे लेकर चुटकुले हंसी मज़ाक कॉमेडी की बातें बनाने लगें मेरा अंतिम क्रियाकर्म शान से कर श्रद्धांजलि सभा में मेरी शांति की प्रार्थना कर मेरा कल्याण कर दो। देवता दानव नहीं सही कोई शख़्सियत समझ सकते हैं जिसने दुनिया को सबक सिखलाने की नाकाम कोशिश की कितनों की जान लेने का गुनहगार बनकर बेमौत मर गया। सरकार दुविधा में पड़ी है उलझन छोटी नहीं है बहुत बड़ी है फैसले की घड़ी है ऐटमबंब बताया था निकली फुलझड़ी है बड़े ज़ुल्मी से आंख लड़ी है। कोरोना आईसीयू में है जीवनरक्षक उपकरण उसको ज़िंदा रखे हैं सभी परिजन इंतज़ार में खड़े हैं विरासत के झगड़े बड़े बड़े हैं। कोई उसको कांधा देगा कौन उसकी अर्थी को सजाएगा कौन राम नाम सत्य बोलेगा कौन उसको श्मशान में दफ़नायेगा। समाधिस्थल बनाना ज़रूरी है दास्तां उसकी अधूरी होकर पूरी है हाय ये कैसी मज़बूरी है। कोरोना कितने लोगों के काम आया है सत्तावालों का हमराज़ है कितने धनवान लोगों का रुतबा बढ़ाया है हर कोई खुद को वारियर कहलाता है सभी से नाता उसने निभाया है। मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरुद्वारा सबके करीब ठिकाना बना लिया था खुदा भगवान जीसस वाहेगुरु सभी का हमसाया है। तमाम लोगों ने कोरोना को बेचने का कारोबार किया है आपदा को अवसर बनाकर पैसा कमाया है। दुनिया भर के लोगों ने सुःख चैन खोया है चतुर हैं बस उन्होंने सोने चांदी का अंबार लगाया है ऊंची दुकान फीका पकवान करिश्मा दिखाया है। दरबार लगाया कभी मुकदमा चलाया है मुजरिम मिल गया पर हाथ नहीं आया है धोखा खाने वालों ने धोखा हर बार खाया है बेगुनाह को सूली पर सबने चढ़ाया है। 
 
कोरोना बहुत पास है लेकिन दिल्ली दूर है टेढ़ी खीर है हुआ मज़बूर है। कहते हैं चाहने वाले तुझे मरने नहीं देंगे भरोसा किसी को खबर का करने नहीं देंगे डर के आगे जीत है डरना ज़रूरी है डराते रहेंगे सबको दिल से डर को ख़त्म करने नहीं देंगे। सब एक थाली के चट्टे बट्टे हैं कोरोना को लेकर सभी इकट्ठे हैं अभी उनको कोरोना की ज़रूरत बहुत है हसरत पूरी नहीं हुई रही बाकी हसरत बहुत है। बेबस है कोरोना लाचार हुआ है मत पूछो किस किस का शिकार हुआ है जाने क्या हुआ उसको बीमार हुआ है टीका फीका दवा नहीं असरदार हुआ है हालत पे खुद बेचारा शर्मसार हुआ है। शहंशाह था जो समझता ख़त्म अहंकार हुआ है आदमी के हौसले को देख घबरा गया है रुसवा होकर बेआबरू जाने को तैयार हुआ है। जाने नहीं देंगे तुझे कहते हैं भाई बंधु नहीं गुज़ारा तेरे बिन हमारा होगा मर कर तुझे छुपाकर दिल में है रखना ज़हर मीठा लगता है चखना सबको चखना। रुख़्सत की घड़ी आई जाना तो पड़ेगा वादा किया था निभाना तो पड़ेगा किसलिए उदासी है आखिर सबको जाना है ये दुनिया चार दिन का ठिकाना नहीं हमेशा को आशियाना है। सरकार मगर मानने को तैयार नहीं है जंग ख़त्म हुई ख़त्म उसके हथियार नहीं हैं। ऐलान किया है कोरोना छुप गया है मारा नहीं गया क़त्ल नहीं हुआ उसका गुमशुदा की तलाश है ये नहीं कोरोना की लाश है शायद कोई हमशक़्ल है बहरूपिया है कोई इसका ऐतबार नहीं करते बिना आधार कार्ड पहचान साबित नहीं होती मुर्दों की बातों पर यकीन कौन करता है मूर्ख कर लेते समझदार नहीं करते। सरकार समझदार बड़ी है कोरोना की सुनने की फुर्सत नहीं है समस्याओं की लंबी लड़ी है उनसे बचने को कोरोना है काम आया शाम हुई लगता है बढ़ता लंबा उसका साया।

अक्टूबर 13, 2021

खेल-तमाशा बना लिया मकसद { भटकते मुसाफ़िर } डॉ लोक सेतिया

खेल-तमाशा बना लिया मकसद  { भटकते मुसाफ़िर } डॉ लोक सेतिया 

हर कोई सभी जगह यही दिखाई देता है  लोग नतमस्तक हैं ,  जाने किस किस को क्या क्या कहने लगे हैं। कभी कभी तो हद हो जाती है गुणगान करते कहने लगते हैं धन्य हैं वे माता-पिता जिन्होंने आपको जन्म दिया। ऐसे में विचार आता है कि उस व्यक्ति या ऐसे अन्य तमाम लोगों ने देश समाज विशेषकर सामान्य नागरिक के कल्याण की खातिर क्या महान कार्य किया है। सिर्फ राजनीति खेल अभिनय कारोबार में सफलता अर्जित करना खुद के लिए परिवार के लिए अच्छा हो सकता है देश समाज सामान्य नागरिक के लिए नहीं। चढ़ते सूरज को सलाम करना मानसिक दासता की निशानी होती है। आये दिन जाने पहचाने अजनबी व्यक्ति के वीडियो मिलते हैं झूमते नाचते गाते रंगरलियां मनाते , कोई नहीं जानता वास्तव में आनंद ख़ुशी महसूस करते हैं अथवा सिर्फ सामाजिक दिखावे को कुछ पल केवल आडंबर होता है। वास्तविक ख़ुशी मन से महसूस की जाती है उसका इश्तिहार नहीं बनाया जाता है। शोहरत पाना कदापि महान मकसद नहीं होता है और देश समाज दुनिया को शानदार बनाने में जीवन व्यतीत करने वाले कभी महलों में धन दौलत के मालिक बनकर नहीं रहते हैं बल्कि अपना जीवन अपने साधन सुविधाओं को न्यौछावर करते हैं लोककल्याण के लिए। ये हमारी सोच की आदर्श मूल्यों के प्रति कोई हीनभावना हो सकती है जो हम उनको मसीहा समझते हैं जिनसे किसी को कुछ भी मिलता नहीं अपितु जो सामन्य जन से बहुत कुछ पाकर ऐशो आराम से रहते हैं। कोई झूठ बेचता है बातों से बहलाता है भाषण देकर उल्लू बनाता है कोई योग आयुर्वेद को माध्यम बनाकर कारोबार करता है कोई फिल्म टीवी संगीत कला में लेखन में शोहरत मिलने पर खुद को इक बाज़ारी सामान बना मालामाल होता है। ये सभी खोखले किरदार हैं जिनको देश दुनिया मानवता की नहीं सिर्फ खुद की चिंता रहती है। 

ज़िंदगी की सार्थकता खुदगर्ज़ी पूर्वक आचरण करने में नहीं होती है सच्चे आदर्श नायक अपने लिए नहीं सबके लिए समानता और अधिकार के लिए कार्य करते हैं। जिनको सत्ता की भूख है नाम शोहरत अपने गुणगान की लालसा है वो खेल तमाशे दिखलाते हैं धनवान और ताकतवर कहलाने के लिए लालायित रहते हैं। समाज के लिए कार्य करने वाले लोग ढिंढोरा पीटने का काम नहीं करते कभी। ये हमारे विवेक की बात है कि हम क्या सोचते हैं , क्या किसी मनोरंजन खेल तमाशे झूठे संबोधन से हमारा रत्ती भर भी कल्याण हो सकता है। हर किसी को आदर्श मसीहा ईश्वर समझने वालों को आखिर निराशा ही मिलती है। आधुनिकता की होड़ में भागम-भाग में हम जीने का सलीका भुला बैठे हैं। अपने अंतर्मन की बात को नहीं समझते बस बाहरी परिवेश को सब कुछ समझने लगे हैं। शायद जिनके अभिनय डायलॉग भाषण पहनावा और भाव भंगिमा तौर तरीके हमको सम्मोहित करते हैं भले समझते हैं उनकी वास्तविकता से उल्ट है उनकी तरह बनने की चाहत में अपनी असलियत को खो बैठे हैं । 
 

 

अक्टूबर 11, 2021

झूठ के गुणगान का शोर है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

  झूठ के गुणगान का शोर है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

कल ही की बात है फेसबुक पर साहित्य के ग्रुप जिस में ताकीद की हुई है रचनाकार मौलिक रचना भेजें किसी ने कवि कालिदास से जोड़कर इक लोक कथा शेयर की हुई थी। पढ़ते ही ध्यान आया कि ये इक हरियाणवी लोक कथा है पणिहारी और मुसाफिर शीर्षक से जिस में एक नहीं चार लोग पानी पिलाने को कहते हैं। ये विचार कर ताकि शेयर करने वाले एवं पाठक सही जानकारी पा सकें मैंने कॉमेंट में लिख कर लिंक भी दिया साहित्य की साइट का पढ़ने समझने को , सच बताना आलोचना करना नहीं होता है। मगर हैरानी हुई जब रचना शेयर करने वाले ने जवाब दिया नीचे इतने सौ लोगों को जिन्होंने लाइक कॉमेंट किया पता नहीं था इक अकेले आपको जानकारी है बस आप अकेले समझदार हैं। ऐसी बहस व्यर्थ होती है इसलिए मैंने अपने कॉमेंट को मिटा दिया। कई दिनों से सोच रहा था इतिहास देश की राजनीति और धर्म आदि को लेकर तमाम बातें सच्चाई और प्रमाणिकता को जाने बगैर सोशल मीडिया पर शेयर की जाती रही हैं। लेकिन साहित्य का सृजन करने वालों से उम्मीद की जाती है तथ्यात्मक ढंग से विवेचना करने और कभी सही जानकारी नहीं होने पर वास्तविकता उजागर करने वाले का आभार जताने की। राजनेताओं के चाटुकारों की तरह झूठ को शोर मचाकर सच साबित करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। बहुत लोग किसी बड़ी शख़्सियत के नाम से कितनी बातें लिखते हैं जिन का संबंधित व्यक्ति से कोई मतलब नहीं होता है। पिछले साल भी लिखा था केबीसी में भाग लेने वाली इक महिला ने अमिताभ बच्चन जी को इक कविता उनके पिता की रचना है से प्रेरणा मिली कहा तब महानायक कहलाने वाले ने सच बताना ज़रूरी नहीं समझा कि रचना किसी और की है। कोशिश करने वालों की हार नहीं होती , लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती। रचना सोहनलाल द्विवेदी जी की है। अपने ब्लॉग पर पिता के नाम से शेयर करने पर अमिताभ बच्चन पहले भी खेद जता चुके थे फिर टीवी पर सार्वजनिक मंच से जो सच नहीं खामोश रहकर उन्होंने अपने पिता की शान बढ़ाने की बात नहीं की थी। 
 
वास्तव में अमिताभ बच्चन जी को पैसों के लिए विज्ञापनों में अपने पिता के नाम का इस्तेमाल करने से भी परहेज़ करना चाहिए । बाबूजी ऐसा कहते थे बोलते हैं मगर कोई नहीं जानता अगर बच्चन जी की आत्मा देखती होगी तो अमिताभ जी के तमाम वस्तुओं का इश्तिहार देने पर क्या गौरान्वित महसूस करती होगी। मुझे अपना इक शेर उपयुक्त लगता है ऐसे समय , " अनमोल रख कर नाम खुद बिकने चले बाज़ार में , देखो हमारे दौर की कैसी कहावत बन गई "। शायद आधुनिक काल में ग़लतबयानी झूठ बोलने पर ऊंचे पदों पर बैठे लोग भी शर्मसार नहीं होते हैं ऐसे में उनके अनुयाई चाटुकार प्रशंसक झूठ का गुणगान करने में संकोच क्या करें। साहित्य जगत और समाजिक आदर्शों के अनुसार किसी की रचना को चुराना तो दूर उनके नाम से गलत उच्चारण करना भी अक्षम्य अपराध माना जाता है और यहां हर कोई खुद को जानकार समझदार साबित करने को सच को झूठ झूठ को सच बताता है। कुछ शेर मेरी ग़ज़लों से इस विषय को लेकर आपकी नज़र करता हूं। 
 

झूठ को सच करे हुए हैं लोग , बेज़ुबां कुछ डरे हुए हैं लोग। 

फिर वही सिलसिला हो गया , झूठ सच से बड़ा हो गया। 

वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिये , झूठ के साथ वो लोग खुद हो लिये। 

सच कोई किसी को बताता नहीं , यह लोगों को वैसे भी भाता नहीं। 

आई हमको न जीने की कोई अदा , हमने पाई है सच बोलने की सज़ा। 

उसको सच बोलने की कोई सज़ा हो तजवीज़ , लोक राजा को वो कहता है निपट नंगा है। 

झूठ यहां अनमोल है सच का न व्यौपार , सोना बन बिकता यहां पीतल बीच बाज़ार।

 
 

अक्टूबर 04, 2021

मर गया , खाते पर लिख दिया { सबक चाचा चाय वाला } डॉ लोक सेतिया

   मर गया , खाते पर लिख दिया  { सबक  चाचा चाय वाला } 

                     डॉ लोक सेतिया 

     मुझे याद रहता है लोग भूल जाते हैं लेन देन हिसाब किताब क़र्ज़ उधार की बातों को। लेकिन जब भी पता चलता है किसी के निधन का तब उस से गिले शिकवे नाराज़गी से लेकर आपसी मतभेद और वादा नहीं निभाना जैसी बातों पर पूर्ण विराम लगा देता हूं।  हम जब दिल्ली में रहते थे क्लिनिक के नज़दीक चाय वाला खोखा लगाता था कोई , जिसको लोग चाचा कहते थे उसकी आदत थी जिनका बकाया वापस नहीं आता अपनी कॉपी पर उसके हिसाब पर लिख देता था मर गया। कई दुकानदार कहते चाचा बताओ क्या बकाया है चुकाना है ज़िंदा रहते मर गया लिखवाना नहीं चाहते हैं। मैंने कोशिश की है जिस किसी से लिया है उधार या क़र्ज़ लौटाना है समय पर और व्यवहार में हुई गलतियां भूल की क्षमा मांगनी है समय रहते ताकि किसी के मन में कोई खराब भावना नहीं बनी रहे। आज इस पर लिखना ज़रूरी लगा जब किसी के निधन की खबर पता चली। जिस घटना ने आपके जीवन को बड़ी क्षति पहुंचाई हो उसको भुलाना आसान नहीं होता है। बात 1983 दिसंबर की है , किसी राजनेता को उसी जगह विधानसभा उपचुनाव लड़ने को दफ्तर बनाना था जहां मैंने अपना कारोबार शुरू किया था कुछ महीने पहले ही। बड़े शरीफ समझे जाते नेता को अनुचित नहीं लगा कोई काम कर रहा जगह किराये पर लेकर कारोबार करता है उसको परेशान कर खुद महीने भर को जगह देने को विवश करने की बात करते। मैंने समझाया ये संभव नहीं धंधा चौपट हो जाएगा लेकिन शासक दल के नेता को मनमर्ज़ी की आदत होती है जो जैसे भी हो साम दाम दंड भेद आज़माते हैं। जब नहीं मानी बात तो तुरप का पत्ता उनके पास था उनका बेटा मेरा सहपाठी और कुछ दिन पहले जिस बैंक में कार्यरत उस से क़र्ज़ लिया था मैंने कारोबार करने को। 

दोस्त बन बन कर मिले मुझको मिटाने वाले। आया मेरे पास दोस्ती की लाज रखने को विनती की आपको जगह खाली नहीं करनी है बस महीने के बचे दिन अपने कारोबार की जगह के अंदर से ख़ास ख़ास लोगों को जाने का रास्ता देना है थोड़ा इंडोर बंद कर। अगर आपका कोई नुकसान होगा तो ज़िम्मेदार होंगे भरोसा रखो। विश्वास कर लिहाज़ किया और दो दिन बाद किसी गुंडे अपराधी की तरह साज़िश कर उसके कज़न भाई ने मेरी अनुपस्थिति में मेरा सब फिटिंग फ़र्नीचर ढांचा तोड़ फोड़ डाला। मुझे घर से मेरा कर्मचारी बुलाने गया मगर मेरे पहुंचने तक जिसको क़त्ल करना था कर के चंपत हो चुका था। शाम को मैं बदहाल बेबस घायल और इस अपने शहर में असहाय अकेला अपने सहपाठी से मिला और कहा आपने वादा किया था देख लो कितना बर्बाद कर दिया है। उसने कहा ये जिसने किया है मेरा भाई है पिता का चुनावी कार्य कर रहा है बेहद अनुचित है मगर आप अभी इस विषय पर कोई कठोर कदम मत उठाना अन्यथा पिता को चुनावी नुकसान होगा , जो हुआ ठीक नहीं किया जा सकता , लेकिन आपकी भरपाई और भविष्य की सुरक्षा मेरा कर्तव्य है। लेकिन अपनी कही बात कभी निभाई नहीं उस ने। उसको शायद एहसास नहीं रहा जीवन भर अपनी बात और वादा नहीं निभाने एवं मेरी ज़िंदगी की तबाही पर क्षमा मांगना भी ज़रूरी नहीं समझा। उनके पिता चुनाव जीत गए मगर उन्हें अपने अनुचित आचरण पर कोई शर्मिंदगी नहीं हुई दिखाई दी। बदले की भावना आदत नहीं अन्याय सह कर भी खामोश रहता रहा। कभी मैंने अपने साथ अन्याय करने वालों से कभी अनुचित व्यवहार नहीं किया बल्कि जतलाया तक नहीं कि आपने मुझे अच्छाई के बदले क्या दिया है। ऐसे लोग पाप अन्याय ज़ुल्म करने पर खेद नहीं जताते हैं धार्मिकता का चोला पहन समाज सेवा का आडंबर अपनी दौलत से जो अनुचित ढंग से अर्जित की होती है करते रहते हैं। बड़े दानवीर समाजसेवक होने का दिखावा करने वाले झूठे और अत्याचारी होते हैं। शायद ऊपरवाला सब हिसाब रखता है वहां कोई चालाकी काम नहीं आती होगी सब उस पर छोड़ना उचित है।

पिछले जन्म अगले जन्म की बात नहीं जानता मैं मगर तीन लोगों ने जो किया उसको पाप अपराध से बढ़कर अमानवीय कृत्य समझता हूं। उनके दुनिया से जाने के बाद अपने मन याददास्त से उस गुनाह को मिटाना पड़ता है। ये वास्तविक घटना है सच्ची कहानी या हादिसा हुआ मेरे साथ उसको लेकर इक नज़्म लिखी थी डायरी पर 1983 के हादिसे के नाम उसको दोहराता हूं। ये उस घटना का असर है जो मुझे किसी राजनेता पर भरोसा करना कभी ठीक नहीं लगता है। राजनेता बेरहम और मतलबी ही नहीं अहंकारी और अत्याचारी भी होते हैं। अंत में वही नज़्म। 

बड़े लोग ( नज़्म ) डॉ  लोक सेतिया

बड़े लोग बड़े छोटे होते हैं
कहते हैं कुछ
समझ आता है और

आ मत जाना
इनकी बातों में
मतलब इनके बड़े खोटे होते हैं।

इन्हें पहचान लो
ठीक से आज
कल तुम्हें ये
नहीं पहचानेंगे

किधर जाएं ये
खबर क्या है
बिन पैंदे के ये लोटे होते हैं।

दुश्मनी से
बुरी दोस्ती इनकी
आ गए हैं
तो खुदा खैर करे

ये वो हैं जो
क़त्ल करने के बाद
कब्र पे आ के रोते होते हैं। 


 

अक्टूबर 01, 2021

ग़रीब भगवान भरोसे , रईस सरकार भरोसे ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

ग़रीब भगवान भरोसे , रईस सरकार भरोसे ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

ये राजनीति का मंच है दर्शक अंधेरे में रहते हैं सच कभी नहीं दिखाई देता झूठ का खूबसूरत दिलफ़रेब नज़ारा सामने रहता है। नाटक एक साथ कितनी जगह खेला जाता है दिल्ली से पंजाब उत्तर प्रदेश ही नहीं जाने कहां कहां पटकथा लिखी जाती है। राजनैतिक दलों में हंसी ठिठोली होती रहती है बंदरबांट का झगड़ा बढ़ते बढ़ते पता ही नहीं चलता कब घर की दीवारों में दरार से बाहरी लोग तांक झांक कर चटखारे लेने लगते हैं। जो खुद अपने दल में सामान्य कहलाता है विरोधी दल में उसी बात को अफ़सोसनाक और देश राज्य समाज के हित को ठेस पहुंचाने वाली गंभीर बात कहा जाता है। इस सिरे से उस दूसरे छोर तक सभी राजनीतिक दल और नेता इक थाली के चट्टे बट्टे हैं। सरकार किसी भी दल की हो जानती मानती और आचरण करती है कि गरीब के लिए भगवान है तकदीर संवारने को सरकार को अपनी गरीबी और रईसों की भूख मिटानी होती है। शासक वर्ग नेता अधिकारी कर्मचारी सभी अपने लिए सब पाने क्या छीन लेने की सोच रखते हैं देने को उनके पास कुछ नहीं होता है। झूठे वादे छल फरेब खुदगर्ज़ी इनके झोले में यही सब रहता है जनता समाज देश को देने को। उनकी कही हर बात जो खबर समझी जाती है खुद इनके मन में उन बातों का कोई महत्व नहीं होता है। आपने अक्सर सुना होगा राजनीति में कोई हमेशा का दोस्त होता है न कोई दुश्मन वास्तव में राजनीति और सरकार में दोस्ती दुश्मनी साथ साथ चलती रहती हैं वास्तव में कोई किसी का नहीं सभी सत्ता धन दौलत ऐशो-आराम की खातिर कुछ भी करते रहते हैं। 
 
चलो आधुनिक युग की इक कथा लिखते हैं , अपने क़ातिल को खुदा समझते हैं। दर्द और ज़ख़्म मिला जिनसे उन्हीं से मरहम और दवा मांगते हैं। नासमझ लोग किस से क्या मांगते हैं मौत के सौदागर से ज़िंदगी का फ़लसफ़ा मांगते हैं। सच्ची घटना है बेगुनाह को बेरहम पुलिस ने खुले आम क़त्ल किया , मरने वाले के करीबी को शिकायत दर्ज नहीं करवाने का मशवरा दिया पहले समझाया अदालत में इंसाफ मिलता नहीं तारीख़ मिलती है। यकीन करना गरीब लोग समझाने से समझ जाते हैं कारोबारी अपना गणित लगाते हैं। सरकार की चौखट पे सर झुकाते हैं जांच का भरोसा और मनचाही मुराद पाते हैं। शोकसभा में सभी खेदजनक घटना क़त्ल होने को बतलाते हैं अफ़सोस सच्ची बात भूल जाते हैं अपने परिजन की मौत के बदले जो पाकर संतुष्ट होते हैं उसकी आत्मा को कितना तड़पाते हैं। जाने इंसाफ किसको कहते हैं समझौता सौदेबाज़ी और ज़िंदगी की कीमत हर किसी के पास तराज़ू है न्याय की बात कौन करते हैं। सरकार जांच करवाएगी बात आपको समझ नहीं आएगी पुलिस खुद दिमाग़ लड़ाएगी भविष्य में क़त्ल कैसे करना है जुर्म किस किस पर धरना है ख़ुदकुशी साबित करना है या हादिसा बताना है सवालों के हल खोज लाएगी। क़त्ल की खबर चार दिन बाद वारदात टीवी सीरियल में मनोरंजन करवाएगी। सरकार दाग़ी पुलिस वालों की सूचि बनाएगी ज़रूरत पड़ने पर उन्हीं से अपराध करवाएगी। 
 
पुलिस न्यायपालिका सरकारी अधिकारी सबका इस्तेमाल सत्ताधारी करते हैं जो आदेश जनाब शासक से नौकरशाह कहते हैं। राजनेता निष्पक्ष जांच सरकारी विभाग को ईमानदारी से फ़र्ज़ निभाने नागरिक को निडर होकर आज़ादी से जीने जैसी बुनियादी बातों को कहां मानते हैं। अपने शासक होने के अहंकार में करते जाते हैं जो भी ठानते हैं। शपथ संविधान की उठाई थी नहीं इक पल भी निभाई थी अपराधियों से नज़दीकी बढ़ाई थी उलझन खुद और उलझाई थी। राजनीति में रहा बाक़ी ईमान नहीं है सरकार सब कुछ है भगवान नहीं है। सोचते हैं गरीब बेबस लोग उनका भी किया जाए क़त्ल परिवार को मिले पैसा रोज़गार मरना काम आएगा आजकल जीना है बेकार। कितना अच्छा होता है पुलिस अदालत सरकार का बढ़ता अत्याचार मौत का व्यौपार बन गया कारोबार विपक्ष को चाहिए सिर्फ इक हथियार वर्ना उनका कोई नहीं यार बस वोटों से है प्यार। आत्मा नहीं पूछती कभी सवाल क्या ज़िंदगी छीनने वाले को पकड़ेगा कोई कानून का जाल। आदमी को सामान बना दिया है जिनको उस से नहीं मिलेगा क़त्ल होने से जो मिलता रहता जीते हुए उनको मुआवज़ा दिया है जो मर गया उसने जीकर हंसना मुस्कुराना था उसकी आत्मा को भटकना है देखना सबको क्या मिला किसको गिला है। बड़ा अजीब दोस्तो ये सिलसिला है बाहर से सख़्त अंदर से पिलपिला है। 
 
इक खबर खिलाड़ी की खेल की है खुद हिटविकेट होने का तमाशा है राजनीति मंदिर का बताशा है। लंगड़ी लगाई सीढ़ी हटाई लिफ्ट लगाई बाप को बात समझ नहीं आई भाई को मिली जब सत्ता की लुगाई भाई ने ठोकर लगाई ठिकाने अक़्ल आई। कुनबा सारा बंटने लगा है ऊंठ पहाड़ से डरने लगा है हर कोई बना तमाशबीन है संपेरा बजा रहा बीन है। इंट से इंट बजानी है विकेट खोकर अभी सेंचुरी लगानी है कॉमेडी वाला दरवाज़ा भी खटखटाया है शायरी से चाटुकारिता कर सकते हैं हर हसीना पर मर सकते हैं। किया था क़त्ल तीस साल पहले किसको इंसाफ मिला नहले पर पड़े दहले। बात कातिल सच इंसाफ की करता है लगता है जुर्म अपने पर हंसता है। ढोकने की बात दोनों करते हैं राम से कौन डरे वाहेगुरु से कौन डरते हैं। अब यहां शरीक ए जुर्म सभी हैं टीवी अखबार सोशल मीडिया वाले असलियत नहीं दिखाते हैं जो भी सरकार सत्ता में होती है उसकी डफली बजाते हैं करोड़ों का विज्ञापन कारोबार पाते हैं। सच के झंडाबरदार बने फिरते हैं अर्थी सच की खुद उठाते हैं। ये सभी मिट्टी के खिलौने हैं भगवान हैं जतलाते हैं। देश की बदहाली के गुनहगार ये भी हैं विशेषाधिकार पाकर इठलाते हैं पुलिस अधिकारी नेता सभी से दोस्ती रखते हैं खूब मलाई खाते हैं। कहने को बाकी बहुत फ़साने हैं पर विराम अभी लगाते हैं।