जून 30, 2018

POST : 820 आज भी खुला हुआ है झूठ के देवता का घर ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

    आज भी खुला हुआ है झूठ के देवता का घर ( व्यंग्य )

                                डॉ लोक सेतिया 

मुझे पता तक नहीं चला जाने कब किधर से दबे पांव मेरे कमरे में आ गया और सामने बैठ गया वो। राम राम कलमकार जी , चौंक गया आवाज़ सुनकर। नज़र उठाकर देखा , क्या शानदार पहनावा , सज धज और इतर की खुशबू जो मुझे भाती नहीं है। किसी को भी प्रभावित-आकर्षित कर सकता है व्यक्तित्व उसका। मैंने कहा अपना परिचय बताएं , माफ़ करें पहचानता नहीं मैं आप कौन हैं। ऐसे कैसे आ गये यहां समझ नहीं पा रहा। कहने लगे मुझे पहचान लो , मैं आजकल सबसे अधिक लोकप्रिय हूं। नाम है मेरा झूठ। आप सच लिखते रहो , बोलते रहो , मुझे कोई परेशानी नहीं है। फिर भी मुझसे दोस्ती दोस्ती नहीं करना चाहते तो जान पहचान ही सही। मुझे तो आपकी दुश्मनी भी स्वीकार है , बस मेरी इक काम में सहायता करो , यही विनती लेकर आया हूं। सच कहूं , उसकी बातें सुनकर मेरा तो सर चकराने लगा। मैंने कहा लगता है आप गलत जगह चले आये हैं , मैं आपके काम का आदमी नहीं हूं। नहीं जनाब , मैं सोच समझ कर आया हूं सही जगह पर और मेरी सहायता केवल आप ही कर सकते हैं। बस आप एक बार मेरी बात ध्यानपूर्वक सुन तो लीजिए।

          सब से पहले आप इस बात को मान लो कि अब हर जगह मेरा ही शासन है। मेरा ही बोलबाला है , मेरे बगैर एक पल भी लोग रह नहीं सकते हैं। राजनेताओं की बात छोड़ दो , उनकी बात पर कभी लोगों ने विश्वास किया ही नहीं। धर्म वालों की हालत और भी खराब हो गई है। खुद सब करते हैं , लोभ मोह काम क्रोध अहंकार भरा हुआ है और उपदेश देते हैं अनुयाईयों को ये सब छोड़ने के। आपको सब लोग सोशल मीडिया व्हाट्सएप्प आदि पर कितने सुंदर संदेश , आदर्शवादी बातों वाले भेजते हैं और शुभकामनाएं देते हैं सुबह शाम। कितनी वास्तविक हैं ये आप को भी पता है वो भी जानते हैं। कहते हैं झूठ बोलने से कोई खुश होता है तो झूठ बोलना अच्छा है।

                        चार साल पहले जब देश में सरकार बदली थी , आपने दो आशिकों की कहानी लिखी थी। आपको नहीं पता आजकल उनका क्या हाल है। आपसे मिले नहीं आमने सामने , केवल फोन पर बताई थी आधी अधूरी अपनी दास्तां। थोड़ा सच ज़्यादा झूठ था और आप भावुक लेखक समझे ही नहीं नाम तक बदले हुए थे। कुछ दिन जिस फोन नंबर से बात की थी मतलब को वो मतलब नहीं पूरा हुआ तो नंबर बदल लिया था। जैसे देश की सरकार के हालात हैं उनका हाल भी आपको अब पता चला है , घर से प्रेमी के साथ भागने वाली लड़की दो साल से अधिक समय तक लिविंग रिलेशनशिप के नाम पर पति पत्नी बनकर रही और आखिर घर वापस लौट आई है। महीना भर हुआ उसने शादी कर ली है किसी और के साथ , फोटो देखना चाहोगे। ये देखो उसकी वास्तविक नाम की फेसबुक से डाउनलोड की है , लंगूर के हाथ अंगूर मत कहना , ये अंगूर खट्टे हैं न मीठे हैं नकली हैं प्लास्टिक से बने हुए। जिस तस्वीर को आप सच समझते रहे वो कौन जाने किस खूबसूरत लड़की की थी। आपका बचपन का दोस्त कितना भोला है , इतनी सी बात पर हैरान हो गया था कि जिस दोस्त महिला की फोटो महिला दोस्त ने लाइक की तीसरी महिला दोस्त को कह रही थी कितनी बकवास फोटो लगाई है।

            जो आज तक आपके लिखने का मकमसद नहीं समझ पाया , आपको लेकर राय देता है कि आपको मंज़िल नहीं मिली। खुद अपने को समझते नहीं औरों को बताते वो कौन हैं। आप भगवान की बात लिखते घबराते नहीं हैं सवालात करते हैं मगर जो नास्तिक होने का दम भरते हैं धर्म की बातों को रटते रहते हैं बिना समझे ही। सच बोलने का साहस नहीं और निडर होकर लिख सकते नहीं उनको कैसे समझाओगे समाज को सच का आईना दिखलाना ही लिखने का मकसद है आपका। मैंने कहा समझ गया और आपको पहचान भी लिया। अब साफ साफ शब्दों में संक्षेप से बताओ मुझसे क्या चाहते हो। बताता हूं , झूठ महोदय कहने लगे , इस समय सभी नहीं तो अधिकांश लोग मेरी जयजयकार करते हैं। मेरी ही पूजा करते हैं मेरे ही भक्त हैं , फिर भी मेरा अर्थात झूठ के देवता का कहीं कोई भी मंदिर नहीं है। अगर अभी नहीं बना तो फिर कब बनेगा मेरा कोई घर या मंदिर मेरी महिमा के गुणगान को। आप ये काम करने में मेरी सहायता कर सकते हैं। मुझे आप पर पूरा भरोसा है। मैंने हंसकर कहा जनाबेआली मेरे पास दौलत नहीं ज़मीन नहीं , किसी से दान मांगना भीख मांगना आता नहीं मुझे। मंदिर बनाते ही दान जमा कर ही हैं। उसने कहा आपको मांगना नहीं आता मांगोगे भी नहीं जनता हूं , आपको केवल इस बात की घोषणा करनी है कि झूठ के देवता का घर बनाना है। मेरे भक्त खुद आकर आपको धन ज़मीन सोना चांदी दे जाएंगे। मैंने कहा शायद आपको भी मालूम है कि आपके चाहने वाले भक्त अनुयाई जो भी हों , दान आदि तभी देते हैं जब उनका नाम लिखवाया जाये दानी लोगों की सूचि में। आपको लगता है कोई अपना नाम झूठ के देवता का पुजारी होने की बात लिखवा शोहरत पाना चाहेगा। झूठ खिलखिला कर हंस दिया , कहने लगा कोई भी अपना नाम लिखने को नहीं कहेगा मगर चुपके से दानपेटी में खूब पैसा डाल जाएंगे सभी भक्त।

                  मैंने कहा मुझसे कोई बैर निकालना है दुश्मनी करने का इरादा है जो मुझे अपने जाल में फंसा रहे हो। मैं कैसे दिखाऊंगा कहां से आया धन झूठ के देवता का मंदिर बनवाने को। फिर ठहाका लगाया झूठ महोदय ने , मुझे हैरान देख कर कहने लगा अभी भी नहीं समझे आप। मेरा सब से बड़ा भक्त वही तो है जिस के हाथ शासन की बागडोर है। झूठ बोलने का इतिहास रचा है उसी ने और अभी कितने ऊंचे शिखर पर ले जाएगा मुझे ये मैं भी नहीं जनता। यूं भी देवी देवताओं का हिसाब कोई नहीं पूछता यहां और ये नेता जो कितने ही मंदिरों में कितना धन कहां से दे आये खुद नहीं जानते काला सफेद की बात केवल वोटों के समय करते हैं। कल ही साक्षात्कार में सत्ताधारी नेता ने कहा है स्विस बैंकों में पिछले साल डेढ़ गुना अधिक पैसा जमा होने पर कि वो सारा काला धन नहीं है। इससे बढ़कर इशारा क्या होगा। एक नंबर का आयकर चुकाया पैसा कौन देता है मंदिर को दान के लिए या धार्मिक आयोजन में खर्च करता है कोई। बहुत बार तो आयकर बचाने को ऐसा किया जाता है। भगवान देवी देवता काला सफेद धन नहीं देखते हैं और न कोई मंदिर या किसी धर्म का स्थल पैसों से ज़मीन खरीद कर बनाया जाता है। आप जहां खाली  जगह कीमती ज़मीन सरकार की पड़ी दिखाई दे मेरे नाम का बोर्ड लगवा दो और शुरू करो सब लोग खुद -ब -खुद आएंगे सहयोग देने। कोई भी सरकार कोई भी दल कोई उद्योगपति कोई धनवान कोई मीडिया वाला कोई शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का कारोबारी झूठ का विरोध करने का साहस नहीं कर सकता है। उनका धंधा बिना मेरे सहारे चलता ही नहीं है। उन सभी की भलाई है मेरा मंदिर बनने में ताकि मेरे द्वार आकर मनचाही मुराद मांग सकें। सभी मन से आत्मा से मुझी को मानते हैं मेरी पूजा करते हैं। मेरा विरोध करने वालों के लिए आजकल कोई जगह नहीं बची है। 

    अब 2020 है दो साल पहले जाने क्या विचार कर झूठ के देवता का घर आप मंदिर ही समझ सकते हैं बन गया था। इतना ही नहीं 2019 में जितने भी नेता चुनाव लड़ने से पहले इस के दर्शन करने आये थे सभी विजयी होकर वापस लौट कर सर झुकाने चढ़ावा चढ़ाने आये थे। अब जब बड़े बड़े ऊंचे भवनों में बैठे देवी देवताओं ने मस्जिद गुरूद्वारे गिरजाघर ने किवाड़ बंद कर लिए हैं तब भी झूठ का देवता का दरवाज़ा रात दिन खुला रहता है। विश्व में ऐसा पहला मंदिर है जो हरियाणा के फतेहाबाद में बना हुआ है। आपको मनवांछित फल देने को इस से उपयुक्त कोई और नहीं हो सकता है। हालात को देखते हुए जो चाहकर भी दर्शन को नहीं आ सकते हैं ऑनलाइन दर्शन की व्यवस्था का उपाय किया जा रहा है। 
 

 

जून 29, 2018

POST : 819 जीवन के दोराहे पे खड़े सोचते हैं हम ( टीवी शो की बात ) भाग - 3 डॉ लोक सेतिया

जीवन के दोराहे पे खड़े सोचते हैं हम ( टीवी शो की बात ) भाग 3    

                                     डॉ लोक सेतिया 

   आज की कहानी जितनी आसान टीवी दर्शकों को लगी उतनी आसान नहीं है। इक डरावना सच है हमारे देश समाज और हम सभी की सोच को लेकर। पहले कहानी पूरी समझ कर फिर सवालों से जूझते हैं। इक महानगरीय सोसाइटी जिस में अच्छे खासे सुविधा संपन्न लोग रहते हैं उसका चौकीदार जो बहुत थोड़ा वेतन पाता है शायद सात हज़ार। ईमानदार है अपने काम में। मगर जब बिमार पड़ता है तो जो दो लड़के उसे लेकर अस्पताल जाते हैं और जब डॉक्टर बताता है कि अंतड़ियों में रुकावट है और ऑप्रेशन करने को दो लाख चाहिएं तब वो लड़के लाते हैं पैसे जमा करवा उसकी जान बचाने को। मगर कुछ दिन बाद वही ईमानदार चौकीदार उन दो लड़कों को नकाब उतारते और चोरी के पैसे लाते देखता है। टीवी पर खबर सुनता है एटीएम की चोरी के सीसी टीवी फुटेज देख समझ जाता है ये उनकी ही बात है। ऐसे में वो पुलिस को सूचना देकर उन्हें पकड़वा देता है। लेकिन जब पुलिस की हवालात में उनसे जाकर मिलता है तो वही लड़के उसे बताते हैं कि हम चोरी उन में से एक की मां के इलाज की खातिर कर रहे थे। और अपनी जान बचाने के उपकार का बदला चुकाने का रास्ता बताते हैं कि हमने वो सारा चुराया हुआ पैसा एक बंद फ्लैट की बॉलकनी में डाला हुआ है तुम वो पैसा उठाकर अस्पताल में देकर उस की मां का इलाज करवा बचाओ। और वो यही करता है। मगर जो ईमानदारी से दो लड़कों को चोरी करने पर पकड़वाता है खुद जब उस फ्लैट की चोरी की पूछताछ करने पुलिस आती है तो अपनी चोरी कबूल नहीं करता है। यहां कहानी खत्म नहीं  होती है।   सवाल खत्म नहीं होते हैं। 

                                 मानवता का सवाल

    क्या ये उचित है कि जब भी किसी को कोई रोग हो तो उसका उपचार बिना लाखों रूपये नहीं हो सकता है। इस का मतलब न केवल हमारे देश की सरकारें निर्दयी हैं जो गरीबों को स्वास्थ्य सेवा भी उपलब्ध नहीं करवाती हैं बल्कि उनके साथ अस्पताल और डॉक्टर भी कोई इंसानियत का फ़र्ज़ नहीं निभाते और किसी गरीब का इलाज लाखों रूपये लिए बिना नहीं करते भले वो चोरी करे डाका डाले , और हम सभी बड़ी बड़ी समाजसेवा की बातें करने वाले धर्म की बातें करने वाले कोई सहायता नहीं करते। ये कैसा संदेश देती है कहानी , दो लड़कों ने जो किया चोरी के पैसों से चौकीदार की सहायता की उसका बदला उसने भी चोर बनकर ही चुकाया। जब वो लड़के हवालात में हैं दोषी हैं तो ईमानदार कहलाने वाला खुद बाहर है और कोई दोष उसके सर नहीं है। मेरी नज़र में उसका गुनाह अधिक बड़ा है। और की चोरी चोरी और आपकी की चोरी मज़बूरी , ये समझने लगे तो हर कोई अपराधी होने का अधिकारी बन सकता है। ईमान जान से बढ़कर होता है। ऐसी जान जीना तो मौत से बदतर है। ज़मीर ज़िंदा रहना ज़रूरी है।

                          पश्चाताप और प्रायश्चित 

 आगे दिखाया गया कि आत्मग्लानि के कारण चौकीदार अपनी नौकरी छोड़ जाता और मज़दूरी करने लगता है। वास्तव में कहानीकार अपने नायक को खलनायक नहीं बताना चाहता। अगर कोई वास्तव में ऐसा करेगा तो यही समझा जाएगा कि कहीं उसका फ्लैट से चोरी के पैसे चुराना सब को पता नहीं चल जाये इस डर में जीने से घबरा कर भाग गया। इधर लोग बैंक के पैसे को लूटने को जैसे बड़ा अपराध ही नहीं मानते। ये कहीं लेखक कोई और बात तो नहीं कहना चाहता इशारे  इशारे में। चौकीदार भी है जो पकड़ा नहीं गया है और बैंक को लूटने वाले भी लूट कर कहीं छुपे हुए हैं। आप उनकी मज़बूरी दिखला सकते हो कि क़र्ज़ चुकाने को पैसे नहीं थे बेचारे भाग गए तो क्या गुनाह किया। आपका मेरा पैसा तो नहीं था और बैंकों को भरपाई करने को सरकार और हमारा चौकीदार है ही। चौकीदार माल उड़ा रहे हैं वास्तव में मगर किसी मज़बूरी में नहीं। रोज़ पता चलता है चैन स्नैचिंग और कार छीन कर भागने वाले अपनी नशे की आदत और आपराधिक कार्यों की खातिर करते हैं ऐसा रोज़। ये कैसा ईमान कैसी ईमानदारी है , राजा हरीशचंद्र को भूल गये हो या उसे गलत साबित कर रहे हो। झूठ की महिमा का कैसा बखान है। बाहर सच लिखा है भीतर सब झूठ ही झूठ बंद कर बिकता है। 
 

 
   

POST : 818 हर बात कहना नहीं आसां ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

     हर बात कहना नहीं आसां ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया                      

हर बात कहना नहीं आसां ,
पर चुप भी रहना नहीं आसां । 

गर हाथ तुमने नहीं पकड़ा  ,
विपरीत बहना नहीं आसां । 

करनी पड़ेगी बगावत अब  ,
जब ज़ुल्म सहना नहीं आसां । 

जो नफरतों ने खड़ी कर दी ,
दीवार ढहना नहीं आसां । 
 
मेहनत कड़ी रात दिन करते 
पर क़र्ज़ लहना नहीं आसां । 
 
तन ढक लिया बस यही काफी 
क्यों कर है  पहना , नहीं आसां । 
 
' तनहा' शराफ़त जिसे कहते 
 मुफ़लिस का गहना नहीं आसां ।  

शब्द के अर्थ :
 
लहना = काम के बदले मिला धन , उधर दिया धन । 

शहना = खेती की चौकसी करने वाला   , खेतिहारों से  राजकर उगाहनेवाला अधिकारी ।







जून 28, 2018

POST : 817 ताकि ज़माना याद रखे ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

       ताकि ज़माना याद रखे ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

किसी शायर की ग़ज़ल के शेर है :- बाद ए फनाह फज़ूल है नामो निशां की फ़िक्र , जब हमीं न रहे तो रहेगा मज़ार क्या। मगर सत्ता वालों को यही फ़िक्र सबसे अधिक होती है। साहिर लुधियानवी की नज़्म है :- इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर , हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक। मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझको। जब ताजमहल फिल्म बन रही थी तो साहिर को उस फिल्म के गीत लिखने को कहा गया लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया अपनी कही नज़्म की बात को बदल नहीं सकते थे। आजकल के कवि शायर से जो चाहो करवा लो , यू ट्यूब पर कविता के नाम पर चुटकुले सुनकर हंसाते कवि कविता का कत्ल करते हैं या चीरहरण। पत्थर के सनम पत्थर के खुदा पत्थर के ही इंसां पाये हैं , तुम शहर ए मुहब्बत कहते हो हम जान बचा कर आये हैं। ग़ज़ल लिखने वाले ने जो कहा वही आज सामने है। वक़्त बदला तो पत्थर की जगह फौलाद के बुत बना रहे हैं ताकि याद रहे , दस्तावेज़ में आखिर में लिखने वाला अपना नाम दर्ज किया करता था या है और लिखता पढ़कर सुनाई है , ये वसीयत लिख दी है ताकि सनद रहे। अच्छे लोगों को लोग कभी भूलते नहीं हैं , बुरे लोगों को भुलाना आसान नहीं होता है। जो किसी ओर के नहीं होते उनकी याद में मंदिर और श्मशानघाट में पत्थर पर नाम लिखवाते हैं। 
 
               इधर इमरजेंसी की याद आई उनको जो आपत्काल में डरे छिपे रहे। मेरी क्लिनिक के पड़ोस में इक मास्टरजी रहते थे जो सरकारी नौकरी में थे। शाम को अख़बार पढ़ने आया करते थे मेरे पास और चर्चा हो जाया करती थी। आपत्काल का दौर था और मास्टरजी भले आदमी थे और आर एस एस से जुड़े हुए भी थे। मैं तब भी निडरता से अपनी बात कहता था और वो तथा मेरे बहुत और साथी मुझे समझाते थे चुप रहने को। शायद भगवान साथ था जो कभी तब मेरे साथ कोई गलत व्योवहार हुआ नहीं , लेकिन अब बिना आपत्काल घोषित होता है। वो काली अंधियारी रात थी ये घना अंधकार छाया हुआ है। विश्व में भूखों में भारत की हालत बदतर है। महिलाओं के लिए मेनका गांधी भी कहती हैं देश डरावना है। सरकार ने चार साल नाम बदलने के इलावा कुछ भी नहीं किया है। अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले लोग बड़े बड़े पदों पर बैठे हैं , विज्ञान की बात अंधविश्वास की बात साथ साथ नहीं हो सकती। 
 
                 कभी सभी मानते थे कि झूठ से बड़ा पाप कोई नहीं है। आज झूठ सामने आने पर कोई लज्जित नहीं होता है। मैंने पहले ही लिखा था कि आज अगर झूठों की प्रतियोगिता आयोजित हो तो सब से पहला नंबर हमारे देश के नेता का होगा ही होगा। टीवी वाले रोज़ खबर को छोड़ कर वारयल सच की बात करते हैं। सोशल मीडिया पर चल रहे विडिओ को लेकर। ये क्या कर रहे हो। मेरे पास किसी ने एक विडिओ भेजा बिना सिलेंडर के चूल्हा जल रहा है , भाई जिस धर्म की बात करते हो वो तो अंधविश्वास से लड़ते रहे और समझाते रहे अपना दिमाग इस्तेमाल करो। कोई कहानी सुना रहा कि अमुक संत के सतसंग से सालों से सूखा बाग़ हरा भरा हो गया। वास्तव में उन कथाओं का मकसद कुछ और होता था मगर लोग चमत्कार को नमस्कार करते हैं इसलिए बात को बदल दिया गया। आज इक मैसेज मिला जिस में भगवान को एक तारीख के दिन घर आने की शर्त कही गई और वही कहानी में हुआ। अगर इनको आधार बनाओगे तो बहुत पछताओगे। लाओ कोई संत जो सूखे पेड़ों को हरा कर दिखाए , जो बिना सिलेंडर गरीबों के घर का चूल्हा जला दिखाए , जो भगवान सामने आकर खड़ा हो जाये। आपको हैरानी होगी मुंबई में इक संस्था यही बात करती है , हर सप्ताह अख़बार निकलता है भगवान सामने आओ। सोचो जो भी आजकल हो रहा है सच सच लिखा गया किसी इतिहास की किताब में तो पचास साल बाद लोग पढ़कर हंसेंगे मज़ाक उड़ाएंगे कि हम ऐसे मूर्खतापूर्ण कार्य करते थे या करने वालों का समर्थन तालियां बजाकर किया करते थे। मुझे मरने के बाद नाम की बदनामी की चिंता नहीं है , मगर मुझे मूर्खों में शामिल समझा जाये ये कभी मंज़ूर नहीं है। समझदार नहीं हूं जनता हूं , ज्ञानी भी नहीं हूं मानता हूं ये भी मगर लोग मुझे मूर्ख समझते हों ये नहीं स्वीकार कर सकता कभी। नासमझ लोग कभी जिस डाल पर बैठे हों उसे नहीं काटते है ये मूर्ख लोग हैं जो उसी शाख को काट रहे जिस पर बैठे हैं। संविधान और संवैधानिक संस्थाओं को बचाना ज़रूरी है नेता आते जाते रहते हैं। 
 

 

जून 27, 2018

POST : 816 हम-तुम बंधे इक बंधन में ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     हम-तुम बंधे इक बंधन में ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

     कहते तो इसे विवाह ही हैं मगर यही सब से बड़ी जंग भी है। दो देशों में आपसी कारोबार शुद्ध अपने फायदे की सोच से किया जाता है। पहले पहले सब ठीक लगता है फिर बाद में घाटा नफा समझ आने पर शिकायत होती है जो बताया था क्वालिटी वो नहीं है। शादी में दुल्हन यही सोचकर ससुराल जाती है कि उसको जाकर सास ससुर ननद के चंगुल से अपने गुलाम को छुड़वाना है तभी अपनी जीत के बाद खुद अपना राज कायम करना है। कभी आंसू को हथियार समझती थी महिलाएं आजकल आंसू गैस साथ रखती है किसी को रुलाने को। अभी तक दुनिया को एक राज़ का पता नहीं चल पाया है कि औरत की ताकत क्या है कमज़ोरी क्या है और उसके कितनी तरह के हथियार हो सकते हैं।  बेलन तो अकारण ही बदनाम है , अभी तक एक टीवी सीरियल को छोड़कर बेलन से कोई मारा नहीं गया है। मगर दुनिया का बड़ा से बड़ा वीर भी पत्नी के साथ जंग में जीत नहीं पाया है आजतक। शासक कोई भी हो पर्दे के पीछे से राज किसी महिला के हाथ होता ही है। महिला का नाज़ुक कोमल दिखाई देना भगवान की इक चालाकी या चाल है पुरुष को जाल में फंसाने को। अपनी दुनिया को बनाये रखने को ही ऊपर वाले ने विवाह रुपी चक्रव्यू की रचना की थी और अभिमन्यू की तरह बाहर निकलने की राह किसी को नहीं समझ आई कभी।

                मेरे पिता जी बहुत परेशान थे। मैं उनके जेब में एक रूपये का वो सिक्का था जिसको खुद वो ही समझते थे ये खोटा है कभी नहीं चल सकता। फैंकना भी मुश्किल होता है , ज़रा ईमानदार भी थे तो नहीं चाहते थे किसी को देकर ठगी की जाये। इक मुलतानी कविता भी आपको सुना देता हूं समझने को। हिंदी में अनुवाद इस तरह है। इक सूखी नदी से तीन नहरें निकली दो सूखी और एक बहती ही नहीं। जो बहती ही नहीं उस में नहाने तीन पंडित आये , दो अंधे और एक को दिखाई ही नहीं देता। जिसको दिखाई ही नहीं देता उसे नहर में मिली तीन गाय , दो फंडड़ ( जो गर्भधारण नहीं कर सकती ) और एक जो कभी ग़र्भधारण करती ही नहीं। जो सूए ही नहीं उस गाय ने दिए तीन बछड़े , दो लंगड़े और एक उठता ही नहीं। जो उठता नहीं उसकी कीमत तीन रूपये दो खोटे और एक चलता ही नहीं। जो चलता नहीं उसे देखने आये तीन सुनार। ये कविता राजनीति पर है कि चुनाव में क्या हासिल होता है। वापस अपनी बात पर , पिता जी के इक दोस्त ने अपनी बेटी की बात चलाई दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलना चाहते थे। पिता जी ने उनसे कहा मुझे कोई इनकार नहीं है मगर मेरा रुपया मुझे खोटा लगता है किसी को देते हुए डर लगता है कोई धोखा नहीं हो जाये। उस दोस्त के पास भी इक खोटी अठन्नी थी जिस के साथ वो चाहते थे रिश्ता करवाना। मेरे पिता जी को कहा आप चिंता मत करो मुझे खोटा रुपया का आपका सिक्का पसंद है मैंने तो तिजोरी में रखना है।  किसी दिन यही कीमती हो जायेगा , कुछ लोग चलन से बाहर हुए सिक्कों को जमा किया करते हैं। पिता जी ने मुझे बताया तो मैंने मना कर दिया कारण थोड़ा अलग था आपको भी मेरे पिता जी की तरह समझ आएगा नहीं। मैंने कहा अपने पहले मन की बात बताई नहीं ( ये 1974 -1975 की बात है तब मोदी जी की मन की बात कोई नहीं करता था ) मैं तो उनकी बेटी को मिलता रहा बहन समझ कर मेरा ज़मीर नहीं मानता उसी से विवाह करूं। पिता जी को इसी बात का डर था ज़मीर पास हो तो बाज़ार में बिकते नहीं लोग। खैर उनके दोस्त बच गये क्योंकि खोटे रूपये की कदर आज तक किसी ने नहीं की और मैं अपनी पत्नी के पर्स का वही सिक्का हूं जिसे पाकर उनको लगता है धोखा हुआ है। डॉक्टर से शादी की और लेखक पल्ले पड़ गया।

        मगर असली काम शोध करना है , दस का दम टीवी शो की तरह सवाल का जवाब जानना है कि कितने प्रतिशत भारतीय शादी को ऐसा लड्डू समझते हैं जिसे खाने वाला पछताता ही है। इस में लव मैरिज भी शामिल है। मुझे मुमताज की रूह ने बताया है कि मुहब्बत बड़ी बेरहम चीज़ होती है जान जाती है तभी मर कर ताजमहल सी कब्रगाह नसीब होती है जीते जी जो मिला मेरे सिवा कोई नहीं जनता है। आधुनिक काल में मुहब्बत भी हिसाब किताब लगाकर करते हैं अपने बराबर की शिक्षा नौकरी जाने क्या क्या। अभी अभी इक पत्नी ने तलाक की अर्ज़ी दी है और पति को लगता है ये तो धोखा है बेवफाई है। चौथी श्रेणी का कर्मचारी है और जब शादी की तो अनपढ़ थी लड़की , उसके पढ़ाया लिखाया और अब वो पति से ऊंचे पद पर है। अब उसे तलाक चाहिए क्योंकि पति उसके काबिल नहीं है , आपकी सहानुभूति से कुछ नहीं होगा बेचारे का घर पत्नी को पढ़ाने में उजड़ता लगता है। आम तौर पर हर लड़का लड़की अपने से बेहतर जीवन साथी चाहते हैं मगर जो मिलता है बाद में सोचते हैं इससे बेहतर होता तो अच्छा था। मगर अधिकतर विवाह बने रहते हैं क्योंकि आज भी हम गुलामी करते शर्मसार नहीं होते हैं और आज भी पिंजरे में तोता पालना सब को पसंद है जो कड़वी मिर्ची खाकर भी जो सिखाते हैं वही दोहराता है। अंत में वॉट्सऐप के दो विडिओ की बात। एक बॉक्स में इक पक्षी बंद है और दूसरा पक्षी उस बॉक्स का कवर हटाता है तो भीतर बंद पक्षी उसी पर झपटता है , भलाई का ज़माना ही नहीं। इक और में बताया गया किसी ने तोता पाला हुआ था जो उसे सुबह उठाया करता था काम पर जाने को। अधिकारी जब लखनऊ में था तो तोता भी लखनवी तहज़ीब से बात करता और अपने आका को जगाता ये बोलकर कि हज़ूर उठिये आपको काम पर जाना है। अधिकारी का तबादला पंजाब में हो गया तो कुछ ही दिन में उसने पंजाबी बोलना सीख लिया वहां के तोतों से या किसी तोती से नज़दीक होकर। आजकल वो अपने मालिक को जगाता है ये कहकर। उठ ओए खोते दे पुत्तर कम ते तेरा पीओ जाऊ। इतनी ही कहानी है सगाई से शादी के थोड़ा बाद की। इस से अधिक लिखना संभव नहीं है माफ़ करें। 
 

 
                                    

जून 26, 2018

POST : 815 शांति का नहीं तो जंग करने का समझौता ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

 शांति का नहीं तो जंग करने का समझौता ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

       आधी दुनिया की सैर के बाद उपाय आखिर मिल ही गया है। किसी एक देश के साथ ही नहीं सभी देशों को लेकर इस से अच्छा सस्ता बढ़िया और आसान की तरह का उपाय आपसी तालमेल बिठाने का कोई और हो ही नहीं सकता है। शांति समझौता नेहरू जी जैसे लोग किया करते थे , अहिंसा की बात करने वाले गांधी जी को हिंसा का शिकार होना ही पड़ा और गोली खाई। हे राम ! नहीं राम भी नहीं ये रामरहीम की शरण जाने वालों का स्वर्णिम युग है जिस में अपनी सुरक्षा को अपनी महिला और नपुंसकों की सेना की ज़रूरत होती है। पड़ोसी देश को भी शांति समझौते की नहीं जंग लड़ने की ज़रूरत है। हज़ार साल तक जंग लड़ने की कसम खाई हुई है अभी पचास साल गुज़रे हैं नौ सौ पचास साल बाकी हैं। नये नये ढंग अपनाना और प्रयोग करना उनको आता है , गुजरात को प्रयोगशाला बनाया गया था। चार साल से प्रयोग जारी हैं , प्रयोग दवा कंपनियों वाले चूहों पर करते हैं या भारत के लोगों को बिना बताये भी उनपर आज़माते हैं इंसानों पर असर देखना हो जब। 
 
             उनके मन की बात सब से अधिक महत्व रखती है। उनको सब से अधिक भरोसा ऐप्स पर है। उन्होंने पड़ोसी देश के शासक को मन की बात चुपके से बताई किसी और को सुनाई नहीं दी। हम दोनों को वोट पाने हैं और सत्ता हासिल करनी है , लोगों की समस्याओं को हल करने से कितनी बार जीत मिलेगी। आखिर जनता को जोश तो नफरत और जंग लड़कर सबक सिखाने के भाषणों से ही आएगा। मगर हम बिल्लियों की लड़ाई में अमेरिका बंदर बनकर हथियार बेच कर सब खुद खाता रहता है। गोली कारतूस और मिज़ाइल से कोई जीत नहीं सकता कोई हारता भी नहीं है। इस से अच्छा है हम तय कर लें कि हम आमने सामने खून खराबा करने वाली लड़ाई नहीं लड़कर अपने सैनिकों को स्मार्ट फोन पर लड़ाई लड़ाई का खेल खेलने का अभियास करवा भविष्य में नया चलन जंग का शुरू करें। सुबह सब से पहले गुड मॉर्निंग का सन्देश भेजना शुरुआत से पहले और शाम को समय होते ही गुड नाईट का आदान प्रदान कर जंग को विराम देकर रिलैक्स करें। सैनिकों को हम होली पर या कॉमेडी शो की तरह की बंदूकें जिनसे रंग बिरंगे फूल या हवा में बुलबुले निकलते हों ही उपलब्ध करवाएं जो लड़ाई को मनोरंजक बना दे। 
 
       वायुसेना को बच्चों की तरह कागज़ से जहाज़ बनाकर उड़ाने का मज़ा लेने फिर से बचपन की याद दिला देगा। जलसेना को जगजीत सिंह जी की गए ग़ज़ल गाकर , वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी गाने को कहा जा सकता है। मुश्किल तो है कि बारिश नहीं होती जब हम चाहते हैं और पानी को हमने बचने कब दिया है मगर उसका भी उपाय कोई ऐप निकाल देगा। 
 
        समझौता मौखिक तौर पर हो चुका है। अड़चन एक ही बाकी है। नकली खिलौने वाली बंदूक एक देश की शर्त है वही बनाकर बेचता है उसी से खरीदनी होगी। हम अपने ख़ास उद्योगपतियों को ये अधिकार देना चाहते हैं जो सबसे अधिक चंदा देते हैं हमें। सवाल वापस वहीं आकर अटक गया है।  जंग इक मुनाफे का करोबार बन चुका है और किस कारोबारी को कितना हिस्सा मिले तय किया जाना है। कोई बाबा जी भी इस दौड़ में शामिल हो गए हैं , उनकी लंगोटी लंगोट बन गई है। 
 

 

POST : 814 मरने से डर रहे हो , रोज़ मर रहे हो - डॉ लोक सेतिया

     मरने से डर रहे हो , रोज़ मर रहे हो - डॉ लोक सेतिया 

  मुझे इक दोस्त ने कहा कि लोग आपकी फेसबुक पोस्ट पर लाइक और कमेंट करने से डरते हैं क्योंकि आप सत्ताधारी दल की आलोचना करते हैं। मुझे नहीं लगता आज़ाद भारत के लोग इतने कायर हो सकते हैं। कोई किसी की पोस्ट लाइक करता है या कमेंट लिखता है तो उसका लिखी बात से कोई नाता नहीं बनता कि लिखने वाले से लोग सहमत हैं अथवा नहीं हैं। हम उन महान शहीदों की संतान हैं जो गुलामी के समय भी विदेशी अत्याचारी शासकों से नहीं डरे। मुझे लोकहितकारी लेखन करते चालीस साल से अधिक समय हो गया है और मैंने सरकारों अधिकारियों अन्य तमाम लोगों यहां तक कि धर्म के कारोबार की आलोचना भी की है। आलोचक आपका दुश्मन नहीं होता है , विरोधी भी नहीं , आप का हितचिंतक बन सकता है। निंदक नियरे राखिये , आंगन कुटी छुवाये , बिन साबुन पानी बिना मैल साफ कर जाये। बिलकुल सच है कि ऐसा मानने वाले लोग कम क्या अब कहीं नहीं मिलते। मुझे बहुत बार गलत कार्य करने वाले लोगों ने बदले की भावना से परेशान करने या डराने धमकाने की कोशिश की है लेकिन उनसे मेरे इरादे कमज़ोर नहीं हुए कभी भी। 
 
    मैं अपने दादा जी से काफी प्रभावित रहा हूं। वो बेहद निडर थे , वो ही नहीं मैंने गांव में अधिकतर लोगों को निडरता पूर्वक अपनी बात कहते देखा है। खामोश रहना शहरी तहज़ीब कहलाती होगी मगर जब बोलना ज़रूरी हो तब चुप रहना अपराध होता है। इक घटना की बात याद आई है। हमारे घर से थोड़ी दूर एक और बड़ा सा घर हमारा हुआ करता था , जिस में गाय भैंस बांधी जाती थी और दो कमरे तूड़ी और जानवरों को छाया को और दो और उनकी देखभाल करने वालों के रहने को बनाये हुए थे। बहुत बड़ा आंगन था जिस में आस पड़ोस वाले भी अपने जानवर बांधते थे अनुमति लेकर। एक बार देखभाल करने वालों ने बताया कि जो नया पड़ोसी आया है वो आकर उसके पिछले तरफ के आंगन को फीता लगाकर पैमाईश कर कह रहा था कि ये मेरा है और वो इस तरफ अपने घर में से रास्ता बनाना चाहता है। मेरे ताया जी ने दादा जी से पूछा क्या हम गांव से कुछ लोगों को बुलाकर उसके बंधे जानवर खोल दें।  दादा जी बोले इस काम के लिए मैं अकेला काफी हूं किसी की भी ज़रूरत नहीं है। दादा जी के हाथ में इक छड़ी हमेशा रहती थी जिसे खूंडी कहते हैं। दादा जी गये उसको उसके घर से बुलाया और पूछा तुमने ऐसा क्यों किया। अभी अपना जानवर खोल कर ले जाओ वरना ठीक नहीं होगा , हम पड़ोसी हैं तुम्हें कोई ज़रूरत हो तो मुझसे मांगकर ले सकते हो मगर छीनकर कभी नहीं। माफ़ी मांगी थी पांव पकड़ कर। निडरता आपकी सच्चाई में निहित है डरते झूठे लोग हैं। 
 
   किसी शायर की ग़ज़ल का एक शेर पेश है :-

                     लोग हर मोड़ पर रुक रुक के संभलते क्यों हैं ,

                     इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं । 



 

POST : 813 हम शाकाहारी तुम मासाहारी - घोटालों की अनंत कथा - डॉ लोक सेतिया

     हम शाकाहारी तुम मासाहारी - घोटालों की अनंत कथा - 

                              डॉ लोक सेतिया 

 इस कथा का कोई  भी अंत नहीं है , आदि भी कहां से शुरू हुए भगवान जनता है। उनके घोटालों की बात और थी इनके घोटालों की अलग है। उस के भी खुद खाने की बात नहीं थी इसके भी खुद खाने का सुबूत नहीं है। सीख लिया शायद स्नानघर में रेनकोट पहन कर नहाना। मगर देखने वालों को राजा नंगा है जैसी बात लगती है लेकिन सच बोलने वाला बच्चा समझदार हो गया है। वो बताता ही नहीं इनके घोटालों की बात। जो खुद खाने को मिलता है उसे पचा लेते हैं डकार तक नहीं लेते। सब से बड़ा घोटाला सरकारी झूठे विज्ञापन का ही हैं जो अख़बार टीवी वालों को दिखाई नहीं देता मगर जनता का धन कुछ लोगों को देना जिस से हासिल कुछ नहीं हो घोटाला ही होता है। शाकहारी मासाहारी घोटालों को नहीं कह सकते। आज की खबर है हरियाणा की सरकार के स्वर्ण जयंती समारोह और जीता जयंती महोत्सव में 2017 मैं नियमों को ताक पर रख कर धन बर्बाद किया। निजी आयोजन पर भी खर्च का मामला आया है। दस किलोमीटर की दौड़ पैंतीस लाख की बर्बादी। ये रुकता नहीं है।  अभी दो दिन पहले की बात बताता हूं अपने शहर में जो जो हुआ।

         24 जून को मनोहर लाल खटट्र जी पुलिस विभाग द्वारा आये दिन आयोजित तमाशे राहगिरी में शामिल होने आये। पहले घोषणा की पुलिस लाइन्स में फिर पपीहा पार्क और आखिर आये लाल बत्ती चौक से एक किलोमीटर तक साईकिल चलाकर , हिसाब मत पूछो। जो हुआ सामने देखा बताता हूं। कई दिन तक सभी विभाग इसी काम में लगे रहे। जब सी एम को आना हो तभी सफाई और अनाधिकृत कब्ज़ों को तीन दिन को हटवाना भी उचित नहीं। सब से अजीब बात जो खुले में शौच बंद करने और आवारा पशु मुक्त होने का दावा ही नहीं उसका इनाम भी अधिकारी ले आये थे उसकी असलियत सामने आई है। ये तस्वीरें गवाह हैं।




 
ये चलते फिरते शौचालय जींद से आये हैं लिखा पढ़ सकते हैं। इनको खड़ा किया गया उसी तरह जैसे जी टी रोड पर योग करते गीत गाते खेलते बच्चे झांकियों की तरह। मगर इनका उपयोग किया ही नहीं जा सकता था , इनको सीवर लाइन से जोड़ने की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि खेल खत्म होते ही वापस जाने थे।

                                             अवैध कब्ज़ों की बात

अगर वो सब गलत नहीं हैं जो रेहड़ियां लगाकर फुटपाथ रोककर और रोज़ अपनी गंदगी बीच राह सड़क पर डालकर बदबू और बिमारियों को बुलावा देते हैं तो मुख्यमंत्री के आने से दो तीन दिन पहले उनको हटाना और सी एम के राहगिरी मैं शामिल होकर जाते ही फिर सी उनको अनुमति देना दोनों बातें घोटाला हैं। आप सब कर सकते हैं वी आई पी के आने पर मगर बाक़ी रहने वाले आम नागरिक परेशान हों तो होते रहें। इस तरह कितना धन बर्बाद किया जा रहा है। सिरसा के बाबा का सालों से अवैध घोषित कई किलोमीटर का निर्माण जिस में होटल सिनेमाहाल रिसोर्ट शामिल है आजकल की सरकार वैध कर देती है इक अध्यादेश से। मोदी जी विदेश यात्राओं पर केवल चार्टेड विमान पर 375 करोड़ की राशि 40 यात्राओं पर खर्च करते हैं पूरा हिसाब तो कोई लगा नहीं सकता है। 

                          निराश नहीं होने खुश रहने का उपदेश 

  हरियाणा के मुख्यमंत्री भाषण देते हैं ये राहगिरी आपको निराशा छोड़ खुश रहने की खातिर है। चलो ये बात समझ आई कि लोग आपकी और मोदी जी की सरकार से निराश हो चुके हैं। मगर इस तरह का मनोरंजन आपको खुश करता होगा या आपके ख़ास लोगों अधिकारीयों को , आम नागरिक को तो आपके आने से पहले रुकावटों से ही परेशानी होती है। जब सब गलत होता हो सामने तब लोग खुश कैसे रह सकते हैं भला। नीरो की तरह बंसी बजाना उचित नहीं है। हरियाणा राज्य में सभी सरकारी ऐप्स धोखा हैं दफ्तर में बैठे बिना कोई समाधान किये बता देते हैं ठीक हो गया। मेरी सी एम विंडो की शिकायत कितनी बार बंद हुई खुली गिनती नहीं है। आखिर में मुख्यमंत्री कार्यालय लिखता है ये शिकायत नहीं सुझाव है। कोई अच्छा सुझाव देता है यही मानकर सुधार करते। आपको सुझाव भी आर एस एस के पसंद हैं और बड़े पद पर नियुक्ति के लिए योग्यता भी उस संस्था का सदस्य होना है ये अपने आप में घोटाला ही है। मगर मीडिया पर फेसबुक पर जो प्रचार है उस से सच्चाई को कब तक सामने आने से रोक सकते हैं।

जून 25, 2018

POST : 812 अभी भी जारी है आपत्काल ( जेपी की याद ) डॉ लोक सेतिया

   अभी भी जारी है आपत्काल ( जेपी की याद ) डॉ लोक सेतिया 

  43 साल पहले की शाम बहुत चहल पहल की दिल्ली की शाम थी और लाखों लोग जयप्रकाश नारायण जी को सुनने गये हुए थे। वो इक समंदर की तरह था जिस में मेरी हैसियत कतरे सी भी नहीं थी। मुझे नहीं पता क्या हुआ जो जेपी की हर बात मेरे दिल की गहराई में उतरती गई समाती गई। बहुत पोस्ट लिखी उनको लेकर आपातकाल को लेकर और उनके जन्म दिन पर अमिताभ बच्चन के जन्म दिन के शोर को लेकर। अभी इक लेखक दोस्त जिनसे मुलाकात भी नहीं हुई या हो सकी अभी , फेसबुक और फोन व्हॉट्सऐप पर सम्पर्क है , उनकी वाल पर जननायक और तथाकथित सदी के महानायक की तस्वीर साथ साथ देखी। बुरी आदत है साफ बात करना , उनसे सवाल किया ये क्या किया है। कितना जानते हैं बच्चन जी को , इक अभिनेता जो अच्छा अभिनय करता है अच्छी आवाज़ भी है मगर पैसों का शोहरत का पुजारी ही नहीं है और बिना समझे किसी वस्तु का विज्ञापन करने का ही दोषी नहीं जो वस्तु बताये गए तथ्य अनुसार सही भी नहीं , बल्कि अपने जीवन में लोगों द्वारा भगवान कहलाये जाने वाले इंसान को जालसाज़ी से किसान होने का प्रमाण जुटाने में कोई संकोच नहीं हुआ न ही अदालत में मुकदमा चलने के बाद लाज ही आई कि बाहर समझौता किया था गांव की पंचायत की ज़मीन पंचायत को देने का मगर मुकर कर उस ज़मीन को जयाप्रदा नाम की अभिनेत्री के एन जी ओ को दे दी। मगर लोग बिना जाने किसी को खुदा बना लेते हैं गुलामी की आदत जाती नहीं। 
 
      लोकतंत्र का अर्थ सबका बराबर होना है। मगर अधिकारी कभी आम जनता को अपने बराबर मानते नहीं हैं। शायद ही कोई समय पर अपने दफ्तर आने पर आम नागरिक से सही सलीके से बात करता है। अपमानित होना जनता की नियति बन चुकी है क्योंकि अधिकतर ऐसे में खामोश रहते हैं और तिलमिलाते रहते हैं। ऐसे में होता होगा कि कभी विधायक या सांसद किसी आई ए एस या आईपीएस अधिकारी से मिलने जाएं और उनके साथ भी अच्छा व्यवहार नहीं हो। मगर कोई सरकार ये निर्देश जारी करे कि आपको खड़े होकर विधायक या संसद को सम्मान देना होगा अन्यथा दंडित किया जा सकता है। इसके पीछे छिपे संदेश को समझाता है कि आप नौकर हैं और नेता आपके मालिक हैं जो वास्तव में है नहीं। नेता भी जनसेवक ही हैं और खुद को राजा या शासक समझना संविधान का अनादर है। यही सरकार दावा करती है वीआईपी कल्चर खत्म करने का मगर इनके कहीं आने पर लाखों रूपये बर्बाद हो जाते है और कई दिन तक अधिकारी और सभी विभाग इनकी खातिर सब मुहैया करवाने में लगे रहते है लेकिन जनता को उनके मूलभूत अधिकार देने में रुचि नहीं रखते। काश कोई नेता निर्देश देता मेरे आने पर दिखावे को सब करना छोड़ अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाएं अन्यथा लापरवाही करने पर दंडित किया जा सकता है। 
 
         देश की राजनीति 180 डिग्री घूम चुकी है तब से आजतक। हालत वही हैं। तब सत्ता को खतरा देख कर किसी ने आपत्काल घोषित कर दिया था। किसी नैतिकता का कोई पास नहीं रखा गया था। आधी रात को अपनी पसंद के बनाये राष्ट्रपति से हस्ताक्षर करवा आपत्काल घोषित कर विरोधी दल के नेताओं को जेल में डाल दिया था। मानसिकता आज भी वही है और हालात भी उसी मोड़ पर हैं जहां सत्ताधारी किसी भी तरह सत्ता का मोह त्याग नहीं सकता है और विपक्ष क्या सत्ताधारी दल में कोई साहस नहीं कर सकता अपनी बात कहने का। आज जेपी की ज़रूरत पहले से अधिक है मगर कोई उस तरह का शख्स दिखाई नहीं देता। जिस को लेकर दुष्यंत कुमार ने कहा था :-

एक बूढ़ा आदमी है देश में या यूं कहो ,

इक अंधेरी कोठड़ी में एक रौशनदान है। 


 


POST : 811 परिभाषाओं की पाठशाला ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

      परिभाषाओं की पाठशाला ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

बस कुछ घंटों में आपको गुरु बना सकती है मेरी परिभाषाओं की जानकारी।  कोई फीस नहीं और जैसे बीमा कंपनी वाले कोई छुपे चार्जेज नहीं कहते हैं वो भी। आम भी और दाम गुठलियों के भी नहीं। आम का मौसम है आप आम खाओ और गुठलियां साथ ले जाओ घर पर बोने को। ये सबक अपने बच्चों को पढ़कर उनको भी समझाना अपने बच्चों को समझाएं। सबक शुरू करते हैं। परिभाषाओं का पहला पाठ। 

योग :-

अभी अभी सैर पर किसी को बताते सुना रात को खाना मज़ेदार था ज़्यादा खा लिया।  आज तो राउंड अधिक लगाने हैं। वर्कआउट का अर्थ काम करना नहीं है आराम से बैठे दिन भर अब जिम में आधुनिक बनकर किसी सिखाने वाले को हज़ारों रूपये देकर तंदरुस्त होने की बात करें। आप बिना किसी शिक्षा हासिल किये योगगुरु बनकर या जिम खोलकर खूब कमाई कर सकते हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से कम कमाई नहीं इस में भी। 

दान-पुण्य :-

पाप की काली कमाई कर घबराना नहीं है। अमर अकबर एंथोनी फिल्म में सदी के महानायक का किरदार निभाना सीखो। फिफ्टी फिफ्टी तो भारत की सरकार भी करती है काला धन सफेद करने को। आप भी अपने अपने धर्म वालों को आधा आधा दे सकते हैं मगर नहीं। मैं आपको ये सलाह नहीं दूंगा। बस थोड़ा सा चुटकी भर नमक आटे में डालने की तरह ऊंठ के मुंह में जीरे की तरह या सरकारी धन का नाम का हिस्सा सब्सिडी के नाम पर भीख देने की तरह देने जैसा एक फीसदी ब्याज समझकर दानपेटी में नहीं डालना आपको किसी मंदिर मस्जिद नहीं तो शमशान भुमि में नाम लिखवा रसीद लेकर रखनी है। ऊपर जाते उसकी फोटो स्मार्ट फोन में लेते जाना भगवान को सबूत दिखाना। और कुछ साथ नहीं जाता मगर अपना स्मार्ट फोन कोई छोड़ टॉयलेट भी नहीं जाता तो मरते समय साथ वही जाना है जो आखिरी पल आपके मन में है।
 

समाज सेवा :-

चोखा धंधा है , समाज सेवा अपनी जेब से नहीं की जाती है। कोई संगठन बनाकर जनता से अथवा आजकल सरकारी विगाग से सम्पर्क स्तापित कर अपना रुतबा बढ़ाने को की जाती है। खुद अपनी इच्छाएं जो अपने पैसे से नहीं पूरी कर सके ऐसे समाज सेवा के नाम पर मिले धन से कर सकते हैं। कोई मुश्किल नहीं है आपको करना कुछ भी नहीं है , किसी अधिकारी के साथ मिलकर सरकारी दफ्तर में बैठे शान से रहने का लुत्फ़ उठा सकते हैं। जी हां जी जनाब कहना सीखना होता है। अगर अधिक लालच है तो कोई एन जी ओ बनाकर गरीबों की भलाई से नशा मुक्ति तक कोई भी काम कागज़ों पर कर सकते हैं। 

सरकारी योजनाओं के सहायक :-

आये दिन कोई न कोई योजना घोषित होती है। सर्व शिक्षा अभियान , मेक इन इंडिया , स्किल इंडिया नाम बदलते रहते हैं। आपको अधिक से अधिक लोगों के डाक्यूमेंट्स जमा कर सरकार को बताना होता है कि इन सब को प्रशिक्षण दे दिया है। क्या किया नहीं किया कोई नहीं जनता आपको प्रमाणपत्र देने होते हैं , बाद में उनका कोई फायदा हुआ या नहीं आपका फायदा हो गया है।

डॉक्टर और शिक्षक :-

भगवान का दूसरा रूप , गुरु गोविंद से बड़ा। किस युग की बात है। डाका डालने नहीं जाते लोग खुद आते हैं मज़बूरी में लुटने को। शिक्षा और स्वास्थ्य में खुली छूट है कोई रोकता नहीं टोकता नहीं। कोई मापदंड नहीं हैं सुविधा है या नहीं है शुल्क की हद कोई नहीं। मगर फिर भी दावा है सब से अच्छे हम हैं। बचकर जाने का रास्ता नहीं है सब रास्ते उसी तरफ को जाते हैं।  अभी भी कहीं कहीं पगडंडी बची हुई हैं कुछ लोग हैं जो इंसानियत को भूले नहीं हैं।

जून 24, 2018

POST : 810 25 जून 1975 से 25 जून 2018 तक 43 साल बाद ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया

25 जून 1975 से 25 जून 2018 तक 43 साल बाद ( विडंबना )              

                                  डॉ लोक सेतिया 

         अभी अभी आज 24 जून की सुबह जब मैं सैर करने गया तो पुलिस के कुछ लोगों को 43 साल पहले जे पी के सन्देश की बात कही। 25 जून 1975 को मैं उपस्थित था रामलीला मैदान दिल्ली की सभा में। ये विडंबना ही है कि गांधी जी और जे पी जी से कोई सबक सीखा नहीं उन्हीं के अनुयाईओं ने। इतिहास को ध्यान से देखो तो लगता है हम अभी उसी मोड़ पर खड़े हैं। राहगीरी नाम से इक तमाशा जी टी रोड पर किया जा रहा है सड़क किनारे लोगों को रोककर बैरिकेड लगाकर मुख्यमंत्री के लिए। इसे कहा जा रहा हम जनता से सम्पर्क करना और वी आई पी कल्चर खत्म करना चाहते हैं। यही तो है वो कल्चर। ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए। एक नेता के आने पर इतना धन इतना सब बर्बाद झूठी शान दिखाने को , आम नगरिक को असुविधा देकर जनता की सेवा का दावा। जिनको मिलना हो भीख की तरह मांग पत्र देकर या फिर जनता के खुद के पैसे से कोई काम करने पर धन्यवाद करने को उन्हें पांच एकड़ बैंक्विट हल जाकर मिलना चाहिए पहले इजाज़त लेकर। सत्ताधारी दल वाले जब चाहे मिल सकते हैं। मैं अख़बार लेने गया था तमाशा देखना पसंद नहीं है। मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूं , मैंने इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं। दुष्यंत कुमार के सिवा कैसे समझाई जाये बात। लोग खड़े थे ताली बजाने को। इक डॉक्टर दोस्त से बात की जे पी का सन्देश बताया तो हंसकर बोले , भाई आप तजुर्बेकार हो कथनी और करनी में अंतर होता ही है सरकार और नेताओं की। ये अपने दल की सरकार का बचाव नहीं था , ये बताता है सत्ताधारी दल में नेता और आगामी चुनाव में टिकट के दावेदार भी अपनी सरकार और उसकी नीतियों पर क्या राय रखते हैं। मुझे ख़ुशी है उनमें सच स्वीकार करने का साहस तो है। 
 
             कल रात ही मैंने खुला खत मेल से भेजा है सी एम और आला अधिकारीयों और सभी अख़बार वालों को , जिसमें कहा है कि आपका इम्तिहान है कि दो दिन पहले जिस गंदगी और गंदगी फ़ैलाने वालों को रोका गया राहगिरी में मुख्यमंत्री के आने पर क्या रविवार के बाद भी यही सब रहेगा साफ सुथरा। अगर नहीं तो फिर सरकार नहीं है भ्र्ष्टाचार का कारोबार है। जी ये बात भी जे पी की कही हुई लगती है। आज इनको जय प्रकाश नारायण याद नहीं हैं क्योंकि उनके नाम पर वोटों की राजनीति हो नहीं सकती अन्यथा इक बुत और बनाते करोड़ों रूपये खर्च कर। अच्छा है जो नहीं हुआ ऐसा , जिस जननायक ने कभी किसी भी देश के या विदेश में बड़े बड़े पदों की ऑफर को स्वीकार नहीं किया हो और जनता के बीच रहना पसंद किया हो उन्हें ये स्वीकार नहीं होता। काश आज कोई ऐसा जे पी जी जैसा बचा होता जो जनता की आवाज़ भी बनता और जो सैंकड़ों डाकुओं को भी शांति की राह पर लेकर आत्मसमर्पण करवा सकता।

जून 23, 2018

POST : 809 झूठ की किताब कितनी खूबसूरत है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

    झूठ की किताब कितनी खूबसूरत है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

     बस नाम बदलते हैं और तस्वीरें बदलती हैं। शाइनिंग इंडिया , भारत निर्माण , सब से अच्छा हरियाणा , जाने क्या क्या। सत्ताधारी दल के पैसा सबसे अधिक आता है इस में राज़ क्या है। अब ऐसे में जब चुनाव आने वाले होते हैं नेता लोग पुस्तक छपवाते हैं जिस में लोगों को बताया जाना होता है कि जो आपको सामने नहीं दिखाई देता लो पढ़ कर समझ लो। लोग जैसे अंधे हैं और मूर्ख तो हैं ही जो उनको इतना भी दिखाई नहीं देता कि आपकी भलाई की जा चुकी है सब समस्याओं का समाधान किया जा चुका है और थोड़ी सी कुछ कमी रही भी होगी तो अगली बार हो जायेगा सब ठीक। मैं यकीन से कह सकता हूं ये सब बातें किसी राजनेता की कलम से नहीं किसी किराये के लिखने वाले की कलम से लिखवाई गई हैं। अच्छे दिन आने वाले हैं लिखने वाला भी फ़िल्मी गीतकार निकला। झूठ कितना अच्छा लगता है आप किसी शैतान को देवता कह कर देखो। और सच नामुराद कभी मीठा होता ही नहीं स्वाद उसका।


                   विज्ञापन का अर्थ ही यही है , जिस सामान को सही बनाया हो उसे लोग खुद ढूंढते हैं खरीदते हैं। जो वास्तव में काम का नहीं होता उसे ही बेचने को लुभाना पड़ता है। छूट और सेल या इश्तिहार यही हैं। आपको लगता है आपको फायदा हुआ मगर कमाई बेचने वाले की होती है जेब आपकी खाली होती है। आज कोई हैरान हो सकता है कि अभी भी बहुत अच्छी कंपनियों का बनाया सामान खुद बिकता है। मैं ऐसी आयुर्वेदिक कंपनियों की दवाएं खुद मंगवाता हूं बिना किसी एजेंट के आने के बावजूद भी क्योंकि उनकी गुणवत्ता और कीमत दोनों उचित हैं। उस कंपनी को इश्तिहार की ज़रूरत नहीं होती है। ऐसे ही जो अच्छे डॉक्टर होते हैं उनको अपना जन संपर्क अधिकारी और कमीशन देने का काम नहीं करना पड़ता। मिला इक न्यूरो सर्जन से जो कहने लगे वो हर दिन सात सर्जरी ही कर सकते हैं और उनके पास सप्ताह तक कोई समय नहीं है आपके रोगी को तुरंत ज़रूरत है किसी और से करवा लो। पांच लाख का लालच नहीं था क्योंकि वो पैसों की खातिर इलाज नहीं करते हैं इलाज करने के पैसे लेते हैं। इन दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर है।

              
उनका दावा है वो सिफारिश पर नौकरी तबादला नहीं करते हैं। ये समझ नहीं आया कि जब किसी राज्य का मुख्य मंत्री या देश का राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति बनाना हो तब काबलियत किसी एक संस्था का सदस्य होना दिखाई देती है। कथनी और करनी में इतना विरोधभास। देश की बात दिखावे को मगर आपकी आस्था किसी दल ही नहीं किसी एक व्यक्ति में। आचरण में नहीं दिखाई देता जो भाषण में या सभाओं में कहते हैं। झूठ की दास्तान की किस किस बात की बखिया उधेड़ूं। बाहर लिबास साफ़ है भीतर मन में मैल भरा पड़ा है। लेकिन आपको इसी सहारे आगामी चुनाव लड़ना भी है और जीतना भी चाहते हैं। कहा तो ये जाता है कि काठ की हांडी बार बार चढ़ती नहीं , कौशिक कर के देख लो शायद जनता फिर मीठी बातों में आ जाये।

जून 22, 2018

POST : 808 क्या मिलिए ऐसे लोगों से ( बात बेबात की ) डॉ लोक सेतिया

   क्या मिलिए ऐसे लोगों से ( बात बेबात की ) डॉ लोक सेतिया 

  भारत भूषण मिढा जी से फोन पर काफी बार बात हुई है। सत्ताधारी दल के नेता हैं और उनको हमेशा बताया है हरियाणा सरकार और सरकारी अधिकारीयों को लेकर। सी एम विंडो को लेकर और तमाम ऐप्स की असलियत। बहुत बार उन्हें खुद आकर मॉडल टाउन में पपीहा पार्क के पास गंदगी और आपराधिक गतिविधियों को देखने की बात हुई मगर वो कभी नहीं आये। आना मुश्किल भी था क्योंकि उनको पता था उनकी सरकार की नाकामी और तमाम स्वच्छ भारत अभियान जैसी योजनाओं की हालत सामने देख कर कोई जवाब नहीं हो सकता था देने को। आज सुबह इधर काफी सफाई की गई है और कुछ ही दिन को उनके दल के नेताओं के सहयोग से जो लोग गंदगी फैलाते हैं उनको रोका गया है केवल मुख्य मंत्री के राहगिरी कार्यक्रम में रविवार को शामिल होने की खातिर तो उनको आकर अपने दल की पुस्तिका देना संभव हुआ। मगर वास्तव में उनके पास हरियाणा सरकार के अभी तक किये कार्यों पर कोई जवाब नहीं था। चार साल में क्या अच्छा किया मुझे सामने दिखलाने को कुछ भी नहीं था न ही बता ही पाए। केवल कागज़ों पर अपना इश्तिहार बांटने तक और उसका फोटो लेने से क्या हासिल होगा। मैं नियमित मोदी सरकार और मनोहर लाल खटटर सरकार की जनविरोधी नीतियों और आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की वास्तविकता उसी तरह लिखता रहा हूं जिस तरह चालीस साल से बाकी सरकारों की आलोचना की है।  मगर ये पहली बार देखा है कि कोई सरकार जनहित की बात कहने और सच बोलने वाले को बदले की भावना से परेशान करे। हो सकता है कोई इस तरह औपचारिक बैठक को अपने दल और सरकारी नीतियों का समर्थन किया जाना बताने का झूठ बता दे मगर हमारी बात में मैंने कोई भी ऐसी बात नहीं कही न ही मिढ़ा जी ही मुझे बता ही सके। शायद उनको कोई औपचारिकता निभानी है दल को दिखाना है जन सम्पर्क किया है।  ऐसे दलगत प्रचार के इश्तिहार अच्छे दिन आने वाले हैं की तरह जुमला साबित होते हैं वोट हासिल करने को।

              कल ही इक और नेता का ब्यान पढ़ा कि खटटर जी वी आई पी कल्चर को खत्म करना चाहते हैं। उनका नंबर मिला किसी से तो सवाल किया किसे कहते हैं वी आई पी कल्चर। जो गंदगी तीन साल से हटाई नहीं गई मॉडल टाउन के निवासी हज़ार बार शिकायत करते रहे उसको सी एम के आने से तीन दिन पहले कुछ ही घंटों में साफ किया गया। इसको क्या वी आई पी कल्चर नहीं कहते। ऐसा भी नहीं कि ये सफाई बाद में भी नियमित रहेगी , ये पिछले साल भी एक दिन को हुआ था स्वच्छता अभियान पर चंडीगढ़ से अधिकारी आये थे यात्रा करते बड़ी बड़ी बसों में आरामदायक और वातानुकूलित सैर करते हुए। ये तो आम जनता के साथ भद्दा मज़ाक होता है जब ख़ास नेता या अधिकारी के आने पर साफ सफाई की जाती है। इस जगह गंदगी का कारण जो फुटपाथ पर पार्किंग की जगह को रोककर या हुड्डा के प्लॉट्स पर अवैध कब्ज़ा कर कारोबार करते हैं मगर अपनी गंदगी सड़क पर फैंकते हैं जिस से बदबू और प्रदूषित वातावरण रोग बढ़ाते हैं , उनको वी आई पी के आने पर तीन दिन को मना किया गया है ताकि मुख्य मंत्री को गंदगी दिखाई नहीं दे। जो लोग यहां बसते हैं वो इंसान नहीं हैं।

                              पार्क में जिम लगाने से लोग स्वस्थ होंगे या नहीं मगर इस गंदगी से रोग मिलता है ये सब को पता है। अगर इस जगह ये सब कार्य किया जाना उचित है तो कुछ दिन को रोकना कैसे सही है। लोगों को बताया जाता है सरकार ने जिम दिया मगर जो वास्तविक समस्याओं को हल नहीं किया उसकी बात नहीं करते सुनते। आपने कोई सेवक रखा हो और वो आपके पैसे से ही आपको कुछ दे तो उसको उपकार या मस्जिद एहसान नहीं कहोगे।  किसी भी नेता ने अपनी जेब से कोई विकास नहीं किया जो भी किया जनता के पैसे से फिर उसको बढ़ाई समझना कैसे सही है। मोदी जी और खटटर जी आपको देश की समस्याओं को हल कर दिखाना है। आप जब गिल्ली डंडा खेलते हैं ड्रम बजाते हैं नाचते झूमते हैं तो लगता है देश जल रहा है और नीरो बंसी बजा रहा है। सत्ता पाकर अपनों को रेवड़ियां पहले भी बांटते रहे हैं लोग और आज आप भी तो फिर अंतर क्या है। माफ़ करना बेपनाह अंधेरों को सुबह नहीं कह सकता , दुष्यंत कुमार की तरह सोचता हूं। ये कवि शायर लोग ऐसे ही परेशान रहते हैं सब गलत देख कर। ग़ालिब को नींद क्यों नहीं आती थी , मौत का डर नहीं था जानते थे एक दिन आनी ही है।

POST : 807 जीवन के दोराहे पे खड़े सोचते हैं हम ( टीवी शो की बात ) भाग - 2 डॉ लोक सेतिया

               जीवन के दोराहे पे खड़े सोचते हैं हम 

            ( टीवी शो की बात - कुछ हक़ीक़त कुछ फ़साना ) भाग - 2 

                                      डॉ लोक सेतिया 

ज़िंदगी के क्रूसरोड्स।  अभी शुरू हुआ है सोनी टीवी पर इक शो। कुछ दिन पहले लिखा उसकी दो कहानियों को लेकर , कल रात की कहानी कुछ हटकर थी। कल इत्तेफाक से इक हास्य कविता लिखी थी सोशल मीडिया की प्यार की कहानी के अंजाम पर। सुबह सैर पर गया तो दोनों कहानियां डगमग हो गईं। पहले रात की बात। बहुत ही अच्छा परिवार पुराने ढंग से आपस में तालमेल से ख़ुशी से जीता हुआ। बेटा नौकरी करता है मगर सब कुछ पिता के हाथ में है , पूरा वेतन घर पर देता है और पिता घर पत्नी को बेटे को ज़रूरत को देता ही नहीं है बल्कि घर पर काम करने वाली महिला को बच्चों की शिक्षा की खातिर एडवांस देने की बात जब पत्नी बताती है तो इंसानियत की मिसाल बनकर पत्नी को और अधिक पैसे रखने को कहता है ताकि बाद में उस महिला के बच्चों को किताबों के लिए भी दिए जा सकें। टीवी पर अधिकतर दर्शक इन सब को शायद ही ध्यान से देख रहे थे। तभी पिता अपने बेटे की शादी की बात पत्नी से करता है और जिस लड़की की बात करता है उस में कोई कमी नहीं है पत्नी भी जानती है। बेटे को पिता सूचित करता है हमने तेरे लिए लड़की देख ली है और तारीख तय कर बता देंगे तुम अपनी पसंद से शादी का कार्ड छपवा लेना। आजकल के अधिनिक सोच वालों को पिता किसी तानाशाह से कम नहीं दिखाई देता होगा। 
 
      अब पत्नी की बात जो वास्तव में घर ही नहीं सब को संभालती है। बेटा अपनी मां को बताता है उसे किसी लड़की से प्यार है तीन साल से जनता है और शादी का वादा कर चुका है। मां पति से बात करती है और पहली बार शादी के तीस साल बाद कुछ मांगती है अपने बेटे की ख़ुशी। क्योंकि बेटे की इक कही हुई बात उसके दिल को छू जाती है कि मां के बाद उसके जीवन में यही महिला महत्वपूर्ण है। पति बेटे की शादी का निर्णय पत्नी पर छोड़ देता है। यहीं से इक दोराहा सामने आता है। लड़की देखने जाने पर मां का सामना जिस लड़की से होता है उसे चार साल पहले किसी अस्पताल में देख चुकी मिल चुकी है वो भी जब लड़की अपना गर्भपात करवाने आई होती है। पिता नहीं जनता बेटा भी नहीं जनता फिर भी मां उस लड़की को बहु बनाने को हामी भर देती है। टीवी स्टूडियो में बहस होने लगती है कुंवारी लड़की लड़के को लेकर। कोई कहता है हम बाहर जो कहते हैं अपने घर में स्वीकार नहीं करते। इक लड़की जिसका पिता भी बैठा है दूसरी लड़की की बात का जवाब देती है और पूछती है क्या मेरे चेहरे पर लिखा है या दिखाई देता है कि मैं कुंवारी हूं। 
 
        शादी के बाद लड़की चाहती है सास से अलग होकर रहना। दर्शक समझते हैं ये खराब बहु है जबकि वास्तव में किसी के लिए भी किसी ऐसी महिला के साथ रहना जो उसके अतीत के बुरे अनुभव को जानती हो हर दिन इक अपराधबोध में रहना होगा जो बेहद कठिन है। मगर बेटा नहीं चाहता घर से अलग होना। तभी इक और हादिसा होता है बहु का पहला आशिक उसको ब्लैक मेल करने को बुलाता है और आठ लाख की मांग करता है ये बात भी सास सामने उनसे छिपकर देख सुन लेती है। लोग फिर बहस में उलझे हैं और कुछ भी कह रहे हैं।  किसी और पर फैसला करते हुए हम वो नहीं होते जो खुद पर आती है तब होते हैं। बेटा अपनी मां से कहता है कि उसकी पत्नी को किसी शादी में जाना है और आपके गहने पहनना चाहती है। मां कहती है जब बहु को मेरा साथ रहना भाता नहीं तो फिर मेरे गहने भी उपयोग नहीं कर सकती उसके अपने गहने हैं वही इस्तेमाल कर सकती है। कोई नहीं जनता इस कहानी की मां का किरदार किस ऊंचाई पर होगा। वो जानती है उसे गहने किस काम को चाहिएं। बहु के फोन से उसके पुराने आशिक को मिलने को बुलाती है और अपने गहने बेच कर आठ लाख उसे देकर साफ़ कहती है कि दोबारा उस लड़की की ज़िंदगी में दखल दिया तो मैं किसी भी सीमा तक जा सकती हूं। स्टूडियो में और टीवी पर देखने वाले अभी भी ठीक से नहीं समझ सकते उस नारी को जो आज की सीता भी है और मां भवानी भी। 
 
       कहानी का अंत कोई कल्पना नहीं कर सकता है।  घर आने पर पति को जब पता चलता है कि पत्नी ने बैंक लॉकर से निकल गहने बेच दिए तो पूछता है किसलिए।  अगर नहीं बताया तो मतलब होगा कोई गलत काम किया है जो छुपाना है।  तब पति साफ कहता है तुम्हारा मेरा कोई रिश्ता नहीं रहेगा , हम एक साथ एक छत के नीचे रहकर भी अजनबी होंगे। ये सब सामने देख रही बहु कुछ भी नहीं बोलती मगर उसकी ख़ामोशी उसकी नज़रें सब कहती हुई लगती हैं। आपको आगे कुछ भी नहीं दिखाया जाना मगर उस सास बहु में जो रिश्ता बना है वो सब से अलग है।  इक महिला ही दूसरी महिला के दर्द को समझ सकती है बांट सकती है और इक मां अपने खुद पर तपती लू झेल कर भी बच्चों को गर्म हवा नहीं लगने देती है। किसी कहानी में किसी महिला का किरदार इससे ऊंचा नहीं हो सकता है। 
 
           कल की लिखी पोस्ट की बात। महिला अपना सब दांव पर लगाकर जिस लड़की और लड़के का साथ देती है समाज के खिलाफ जोखिम उठाकर। आज वो खामोश है। घर से भागकर शादी करने वाली लड़की हालात से तंग आकर आशिक के साथ पति पत्नी की तरह रहने के बाद घर वापस लौट आई है और समझौता कर फिर से किसी से विवाह कर लिया है। आजकल की युवा पीढ़ी को डिलीट करना आसान लगता है , फोन में कॉन्टैक्ट से नाम हटा दिया और फेसबुक से तस्वीरें मिटा दीं इतना सा संबंध है। मगर मैं जो कहानी लिख चुका उसको झुठला नहीं सकता। पन्ने फाड़ देने से भी कुछ नहीं होगा। और मेरी सब से अच्छी कहानी कितनी जगह छप भी चुकी है और तमाम महिलाओं को संदेश भी देती है आंचल को परचम बनाने को।

जून 21, 2018

POST : 806 फेसबुक प्यार से नफरत तक ( हास्य - कविता ) डॉ लोक सेतिया

  फेसबुक प्यार से नफरत तक ( हास्य - कविता ) डॉ लोक सेतिया 

लिखी थी उन दो आशिक़ों की ,
प्यार की कहानी भी मैंने ही ,
जीने मरने की साथ खाई थी ,
कसमें  लिखकर अपनी अपनी ,
दोनों ने फेसबुक की वाल पर । 

वो तीन चार पहले का युग था ,
सोशल मीडिया पर जान पहचान ,
बन जाती थी कभी हादिसा भी ,
कभी किसी को लगता था ऐसा ,
सपनों की यही दुनिया है सब कुछ । 

घर से भाग कर शादी भी कर ली ,
कुछ दिन तक था प्यार ही प्यार ,
फिर न जाने क्या किया किसने ,
बात बात पे होने लगी तकरार ,
प्यार में ये कोई और नहीं था बीच में ,
राजनीति ने किया कैसा है अत्याचार । 

तुम चाहती किसी और नेता को हो ,
मेरी नेता मेरी वही है जाति की ,
उनका टूटा गठबंधन सब जानते ,
भाई बहन से जानी दुश्मन बन गए ,
आमने सामने खड़े हो गए पति पत्नी ,
तलाक बिना लिए बिना दिए । 

मुझसे बोली नायिका मेरी कहानी की ,
तुम मिटा दो लिखी हुई हमारी कथा ,
डिलीट कर दिया हमने सारा डाटा ,
आपको किसलिए हुई है सुन व्यथा ,
और लिख सकता मिटा सकता नहीं ,
ओ मेरी फेसबुकी दोस्त करूं क्या बता । 

मेरी इक गुज़ारिश सभी दल वालों से ,
आशिक़ी में न अपना दखल रखना ,
ताज को राजनीति का मोहरा बनाकर ,
इस तरह शाहजहां मुमताज को अब ,
बदलकर इतिहास अलग कर नहीं देना ,
तुम आज हो जाने कल हो न हो । 

मुहब्बतों की कहानियां सभी हैरान हैं ,
लिखने वाले सभी हम परेशान हैं ,
हीर रांझा को रहने दो जो भी हैं ,
लैला मजनू की दास्तां बदलना नहीं ,
धर्म जाति में बांटों जनता को मगर ,
आशिकों को मरने बाद मरना नहीं । 
 

 

जून 20, 2018

POST : 805 नारद मुनि जी की वापसी ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

    नारद मुनि जी की वापसी ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

    द्वारपाल ने भगवान से जाकर पूछा कि उसे बताएं दरवाज़ा खोले या बंद करे। चार साल से जो नारद जी गायब थे और आपके संदेश सुन तक नहीं रहे थे जवाब देने की तो बात ही क्या। नारायण नारायण की रट भी लगाना छोड़ दिया था और आपको नियमित रूप से घटनाओं की सूचना देना भी छोड़ दिया था। भगवान ने कहा तुमसे कभी मैंने या किसी देवी देवता ने कहा है कि नारद जी के लिए अथवा किसी के भी लिए द्वार बंद रखना है। द्वारपाल होता ही है सभी आने वालों को आदर सहित भीतर लेकर उचित स्थान देकर बिठा कर मुझे या जिस किसी से कोई मिलना चाहता हो उसे सूचना देने को। द्वारपाल ने कहा भगवान मुझे ये मालूम है मगर खुद नारद जी ने ऐसा पूछ कर आने को कहा है , उन्हें चिंता है कि शायद उनको पहले की तरह से आदर सहित यहां स्थान नहीं दिया जाये। भगवान ये वचन सुनते ही खुद उठकर द्वार पर चले आये और नारद जी को जाकर कहा मुनिवर आप को क्या हुआ है जो अपने ही घर वापस आने में ये संकोच कर रहे हैं। नारद जी ने धरती के इक भाग जो भारतवर्ष का एक राज्य है के सत्ताधारी का जारी फरमान का दिखाया जिस में अधिकारीयों को आदेश दिया गया था कि किसी विधायक या सांसद के आने पर कुर्सी से उठकर सम्मान देना है , भले आने वाला कोई दाग़दार और कई अपराधों का गुनहगार ही क्यों नहीं हो। भगवान सब समझ गये और मुस्कुराते हुए बोले मुनिवर आप किस दुविधा के शिकार हो गए हो। आपने मेरी कॉल्स को नहीं सुना और न ही कोई खबर भेजी तो क्या हुआ , मैं तो हर पल तुम्हारे सही सलामत होने की जानकारी लेता ही रहा। जब से आपने ही सी सी टीवी का विचार दिया तभी से सभी देवी देवताओं को घर बैठे दर्शन करने का लाभ उठता रहता हूं। आपके बारे यही समझा कि आप ज़रूर लोक कल्याण को कोई महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं चार साल से जो फुर्सत नहीं मिली मुझे आकर साक्षात दर्शन देते। आप आराम करिये और भोजन आदि के बाद कहिये जो भी आपने समझा है धरती पर रहते हुए ताकि आपके सुझाव के अनुसार जो ज़रूरी हो किया जा सके। 
 
                     नारद जी बोले आपसे छुपा कुछ भी नहीं है मगर मुझे चार साल की हर बात खुद बतानी है , इतना ही नहीं अपनी भूल और गलती की क्षमा नहीं सज़ा भी मांगनी है। मुझे चार साल पहले धरती पर जाने पर हर तरफ इक शोर सुनाई दिया कि कोई नया मसीहा आया है जो दावा करता है कि उस से पहले सभी खराब लोग शासन करते रहे और केवल वही जनता को अच्छे दिन दिखलाने को आया है। जिधर देखो उस के नाम की गूंज थी और ऐसा लगता था वास्तविक भगवान यही है। उस के भक्त होने का दावा करने वाले किसी को उसके विरुद्ध एक शब्द नहीं बोलने देते थे और उसका विरोध देश का विरोध घोषित कर दिया जाता था। कोई कुछ भी समझ नहीं पाता था कि जो मंदिर मंदिर जाकर पूजा पाठ करता है वो पहले जो जो कहता रहता था सत्ता पाकर उसके विपरीत कहने लगा था। सच के बराबर कोई तप नहीं है और झूठ के समान कोई पाप नहीं है ये सब जानते हैं फिर भी उसके झूठ को किसी ने पाप नहीं समझा ये कैसा धर्म कैसी भक्ति है। मेरी मति भी मारी गई सोशल मीडिया के शोर में कुछ सोचने की फुर्सत कहां थी। चार साल बाद कहीं भी अच्छे दिन दिखाई नहीं देते हैं और जो बात सामने आई है वो ये है कि इक व्यक्ति खुद को देश से बड़ा समझने लगा है और उसको जनता से कोई मतलब नहीं है , केवल अपने दल और संगठन के लोग ही दिखाई देते हैं। उसे एक ही काम करना है हमेशा अपना शासन बनाये रखना वो भी देश को कुछ काम दिखला कर नहीं बल्कि इक खौफ दिखला कर कि उसके सिवा कोई भी देश की बागडोर नहीं संभाल सकता। भगवान उस से पहले कितने लोग आये और चले गए मगर कभी ऐसा नहीं हुआ कि कोई समझता कि देश उसी के आसरे है। ये तो भगवान आपने भी कभी नहीं समझा कि बिना आपके दुनिया नहीं रहेगी। आपको तो उस महिला का वो भजन भी पसंद है जिस में वो कहती है :-

          भगवन बनकर तू मान न कर , तेरा मान बढ़ाया भक्तों ने ,

          बनाई होगी दुनिया तुमने पर , भगवान है बनाया भक्तों ने। 

भगवान मेरा मन घबरा रहा है कहीं यही चलता रहा तो लोग आपको छोड़ उसे ही भगवान नहीं घोषित कर दें। जब जब किसी ने खुद को भगवान घोषित किया है बहुत बुरा होता रहा है। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है जो एक सत्ता के लालची को मसीहा समझने वालों की बातों में बहक गया था और आपको भी अनदेखा करने लगा। आपको कोई अंतर नहीं पड़ता है मुझे मालूम है। भगवान हैं आप किसी की स्तुति से खुश नहीं होते न ही जो आपका गुणगान नहीं करता उससे नाराज़ होते हैं। आप सभी से प्यार करते हैं मगर किसी से राग नहीं द्वेष नहीं रखते हैं। किसी भी धर्म की किताब में आपने नहीं आदेश दिया कि मेरे सामने आकर सीस झुकाओ , लोग खुद ही सर झुकाते हैं मगर आप को इस से कभी अंहकार नहीं हुआ है। अहंकारी लोगों का अहंकार कभी रहता नहीं है। मुझे डर है ये खुद को भगवान समझने वाले और धर्म की उल्टी व्याख्या करने वाले भारत देश को किस दिशा में ले जाएंगे। अगली बार सत्ता मिली तो और निरकुंश होकर बंदूक तानकर अपना आदर सम्मान करवाएंगे।

जून 19, 2018

POST : 804 वर्तमान से नज़रें चुराते लोग ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

     वर्तमान से नज़रें चुराते लोग ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

   मुझे तीन किताबें भेजी हैं मेरी बेटी ने , अभी पहली पढ़ रहा हूं। कुछ पन्ने पढ़ने के बाद सोच रहा हूं कि बहुत मशहूर लोगों ने इन को पढ़ने का सुझाव दिया हुआ है क्या सोचकर। भगवान है या नहीं और किसी ने खोजा था या इक कल्पना है , क्या ये महत्वपूर्ण होना चाहिए या हमें आज के वर्तमान को और भविष्य को ध्यान में रखकर लिखना पढ़ना चाहिए। आज के आधुनिक युग में बाहुबली जैसी फ़िल्में और सपनों की दुनिया की परिकथाओं जैसी बातों में कहीं हम वर्तमान की वास्तविकता से नज़रें चुरा कर भागना चाहते हैं। कहानियां क्या वो नहीं होनी चाहिएं जो कोई संदेश देने का काम करें और इंसान और इंसानियत की संवेदनाओं को जगाने का काम करें न कि मनोरंजन के नाम पर किसी नशे की तरह  छा जाएं। इधर नशे का कारोबार बहुत होने लगा है , लोग नशे के आदी होते होते ज़रूरत से अधिक खुराक लेकर मर भी जाते हैं। धर्म को भी अफीम की तरह बताते हैं कुछ लोग। टीवी शो रियल्टी की आड़ में लोगों को इक जाल में जकड़ रहे हैं , आपको सपने दिखलाते हैं अपनी जेबें भरने को। लिखने वाले कलाकार कवि शायर संगीतकार को समाज की वास्तविकता को सामने लाना चाहिए न कि कपोल कल्पनाओं में बहकाना बहलाना चाहिए। नेता सरकार झूठे वादे सपने बेचकर जनता के सेवक होने की बात करते हैं मगर चाहते शासक बनकर खुद अपने सपनों को पूरा करना हैं। जो लोग देश के प्रशासन को चलाने को नियुक्त किये जाते हैं वो उल्टा जनता को न्याय की जगह अन्याय का शिकार करते हैं , दुष्यंत कुमार के अनुसार , यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है। कहीं आज के बुद्धीजीवी लोग सत्ता से रेवड़ियां पाने की चाहत में ही तो कठोर धरातल की बात को छोड़ सपनों में सब को नशे की नींद सुलाना चाहते हैं ऐसा तो नहीं होने लगा है। मुंशी प्रेमचंद के वंशज भटक गए हैं , मोह माया और इनाम तमगों की चाह में। अख़बार और सोशल मीडिया तो वास्तविकता का सामना करना ही नहीं चाहता। अपने लिए विशेषाधिकार और इक ख़ास रुतबे की अंधी दौड़ में फ़र्ज़ की बात याद तक नहीं है। क्या क्या परोस रहे हैं। जिसे देखो औरों को आईना दिखलाता है खुद नकाब ओढ़ कर।

  मुझे लगता है कि हमारे धार्मिक ग्रंथ जो शिक्षा देते हैं उसका महत्व है। लोक कथाओं नीति कथाओं में बहुत अच्छे संदेश हैं समझने को , उनको वास्तविक जीवन में लागू करना चाहिए न कि केवल माथा टेकने और आरती उतारने तक सिमित करना चाहिए। जिन्होंने भी ये सब किताबें लिखीं उनका मकसद हर किसी को अपना कर्तव्य निभाना समझाना था और अगर सब अपना फ़र्ज़ निभाएंगे तो उसी में दूसरों के अधिकार की रक्षा भी अपने आप हो जाएगी , आप अन्याय नहीं कर सकते तो सब को न्याय खुद ही मिल जायेगा।

जून 18, 2018

POST : 803 मेरे लेखक होने का अर्थ ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

      मेरे लेखक होने का अर्थ ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

 हम सभी देशभक्त होने का दावा करते हैं , और कुछ लोग तो औरों की देशभक्ति पर सवाल भी करते हैं तो कुछ लोग देशभक्त होने का प्रमाणपत्र भी बांटते हैं। कोई मान्य परिभाषा मिलती नहीं किसी शब्दकोश में , फिर भी थोड़ी चर्चा की जा सकती है। अगर आप अपने रिश्तों को तब भी बड़ा मानते हैं जब बात देश की हो तो आपकी देशभक्ति सच्ची नहीं है। सब से पहले हर नागरिक को देश और देश के संविधान और देश के कानून तथा देश के आदर को सब बातों से ऊपर रखना चाहिए। फिर जो भी देश हित के खिलाफ हो हम उसके साथ नहीं हो सकते। भाई दोस्त रिश्ते कोई संस्था कोई दल कोई नेता अभिनेता नायक या आप किसी भी संगठन के सदस्य हों , देश सब से पहले है। जो लोग अपने स्वार्थ साधने को इन सब को अनदेखा करते हैं और अपनी मांगें मनवाने को संविधान कानून को ताक पर रखते है व औरों के अधिकारों का हनन करते हैं , उनको देश से अधिक स्वार्थ महत्वपूर्ण लगते हैं तो उनकी देशभक्ति कैसी है। आप आम नागरिक हों या फिर सरकारी कर्मचारी अधिकारी , पुलिस या न्यायपालिका से जुड़े लोग , डॉक्टर शिक्षक अथवा लेखक या अख़बार टीवी से जुड़े लोग। अगर आपको अपना कर्तव्य देश के लिए पूरी ईमानदारी से निभाना नहीं आता और अपने लाभ को अधिक महत्व देकर झूठ बेईमानी ठगी और हेरा फेरी करते हैं , जो भी आपसे सम्पर्क रखता उसके साथ अनुचित करते हैं या जो उचित है और करना चाहिए करते नहीं हैं तो खुद को देशभक्त नहीं समझ सकते। विशेषकर जो भी पढ़ लिख कर कोई भी काम अपना करते हैं उनको विचार करना चाहिए कि हम अपने देश और समाज को क्या देते हैं , सभी को अपने हिस्से का योगदान देश की भलाई और देश को आगे ले जाने में देना चाहिए। मुझे ये सबक सरिता पत्रिका के कॉलम से मिला था 1974 में डॉक्टर बनने के बाद। तभी से मैं देश की समस्याओं और सरकार प्रशासन और विभागों की बदहाली को लेकर निर्भीकलिखता रहा हूं और लिखना भी चाहता हूं। मुझे इससे कोई आर्थिक मकसद नहीं पूरा करना , मुझे ऐसा करने से कोई नाम शोहरत नहीं मिलती है , अधिकतर परेशानियां मिलती हैं और बहुत लोग मुझसे नाराज़ भी रहते हैं। साफ और बेबाक सच बोलकर हर किसी को अपना विरोधी बना लिया है , इक ऐसी लड़ाई लड़ रहा हूं जिस में हारता रहता हूं हर बार। शायद हासिल कुछ भी नहीं होना है और बदलता भी नहीं कुछ भी मेरे चाहने से फिर भी खामोश रहना कठिन लगता है , सांस घुटती है। जीवन भर ऐसा काम करना जिस में आपको मुफलिसी के सिवा कुछ हासिल नहीं होना , सब लोग मानते हैं ऐसा काम नहीं करना चाहिए। मुझे लेकिन लगता है मेरा कर्तव्य है समाज की बात लिखना। लेखक होना इस देश में किसी अपराध जैसा है। तमाम लिखने वाले इस से बहुत कुछ हासिल करना चाहते हैं और अपनी चाहत पूरी करने को समय की धारा के साथ बहते हैं मगर मैं सदा धारा के विपरीत लहरों से टकराता और भंवर में जाने की मूर्खता करता आया हूं। मुझ से रात को दिन नहीं कहा जाता है न ही मैं इस तरफ या उस तरफ का होकर रहा हूं। चाटुकारिता नहीं सीखी और चुप रहकर भी वक़्त गुज़ारना नहीं आया मुझे। किसी योद्धा की तरह अपनी कलम से अकेला लड़ रहा हूं। यही जीवन का मकसद बन गया है। मुझे बिना समझे बिना मेरा लिखा पढ़े ही लोग मेरी आलोचना करते हैं कि मैं निराशा की ही बात लिखता हूं , जो मिला है वही तो देंगे , हम ग़मज़दा हैं लाएं कहां से ख़ुशी के गीत। देंगे वही जो पाएंगे इस ज़िंदगी से हम। गुरुदत्त की फिल्म की तरह है मेरा हाल भी। शायद मुझे कोई और राह बनाकर चलना चाहिए था मगर मेरे हाथ में कभी नहीं रहा फैसला अपनी राह खुद चुनने का और हमेशा हालात की आंधी मुझे अपने संग उड़ा कर ले जाती रही है। जो भी चाहा कभी नहीं मिला या सफल होने की काबलियत ही नहीं है मुझमें। ज़िंदगी के लंबे सफर में इतना आगे आकर वापसी का कोई विकल्प नहीं है न ही कोई और रास्ता ही है। कुछ नहीं पता कल क्या होगा शायद अंत का इंतज़ार जब मौत विराम लगा देगी और किसी को नहीं फुर्सत भी कि सोचे मैं कौन था क्या था किसी के सपने नहीं पूरे कर पाया और मेरा कोई सपना शायद था ही नहीं बस जैसे तैसे गुज़र बसर करने के सिवा और इक कल्पना में जीना कि कोई कभी मेरे लेखन की कुछ तो कीमत समझेगा। खाली हाथ आते हैं सब और खाली हाथ जाते भी हैं मगर जीवन में सार्थक किया क्या यही महत्व रखता है। मेरा प्रयास मेरा लेखन कितना सार्थक है मैं खुद तो नहीं तय कर सकता और लोग इसका मोल समझेंगे या नहीं मेरे लिए अनमोल है ये। 
 

 

जून 16, 2018

POST : 802 नींद क्यों रात भर नहीं आती ( खामखा की बात ) डॉ लोक सेतिया

  नींद क्यों रात भर नहीं आती ( खामखा की बात ) डॉ लोक सेतिया 

      बुरा हो जिसने अखबार का विचार शुरू किया। हर दिन कोई खबर उदास कर देती है। लोग न जाने कैसे चैन की बंसी बजाते हैं जब आस पास आग ही आग लगी हो। कबीर कहते हैं करेंगे सो भरेंगे तू क्यों भयो उदास। आपको क्या लगता है कबीर मस्ती करते थे , उदास नहीं होते थे। उदास होते थे मगर यही सोचते थे कि मेरे उदास होने से होगा क्या। रेणु जी कहते थे तुम कबीर न बनना मगर खुद सारी ज़िंदगी कबीर बने रहे। आजकल लोग खुश होने का पाठ पढ़ाते हैं वो भी सोशल मीडिया पर। ख़ुशी मिलती कहां कोई पता नहीं बताता है। नानक बाबा उदासी की बात करते हैं , उदास होना अर्थात विरक्त होना मोह माया के जाल से। नहीं हुआ जा सकता लाख कोशिश की , न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। कंचन लोह समान , कोई डर नहीं किसी से न ही किसी को डराना है। तब अख़बार टीवी नहीं थे फिर भी खबर सब को होती थी , अब खबर सुनकर भी बेखबर रहते हैं। खबर इक दूजे को भेजते हैं दिन भर व्हाट्सएप्प पर खुद बिना सोचे समझे , झूठ सच की परख भी कोई नहीं करता। टीवी वालों को खबर तलाश नहीं करनी पड़ती , खबर खुद चल कर आती है और वो दिन भर उस पर बहस करवाते हैं। सब वॉयरल वीडियो का सच बिना समझे समझाते हैं। खबर बड़े लोगों की होती है और मनोरंजन को होती है , रोने धोने की फुरसत किसे है। आप इस पर मत लिखना ये विषय बेहद गंभीर है किसी को आहत नहीं करना चाहिए। मत कहो आकाश में कोहरा घना है , ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है। खबरची लोग सीना तान कहते हैं ऐसा हमारी खबर का असर है , खबर की नहीं मगर होती खबर है। हमको इस सब से क्या लेना देना है , वास्तविक खबरों पर यही विचार आता है। कुछ सालों से अख़बार टीवी वाले सर्वेक्षण करते हैं लोग क्या खबर पढ़ना चाहते हैं , खबर भी लोगों की पसंद की हो सकती है। इक दोस्त लेखक की कविता है , कोई अच्छी खबर लिखना। बहुत कठिन है अच्छी खबर लिखना आजकल , अच्छे दिन की बात याद करते डर सा लगता है। सब तरफ यही हाल है जो नहीं करना करते हैं और जो करना है वो करते नहीं।  मैं भी मौत की बात लिखकर किसी की मौत को पल भर की खबर नहीं बना सकता , मौत आनी है आती है मगर ऐसे नहीं।  मौत का व्यौपार होने लगा है , लाशों पर रोटियां सेकने लगे हैं नेता ही नहीं खबरची भी। इस पर भी चर्चा थी सीमा पर सैनिक को आंतकवादी बंधक बनाकर मौत से पहले उसके साथ वीडिओ बनाते हैं बात का और वॉयरल भी करते हैं , उसकी खबर को महत्व देना है या इक पत्रकार की हत्या को। आम नागिक की मौत खबर नहीं होती है , उसका विज्ञापन छपता है शोक सभा का। किसी नेता की अस्पताल में जांच हो रही है तो दिन भर उनको इस तरह याद करते हैं टीवी वाले जैसे यमराज से सूचना मिली हो अभी अवसर है उनकी पुरानी बातों को याद कर लो। ज़िंदगी अब बता किधर जाएं , ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं। ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं , और क्या जुर्म है पता ही नहीं। बड़ी अच्छी ग़ज़ल है इक शायर की। लोग ग़ज़ल सुनते हैं आवाज़ की मधुरता और संगीत का लुत्फ़ उठाने को , समझते नहीं है अर्थ क्या है।  हर शेर पर तालियां नहीं बज सकतीं , बहुत शेर सन्नाटा मांगते हैं , ख़ामोशी। मगर ये शायर भी अजीब हैं वाह वाह चाहते हैं आह की बात पर आह निकलती नहीं किसी की ये कैसी संवेदना है। लोग जाते हैं अफ़सोस जताने कुछ पल को , अफ़सोस चार कदम बाद खो जाता है और कुछ और हो रहा होता है।  ये संवेदना भी संवेदनहीनता जैसी है। क्या हुआ है क्या लिखना है जो लिखा नहीं जाता कैसे कहूं। कोई समझेगा क्या राज़ ए गुलशन , जब तक उलझे न कांटों से दामन। बोये हैं बबूल तो कांटें हिस्से में आने ही थे , अब समयो रम गयो अब क्यों रोवत अंध। हर तरफ आग है दामन को बचाएं कैसे , रस्मे उल्फत को निभाएं तो निभाएं कैसे। बोझ होता जो ग़मों का तो उठा भी लेते , ज़िंदगी बोझ बनी हो तो उठाएं कैसे। पिता के कंधे पर बच्चे की लाश से बढ़कर बोझ क्या हो सकता है। किसी के साथ नहीं हो ऐसा खुदा , संभल जाओ हवाओं में ज़हर घुला हुआ है सांस लेना भी मुश्किल हुआ है। इस तरह किसी घर का चिराग नहीं बुझे कि उसके धुएं में तमाम उम्र दम घुटता रहे। 
 

 

जून 13, 2018

POST : 801 एक ही काफी है शुभचिंतक ( ज़िंदगी का सबक ) डॉ लोक सेतिया

  एक ही काफी है शुभचिंतक ( ज़िंदगी का सबक ) डॉ लोक सेतिया

     ये मेरे आपके सभी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। जैसे पुरानी कहावत है एन एप्पल ऐ डे , कीप्स डॉक्टर अवे। अर्थात एक सेब हर दिन खाओ तो बिमार नहीं पड़ोगे। उसमें कितनी सच्चाई है नहीं पता मगर मुझे इतना पता है कि एक सच्चा शुभचिंतक आपको हज़ार समस्याओं से निजात दिलवा सकता है। मगर इस युग में एक सच्चा दोस्त एक सच्चा हमदर्द एक सच्चा हमसफ़र मिलना सब से कठिन है। आज जो बात या जो कहानी आपको बताने जा रहा हूं वो आजकल की ही नहीं है बल्कि उन दो भाइयों की है जिन से आप भी परिचित हैं। दूसरे शब्दों में बहुत बड़े जाने माने परिवार की बात है। ध्यान से सुनिए। 
 
      दौलत इतनी कि खुद उनको नहीं मालूम कितनी है। झगड़ा दो भाइयों का और झ्गड़े की वजह कुछ भी नहीं , केवल अहंकार। पचास पचास बड़े बड़े वकील दोनों ने कर रखे मगर अदालत को भी समझ नहीं आया कि फैसला कैसे हो। यहां इक बात बतानी ज़रूरी है कि हमारे देश में आम नागरिक को बेगुनाही में भी सज़ा देते जिन को ख़ास परवाह नहीं होती , उन्हें बड़े लोगों के मुकदमों का निर्णय करते बहुत चिंता रहती है कि किसी को भी नाराज़ नहीं करना है। ये सब से बड़ा सच है कि कोई भी अदालती निर्णय दोनों पक्ष को पसंद नहीं आ सकता है। बहुत सोच समझ कर अदालत ने उनका मुकदमा सहमति से समझौता करवाने वाले इक वरिष्ठ वकील के पास भेज दिया। बहुत कुछ दांव पर था , शेयर कंपनियां और अकूत दौलत भी। बहुत महीने तक दोनों की बातें उनके वकीलों की बातें सुन कर भी मध्यस्ता करने वाले वरिष्ठ वकील को समझ आया कि जीवन भर लड़ते रहेंगे दो भाई मगर कोई भी अदालत या पंचायत इनका समझौता नहीं करवा सकती न ही ऐसा फैसला ही कर सकती है जो दोनों को मंज़ूर हो। 
 
                  ऐसे में उस मध्यस्ता करने वाले वकील ने कहा मुझे नहीं लगता मैं इक गुत्थी को सुलझा सकूं इसलिए मुझे अदालत को सूचित करने से पहले इन दोनों भाइयों से अकेले में थोड़ी देर बात करनी है और सभी वकील बाहर चले जाएं। वो इक शीशे की दीवारों का बना हाल था और बाहर खड़े सौ वकील भीतर की आवाज़ नहीं सुन सकते थे , देख रहे थे कि क्या होने जा रहा है। उनकी धड़कन बढ़ी हुई थी क्योंकि दो भाइयों में आपसी समझौता होना उनको हर दिन मिलने वाले लाखों रूपये का बंद होना भी था , ये बात उस वरिष्ठ वकील को समझ आ चुकी थी कि सब वकीलों का मकसद निपटारा कभी नहीं होने देने और अपनी कमाई ही था और कोई भी उनका शुभचिंतक नहीं था। घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या। दो घंटे दोनों भाइयों से एक साथ और अकेले अकेले बात करते मध्यथता करने वाले वकील को पता चला एक व्यक्ति है जिस पर दोनों भाई पूरा भरोसा करते हैं और उसका बहुत आदर करते हैं , मगर अभी तक वो सामने नहीं आया था। 
 
           वरिष्ठ वकील ने उसका फोन नंबर मांगा और तभी उस से फोन पर बात की। उसने बताया कि मैं हवाई अड्डे पर हूं और विदेश ज़रूरी काम से जा रहा हूं। वकील ने कहा कि क्या आप इन दो भाइयों के लिए अपने विदेश नहीं जाने से होने वाले नुकसान को भुला कर विदेश जाना छोड़ अभी आ सकते हैं। उस दोनों भाइयों के शुभचिंतक ने कहा कि अगर मेरे आने से ऐसा हो सकता है तो मैं अवश्य आ सकता हूं। मेरे लिए कारोबार में करोड़ों का फायदा नुकसान उतना महत्व नहीं रखता जितना इनकी भलाई। और वो व्यक्ति सीधा हवाई अड्डे से उस जगह चला आया था जहां ये सब चल रहा था। उसने दोनों भाइयों से आधा घंटा ही बात की और दोनों ही सहमत हो गए। सालों से जो काम सौ वकील और दोस्त रिश्तेदार नहीं करवा पाए थे पल भर में हो गया था। इस में कुछ भी झूठ या काल्पनिक नहीं है। आपका एक शुभचिंतक ऐसा हो जो आपकी भलाई के लिए अपना नुकसान भी बर्दाश्त कर सकता हो तो इस से अच्छा कुछ भी नहीं हो सकता। 
 
       अंत भी वास्तविक है। समझौता होने के बाद एक भाई ने दूसरे से कहा , हम क्या कर रहे थे कुछ समझ नहीं आया।  कोई लड़ाई की बात थी ही नहीं इतना किसी ने समझाया ही नहीं। वरिष्ठ वकील ने बताया , आप केवल वकीलों की वकालत देख रहे थे और कुछ भी नहीं।  मैं समझौते करवाने में माहिर हूं फिर भी मुझसे ये काम नहीं हो सकता था जो आपके एक सच्चे शुभचिंतक ने कर दिया है। वकीलों को आपकी लड़ाई से ही फायदा था समझौते से नहीं , बहुत लोगों के घर बिकते हैं अदालती झगड़ों में और उन्हीं से वकीलों की कोठियां बंगले बनते हैं। आप को कुछ समझ आया। एक शुभचिंतक तलाश करिये जीवन आसान हो जाएगा।