छिपा है गंदगी का ढेर चमक- दमक के पीछे ( डरावना सच )
सच की तिजारत करने वाले झूठ के पैरोकार लोग ( सोशल मीडिया ) डॉ लोक सेतिया
पहले अपनी इक ग़ज़ल उसके बाद बात सच बेचने वालों की :-
ग़ज़ल- डॉ लोक सेतिया "तनहा"
वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिये
झूठ के साथ वो लोग खुद हो लिये।
देखा कुछ ऐसा आगाज़ जो इश्क़ का
सोच कर उसका अंजाम हम रो लिये।
हम तो डर ही गये , मर गये सब के सब
आप ज़िंदा तो हैं , अपने लब खोलिये।
घर से बेघर हुए आप क्यों इस तरह
राज़ आखिर है क्या ? क्या हुआ बोलिये।
जुर्म उनके कभी भी न साबित हुए
दाग़ जितने लगे इस तरह धो लिये।
धर्म का नाम बदनाम होने लगा
हर जगह इस कदर ज़हर मत घोलिये।
महफ़िलें आप की , और "तनहा" हैं हम
यूं न पलड़े में हल्का हमें तोलिये।
बताने की ज़रूरत नहीं कि सबसे अधिक गंदगी उन्हीं के घरों में छिपी हुई है जो शानदार लिबास पहने चमकती रौशनी वाले महलों में बैठे मख़मली कालीन पर पांव रख कर चलते हैं। बड़ी बेशर्मी से ऊंची आवाज़ में सवाल करते हैं खुद जवाब नहीं देते कि उनका ज़मीर कितने में किस किस को कितनी बार बेचा है। ज़िंदा मुर्दा की ये मिसाल अलग है वो नहीं जिसको अस्पताल में डॉक्टर ने मरा घोषित किया था और वो बोल रहा था मुझ में जान बाकी है। ये वो नहीं हैं जिनमें थोड़ा ईमान बाकी है। ऊपर जाने की हसरत में कितना नीचे गिर गये ये टीवी चैनल अख़बार मीडिया वाले फिर भी इनका और भी उंचाई का अरमान बाकी है उन्होंने ज़मीन से नाता तोड़ लिया है और झूठ वाला आसमान बाकी है। कुछ लोग औरों की तकलीफ़ देखते हैं और रोमांच का आनंद का अनुभव करते हैं। जिस की हालत खराब हो उसकी तकलीफ़ नहीं समझते बल्कि सवालात करते हैं आपको कैसा महसूस हो रहा है। खबरची बनते मानवीय संवेदना छूट जाती है और इंसान मशीन बनकर बोलता चलता है टीवी वालों को आपराधिक कहानियां मनोरंजन के नाम पर परोसना अच्छा लगता है जानकारी देने को नहीं गुमराह करने के लिए। सवाल समाज का नहीं पैसे टीआरपी का है।
चलिये समझते हैं इनकी असलियत कोई पहेली नहीं है। बेईमानी झूठ लूट घोटाला अपराध से लेकर समाज में नग्नता और अश्लीलता के साथ नैतिकता के पतन को बढ़ावा देने के बाद खुद को सबसे महान आदर्शवादी घोषित करने का काम करते हैं। सरकारी विज्ञापन की लूट देश का ऐसा सबसे बड़ा घोटाला है जिस में देश का खज़ाना जनता की कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च होने की जगह इन मुट्ठी भर लोगों की तिजोरियां भरने में बर्बाद होता है और ऐसा 73 साल से नियमित होता रहा है जिसकी धनराशि बढ़ती बढ़ती दैत्याकार रूप ले चुकी है। ये लुटेरे मसीहाई की बात करते हैं चोर अधिकारी नेताओं से मिलकर डाका डालते सबसे बड़ा हिस्सा पाते हैं।
इनके सीरियल से रियलटी शो और चर्चा तक नैतिकता की धज्जियां उड़ाते हैं हिंसा और अराजकता से लेकर जुआ अंधविश्वास और धार्मिक बैरभाव फैलाने का काम करते हैं। सच को छिपाते नहीं दफ्नाते हैं और झूठ को सच साबित करने को मनघडंत किस्से कहानी बनाकर दर्शक को उलझाते हैं। सच का लेबल लगाकर झूठ को मनचाहे दाम बेचते हैं फिर भी सच के रखवाले कहलाते हैं। हर घटिया चीज़ को असली खरी और बढ़िया बताकर बिकवाते हैं ठगों चोरों से भाईचारा निभाते हैं। ये कमाल करते हैं उल्टी गंगा बहाते हैं और सत्ता की गंदगी के गंदे नाले को पाक साफ़ समझ उसमें डुबकी लगाते हैं। पाप और अधर्म की कमाई से गुलछर्रे उड़ाते हैं अपनी करनी पर कभी नहीं लजाते हैं हराम की खाकर शान से इतराते हैं। सदी के महानायक जिनको बनाते हैं वो पैसे को अपना भगवान समझते हैं मोह माया में फंसकर ज़हर को दवा कहकर धन दौलत बनाते हैं झूठ का इश्तिहार बन जाते हैं। खिलाड़ी नाम खेल से पाकर जुआ खेलने का रास्ता समझाते हैं। कलाकार खिलाड़ी बाबा बनकर लोग टीवी अखबार में धंधा बढ़ाते मालामाल हो जाते हैं। छोटे काम करते बड़े समझे जाते हैं। खबर ख़ास लोगों की सौ बार दोहराई जाती है उनकी सच्चाई नहीं सामने लाई जाती है। आवारगी उन लोगों की सच्ची मुहब्बत बताई जाती है। कितने कितने आशिक़ों से प्यार की पींगें झूलने वाली नायिका मल्लिका ए इश्क़ कहलाती है। शराफत खुद को गुनहगार समझती मगर गुनाह देख इनके ताली बजाती है।
हर गुनहगार से इनका मधुर नाता है आतंकवादी अपराधी क़ातिल हर कोई इनसे रिश्ता निभाता है। पास इनके सभी का बही खाता है बस इनका दाग़दार चेहरा कभी नहीं सामने नज़र आता है। मेकअप उनको सबसे खूबसूरत दिखलाता है। जो भी टीवी चैनल अख़बार सोशल मीडिया का कारोबार चलाता है हर किसी को खराब बताकर खुद को सच्चा बतलाता है पर्दे पर नायक बनकर किरदार निभाता है। पीछे से सभी को अपनी उंगलियों पर नचाता है। ये बंदर की तरह जनता का रक्षक बनकर उस्तरा उसी की गर्दन पर चलाता है। जनता की रोटी बिल्लियों में बांटने को ये सोशल मीडिया वाला बंदर तराज़ू बनकर खुद खाता जाता है। चौकीदार हुआ करता था पहले आजकल यारी चोरों से खूब निभाता है। सबसे बड़ा चोर यही है चोर - चोर का शोर भी मचाता है।