अक्टूबर 22, 2012

POST : 195 गर्दिश में मुझे यूं छोड़ के जाने वाले ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

गर्दिश में मुझे यूं छोड़ के जाने वाले ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

गर्दिश में मुझे यूं छोड़ के जाने वाले
ले ,छोड़ गए तुझको भी ज़माने वाले ।

मुझको भी आया अब तो आंसू पीना
तेरा अहसां है मुझको रुलाने वाले ।

होने वाले वो कब हैं किसी के यारो
बाज़ार मुहब्बत का ये सजाने वाले ।

हो कर बेज़ार ये आखिर क्यों रोते हैं
खुद कर के सितम यूं हमको सताने वाले ।

यूं तो रह जाते न हम सब "तनहा"
जो न रूठे होते वो हमको मनाने वाले । 
 

 

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