अगस्त 31, 2012

POST : 104 सिसकियां ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

      सिसकियां ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

वो सुनता है
हमेशा
सभी की फ़रियाद
नहीं लौटा कभी कोई
दर से उसके खाली हाथ ।

शोर बहुत था
उसकी बंदगी करने वालों का वहां
तभी शायद 
सुन पाया नहीं
आज ख़ुदा भी वहां
मेरी सिसकियों की आवाज़ ।  

अगस्त 30, 2012

POST : 103 आई हमको न जीने की कोई अदा ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आई हमको न जीने की कोई अदा ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आई हमको न जीने की कोई अदा
हम ने पाई है सच बोलने की सज़ा।

लब पे भूले से किसका ये नाम आ गया
जो हुए बज़्म के लोग मुझ से खफ़ा।

जो करें भी शिकायत तो किस बात की 
क़त्ल करना किसी को है उनकी अदा।

हो गया जीना इन्सां का मुश्किल यहां
इतने पैदा हुए हैं जहां में खुदा।

हैं कुछ ऐसे भी इस दौर के चारागर               ( चारागर = चिकित्सक )
ज़हर भी जो पिलाते हैं कह कर दवा।

हाथ में हाथ लेकर सफ़र पर चलें
पूछना किसलिए मंज़िलों का पता।
 
सब वफ़ादार खुद को बताते रहे 
और "तनहा" को कहते रहे बेवफ़ा।

POST : 102 जीने की तमन्ना न मरने का इरादा है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

        जीने की तमन्ना न मरने का इरादा है ( ग़ज़ल ) 

                       डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

जीने की तमन्ना न मरने का इरादा है
हाँ मुहब्बत में हद से गुज़रने का इरादा है ।

अब कैसे बचेंगे उन्हें चाहने वाले सब
उनका आज सजने -संवरने का इरादा है ।

लड़ना है दिलो जान से ठान लिया है अब
ज़ालिम के ज़ुल्म से न डरने का इरादा है ।

लिखनी दास्तां है लहू से अपने कोई
कहने का नहीं अब तो करने का इरादा है ।

बढ़ते ये कदम रोकने से न रुकेंगे अब
मंज़िल पे पहुंच के ठहरने का इरादा है ।

हम ने थाम ली है ये पतवार तुफानों में
"तनहा" हौंसलों से उतरने का इरादा है ।
 

 
 
 

POST : 101 हैं उधर सारे लोग भी जा रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हैं उधर सारे लोग भी जा रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हैं उधर सारे लोग भी जा रहे
रास्ता अंधे सब को दिखा रहे ।

सुन रहे बहरे ध्यान से देख लो
गीत सारे गूंगे जब गा रहे ।

सबको है उनपे ही एतबार भी
रात को दिन जो लोग बता रहे ।

लोग भूखे हैं बेबस हैं मगर
दांव सत्ता वाले हैं चला रहे ।

घर बनाने के वादे कर रहे
झोपड़ी उनकी भी हैं हटा रहे ।

हक़ दिलाने की बात को भूलकर
लाठियां हम पर आज चला रहे ।

बेवफाई की खुद जो मिसाल हैं
हम को हैं वो "तनहा" समझा रहे ।
 

  

POST : 100 शीर्षक की तलाश में ( अनकही कहानी ) डॉ लोक सेतिया

         शीर्षक की तलाश में ( अनकही कहानी ) डॉ लोक सेतिया 

 ये ज़िंदगी की दास्तान है जिस में कुछ भी स्थाई नहीं निर्धारित नहीं , कोई सुःख दुःख कोई मिलन जुदाई कोई शिकवा शिकायत गिले होने पर भी वास्तव में कुछ नहीं बस जीवन में बदलाव होना इक निशानी है । सिर्फ खुद ही हमेशा उलझन है और समाधान भी जैसा जीवन मिले स्वीकार करना चलते रहना है । इसी कारण खुद को छोड़ किसी और किरदार का कोई महत्व नहीं है जैसे कोई मुसाफ़िर किसी वाहन रेलगाड़ी से सफर करता है और रास्ते में कितने पड़ाव कितने यात्री आते जाते हैं कुछ पल या समय का साथ निभाते हैं । प्यार मनमुटाव जैसी बातें व्यर्थ हैं चिंता करने से हासिल कुछ नहीं होता है । अकेले आना है अकेले ही इक दिन सफ़र पूरा कर लौट जाना है , कहां से आये कहां जाना है किसी को नहीं मालूम बस चार घड़ी का मेला है ज़िंदगी ।
 
हर कहानी में कितने किरदार होते हैं ये दास्तां हैं जिस में कोई भी किरदार ही नहीं है खुद जिसकी बात है वो भी नहीं मिलता सिर्फ कुछ ख़्वाब कुछ भूली बिसरी यादें मिल जाती हैं कितनी ही कहानियों में । सभी का था जो उसका कौन अपना है उसे नहीं मिला ज़िंदगी भर ढूंढता रहा दुनिया भर में शहर शायर गांव गांव तलाश सिर्फ उसी को जो मुमकिन है सिर्फ कल्पना ही हो वास्तव में कोई ऐसा हो ही नहीं लेकिन उसको भरोसा था वो न केवल है बल्कि इक दिन मिलेगा भी । बचपन से बड़े होने तक अनगिनत लोगों से पहचान हुई सभी से साथ रहा कभी थोड़ा थोड़ा अधिक मगर हर कोई किसी मोड़ से अलग हो कर अपनी अपनी राह चला जाता रहा छोड़ कर या बिछुड़ कर । ज़रूरत थी तब अपनापन था संग संग चलने और मंज़िल तक रिश्ता निभाने की बातें हुई पर ज़रूरत नहीं रही तब कारण कितने थे रास्ता बदलने के लिए । जो भी मिलता हर कोई उस पर अधिकार समझ कर उसका उपयोग करता रहता कभी किसी पर उसको अपना अधिकार महसूस तक नहीं हुआ । महफ़िल में सभी अपनों की भीड़ में हमेशा अकेला अजनबी बनकर रहना उसकी नियति थी जैसे कोई अनचाहा बिना बुलाया महमान हो । 
 
कभी कभी विधाता से कहता क्या तुमने मेरे नसीब में वही शब्द नहीं लिखा जिसको लिखना ज़रूरी था शुरुआत ही प्यार शब्द से करनी थी , कभी किसी से चाहत नहीं मिली सभी ने ठोकर लगाई तिरस्कार किया छोटा समझा बराबर नहीं बिठाया कभी । अपनी व्यथा किसी को भी कभी सुना नहीं पाया हर कोई उसको अपनी बात कह कर चला जाता उस से नहीं पूछा क्यों इतने उदास इतने निराश रहते हो । अकेले ही अपने आंसूं बहाना उसकी आदत बनती गई सबके सामने ख़ामोश रहना चुपचाप दर्द सहना तकदीर ने उसे यही दिया था । कुछ कविताओं से इक बदनसीब की अनकही कहानी की बात समझने की कोशिश करते हैं । 
 

               कैद ( कविता )

कब से जाने बंद हूं
एक कैद में मैं
छटपटा रहा हूँ
रिहाई के लिये ।

रोक लेता है हर बार मुझे 
एक अनजाना सा डर
लगता है कि जैसे 
इक  सुरक्षा कवच है
ये कैद भी मेरे लिये ।

मगर जीने के लिए
निकलना ही होगा
कभी न कभी किसी तरह
अपनी कैद से मुझको ।

कर पाता नहीं
लाख चाह कर भी
बाहर निकलने का
कोई भी मैं जतन ।

देखता रहता हूं 
मैं केवल सपने
कि आएगा कभी मसीहा
कोई मुझे मुक्त कराने 
खुद अपनी ही कैद से । 
 
 

                  मैं ( नज़्म ) 

मैं कौन हूं
न देखा कभी किसी ने
मुझे क्या करना है
न पूछा ये भी किसी ने
उन्हें सुधारना है मुझको
बस यही कहा हर किसी ने ।

और सुधारते रहे
मां-बाप कभी गुरुजन
नहीं सुधार पाए हों दोस्त या कि दुश्मन ।

चाहा सुधारना पत्नी ने और मेरे बच्चों ने
बड़े जतन किए उन सब अच्छों ने
बांधते रहे रिश्तों के सारे ही बंधन
बनाना चाहते थे मिट्टी को वो चन्दन ।

इस पर होती रही बस तकरार
मानी नहीं दोनों ने अपनी हार
सोच लिया मैंने
जो कहते हैं सभी
गलत हूंगा मैं
वो सब ही होंगें सही
चाहा भी तो कुछ कर न सका मैं
सुधरता रहा
पर सुधर सका न मैं ।

बिगड़ा मैं कितना
कितनी बिगड़ी मेरी तकदीर
कितने जन्म लगेंगे
बदलने को मेरी तस्वीर 
जैसा चाहते हैं सब
वैसा तभी तो मैं बन पाऊं ।

पहले जैसा हूं
खत्म तो हो जाऊं
मुझे खुद मिटा डालो 
यही मेरे यार करो
मेरे मरने का वर्ना कुछ इंतज़ार करो । 
 


                   प्यास प्यार की ( कविता )

कहलाते हैं बागबां भी 
होता है सभी कुछ  उनके पास 
फिर भी खिल नहीं पाते 
बहार के मौसम में भी
उनके आंगन के कुछ पौधे ।

वे समझ पाते नहीं 
अधखिली कलिओं के दर्द को  ।

नहीं जान पाते 
क्यों मुरझाये से रहते  हैं
बहार के मौसम में भी 
उनके लगाये पौधे
उनके प्यार के बिना ।

सभी कहलाते हैं
अपने मगर
नहीं होता उनको
कोई सरोकार
हमारी ख़ुशी से
हमारी पीड़ा से ।

दुनिया में मिल जाते हैं
दोस्त बहुत
मिलता नहीं वही एक
जो बांट सके हमारे दर्द भी
और खुशियां भी
समझ सके
हर परेशानी हमारी 
बन कर किरण आशा की 
दूर कर सके अंधियारा
जीवन से हमारे ।

घबराता है जब भी मन
तनहाइयों से
सोचते हैं तब
काश होता अपना भी कोई ।

भागते जा रहे हैं
मृगतृष्णा के पीछे हम सभी
उन सपनों के लिये
जो नहीं हो पाते कभी भी पूरे ।

उलझे हैं सब
अपनी उलझनों में
नहीं फुर्सत किसी को 
किसी के लिये भी
करना चाहते हैं हम 
अपने दिल की किसी से बातें
मगर मिलता नहीं कोई 
हमें समझने वाला ।

सामने आता है
हम सब को नज़र 
प्यार का एक
बहता हुआ दरिया 
फिर भी नहीं मिलता 
कभी चाहने पर किसी को
दो बूंद भी  पानी
बस इतनी सी ही है 
अपनी तो कहानी । 
 
 

             बेबस जीवन ( कविता ) 

रातों को अक्सर
जाग जाता हूं
खिड़की से झांकती
रौशनी में
तलाश करता हूं
अपने अस्तित्व को ।

सोचता हूं
कब छटेगा
मेरे जीवन से अंधकार ।

होगी कब
मेरे लिये भी सुबह ।

उम्र सारी
बीत जाती है 
देखते हुए  सपने 
एक सुनहरे जीवन के ।

मैं भी चाहता हूं
पल दो पल को 
जीना ज़िंदगी को
ज़िंदगी की तरह ।

कोई कभी करता 
मुझ से भी जी भर के प्यार 
बन जाता कभी कोई
मेरा भी अपना ।

चाहता हूं अपने आप पर
खुद का अधिकार
और कब तक
जीना होगा मुझको
बन कर हर किसी का
सिर्फ कर्ज़दार
ज़िंदगी पर क्यों 
नहीं है मुझे ऐतबार । 
 
 

                  मुझे लिखना है  ( कविता ) 

कोई नहीं पास तो क्या
बाकी नहीं आस तो क्या ।

टूटा हर सपना तो क्या
कोई नहीं अपना तो क्या ।

धुंधली है तस्वीर तो क्या
रूठी है तकदीर तो क्या ।

छूट गये हैं मेले तो क्या
हम रह गये अकेले तो क्या ।

बिखरा हर अरमान तो क्या
नहीं मिला भगवान तो क्या ।

ऊँची हर इक दीवार तो क्या
नहीं किसी को प्यार तो क्या ।

हैं कठिन राहें तो क्या
दर्द भरी हैं आहें तो क्या ।

सीखा नहीं कारोबार तो क्या
दुनिया है इक बाज़ार तो क्या ।

जीवन इक संग्राम तो क्या
नहीं पल भर आराम तो क्या ।

मैं लिखूंगा नयी इक कविता
प्यार की  और विश्वास की ।

लिखनी है  कहानी मुझको
दोस्ती की और अपनेपन की ।

अब मुझे है जाना वहां
सब कुछ मिल सके जहाँ ।

बस खुशियाँ ही खुशियाँ हों 
खिलखिलाती मुस्कानें हों ।

फूल ही फूल खिले हों
हों हर तरफ बहारें ही बहारें ।

वो सब खुद लिखना है मुझे
नहीं लिखा जो मेरे नसीब में । 
 
 

              रास्ते ( कविता ) 

मंज़िल की जिन्हें चाह थी
मिल गई
उनको मंज़िल ।

मैं वो रास्ता हूं
गुज़रते रहे जिससे हो कर 
दुनिया के सभी लोग ।

तलाश में अपनी अपनी
मंज़िल की 
मैं रुका हुआ हूं
इंतज़ार में प्यार की ।
 
रुकता नहीं
मेरे साथ कोई भी 
कुचल कर
गुज़र जाते हैं सब
मंज़िल की तरफ आगे ।
 
सबको भाती हैं
मंज़िलें 
बेमतलब लगते हैं रास्ते ।

क्या मिल पाती तुम्हें मंज़िलें 
न होते जो रास्ते ।

रास्तों को पहचान लो 
उनका दर्द
कभी तो जान लो । 
 

                शून्यालाप ( कविता ) 

अंतिम पहर जीवन का
समाप्त हुआ अब बनवास
त्याग कर बंधन सारे
चल देना है अनायास
राह नहीं कुछ चाह नहीं
समाप्त हुआ वार्तालाप ।

विलीन हो रही आस्था
टूट रहा हर विश्वास
तम ने निगल लिया सूरज
जाने कैसा है अभिशाप ।

फैला है रेत का सागर
जल रहा तन मन आज
शब्द स्तुति के सब बिसरे
छूट गया प्रभु का साथ ।

मनाया उम्र भर तुमको
माने न तुम कभी मगर
खो जाना एक शून्य में
बनाना है शून्य को वास ।

अब खोजना नहीं किसी को
न आराधना की है आस
करना है समाप्त अब
खुद से खुद का भी साथ । 
 
 
 

                      थकान ( कविता ) 

जीवन भर चलता रहा
कठिन पत्थरीली राहों पर
मुझे रोक नहीं सके
बदलते हुए मौसम भी ।

पर मिट नहीं सका
फासला
जन्म और मृत्यु के बीच का ।

चलते चलते थक गया जब कभी
और खोने लगा धैर्य
मेरी नज़रें ढूंढती रहीं
किसी को जो चलता
कुछ कदम तक साथ साथ मेरे ।

और प्यार भरे बोलों से
भुला देता सारी थकान
जाने कहां अंत होगा
धरती - आकाश से लंबे
इस सफर का
और कब मिलेगा मुझे आराम ।



                      दो आंसू ( कविता )  

हर बार मुझे
मिलते हैं दो आंसू
छलकने देता नहीं
उन्हें पलकों से ।

क्योंकि
वही हैं मेरी
उम्र भर की
वफाओं का सिला ।

मेरे चाहने वालों ने
दिया है
यही ईनाम
बार बार मुझको ।

मैं जानता हूं
मेरे जीवन का
मूल्य नहीं है
बढ़कर दो आंसुओं से ।

और किसी दिन
मुझे मिल जायेगी
अपनी ज़िंदगी की कीमत ।

जब इसी तरह कोई
पलकों पर संभाल कर 
रोक  लेगा अपने आंसुओं को
बहने नहीं देगा पलकों  से
दो आंसू । 

एक अनकही कहानी "ek ankahi kahani"







 
 

अगस्त 29, 2012

POST : 99 मिला था कभी इक पैगाम दोस्ती का ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       मिला था कभी इक पैगाम दोस्ती का ( ग़ज़ल ) 

                      डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मिला था कभी इक पैगाम दोस्ती का
हमें अब डराता है नाम दोस्ती का ।

बुझाता नहीं साकी प्यास क्यों हमारी
कभी तो पिलाता इक जाम दोस्ती का ।

नहीं दोस्त बिकते बाज़ार में कभी भी
चुका कौन पाया है दाम दोस्ती का ।

करेगा तिजारत की बात जब ज़माना
रखेंगे बहुत ऊँचा दाम दोस्ती का ।

हमें जीना मरना है साथ दोस्तों के
सभी को है देना पैग़ाम दोस्ती का ।

वफ़ा नाम देकर करते हैं बेवफाई
किया नाम "तनहा" बदनाम दोस्ती का । 
 

 

POST : 98 बिजलियों का भी धड़का है बरसात में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

        बिजलियों का भी धड़का है बरसात में ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बिजलियों का भी धड़का है बरसात में
क्या गज़ब ढाये काली घटा रात में।

कुछ कहा सादगी से भी उसने अगर
राज़ था इक छुपा उसकी हर बात में।

कम नहीं है ज़माने के लोगों से वो
बस लिया देख पहली मुलाक़ात में।

राह तकती किसी की वो छत पर खड़ी
देखा जब भी उसे चांदनी रात में।

हारते सब रहे इस अजब खेल में
लोग उलझे रहे यूँ ही शह-मात में। 

POST : 97 मुश्किलों का नाम है ये ज़िंदगी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मुश्किलों का नाम है ये ज़िंदगी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मुश्किलों का नाम है ये ज़िंदगी
दर्द का इक जाम है ये ज़िंदगी।

याद रहता है हमें जो उम्र भर
मौत का पैगाम है ये ज़िंदगी।

मुस्कुराती सुबह आती है मगर
फीकी फीकी शाम है ये ज़िंदगी।

है कभी फूलों सी कांटों सी कभी
नित नया अंजाम है ये ज़िंदगी।

जानते ये राज़ "तनहा" काश हम
इक बड़ा ईनाम है ये ज़िंदगी।
 

POST : 96 आपने जब पिलाना छोड़ दिया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आपने जब पिलाना छोड़ दिया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आपने जब पिलाना छोड़ दिया
मयकदे हमने जाना छोड़ दिया ।

रोज़ महफ़िल जमाना छोड़ दिया
घर किसी को बुलाना छोड़ दिया ।

अब कहीं आना जाना छोड़ दिया
आपका आशियाना छोड़ दिया ।

दोस्तों का ठिकाना छोड़ दिया
दुश्मनों से निभाना छोड़ दिया ।

ज़िंदगी को डराना छोड़ दिया
अब ज़हर रोज़ खाना छोड़ दिया ।

चारागर को बुलाना छोड़ दिया
दर्द को खुद बढ़ाना छोड़ दिया ।

गैर सारा ज़माना छोड़ दिया
आज "तनहा" ने माना छोड़ दिया ।
                                                    
(  चारागर = डॉक्टर = चिकित्सक )

अगस्त 27, 2012

POST : 95 महफ़िल में जिसे देखा तनहा-सा नज़र आया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

      महफ़िल में जिसे देखा तनहा-सा नज़र आया ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ लोक सेतिया "तनहा"

महफ़िल में जिसे देखा तनहा-सा नज़र आया
सन्नाटा वहां हरसू फैला-सा नज़र आया ।

हम देखने वालों ने देखा यही हैरत से
अनजाना बना अपना , बैठा-सा नज़र आया ।

मुझ जैसे हज़ारों ही मिल जायेंगे दुनिया में
मुझको न कोई लेकिन , तेरा-सा नज़र आया ।

हमने न किसी से भी मंज़िल का पता पूछा
हर मोड़ ही मंज़िल का रस्ता-सा नज़र आया ।

हसरत सी लिये दिल में , हम उठके चले आये
साक़ी ही वहां हमको प्यासा-सा नज़र आया ।  

POST : 94 इस दरजा एतबार क्यों ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

इस दरजा एतबार क्यों ( ग़ज़ल ) डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

इस दरजा एतबार क्यों
कहते हो बार बार क्यों ।

कोई बताये किस तरह
ग़म का है इव्वास्तगार क्यों ।

मुरझाये गुल कभी नहीं
उस को न इख्तियार क्यों ।

जाने किसी के आने का
हम को है इंतज़ार क्यों ।

पूछो न हमसे आज तुम
दिल का गया करार क्यों ।

उनको सुना नई ग़ज़ल
"तनहा" है बेकरार क्यों ।   

 

POST : 93 हादिसों की अब तो आदत हो गई है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       हादिसों की अब तो आदत हो गई है ( ग़ज़ल ) 

                     डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हादिसों की अब तो आदत हो गई है
ग़म से कुछ कुछ हमको राहत हो गई है ।

बस खबर ही आपकी पहचान है अब
आपकी कैसी ये शोहरत हो गई है ।

किस तरह बाज़ार सारा हम खरीदें
उनको तो हर शै की चाहत हो गई है ।

थे मुहब्बत करने वालों के जो दुश्मन
आज उनको भी मुहब्बत हो गई है ।

भूल जाते हैं सभी कसमें वफ़ा की
बेवफाई अब तो आदत हो गई है ।

लोग अपने आप से अनजान "तनहा"
आजकल कुछ ऐसी हालत हो गई है । 
 

 

POST : 92 शिकवा किस्मत का न करना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

शिकवा किस्मत का न करना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

शिकवा किस्मत का न करना
ग़म से घबरा कर न मरना ।

माना ये दुनिया है ज़ालिम
तुम न इस दुनिया से डरना ।

नफरतों की है ये दल दल
तुम इधर से मत गुज़रना ।

अश्क पी लेना मगर तुम
प्यार को रुसवा न करना ।

तुम न पहचानो जो खुद को
इस कदर भी मत संवरना ।

हो सका न निबाह तुम से
तुम न इस सच से मुकरना । 
 
 



POST : 91 वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिए ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

      वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिए ( ग़ज़ल ) 

                    डॉ लोक सेतिया "तनहा"


वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिये 
झूठ के साथ वो लोग खुद हो लिये । 
 
देखा कुछ ऐसा आगाज़ जो इश्क़ का 
सोच कर उसका अंजाम हम रो लिये । 
 
हम तो डर ही गये , मर गये सब के सब 
आप ज़िंदा तो हैं , अपने लब खोलिये । 
 
घर से बेघर हुए आप क्यों इस तरह 
राज़ आखिर है क्या ? क्या हुआ बोलिये । 
 
जुर्म उनके कभी भी न साबित हुए 
दाग़ जितने लगे इस तरह धो लिये । 
 
धर्म का नाम बदनाम होने लगा 
हर जगह इस कदर ज़हर मत घोलिये ।
 
महफ़िलें आप की , और "तनहा" हैं हम 
यूं न पलड़े में हल्का हमें तोलिये । 
 
 

POST : 90 बहस भ्र्ष्टाचार पर वो कर रहे थे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बहस भ्र्ष्टाचार पर वो कर रहे थे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बहस भ्रष्टाचार पर वो कर रहे थे
जो दयानतदार थे वो डर रहे थे।

बाढ़ पर काबू पे थी अब वारताएं
डूब कर जब लोग उस में मर रहे थे।

पी रहे हैं अब ज़रा थक कर जो दिन भर
मय पे पाबंदी की बातें कर रहे थे।

खुद ही बन बैठे वो अपने जांचकर्ता
रिश्वतें लेकर जो जेबें भर रहे थे।

वो सभाएं शोक की करते हैं ,जो कल
कातिलों से मिल के साज़िश कर रहे थे।

भाईचारे का मिला इनाम उनको
बीज नफरत के जो रोपित कर रहे थे। 

POST : 89 दर्द दे कर हमें जो सताये कोई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

दर्द दे कर हमें जो सताये कोई ( ग़ज़ल ) डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

दर्द दे कर हमें जो सताये कोई
हम किधर जाएं फिर ये बताये कोई ।

रूठ कर हम तो बैठे हैं इस आस में
हम को अपना समझ कर मनाये कोई ।

दर खुला हमने रक्खा है इस वास्ते
कोई वादा नहीं फिर भी आये कोई ।

बेख्याली में कब जाने किस मोड़ पर
राह में हाथ हमसे मिलाये कोई ।

याद आये किसी की तो भर आये दिल
इस तरह भी न हम को रुलाये कोई ।

अश्क पलकों पे आ कर छलकने लगें
इस कदर आज हमको हंसाये कोई ।

शाम ढलते ही इस धुन में रहते हैं हम
काश पुरदर्द नग्मा सुनाये कोई ।

अगस्त 26, 2012

POST : 88 न आयें अगर वो करें क्या बताओ ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

न आयें अगर वो करें क्या बताओ ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

न आयें अगर वो , करें क्या बताओ
वो आयें , बहाना कुछ ऐसा बनाओ ।

कशिश उनके दिल में भी पैदा करो तुम
उन्हें , वरना तुम , कर के कोशिश भुलाओ ।

मुहब्बत कभी इस तरह भी हुई है
बुलायें तुम्हें पास तुम दूर जाओ ।

उसे सिज्दा कर के हुए हम तो काफ़िर
अगर हो सके उस खुदा को मनाओ ।

जो उम्मीद टूटी तो फिर होगी मुश्किल
न यूँ दिल को झूठे दिलासे दिलाओ ।

जगह दो न दो अपने दिल में हमें तुम
बस इक बार हमसे नज़र तो मिलाओ ।

वो अनजान बनते हैं सब जान कर भी
उन्हें हाल-ए-दिल तुम न "तनहा" सुनाओ ।  

POST : 87 तुम ही न मिले एक ज़माना तो मिला है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

        तुम ही न मिले एक ज़माना तो मिला है ( ग़ज़ल ) 

                            डॉ लोक सेतिया "तनहा"

तुम ही न मिले एक ज़माना तो मिला है
ये मेरी वफाओं का मिला खूब सिला है ।

इक बूँद को तरसा किये हम प्यास के मारे
ऐसे तो बरसता न ये सावन से गिला है ।

आती रही यूं तो बहारें ही बहारें
बिन तेरे मगर दिल का कोई फूल खिला है ।

मिल जाते हैं हमदर्द यहां कहने को लेकिन
बांटे भी वो हम किससे जो ग़म तुम से मिला है ।

हंसता है खुदा जाने ये क्यूं हम पे ज़माना
आंसू कोई शायद तेरी पलकों पे ढला है ।

दो पल ही गुज़ारे थे तेरे साथ ब-मुश्किल
इक उम्र बड़ी पा के मगर "लोक" चला है ।

POST : 86 रंक भी राजा भी तेरे शहर में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

रंक भी राजा भी तेरे शहर में ( ग़ज़ल ) डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

रंक भी राजा भी तेरे शहर में
मैं कहूं यह  बात तो किस बहर में ।

नाव तूफां से जो टकराती रही
वो किनारे जा के डूबी लहर में ।

ज़ालिमों के हाथ में इंसाफ है
रोक रोने पर भी है अब कहर में ।

मर के भी देते हैं सब उसको दुआ
जाने कैसा है मज़ा उस ज़हर में ।
 
मत कभी सिक्कों में तोलो प्यार को 
जान हाज़िर मांगने को महर में । 
 
अब समझ आया हुई जब शाम है 
जान लेते काश सब कुछ सहर में । 
 
एक सच्चा दोस्त "तनहा" चाहता 
मिल सका कोई नहीं इस दहर में । 
 
 
      { अब किसी पर हम भरोसा क्या करें 
       लोग सब जाते बदल इक  पहर में। }

POST : 85 उस को यूं हैरत से मत देखा करो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

उस को यूं हैरत से मत देखा करो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

उस को यूं हैरत से मत देखा करो
ज़िंदगी तो हादिसों का नाम है ।

जिसको ठुकराने चले तुम बिन पढ़े
दोस्ती ही का तो वो पैगाम है ।

उठ गया अब तो जहां से ऐतबार
शहर वालों में ये चर्चा आम है ।

काफिले में चल रहे हैं साथ साथ
अपनी अपनी फिर भी तन्हा शाम है ।

देख कर लाशें कभी रोते नहीं
खोदना ही कब्र उनका काम है ।

"सत्यवादी" कह के हंसता है जहां
बस यही सच कहने का ईनाम  है । 
 

 

POST : 84 बस मोहब्बत से उसको शिकायत रही ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

         बस मोहब्बत से उसको शिकायत रही ( ग़ज़ल ) 

                            डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बस मोहब्बत से उसको शिकायत रही
इस ज़माने की ऐसी रिवायत रही ।

इक हमीं पर न थी उनकी चश्मे करम
सब पे महफ़िल में उनकी इनायत रही ।

हम तो पीते हैं ये ज़हर ,पीना न तुम
उनकी औरों को ऐसी हिदायत रही ।

उड़ गई बस धुंआ बनके सिगरेट का
राख सी ज़िंदगी की हिकायत रही ।

भर के हुक्का जो हाकिम का लाते रहे
उनको दो चार कश की रियायत रही । 
 
अनसुनी बेकसों की रही दास्तां 
ज़ुल्म वालों को मिलती हिमायत रही । 
 
जिनकी झोली थी "तनहा" लबालब भरी 
सब मिले उनकी हसरत निहायत रही । 



POST : 83 बहती इंसाफ की हर ओर यहां गंगा है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

     बहती इंसाफ की हर ओर यहां गंगा है ( ग़ज़ल ) 

                    डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बहती इंसाफ की हर ओर यहां गंगा है
जो नहाये न कभी इसमें वही चंगा है।

वह अगर लाठियां बरसायें तो कानून है ये
हाथ अगर उसका छुएं आप तो वो दंगा है।

महकमा आप कोई जा के  कभी तो देखें
जो भी है शख्स उस हम्माम में वो नंगा है।

ये स्याही के हैं धब्बे जो लगे उस पर
दामन इंसाफ का या खून से यूँ रंगा है।

आईना उनको दिखाना तो है उनकी तौहीन
और सच बोलें तो हो जाता वहां पंगा है।

उसमें आईन नहीं फिर भी सुरक्षित शायद
उस इमारत पे हमारा है वो जो झंडा है।

उसको सच बोलने की कोई सज़ा हो तजवीज़
"लोक" राजा को वो कहता है निपट नंगा है।  
 

 

POST : 82 जा के किस से कहें हमको क्या चाहिए ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

 जा के किस से कहें हमको क्या चाहिए ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

जा के किस से कहें हमको क्या चाहिए
ज़हर कोई न कोई दवा चाहिए।

और कुछ भी तो हमको तम्मना नहीं
सांस लेने को थोड़ी हवा चाहिए।

हाल -ए -दिल आ के पूछे हमारा जो खुद
ऐसा भी एक कोई खुदा चाहिए।

अपनों बेगानों से अब तो दिल भर गया
एक इंसान इंसान सा चाहिए।

देख कर जिसको मिट जाएं दुनिया के ग़म
कोई मासूम सी वो अदा चाहिए।

जब कभी पास जाने लगे प्यार से
बस तभी कह दिया फ़ासिला चाहिए।

ज़िंदगी से नहीं और कुछ मांगना
दोस्त "तनहा" हमें आपसा चाहिए।

POST : 81 पास आया नज़र जो किनारा हमें ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

पास आया नज़र जो किनारा हमें ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

पास आया नज़र जो किनारा हमें
मौज ने दूर फेंका दोबारा हमें ।

ख़ुदकुशी का इरादा किया जब कभी
यूँ लगा है किसी ने पुकारा हमें ।

लड़खड़ाये तो खुद ही संभल भी गए
मिल न पाया किसी का सहारा हमें ।

हो गई अब तो धुंधली हमारी नज़र
दूर से तुम न करना इशारा हमें ।

दुश्मनों से न इतना करम हो सका
हमने चाहा जो मरना न मारा हमें ।

हमको मालूम है मौत देगी सुकूं
ज़िंदगी से मिला बोझ सारा हमें ।

बिन बुलाये यहां आप क्यों आ गये
सबने "तनहा" था ऐसे निहारा हमें ।   

अगस्त 25, 2012

POST : 80 कहां कुछ और मांगा है , यही इम्दाद कर दो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

     कहां कुछ और मांगा है , यही इम्दाद कर दो ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कहां कुछ और मांगा है ,यही इम्दाद कर दो
मिटा दो हर निशां मेरा ,मुझे बर्बाद कर दो ।

सुना है आपकी मांगी दुआ सुनता खुदा है
किसी दिन आप मेरे वास्ते फ़रियाद कर दो ।

हुआ मुश्किल बड़ा जीना हमारा अब जहां में
हमें अब जिंदगी की कैद से आज़ाद कर दो ।

ज़माना बन नहीं जाए कहीं दुश्मन तुम्हारा
मिलेगी हर ख़ुशी तुमको हमें नाशाद कर दो ।

ये दुनिया लाख दुश्मन हो हमें कुछ ग़म नहीं है 
हमारा साथ तुम देना उसे नक्काद कर दो ।

नहीं देते कसम लेकिन हमें तुमसे है कहना
मिलेंगे रोज़ हम दोनों यहां मीआद कर दो ।

सभी अपने यहां पर हैं ,नहीं हैं गैर "तनहा"
कहो अपनी सुनो उनकी अभी इतिहाद कर दो ।   
 

 
 

POST : 79 भुला दें चलो सब पुरानी खताएं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

भुला दें चलो सब पुरानी खताएं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

भुला दें चलो सब पुरानी खताएं
नई अपनी पहचान फिर से बनाएं ।

जो शिकवे गिले हैं निकालें दिलों से
करीब आ के हम हाथ अपने मिलाएं ।

न मुरझाएं चाहे बदल जाए मौसम
हम आँगन में कुछ फूल ऐसे खिलाएं ।

न हम जी सकेंगे न तुम दूर रह कर
तो फिर दूरियां ये न क्यूँ हम मिटाएं ।

हो टूटा हुआ सिलसिला फिर से कायम
हमें तुम बुलाओ तुम्हें हम बुलाएं ।

खताएं हमारी जफ़ाएं तुम्हारी
बहुत हो चुकीं अब चलो मान जाएं ।

ज़मीं आस्मां चाँद तारों के नग्में
फिर इक साथ मिलकर तरन्नुम से गाएं । 
 

 

अगस्त 24, 2012

POST : 78 बहुत खूब समझे इशारा तुम्हारा ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बहुत खूब समझे इशारा तुम्हारा ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बहुत खूब समझे इशारा तुम्हारा
नहीं अब मिलेगा सहारा तुम्हारा ।

नया और साथी तुम्हें मिल गया है
गया टूट नाता हमारा तुम्हारा ।

हुई भूल हमसे भी कोई तो होगी
नहीं दोष होगा ये सारा तुम्हारा ।

भुला कर हमें मत कभी याद करना
तभी हो सकेगा गुज़ारा तुम्हारा ।

हमारे सितारे रहें गर्दिशों में
चमकता रहे पर सितारा तुम्हारा ।

हमारी नज़र में अभी तक बसा है
था कितना हसीं वो नज़ारा तुम्हारा ।

तुम्हें रात सपने में देखा था "तनहा"
वही नाम फिर था पुकारा तुम्हारा । 
 


 

POST : 77 हादिसे इसलिए हैं होने लगे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हादिसे इसलिए हैं होने लगे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हादिसे इसलिये हैं होने लगे
कश्तियां नाखुदा डुबोने लगे ।

ज़ख्म खा कर भी हम रहे चुप मगर
ज़ख्म दे कर हैं आप रोने लगे ।

कल अभी  आपने  जगाया जिन्हें
देख लो आज फिर से सोने लगे ।

आप मरने की मांगते हो दुआ
खुद पे क्यों  एतबार खोने लगे ।

काम अच्छे नहीं कभी भी किये  
बस  नहा कर हैं पाप धोने लगे ।

लोग खुशियां तलाश करते रहे 
दर्द का बोझ और ढोने लगे ।

फूल देने की बात करते रहे 
खार "तनहा" सभी चुभोने लगे ।
 

 

POST : 76 सुनो इक कहानी हमारी ज़ुबानी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सुनो इक कहानी हमारी ज़ुबानी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सुनो इक कहानी हमारी जुबानी
नई भी नहीं है न है ये पुरानी ।

किसी ने किसी से किया प्यार इक दिन
रखी है छुपा कर अभी तक निशानी ।

वहीँ पर सुबह से हुई शाम अक्सर
सुहाने थे दिन और रातें सुहानी ।

नहीं भूल सकता कभी वो नज़ारा
किसी में थी देखी नदी की रवानी ।

वो क्या दौर था दोस्तो ज़िंदगी का
लुटा दी किसी ने किसी पर जवानी ।

अजब हाल देखा वहां पर सभी का
वहीं प्यास भी थी जहां पर था पानी ।

इसे तुम जुबां पर कभी भी न लाना
सुना दी है "तनहा" तुम्हें जो कहानी । 
 

 

POST : 75 हम सभी इस तरह बंदगी करते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हम सभी इस तरह बंदगी करते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हम सभी इस तरह बंदगी करते
दुश्मनी छोड़ कर दोस्ती करते ।

तुम अगर रूठते हम मना लेते
जो किया था कभी फिर वही करते ।

जी सकेंगे नहीं बिन तुम्हारे हम
इस तरह से नहीं दिल्लगी करते ।

क्यों नहीं छू लिया आसमां तुमने
काम मुश्किल नहीं गर कभी करते ।

छोड़ आये जिसे घर तुम्हारा है
बस यही सोचकर वापसी करते ।

ज़ुल्म सहते रहे हम ज़माने के
पर शिकायत किसी से नहीं करते ।

एक हसरत लिये चल दिये "तनहा"
मत लगाते गले बात ही करते । 
 

 

POST : 74 नहीं साथ रहता अंधेरों में साया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

नहीं साथ रहता अंधेरों में साया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

नहीं साथ रहता अंधेरों में साया
हुआ क्या नहीं साथ तुमने निभाया ।

किसी ने निकाला हमें आज दिल से
बड़े शौक से कल था दिल में बिठाया ।

कभी पोंछते जा के आंसू उसी के
था बेबात जिसको तुम्हीं ने रुलाया ।

निभाना वफा तुम नहीं सीख पाये 
तुम्हें जिसने चाहा उसी को मिटाया ।

चले जा रहे थे खुदी को भुलाये
किसी ने हमें आज खुद से मिलाया ।

खड़े हैं अकेले अकेले वहीँ पर
जहाँ आशियाँ इक कभी था बसाया ।

उसे याद रखना हमेशा ही "तनहा"
ज़माने ने तुमको सबक जो सिखाया ।
 

 

अगस्त 22, 2012

POST : 73 अब सुना कोई कहानी फिर उसी अंदाज़ में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

     अब सुना कोई कहानी फिर उसी अंदाज़ में ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ लोक सेतिया "तनहा"

अब सुना कोई कहानी फिर उसी अंदाज़ में
आज कैसे कह दिया सब कुछ यहां आगाज़ में ।

आप कहना चाहते कुछ और थे महफ़िल में ,पर
बात शायद और कुछ आई नज़र आवाज़ में ।

कह रहे थे आसमां के पार सारे जाएंगे
रह गई फिर क्यों कमी दुनिया तेरी परवाज़ में ।

दे रहे अपनी कसम रखना छुपा कर बात को
क्यों नहीं रखते यकीं कुछ लोग अब हमराज़ में।

लोग कोई धुन नई सुनने को आये थे यहां
आपने लेकिन निकाली धुन वही फिर साज़ में ।

देखते हम भी रहे हैं सब अदाएं आपकी
पर लुटा पाये नहीं अपना सभी कुछ नाज़ में ।

तुम बता दो बात "तनहा" आज दिल की खोलकर
मत छिपाओ बात ऐसे ज़िंदगी की राज़ में । 
 

 

POST : 72 राही नई पुरानी उसी रहगुज़र के हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

        राही नई पुरानी उसी रहगुज़र के हैं ( ग़ज़ल ) 

                            डॉ लोक सेतिया "तनहा"

राही नई पुरानी उसी रहगुज़र के हैं
जिस पर निशान गालिबो दाग़ो जिगर के हैं ।

जाने कहां कहां के हमें जानते हैं लोग
हमको तो ये गुमां था कि तेरे नगर के हैं ।

वो काफिले तो जानिबे मंज़िल चले गये 
बाकी रही है गर्द वहां हम जिधर के हैं ।

मिलते हैं अजनबी की तरह लोग किसलिये 
हम सब तो रहने वाले उसी एक घर के हैं ।

ये दर्दो ग़म भी खुद को करें किस तरह जुदा
रिश्ते हमारे इनसे तो शामो - सहर के हैं । 
 
साहिल की रेत को भी भला इसकी क्या खबर 
बिखरे पड़े हैं जो ये महल किस बशर के हैं । 
 
सुनसान शहर सारा अंधेरा गली गली
थोड़ा जिधर उजाला है "तनहा" उधर के हैं । 

यूट्यूब पर मेरा चैनल " अंदाज़-ए -ग़ज़ल " से वीडियो पेश करता हूं। 

आपको अच्छा लगे तो सब्सक्राइब लाइक कमेंट अवश्य करें। 


 


POST : 71 नफरत के बदले प्यार दिया है हमने ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       नफरत के बदले प्यार दिया है हमने ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

नफरत के बदले प्यार दिया है हमने
शायद ये कोई जुर्म किया है हमने ।

मरना भी चाहा , मर सके न हम लेकिन
लम्हा लम्हा घुट घुट के जिया है हमने ।

दिल में उठती है टीस सी इक रह रह कर
नाम उसका जो भूले से लिया है हमने ।

तू हमसे ज़िंदगी ,क्यों है बता रूठी सी
ऐसा भी क्या अपराध किया है हमने ।

हमको कातिल कहने वाले , ऐ नादां
तुझ पर आया हर ज़ख्म सिया है हमने ।

उसने अमृत या ज़हर दिया है हमको
जाने क्या यारो , आज पिया है हमने । 
 
साकी बन कर "तनहा" भर दो पैमाना
किस्मत से ख़ाली जाम लिया है हमने ।   
 

 

 




POST : 70 कहीं न कह दें दिल की बात ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कहीं न कह दें दिल की बात ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कहीं न कह दें दिल की बात
बन जाये महफ़िल की बात ।

डूब गई अश्कों के
सागर में साहिल की बात ।

मिलती नहीं ये मांगे से
मौत बड़ी मुश्किल की बात ।

एक ज़माना कातिल है
किससे कहें कातिल की बात ।

ज़हन में भूले भटकों के
उतर गई मंज़िल की बात ।

कहीं न लब पर आ जाये 
मदहोशी में दिल की बात ।

पायल की छमछम में भी
होती है दर्दे दिल की बात । 
 

 

POST : 69 वो पहन कर कफ़न निकलते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

वो पहन कर कफ़न निकलते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

वो पहन कर कफ़न निकलते हैं
शख्स जो सच की राह चलते हैं ।

राहे मंज़िल में उनको होश कहाँ
खार चुभते हैं , पांव जलते हैं ।

गुज़रे बाज़ार से वो बेचारे
जेबें खाली हैं , दिल मचलते हैं ।

जानते हैं वो खुद से बढ़ के उन्हें
कह के नादाँ उन्हें जो चलते हैं ।

जान रखते हैं वो हथेली पर
मौत क़दमों तले कुचलते हैं ।

कीमत उनकी लगाओगे कैसे
लाख लालच दो कब फिसलते हैं ।

टालते हैं हसीं में  वो उनको
ज़ख्म जो उनके दिल में पलते हैं ।  
 

 

POST : 68 सब से पहले आपकी बारी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सब से पहले आपकी बारी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सब से पहले आप की बारी
हम न लिखेंगे राग दरबारी ।

और ही कुछ है आपका रुतबा
अपनी तो है बेकसों से यारी ।

लोगों के इल्ज़ाम हैं झूठे
आंकड़े कहते हैं सरकारी ।

फूल सजे हैं गुलदस्तों में
किन्तु उदास चमन की क्यारी ।

होते सच , काश आपके दावे
देखतीं सच खुद नज़रें हमारी ।

उनको मुबारिक ख्वाबे जन्नत
भाड़ में जाये जनता सारी ।

सब को है लाज़िम हक़ जीने का
सुख सुविधा के सब अधिकारी ।

माना आज न सुनता कोई
गूंजेगी कल आवाज़ हमारी । 
 

 

POST : 67 हम तो जियेंगे शान से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हम तो जियेंगे शान से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हम तो जियेंगे शान से
गर्दन झुकाये से नहीं ।

कैसे कहें सच झूठ को
हम ये गज़ब करते नहीं ।

दावे तेरे थोथे हैं सब
लोग अब यकीं करते नहीं ।

राहों में तेरी बेवफा
अब हम कदम धरते नहीं ।

हम तो चलाते हैं कलम
शमशीर से डरते नहीं ।

कहते हैं जो इक बार हम
उस बात से फिरते नहीं ।

माना मुनासिब है मगर
फरियाद हम करते नहीं ।
 

 

POST : 66 तड़पा ही गया हिज्र में बरसात का आलम ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

      तड़पा ही गया हिज्र में बरसात का आलम ( ग़ज़ल ) 

                           डॉ लोक सेतिया "तनहा"

तड़पा ही गया हिज्र में बरसात का आलम
और उसपे उमड़ते हुए जज़्बात का आलम ।

याद आता है वो वक्ते मुलाकात हमारा
बरसात में भीगे हुए हालात का आलम ।

बस भीगते ही रहने में थी खैर हमारी
बौछार से कम न था शिकायात का आलम ।

दीवाना बनाने हमें रिमझिम में चला है
दुजदीदा निगाहों के इशारात का आलम ।

लफ़्ज़ों में बयाँ कर न सकूँगा मैं सुहाना
भीगी हुई जुल्फों की सियह रात का आलम । 
 

 

POST : 65 दिल में आता है सतायें उनको ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

दिल में आता है सतायें उनको ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

दिल में आता है सताएं उनको
बात ये कैसे बताएं उनको ।

एक मुद्दत हुई दीदार किये
किस बहाने से बुलाएं उनको ।

वो तो हर बात पे हंस देते हैं
कभी रूठें तो मनाएं उनको ।

ये सितम हमसे न होगा हर्गिज़
कि शबे हिज्र रुलाएं उनको ।

हमने पूछा था सवाल उनसे कभी
याद वो कैसे दिलाएं उनको ।

खुद ग़ज़ल हैं वो हमारे दिल की
क्या भला और सुनाएं उनको । 
 
चाह दिल में है अभी तक "तनहा"
कस के सीने से लगाएं उनको । 



 

POST : 64 राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहीं
झूठे ख्वाबों पे विश्वास करते नहीं ।

बात करता है किस लोक की ये जहां
लोक -परलोक से हम तो डरते नहीं ।

हमने देखी न जन्नत न दोज़ख कभी
दम कभी झूठी बातों का भरते नहीं ।

आईने में तो होता है सच सामने
सामना इसका सब लोग करते नहीं ।

खेते रहते हैं कश्ती को वो उम्र भर
नाम के नाखुदा पार उतरते नहीं । 
 

 

POST 63 ये सबने कहा अपना नहीं कोई ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ये सबने कहा अपना नहीं कोई ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ये सबने कहा अपना नहीं कोई
फिर भी कुछ दोस्त बनाए हमने ।

फूल उनको समझ कर चले कांटों पर
ज़ख्म ऐसे भी कभी खाए हमने ।

यूं तो नग्में थे मुहब्बत के भी
ग़म के नग्मात ही गाए हमने ।

रोये हैं वो हाल हमारा सुनकर
जिनसे दुःख दर्द छिपाए  हमने ।

ऐसा इक बार नहीं , हुआ सौ बार
खुद ही भेजे ख़त पाए  हमने ।

उसने ही रोज़ लगाई ठोकर 
जिस जिस के नाज़ उठाए हमने । 

हम फिर भी रहे जहां में "तनहा"
मेले कई बार लगाए  हमने । 
 

 

POST : 62 फिर कोई कारवां बनाएं हम ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

फिर कोई कारवां बनाएं हम ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

फिर कोई कारवां बनाएं हम
या कोई बज़्म ही सजाएं हम।

छेड़ने को नई सी धुन कोई
साज़ पर उंगलियां चलाएं हम।

आमदो - रफ्त होगी लोगों की
आओ इक रास्ता बनाएं हम।

ये जो पत्थर बरस गये  इतने
क्यों न मिल कर इन्हें हटाएं हम।

है अगर मोतियों की हमको तलाश
गहरे सागर में डूब जाएं हम।

दर- ब- दर करके दिल से शैतां को
इस मकां में खुदा बसाएं हम।

हुस्न में कम नहीं हैं कांटे भी
कैक्टस सहन में सजाएं हम।

हम जहां से चले वहीं पहुंचे
अपनी मंजिल यहीं बनाएं हम।

लोग सब चुप उदास महफ़िल है 
फिर से "तनहा" को ढूंढ लाएं हम। 
 

अब आप मेरी ग़ज़ल और नज़्म मेरे यूट्यूब चैनल : अंदाज़-ए-ग़ज़ल , पर भी सुन सकते हैं। 


 

POST : 61 भीगा सा मौसम हो और हम हों ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

भीगा सा मौसम हो और हम हों ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

भीगा सा मौसम हो और हम हों
भूला हुआ हर ग़म हो और हम हों।

फूलों से भर जाये रात रानी 
महकी हुई पूनम हो और हम हों।

झूल के झूले में आकाश छू लें  
रिमझिम की सरगम हो और हम हों।

भूली बिसरी बातें याद करके 
चश्मे वफा पुरनम हो और हम हों।

आकर जाने की सुध बुध भुलायें 
थम सा गया आलम हो और हम हों।

आओ चलें हम उन तनहाइयों में
जिन में सुकूं हरदम हो और हम हों।

मिल न सकें तो मौत ही हमको आये
रूहों का संगम हो और हम हों।

अब आप ये ग़ज़ल मेरे यूट्यूब चैनल पर भी सुन सकते है। 



अगस्त 20, 2012

POST : 60 दो आंसू ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

  दो आंसू ( कविता ) डॉ लोक सेतिया 

हर बार मुझे
मिलते हैं दो आंसू
छलकने देता नहीं
उन्हें पलकों से ।

क्योंकि
वही हैं मेरी
उम्र भर की
वफाओं का सिला ।

मेरे चाहने वालों ने
दिया है
यही ईनाम
बार बार मुझको ।

मैं जानता हूं
मेरे जीवन का
मूल्य नहीं है
बढ़कर दो आंसुओं से ।

और किसी दिन
मुझे मिल जायेगी
अपनी ज़िंदगी की कीमत ।

जब इसी तरह कोई
पलकों पर संभाल कर 
रोक  लेगा अपने आंसुओं को
बहने नहीं देगा पलकों  से
दो आंसू ।  
 

 

अगस्त 19, 2012

POST : 59 अपनी सूरत से ही अनजान हैं लोग ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

अपनी सूरत से ही अनजान हैं लोग ( नज़्म ) डॉ  लोक सेतिया 

अपनी सूरत से ही अनजान हैं लोग
आईने से यूँ परेशान हैं लोग ।

बोलने का जो मैं करता हूँ गुनाह
तो सज़ा दे के पशेमान हैं लोग ।

जिन से मिलने की तमन्ना थी उन्हें
उन को ही देख के हैरान हैं लोग ।

अपनी ही जान के वो खुद हैं दुश्मन
मैं जिधर देखूं मेरी जान हैं लोग ।

आदमीयत  को भुलाये बैठे
बदले अपने सभी ईमान हैं लोग ।

शान ओ शौकत है वो उनकी झूठी
बन गए शहर की जो जान हैं लोग ।

मुझको मरने भी नहीं देते हैं
किस कदर मुझ पे दयावान है लोग ।  
 

 

POST : 58 वक़्त के साथ जो चलते हैं संवर जाते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

वक़्त के साथ जो चलते हैं संवर जाते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

वक़्त के साथ जो चलते हैं संवर जाते हैं
जो पिछड़ जाते हैं वो लोग बिखर जाते हैं ।

जिनको मिलता ही नहीं कोई जीने का सबब
मौत से पहले ही अफ़सोस वो मर जाते हैं ।

मुश्किलों को कभी आसान नहीं कर सकते
उलझनों से , वो सभी लोग , जो डर जाते हैं ।

जो नहीं मिलता कभी जा के किनारों पे हमें
वो उन्हें मिलता है जो बीच भंवर जाते हैं ।

हम समझते हैं जिन्हें अपना वो गैरों की तरह
पेश आते हैं तो हम जीते जी मर जाते हैं ।

गैर अच्छे जो मुसीबत में हमारी आकर
दोस्तों जैसा कोई काम तो कर जाते हैं ।

आएगा कोई हमारा भी मसीहा बन कर
आस में, उम्र तो क्या , युग भी गुज़र जाते हैं ।  
 

दोस्तो अब आप मेरी नज़्म / ग़ज़ल मेरे यूट्यूब चैनल पर भी देख सुन सकते हैं। 

लिंक नीचे दिया गया है। अंदाज़-ए -ग़ज़ल। 


 

POST : 57 खुद-ब-खुद ज़ख्म भी भर जाते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

खुद-ब-खुद ज़ख्म भी भर जाते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

खुद-ब-खुद ज़ख्म भी भर जाते हैं
फायदा ज़हर भी कर जाते हैं ।

सीख जाते हैं भुलाना उनको
बन के जो गैर गुज़र जाते हैं ।

ख्वाब तो ख्वाब हैं उनका क्या है
नींद जो टूटी बिखर जाते हैं ।

एक तिनके का सहारा पा कर
डूबने वाले भी तर जाते हैं ।

इस से पहले कि उन्हें पहचाने
वो जो करना था , वो कर जाते हैं ।

फूल यादों पे चढ़ाओ उनकी
जीते जी लोग जो मर जाते हैं ।  
 
बैठ चुप-चाप कहीं पर "तनहा" 
जब हुई शाम तो घर जाते हैं । 



 

POST : 56 अब हमें दिल की बात कहने दो ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

अब हमें दिल की बात कहने दो ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

अब हमें दिल की बात कहने दो
हो जो मुमकिन तो अश्क बहने दो ।

सब चले जाएंगे कभी न कभी
कोई मेहमान अभी तो रहने दो ।

वक़्त इसका इलाज कर देगा
दिल को अब तो ये दर्द सहने दो ।

ख़त्म कर दो खामोशियों को आज
कहना है जो लबों को कहने दो ।

रोक पाई न इश्क को दुनिया
ये तो दरिया है इसको बहने दो ।

देखो खुद बन के तुम तमाशाई
हिलती दीवार घर की ढहने दो ।
 

 

POST : 55 बात दिल में थी जो बता न सके ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

बात दिल में थी जो बता न सके ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

बात दिल में थी जो बता न सके
आपबीती उन्हें सुना न सके ।

हमने कोशिश हज़ार की लेकिन
बेकरारी ए दिल छिपा न सके ।

बातें करते रहे ज़माने की
बात अपनी जुबां पे  ला न सके ।

चाह कर भी घटा सी जुल्फों को
उनके चेहरे से हम हटा न सके ।

हमने पूछा जो बेरुखी का सबब
वो बहाना कोई बना न सके ।

जाने वाले ने देखा मुड़ मुड़ कर
हम मगर उसको रोक पा न सके ।   
 
छोड़ कर दोस्त चल दिए "तनहा" 
हम भी गैरों के पास जा न सके । 



 
 

POST : 54 है शहर में बस धुआं धुंआ ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

है शहर में बस धुआं धुंआ ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

है शहर में बस धुआं धुआं
न रौशनी का कोई निशां ।

ये पूछती है नज़र नज़र
है आदमी का कोई निशां ।

समझ सके जो यहाँ है कौन
ज़रा सी इक बच्ची की जबां ।

कहीं भी दिल लगता ही नहीं
जो कोई जाये भी तो कहाँ ।

सुनाएँ कैसे किसी को हम
इक उजड़े दिल की ये दास्ताँ ।