जून 11, 2012

कहीं अल्फ़ाज़ सारे खो गये हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा "

कहीं अल्फ़ाज़ सारे खो गये हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा "

कहीं अल्फाज़ सारे खो गये हैं
तभी खामोश लब सब हो गये हैं ।

तड़पते ही रहे सारी उम्र जो
जगाना मत उन्हें  अब सो गये हैं ।

अदीबों में  नहीं कोई भी उनसा
चढ़ाये रोज़ सूली वो गये हैं ।

सुनाने दास्ताँ अपनी लगे जब
नहीं कुछ कह सके बस रो गये हैं ।

अगर है हौसला करना मुहब्बत
लुटे सब इस गली में जो गये हैं ।

उन्हें फिर भी नहीं रोटी मिली है
जो सर पर बोझ सबका ढो गये है ।

यहाँ कुछ फूल आंगन में उगाते
ये कैक्टस  किसलिये सब बो गये हैं ।

नहीं जाते , रकीबों के घरों में
जहाँ जाना नहीं था , लो गये  हैं ।

मनाते और "तनहा" मान जाते
नहीं फिर क्यों मनाने को गये हैं ।

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