विश्व आर्थिक मंच का विषकन्या प्रयोग ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
( ख़बर से सनसनी मची है कि डब्ल्यू ई एफ की वार्षिक बैठक में बेहद महत्वपूर्ण आयोजन में 2025 की सभा में 130 देशों के 3000 से अधिक दुनिया भर के नेताओं और अमीरों ने हिस्सा लिया जिस में जिस्मफ़रोशी की पार्टियों में 9 - 9 करोड़ में लड़कियां बुक करवाई गईं । भारत इस दौरान वैश्विक उद्यमियों से 20 लाख करोड़ से अधिक की निवेश प्रतिबद्धताएं हासिल करने में सफल रहा पांच केंद्रीय मंत्री और तीन राज्यों के मुख्यमंत्री भारत देश से अब तक के सबसे बड़े प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने गए थे । )
पुराने ज़माने में राजा लोग दुश्मन से दुश्मनी निकालने को विषकन्याओं का उपयोग किया करते थे अपने दुश्मन को खूबसूरत महिलाओं का उपहार भेजते जो विष शरीर के अंगों पर लगा अपना काम किया करती थी । राजा रियासत नहीं जागीर नहीं आजकल सरकार मंत्री और धनवान कारोबारी उद्योगपति बड़ी बड़ी कंपनियों के मालिक धंधा बढ़ाने को क्या नहीं करते हैं । कोई ऐसा भी है जिसने खुद को छोड़ सभी को नकली घोषित किया हुआ है सिर्फ मीडिया को विज्ञापनों से खरीद कर अपना झूठ बेच रहा है सच का लेबल लगाकर । अब भारत सरकार जनता को अन्य वर्गों को अनुदान सहयोग अथवा करोड़ों को अनाज भी देती है तो पैसा देश की जनता से वसूले करों से खज़ाने से खर्च किया जाता है लेकिन तस्वीर किसी एक राजनेता की लगाई हुई जतलाती है जैसे वही दानवीर है । इधर पुरानी परंपराओं आदर्शों और धर्म दान कर्म का बड़ा शोर है , चलो इक बार फिर से इक शासक की वास्तविक मिसाल की घटना को समझते हैं ।
रहीम और गंगभाट संवाद : -
इक
दोहा इक कवि का सवाल करता है और इक दूसरा दोहा उस सवाल का जवाब देता है ।
पहला दोहा गंगभाट नाम के कवि का जो रहीम जी जो इक नवाब थे और हर आने वाले
ज़रूरतमंद की मदद किया करते थे से उन्होंने पूछा था :-
' सीखियो कहां नवाब जू ऐसी देनी दैन
ज्यों ज्यों कर ऊंचों करें त्यों त्यों नीचो नैन '।
ज्यों ज्यों कर ऊंचों करें त्यों त्यों नीचो नैन '।
अर्थात
नवाब जी ऐसा क्यों है आपने ये तरीका कहां से सीखा है कि जब जब आप किसी को
कुछ सहायता देने को हाथ ऊपर करते हैं आपकी आंखें झुकी हुई रहती हैं ।
रहीम
जी ने जवाब दिया था अपने दोहे में :-
' देनहार कोउ और है देत रहत दिन रैन
लोग भरम मो पे करें या ते नीचे नैन ' ।
लोग भरम मो पे करें या ते नीचे नैन ' ।
आपने आजकल के ऐसे अमीरों के चर्चे सुने हैं लेकिन उनकी अमीरी की वास्तविकता सभी से छुपी रहती है । नहीं ये कोई तकदीर का खेल नहीं है , अभी किसी ने विवाह पर हज़ारों करोड़ खर्च किए जिसकी चर्चा हुई लेकिन उस आयोजन में कोई ऐसा भी विदेशी नाचने वाला बुलवाया गया था जो अश्लील भाव भंगिमाओं से महिलाओं का मनोरंजन करने को बदनाम है । आपको अचरज नहीं होता जब वही लोग धर्मं ईश्वर पूजा अर्चना भी ऐसे ही शानदार आडंबर पूर्वक करते हैं । कुछ कार्य आस्था प्रकट करने को निजि व्यक्तिगत होते हैं और कुछ विवाह समारोह में सभ्यता पूर्वक आयोजित करने को । लेकिन आजकल हर कोई प्रचार को पागल होकर उन का भी प्रचार करते हैं जो कोई गर्व की बात नहीं हो सकती है ।
आज़ादी के 77 साल बाद अधिकांश जनता को अधिकार बुनियादी सुविधाएं शिक्षा स्वास्थ्य नहीं देकर खैरात में पांच किलो अनाज बांटना किसी की तस्वीर नाम लगाकर लोकतंत्र कदापि नहीं है । कहते हैं दुनिया के सबसे पुराने दो कारोबार हैं राजनीति और वैश्यावृति । आधुनिक काल में ज़िस्म से ईमान तक बिकते हैं , टेलीविज़न अख़बार मीडिया बिकाऊ हैं सत्ता है ही घोड़ा मंडी कीमत मिलते सभी दलबदल लेते हैं । सवाल होना चाहिए था अर्थव्यवस्था का चर्चा हुई रंडीबाज़ार बनाकर समझ आया कि जिस को सभी कुछ चाहिए खुद को बेच दे अथवा हाथ फैलाये भीख मांगता रहे । जो चोर लुटेरे हैं साहूकार मालिक बनकर दानवीर कहलाते हैं खुद अपनी कमाई से धेला खर्च नहीं करते हैं । फिल्म वाले हिंसा नग्नता का धंधा कर मालामाल होकर गर्व करते हैं समाज को गंदगी परोस गलत दिशा दिखलाकर । अपना कर्तव्य अपना धर्म भूलकर सभी जनता को कर्तव्य और धर्म देशभक्ति का सबक पढ़ाते हैं जिस का कुछ भी खुद नहीं समझ पाते हैं । जो दवा केनाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है , मिल गए कितने ऐसे नीम हकीम कैसे कैसे रूप बना बहरूपिये ।
आखिर में शायर अख़्तर नज़्मी जी का इक शेर ज्यादा आया है :-