अगस्त 27, 2021

बिना रानी कहानी नहीं ( किस्सा राजा का ) { व्यंग्य } डॉ लोक सेतिया

बिना रानी कहानी नहीं  ( किस्सा राजा का ) { व्यंग्य } डॉ लोक सेतिया 

कोई महबूबा होती है तभी मुहब्बत की निशानी ताजमहल बनता है अमर होने को निशानी रह जाती है। राजा आखिर राजा होता है शासक बनकर मन की बात करने से चैन नहीं मिलता हसरत बाक़ी है इसिहास में उसकी अलग कहानी शामिल होनी चाहिए। सज धज शानो शौकत खूब मौज मस्ती जी भर कर मनमानी सारी दुनिया को घूमकर देखा फिर भी कैसा खालीपन ज़िंदगी में रह गया जाता नहीं सब आधा आधा लगता है। बात कहते हैं तो आधा सच आधा झूठ मिलकर झूठ का पुलिंदा बन जाता है। दरबारी लेखक महिमा गुणगान लिखना करना जानते हैं शासक की मर्ज़ी की आत्मकथा लिख देते हैं जिस में नज़र थोड़ा आता है ढकना अधिक पड़ता है। बीस साल शासन करने के बाद उनकी चाहत यही है कोई उनकी भी ऐसी कहानी लिखे जो ज़माना सदियों तक भूल नहीं पाये। कितने अच्छे साहित्यकारों से चर्चा की और सभी ने समस्या एक ही बताई जब तक शामिल रानी नहीं बन सकती आपकी कहानी नहीं। अविवाहित शासक भी हुए हैं मगर उनकी भी इक मुहब्बत अवश्य होती थी उनका जूनून उनका मकसद कुछ करने का आज़ादी हासिल करना समाज को अच्छा बनाने जैसे मकसद बड़े होते थे। सिर्फ कुर्सी से प्यार बेजान चीज़ों से लगाव अपनी विवाहिता पत्नी घर परिवार को छोड़ना बगैर कोई महान मकसद लिए लिखने को कहानी का विषय हो नहीं सकता है। सवाल आएगा राजा की पत्नी रानी बनकर नहीं जोगन बनकर भी नहीं रही खुश भी नहीं उदास भी नहीं अलग नहीं होकर भी पास भी नहीं ऐसा क्यों हुआ। कोई आरोप नहीं जुर्म नहीं सज़ा जीवन भर पाती रही इस वास्तविकता को छोड़ना मुमकिन नहीं है। माना सत्ता होने से सब मुमकिन हो जाता है मगर चांद पर दाग़ स्वीकार किया जाता है सूरज कहलाने को चेहरे पर धब्बा नहीं। 
 
राजा की आरज़ू है इक शानदार ऊंचा विशाल गगन को छूता भवन बनाया जाये जिस में सिर्फ इक उसी की खूबसूरत तस्वीरें सजाई गईं हों। चाहे कितने तरह के लिबास में लाखों तस्वीर किसी व्यक्ति की किसी चित्रशाला में लगाई जाएं दर्शक को अधिक समय तक लुभा नहीं सकती हैं। हर किसी के साथ कोई संगी साथी होना ज़रूरी है। आपने खुद को सबसे ऊपर सबसे बड़ा दिखलाने की खातिर अकेला और तन्हा कर लिया है लाखों की भीड़ में भी आप खुद को अजनबी महसूस करते हैं। कोई नाटक कोई फिल्म अकेले किरदार से बन नहीं सकती है कोशिश करते रहे हैं लोग खुद ही नायक निर्देशक पटकथा लेखक बन फिल्म बनाने की अंजाम दर्शक भी सिर्फ वही बनकर रह गए। आपकी ज़िंदगी में प्यार मुहब्बत की कोई दास्तां नहीं है केवल खुद को खुदा समझने का झूठा अहंकार रहा है। जो बाकी लोगों की अहमियत को स्वीकार नहीं करते हैं खुद उनकी कोई अहमियत रहती नहीं है। आपकी ज़िंदगी इक किस्सा बनकर रह गया है जिसको किसी किताब में दर्ज नहीं किया जा सकता है किस्सों में सच्चाई काम कपोल कल्पना अधिक होती है। कहीं खुद आप ज़िंदगी को किस्सा समझने की भूल कर पछता तो नहीं रहे। रानी का वजूद नहीं समझने वाले राजा की कोई कहानी बनती नहीं है।

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