अगस्त 27, 2019

कड़वी दवा मीठा ज़हर खोखला धर्म भटका समाज गंदी राजनीति ( यहां से वहां तक की बात ) डॉ लोक सेतिया

   कड़वी दवा मीठा ज़हर खोखला धर्म भटका समाज गंदी राजनीति 

                      ( यहां से वहां तक की बात ) डॉ लोक सेतिया 

    आज बहुत विषयों को लेकर साथ साथ लिखना है। मगर पहले दो ख़ास बातें हैं जो अपने तस्वीर पर देखी हैं लिखी हुई पढ़ भी ली मगर समझी नहीं लगता है। पहली बात डॉ लियो रेबेलो कहते हैं कि। अपने आप को शिक्षित करें अन्यथा , 1 डॉक्टर्स मरीज़ों को मरेंगे। 2 इंजिनीयर के बनाए पुल गिर जाएंगे। 3 धर्मगुरु मानवता और इंसानियत का कत्ल करेंगे और बांटेंगे। वकील अधिवक्ता और न्यायधीश अन्याय अत्याचार का साथ देंगे। इसलिए वो शिक्षा हासिल करें जो शुद्ध विचार आचरण और सभी की बराबरी की शिक्षा देते हों। अन्यथा देश और विश्व और मानवता का विनाश होना तय है। 

    पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं हैं मगर फिर भी ऊपर लिखी बातें पढ़कर लगता है वास्तव में हमारी शिक्षा में कुछ कमी रही है तभी हर कोई पढ़ता जो भी है सीखता पहली बात पैसा बनाना है किसी भी तरह से। जिस मकसद से पढ़ाई की थी शायद वो बात गौण हो जाती है और सफलता का पैमाना आपकी शोहरत और दौलत से आंकते हैं बेशक उसे पाने को अपने ईमान को भी मार दिया हो।

दूसरी तस्वीर अफ्रीका की कहावत की है जो ये बताती है कि , समझदार कभी भी सभी कुछ नहीं जानता ,  केवल मूर्ख  ही हैं जो सब जानते हैं। अपने आस पास समाज को देखते हैं तो सभी खुद को सब जानने वाला मानते हैं जिस की रत्ती भर जानकारी नहीं समझ नहीं उस को लेकर समझाते हैं हर किसी को। सुकरात कहते हैं जो सोचता है उसे सब पता है वो कुछ भी नहीं जानता और जिसको लगता है उसको सब कुछ नहीं मालूम वो कुछ जानता है।




       अब सिलसिलेवार स्वास्थ्य धर्म राजनीति समाज की वास्तविकता की बात। सबसे पहले हम लोगों की नासमझी की बात जो बिना विचारे समझने की कोशिश किये बातों में किसी की आकर खुद ही धोखा खाते हैं मगर सबक नहीं लेते हैं। मैं एक डॉक्टर हूं और 45 साल से अपना व्यवसाय करता रहा हूं और मैंने इस व्यवसाय से कोई दौलत नहीं कमाई है। खुद को सच्चा ईमानदार नहीं कह रहा मगर जो सच मेरा अनुभव है आपको बताता हूं। सही सलाह ईमानदारी से देने से शायद ही कोई मरीज़ खुश हुआ हो , ऐसा करने के बाद आपको आपकी फीस भी लोग नहीं देना चाहते हैं और अधिकतर मरीज़ आपको छोड़ जाते हैं। आपको कमाई करनी है तो उनकी मर्ज़ी से उनको दाखिल कर ग्लूकोज़ की बोतल और इंजेक्शन देना और अनावश्वक जांच लिख कर लैब से या घटिया दवा लिख कर केमिस्ट से कमाई का हिस्सा लेने का ढंग अपनाना होगा। जो लोग कहते हैं डॉक्टर्स लूटते हैं उनको ये करने पर विवश अपने ही किया है जो खुद चाहते हैं लाखों रूपये की आमदनी मगर डॉक्टर से उम्मीद करते हैं उचित ढंग से उपचार की फीस भी नहीं ले। हर कोई बड़े से बड़ा अमीर भी डॉक्टर से मुफ्त सलाह लेने की बात सोचता है। अब घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या। इस सब में हमारी सरकारों का भी बहुत अधिक योगदान है जो किसी गुनाह से कम नहीं है। सबसे पहले कोई नियम ही नहीं क्लिनिक अस्पताल को लेकर क्या क्या जगह सुविधा कितना स्टाफ कितना प्रशिक्षित और क्या सुविधा कितना उसका भुगतान लेना होगा। और कमीशनखोरी पर कोई अंकुश नहीं और अस्पताल है या कोई जानवरों का दड़बा है जिस में मरीज़ को साफ हवा पानी बैठने की जगह भी नहीं होती है। सरकार का कानून बनाने का लाभ क्या है अगर उसको लागू नहीं किया जाता और आज भी अस्पताल खुलते हैं जहां नियमानुसार नहीं खोले जा सकते हैं। अगर खुद को कोई ज़रूरत हो तो हम डॉक्टर शायद अपने जैसे किसी अस्पताल जाकर उपचार करवाना चाहते हैं हमेशा कोई अच्छा अस्पताल चुनते हैं और अधिकांश जो दवाएं अपने रोगियों को देते हैं खुद नहीं उपयोग करते और ये सभी पैथी के डॉक्टर्स की बात है। जानते हैं हम जो सुविधा देते हैं औसत दर्जे की है मगर दावा करते है यही सब से अच्छी है।

  आयुर्वेद को लेकर पहले भी लिखा है आज थोड़ा अलग ढंग से बात कहनी है। कोई बाबा जिस ने आयुर्वेद को लेकर कोई शिक्षा नहीं पाई और योग को लेकर जो मनचाहा कह कर कारोबार बनाया है कमाई की है। खुद उनका ही साथी योग के बावजूद बीमार होता है और आयुर्वेदिक दवाओं का पैरोकार होने के बाद और सबसे बड़ा झूठ कि हमने आयुर्वेद को लेकर शोध किया है कहने और हर रोग का उपचार जनता है दावा करने के बाद एलोपैथिक ईलाज करवाने को विवश है। बुराई अपने ईलाज या किसी पैथी में नहीं है बुराई लोगों को जो गुमराह किया उस से कितने लोग छले गए कोई नहीं जानता। मगर सरकार की आपराधिक लापरवाही है जो कोई कुछ भी झूठा सच्चा दावा कर सकता है और देश भर में अपने नाम पर नीम हकीम लोगों को ईलाज करने का अधिकार बांटता है और लोगों के जीवन से खलवाड़ करता है और ये अकेला नहीं है। आजकल आयुर्वेद के नाम पर रोग की दवा नहीं सौंदर्य प्रसाधन और ताकत की मानसिक परेशानी खत्म करने का तेल से निरोग रहने को च्वनप्राश या कोई टॉनिक बेचने जैसे काम पैसा बनाने को करते हैं मगर सरकार को कर को छोड़ कोई चिंता नहीं है। सच्ची बात ये है कि स्वास्थ्य सेवाओं से बढ़कर बीमार कोई व्यवस्था नहीं है।  हर पैथी अपनी जगह अच्छी है मगर सबकी सीमाएं भी हैं एलोपथिक दवाओं के दुष्प्रभाव भी हैं और आयुर्वेद को लेकर शोध की कमी भी है जिस का कारण सरकार का सौतेलापन रहा है , आज भी आधुनिक चिकित्सा और आयुर्वेद के बीच बजट की खाई बहुत बड़ी है।

     हैरानी की बात नहीं है कि देश की राज्य की सरकार को उचित शिक्षा और सही स्वास्थ्य सेवा उचित ढंग से उपलब्ध करवाने की ज़रूरत ही नहीं है। निजि लोगों के भरोसे छोड़ दिया गया है जनता को। आपको अच्छी स्वास्थ्य सेवा मिलती है आल इंडिया मेडिकल साईंसिस अस्पताल में ख़ास लोगों को तुरंत मगर जब कोई आम नागरिक जाता है दिल का वाल्व सिकुड़ गया है तब छह साल बाद की तारीख मिलती है। कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक। सवाल मुश्किल नहीं है मगर जब स्वास्थ्य शिक्षा को लेकर चिंता ही नहीं और हर विभाग काबिल और उस विषय के जानकर को नहीं सौंपते मंत्री बना और बंदरबांट की जाती है तब कोई व्यवस्था सुधर कैसे सकती है। अभी भी सरकार ने इक ज़रूरी बात को नहीं समझा है कि किसी महानगर के बड़े अस्पातल में नहीं हर कम से कम जिला स्तर तक बुनियादी सुविधाओं का उपलब्ध होना ज़रूरी है। बड़ी सड़कें इमारतें या पार्क और खूबसूरत माहौल रौशनियां उतनी महत्वूर्ण नहीं हैं। 

  अपने सरकार का चलन देखा है खुद सबसे बड़ा झूठ उसके इश्तिहार हैं जिनकी कोई ज़रूरत नहीं होती अगर जो कहते हैं वही सच होता। धर्म और भगवान के नाम पर भी यही है। राजनीति में सत्ता पाना मकसद है और जनकल्याण या देश समाज की बात केवल भाषण देने को विषय हैं। चुनाव से पहले ही कितने लोग सत्ताधारी दल की टिकट के दावेदार बन कर बड़े नेताओं की चाटुकारिता करते हैं। खूब धन लुटाते हैं उनकी जयजयकार पर उनके झूठे महिमामंडन पर उनको बुलवा कर या शहर आने पर उनके साथ तस्वीर बनवा उसको सोशल मीडिया पर डाल करीब होने का दावा दिखावा करने जैसे काम करने पर ज़ोर लगा देते हैं। जनता की सेवा की बात पर कहते हैं विधायक सांसद बनकर की जा सकती है। मगर यही लोग खुद को समाजसेवक भी घोषित करते हैं बिना समाज को कोई भी योगदान दिए हुए। लिखने वालों को सम्मानित होने का चस्का हुआ करता है और नाम के साथ परिचय में बहुत विस्तार से विवरण बताते हैं लेकिन इधर बड़े बड़े नेता देश विदेश से सम्मानित होने तमगे जमा करने में भूल जाते हैं उनका उदेश्य क्या है। सत्ता या विपक्ष दोनों जितना धन चुनाव लड़ने जीतने पर खर्च करते हैं उसी को गरीबों की ज़रूरतमंद लोगों की भूखे नंगे लोगों की सहायता पर खर्च करते तो जो कहते हैं शायद करने की बात सच हो भी सकती थी। मगर राजनीति को मूलयविहीन और स्वार्थ में अंधी बनाने में किसी तथाकथित महान नेता को भी कोई संकोच नहीं है।

उद्योग कारोबार करने वालों ने कमाई का कोई ईमानदारी से मापदंड नहीं रखा है। जबकि सीमा से अधिक मुनाफा कमाना कारोबार नहीं चोरी लूट डाका डालने का अहिंसक तरीका होता है जो पुण्य नहीं अपराध है अपने ही देश समाज के साथ। चाहे कोई जो भी करता है खुद ईमानदारी का पालन नहीं करता मगर बाकी किसी की बात हो तो जमकर बुराई करते हैं। किसी की देशभक्ति पर सवाल करने वाले किसी पहले नेता को दोष देने वाले नहीं जानते खुद उनका क्या योगदान है क्या जिसकी बुराई करते हैं उन जैसा भी काम कर सकते हैं। शानदार ज़िंदगी जीते हुए उनको बुरा भला कहना जिन्होंने समाज और देश के लिए लड़ाई लड़ी अन्याय का विरोध किया बड़ा आसान है। मगर खुद सच बोलते हुए घबराते हैं कहीं कोई मुसीबत नहीं पड़ जाये। सत्ता और स्वार्थ की राजनीति देश समाज की भलाई की बात तो नहीं होती है।

     धर्म कोई भी हो धर्म के नाम पर केवल उपदेश देते हैं खुद उस पर नहीं चलते हैं। तमाम ऐसे गुरु जो समझाते हैं खुद समझते तो अच्छा होता। गली गली धर्मस्थल बनाने से बेहतर बहुत धार्मिक कार्य किये जा सकते थे। विलासिता से आधुनिक सुख सुविधाओं साधनों का उपयोग करते हुए सादगी से जीने का उपदेश और अपने पर धन दौलत संपत्ति जमा करते जाना क्या ये त्याग की बात है क्या खुद को महाज्ञानी बताना इक अहंकार नहीं है और अहंकारी लोग साधु संत महात्मा नहीं हुआ करते हैं। सच्चा धर्म का उपदेश कोई नहीं देता आजकल कि सच्ची ईमान की कमाई अच्छी है झूठ की दौलत से। कुल मिलाकर हम ऐसा समाज बन गए हैं जो अपनी असलियत को छुपाने को विवश है क्योंकि खुद अपनी नज़र में हम जो कहते हैं या समझते हैं ऐसा होना अच्छा है होते नहीं हैं। हीरा खोकर कंकर पत्थर जोड़ रहे हैं हम लोग लगता है। सब औरों से जो उम्मीद करते हैं खुद उस पर खरे नहीं उतरते हैं। हमने अपनी दुनिया को खूबसूरत नहीं बनाया और भी बदसूरत बनाते जा रहे हैं। नहीं जानते किस दिशा जाना है और किस तरफ हम चले जा रहे हैं।

    


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