उन्हें कैसे जीना , हमें कैसे मरना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया " तनहा "
उन्हें कैसे जीना , हमें कैसे मरना ,
ये मर्ज़ी है उनकी , हमें क्या है करना।
सियासत हमेशा यही चाहती है ,
ज़रूरी सभी हुक्मरानों से डरना।
उन्हें झूठ कहना , तुम्हें सच समझना ,
कहो सच अगर तो है उनको अखरना।
किनारे भी उनके है पतवार उनकी ,
हमें डूबने को भंवर में उतरना।
भला प्यास सत्ता की बुझती कहीं है ,
लहू है हमारा उन्हें जाम भरना।
कहीं दोस्त दुश्मन खड़े साथ हों , तुम ,
नहीं भूलकर भी उधर से गुज़रना।
सभी लोग हैरान ये देख " तनहा "
हसीनों से बढ़कर है उनका संवरना।
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