आंसुओं से लिखी कथा ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया
लिखना कभी कभी बेहद कठिन हो जाता है। किसी के दर्द को कविता ग़ज़ल या कहानी में बयां कर सकते हैं अगर एहसास ज़िंदा हों। मगर किसी की बेदर्दी को बयां करने लगो तब शब्द तलाश करने कठिन होते हैं। सरकार की बेदर्दी की तस्वीर या पेंटिंग बनाना आसान है , हाथी के पैरों तले कुचलने की या ज़ुल्म ढाते कोड़े बरसते , आग लगते कई तरह से। मगर जब आप देखते हैं सरकार के मुखिया या अधिकारी आम जनता की बदहाली और बेबसी पर मुस्कुराते चेहरों से बयान देते हैं कि सब ठीक ठाक है और सब गलत होने के बाद भी दावा करते हैं कि हमने जो भी किया वो भी सही था और जो करना चाहिए पर किया नहीं वो भी सही था। बात कुछ हज़ार लोगों की नहीं है , बात कुछ शहरों की इक दिन की नहीं है। बात एक राज्य की नहीं है। बात उस की है जिस की जय बोलना समझा जाता है देशभक्ति का सबूत है।
वही भारतमाता आज जकड़ी हुई है बेड़ियों में। उसकी चीख दब कर रह जाती है उस शोर में जो उन्हीं लोगों के भाषण और तमाशों के शोर में सुनाई देती है मगर कोई सुनता ही नहीं। गाड़ियों का काफिला उसी भारतमाता की धरती को बेरहमी से कुचलता दौड़ता रहता है। सरकार बताती है वो ईमानदार है , मगर किस के लिए है उसकी निष्ठा नहीं बताती। जनता के लिए नहीं , संविधान के लिए नहीं , नियम कानून के लिए भी नहीं , सरकारों की ईमानदारी उन के लिए है जिन के पास उनका ज़मीर ईमान गिरवी रखा हुआ है। शायद इस सब की कल्पना भी आज़ादी की जंग लड़ने वालों ने नहीं की थी कि आज़ादी का अर्थ सत्ता का दुरूपयोग निजि स्वार्थ साधने और केवल सत्ता हासिल करने को अपना ध्येय समझना होगा। सब अधिकार केवल बड़े बड़े धनवान लोगों बाहुबलियों और ताकतवर लोगों के लिए और नियम कानून सब का डंडा आम गरीब सभ्य नागरिकों पर शासन करने के लिए।
सरकारी सहायता अनुदान ईनाम और पुरुस्कार लिखने वालों से उनकी कलम खरीद लेते हैं। अख़बार टीवी वालों का सच बदल जाता हैं जब पैसा मिलता है तब देने वाली सरकार या संस्था की ख़ुशी पहले दिखाई देती है। आज तक देश के सब से बड़े घोटाले पर कोई नहीं बोलता , क्योंकि सरकारी झूठे विज्ञापन ज़रूरी हैं। सब से तेज़ दौड़ने वाले इन की बैसाखी के बिना दो कदम भी नहीं चल सकते। मुंशी प्रेमचंद को जब तब की सरकार ने राशि देनी चाही हर महीने तब उन्होंने जाकर अपनी पत्नी को ये बताया। पत्नी ने कहा ये आपकी लेखनी का सम्मान है तो आपको स्वीकार कर लेना चाहिए , मगर उन्होंने कहा तब मैं आम गरीबों की बात किस तरह लिख सकूंगा। तब पत्नी ने कहा हमें गरीबी भूख मंज़ूर है मगर अपनी आज़ादी को गिरवी रखना नहीं। आज कोई लिखने वाला इनकार कर सकता है सरकारी ईनाम पुरुस्कार लेने से। कोई पत्नी चाहेगी पति के स्वाभिमान को बड़ा समझना धन दौलत को ठोकर लगाना।
इक अदालत ने इक फैसला दिया , इक गुनहगार को मुजरिम ठहराया , सज़ा दी। मगर न जाने कितने मुजरिम बेनकाब हो गए। सब की ज़ुबान पर यही बात है , हैरान हैं इतने ताकतवर आदमी के खिलाफ लड़ने का दुःसाहस। हम सब कायर लोग हैं समझाते हैं सरकार बड़ी ताकतवर है उसके खिलाफ मत बोलना , ये किसी साधारण व्यक्ति की कही बात नहीं है , उसके शब्द हैं जो गीता का उपदेश देने को विख्यात है। गीता का ज्ञान देता फिरता है और पापी लोगों को सम्मानित करता रहता मंच पर बुलाकर इक राशि लेकर। विषय से भटकना नहीं है , सब मानते हैं कि देश में जिनको अपराधियों को पकड़ना और जुर्म साबित कर सज़ा देनी है वो सब बेईमान और कायर लोग स्वार्थ के लिए अपना कर्तव्य नहीं निभाते , ऐसे में ताकतवर लोगों के अन्याय अपराध पर उनसे कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। जब हम हैरान होते हैं किसी साधनविहीन के अन्याय के खिलाफ जंग लड़ने और जीतने पर तब हम मान रहे होते हैं कि ये असम्भव काम था। अर्थात हमारी सारी व्यवस्था के मुंह पर इक तमाचा है ये।
आजकल लोकप्रियता को बड़ा महत्व दिया जाता है , रोज़ बताया जाता है कौन सब से लोकप्रिय है। लोकप्रिय होना अर्थात चर्चित होना , बुरे लोग चुनाव जीतने में काम आते हैं , बहुत लोग मशहूर हैं क्योंकि बदनाम हैं। साधु संत भी ऐसी बातें कहते हैं कि कान बंद करने की ज़रूरत लगती है। आजकल इक भगवान से शैतान बनने वाला सब से अधिक चर्चा में है। क्या पॉपुलर होना किसी को महान बनता है , बदनाम हैं तो क्या नाम तो है। पनामा केस में पड़ोसी देश में सत्ता के शीर्ष तक को सज़ा मिल गई मगर हमारे बड़े बड़े लोग शान से आज़ाद हैं , बाल भी बांका नहीं हुआ। रात फिर से करोड़पति बनाना शुरू किया इक महानायक ने किसी टीवी चैनल पर। कोई नहीं सवाल करता उस सवाल पूछने वाले से , इस खेल का सच क्या है। पहले ही एपिसोड में अधिकतर सवाल सत्ताधारी दल और नेता की चाटुकारिता छुपाये हुए थे। स्वच्छता अभियान शोचालय और सरकारी योजनाओं का मुफ्त प्रचार। ज्ञान का भंडार यही है , बड़े कठिन सवाल पूछे जाएंगे की बात और सवाल वो जिनका शोर है। झूठ को सच साबित करने का शोर। इसी नायक को झूठा किसान होने का प्रमाणपत्र जालसाज़ी से बनवा लोनावला में ज़मीन खरीदने का अपराधी अदालत ने पाया , मगर पंचायती ज़मीन को अपने नाम करवाने वाले को अदालत से बाहर समझौता का जान बचानी पड़ी थी , ये अलग बात है कि सदी के महानायक ने उस समझौते को भी ईमानदारी से नहीं निभाया और पंचायत की ज़मीन वापस करने की बात से मुकर कर भुमि अपनी साथी इक फ़िल्मी नायिका की एन जी ओ को दे आये।
आज कोई यकीन नहीं करेगा कोई गांधी हो सकता , जय प्रकाश नारायण हो सकता जिसको सत्ता नहीं जनहित और सच की चिंता हो। आपको जवाहरलाल नेहरू की तमाम बातें बताई गई होंगी , गलतियां भी कश्मीर और चीन को लेकर या अन्य निजि सच्ची झूठी कहानियां। मगर क्या किसी ने उनकी खूबी को बताया कि सब से लोकप्रिय नेता होने के बाद उन्होंने विपक्ष की आवाज़ को अनसुना नहीं किया। लोकतंत्र को मज़बूत किया , विपक्ष को आदर दिया। अटल बिहारी वाजपेयी जी की तारीफ ये कहकर की कि आपको हमारे दल में होना चाहिए। आज सरकार बदलने को नेताओं को तोड़ा जाता है अपनी सत्ता का विस्तार करते बिना विचार किये कि उसकी विचारधारा क्या है। दाग़ी है या अपराधी है। मैं किसी दल का पक्षधर नहीं हूं , मगर सोचता हूं क्या नेहरू ने अपनी बेटी को उत्तराधिकारी बनाना चाहा। ये लोकतंत्र ही था कि जिस सभा में नेहरू के बाद किसको प्रधानमंत्री बनाया जाये उस में लाल बहादुर शास्त्री जी जब आये तो उनको पता ही नहीं था क्या होने वाला है। कोई कुर्सी खाली नहीं दिखाई दी और वो द्वार से आती सीढ़ियों पर ही नीचे बैठ करवाई देखने लगे थे , जब उनका नाम प्रस्तावित किया गया तब किसी को ध्यान आया कि लालबहादुर जी अंत में हाल की सीढ़ियों पर बैठे हुए हैं और तब उनको आगे बुलाया गया। आज क्या है , तीन लोग बैठकर तय कर देते हैं बड़े से बड़े पद पर किसको बिठाना है। संविधान और लोकतंत्र की उपेक्षा कर देश को किधर ले कर जाना चाहते आप लोग।
आज का सच यही है। पुलिस प्रशासन नेता सरकार क्या मीडिया तक किसी आम व्यक्ति के साथ नहीं खड़ा होता न्याय दिलाने को। हां जब कोई शोर होता है किसी घटना की चर्चा होती है तब इक दो दिन खुद को सच का झंडाबरदार साबित किया जाता है , जबकि वही सच जाने कब से इनके पास किसी तिजोरी में संभाल कर रखा हुआ था , वक़्त आने पर बेचने को महंगे दाम पर। खुद बिके हुए लोग बाज़ार लगाए बैठे हैं। बहुत बाकी रह जाता लिखने को। आखिर मेरी इक ग़ज़ल के मतला पेश है।
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