अगस्त 11, 2017

POST : 708 भौंकने वाले और तलवे चाटने वाले ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

     भौंकने वाले और तलवे चाटने वाले ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

    आपको दस हज़ार में स्मार्ट फोन मिल सकता है बाज़ार में , और आप फेसबुक या व्हाट्सएप्प सोशल मीडिया पर मनचाही बात लिख सकते हैं , मगर लिखने की तहज़ीब आपको नहीं मिलती बाज़ार से। फेसबुक पर देखकर अफ़सोस होता है कि किसी की बात से सहमत नहीं हैं तो उसके लिए ही नहीं उसके जाति धर्म के लिए भी गालियां तक लिखते हैं। कल हामिद अंसारी जी ने जो कहा उनका अधिकार है वो कहना मगर आप खुद को समझते हैं बोलने का अधिकार है और उनकी बात पर उनको गाली देकर कहीं उनकी ही बात का समर्थन तो नहीं कर रहे। अधिकतर लोग पूरी बात सुनते ही नहीं हैं , उन्होंने बहुत सभ्य तरीके से आगाह किया है तो उसको किसी वरिष्ठ की सलाह समझना चाहिए न कि बिना समझे कुछ भी बोलना चाहिए। आप को अगर देश की इतनी ही चिंता है तब आप उस समय कहां होते हैं जब सत्ता का दुरूपयोग कर नेता संविधान की धज्जियां उड़ाकर अपना शासन किसी भी तरीके से कायम करते हैं। आप ही लोग दो दिन पहले किसी नेता के पक्ष में समर्थन की बात लिख रहे थे कि उसके बेटे ने किसी लड़की के साथ आपराधिक काम किया तो उस नेता को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए , सज़ा भी कैसी , कि कहीं उसे पद से हटा नहीं दिया जाये। भीड़ बनकर आप लूट मार सब करते हैं , जब मर्ज़ी कानून को ठेंगा दिखा आगजनी हत्या तक करते हैं। अपने दल के नेताओं के अपराधी साबित होने पर भी उन्हीं की जयजयकार करते हैं। मतलब को तलवे चाटते हैं और भड़काने पर भौंकने लगते हैं पालतू बनकर। बहुत बड़े समाज के चिंतक हैं तो घर बैठे फालतू की बहस को छोड़ बाहर निकल वास्तविक सार्थक काम करें , जिन के साथ अन्याय होता उनके साथ जाएँ , जो जो सरकारी दावे हैं मगर वास्तविकता नहीं हैं उसको देख कर सब को दिखलायें। सच की डगर पर चलते नहीं डगमगायें अपने पराये का भेद भूलकर झूठ को झूठ कहने का साहस जुटाएं। असली शेर हैं तो जाकर सत्ता से टकराएं कागज़ी हैं तो चुप चाप छुप कर गलियों की भाषा में रोयें और गायें। जाकर कहीं से आईना ले आयें और खुद को देख कर जो हैं समझ जाएं। अधिक नहीं कहना चाहता मगर इतना अवश्य कहना है उनकी पूरी बात पूरा भाषण सुनोगे तो समझोगे आपने क्या किया है। सूरज पर थूकने वालों की थूक उन्हीं के मुहं पर गिरती है। सभ्य भाषा नहीं आती तो खामोश रहना उचित है। गांधी जी की कही बात है आदमी बोलना कुछ साल में सीख जाता है मगर कैसे बोलना है इसे सीखने में ज़िंदगी लग जाती है। नफरत फैलाना आसान है , नफरत का अंत करना कठिन है। जो लोग फेसबुक व्हाट्सएप्प आदि पर इक साथ नफरत की बातें भी करते हैं और धर्म की बड़ी बड़ी बातें भी पोस्ट पर या फोटो के माध्यम से करते हैं उनको केवल औरों को घायल करने पर ख़ुशी महसूस होने की बीमारी है , सैडिस्टिक पलेयर। 

 

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